मंगलवार, 14 सितंबर 2021

तिथि, नक्षत्र और वार के देवता और ज्योतिष में नवीन अनुप्रयोग।


सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय तिथियों, नक्षत्रों और वार के देवताओं की शास्त्रोक्त जानकारी प्रस्तुत है।⤵️
तिथि-
ध्यान रहे तिथियों का आरम्भ समय और समाप्ति का समय केतकी ग्रहगणितम् आधारित पञ्चाङ्गों में ही देखें।

तिथियों के देवता -
1 प्रतिपदा के अग्नि देव, 
2 द्वितीय के ब्रह्मा जी, 
3 तृतीया की गौरी
4 चतुर्थी के गणेश
5 पञ्चमी के नागदेव
6 षष्टी के कुमार कार्तिकेय
7 सप्तमी के सूर्य
8 अष्टमी के शिव
9 नवमी की दुर्गा देवी, 
10 दशमी के यमराज 
11 एकादशी के विश्वेदेवाः
12 द्वादशी के विष्णु भगवान, 
13 तृयोदशी के कामदेव
14 चतुर्दशी के शंकर ,
15 पूर्णिमा के चन्द्रदेव और 
30 अमावस्या के देवता पितरः हैं।

नक्षत्र--
ध्यान रहे नक्षत्रों का आरम्भ समय और समाप्ति का समय केतकी ग्रहगणितम् आधारित पञ्चाङ्गों में या गुगल सर्च पर ही देखें।

 नक्षत्रों के भी देवता ⤵️
1 अश्विनी के अश्विनीकुमार (दस्र और नासत्य सूर्यदेव और अश्विनी के पुत्र हैं),
2 भरणी के यमराज (सूर्यदेव और सरण्यु के पुत्र, यमुना जी के भाई।)
3 कृतिका के अग्निदेव। (अग्नि वसु)
4 रोहिणी के ब्रह्मा जी।
5 मृगशीर्ष के सोम देव (जिनका निवास मृगशीर्ष नक्षत्र/ हिरणी के ताराओं में माना गया है। ) (सोम वसु।)
6 आर्द्रा के शिव
7 पुनर्वसु की अदिति (आदित्यों की माता)।
8 पुष्य के ब्रहस्पति (देवताओं के आचार्य।) (देवगुरु ब्रहस्पति देवता हैं। केवल विंशोत्तरी महादशा में पुष्प नक्षत्र के स्वामी शनि ग्रह बतलाये हैं। कर्मकाण्ड/ पूजा में इसका कोई महत्व नही है।)
9 आश्लेषा के सर्प। (सुरसा की सन्तान।)
10 मघा के पितरः (सप्त पितरः पहले तीन निराकार और बादके चार साकार हैं। 1 अग्निष्वात 2  बहिर्षद 3 कव्यवाह 4 अर्यमा 5  अनल , 6 सोम , 7 यम ।) (अर्यमा आदित्य भी है। यहाँ अर्यमा सप्त पितरः के मुखिया हैं।अनल और सोम वसु भी हैं।)
11 पूर्वाफाल्गुनी के भग आदित्य।
12 उत्तराफाल्गुनी के अर्यमा आदित्य।
13 हस्त के सवितृ आदित्य ।
14 चित्रा के त्वष्टा आदित्य।
15 स्वाती के वायुदेव  (वसु)
16 विशाखा के इन्द्राग्नि।  (इन्द्र आदित्य और अग्नि वसु)
17 अनुराधा के मित्र आदित्य।
18 ज्यैष्ठा के वरुण आदित्य। (मतान्तर से इन्द्र आदित्य।)
19 मूल के निऋति (राक्षसों के राजा)/ मतान्तर से निऋति को अलक्ष्मी अर्थात कालरात्रि भी मानते हैं।)
20 पूर्वाषाढ़ा के अप् (जल वसु)।
21 उत्तराषाढ़ा के विश्वैदेवाः। (1कृतु 2 दक्ष 3 श्रव 4 सत्य 5 काल 6 काम 7 मुनि 8 पुरुरवा 9 आर्द्रवसु 10 रोचमान मुख्य हैं। कहीँ कहीँ तीन तथा तिरसठ विश्वैदेवाः भी मानें गये हैं।)
22 अभिजित के विधि (ब्रह्म अर्धात विधाता  अर्थात सवितृ और सावित्री दोनों संयुक्त। )
23 श्रवण के विष्णु आदित्य (वामन अवतार)।
24 धनिष्टा के अष्ट वसु (1 प्रभास 2 प्रत्युष, 3 धर्म 4 ध्रुव 5 सोम 6 अनल  7 अनिल 8 आप या अपः)।
25 शतभिषा (शततारका) के इन्द्र आदित्य/ मतान्तर से वरुण आदित्य।
26 पूर्वाभाद्रपद के  अजेकपात रुद्र/ (अज एक पाद या अज का एक चरण।)
27 उत्तराभाद्रपद के अहिर्बुधन्य रुद्र।(सर्पधर।)
28 रेवती के पूषा आदित्य।

वार --
वार का आरम्भ सूर्योदय होते ही होजाता है। इसके पहले नही।
वार की समाप्ति अगले दिन के सूर्योदय होते ही होती है इसके पहले नही।

ग्रहों के अधिदेवता (मुख्य देवता) और प्रत्यधिदेवता
 (उपदेवता)  जो वार के भी देवता माने जाते हैं।

1 रविवार -  सूर्य  के अधिदेवता ईश्वर तथा  प्रत्यधिदेवता  अग्नि
2 सोमवार - चन्द्रमा की अधिदेवता  उमा तथा प्रत्यधिदेवता अप्  (जल)।
3 मंगलवार  -  मङ्गल के अधिदेवता स्कन्द (कार्तिकेय) तथा प्रत्यधिदेवता पृथ्वी
4 बुधवार - बुध के अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता दोनो ही विष्णु  हैं।
5 गुरुवार - ब्रहस्पति  के अधिदेवता ब्रह्मा तथा प्रत्यधिदेवता इन्द्र
6 शुक्रवार - शुक्र के अधिदेवता इन्द्र तथा प्रत्यधिदेवता इन्द्राणी (शचि)।
 7 शनिवार - शनि के अधिदेवता यम तथा प्रत्यधिदेवता प्रजापति
8 राहु के अधिदेवता काल तथा प्रत्यधिदेवता सर्प
9 केत के अधिदेवता चित्रगुप्त तथा प्रत्यधिदेवता ब्रह्मा

वासर या वार या दिन -- ध्यान रखें कि  वासर प्रवृत्ति सूर्योदय से होती है।  आपके ग्राम/ नगर का उस दिन और अगले दिन का सूर्योदय गुगलसर्च पर  देखें या केतकी पञ्चाङ्गों में ही देखें। पञ्चाङ्गों में प्रायः धर्मशास्त्रोक्त सूर्य का अर्धबिम्बोदय का समय दर्शाया जाता है। वही उचित भी है। किन्तु हर एक स्थान का सूर्योदयास्त पञ्चाङ्गों में नही मिल पाता अतः गुगल पर खोजें। लेकिन गुगल में सूर्योदय में सूर्य की उपरीकोर का दर्शन का समय और सूर्योदयास्त में सूर्य की उपरी कोर के अन्तिम दर्शन का समय बतलाया जाता है। इसकारण सूर्योदय लगभग तीन/ चार मिनट पहले और सूर्यास्त तीन चार मिनट बाद बतलाया जाता है। परिणामस्वरूप दिनमान सात-आठ मिनट बड़ जाता है। गुगल सर्च पर  हिन्दी में अपने ग्राम/ कस्बे का नाम या निकटतम नगर का नाम  और सुर्योदय समय लिखकर सर्च करें।
क्योकि  दो सूर्योदय के बीच का समय ही वार  कहलाता है। तात्पर्य यह कि, सूर्योदय के पहले वार चालू नही होता और समाप्त भी नही होता। न ब्रह्म मुहूर्त से न मध्यरात्रि से। बल्कि सूर्योदय से ही वार बदलता है।
रात्रि 00:00 बजे या रात 12:00 बजे Day & Date बदलते हैं। वार या तिथि, नक्षत्र नही बदलते।)

【नीचे कुछ नवीन जानकारी मेरे मत में  ⤵️
सुचना -- यह मेरी मान्यता है। मेने प्रयोगों एवम् निरिक्षणों में इसे जाँचा परखा और सही पाया। किन्तु यह कोई शास्त्रीय मत नही है अतः सर्वस्वीकार्य हो यह आवश्यक नही है। किसी के द्वारा न माननें पर मुझे कोई आपत्ति नही है।

1 - भूमि की अधिदेवता श्रीदेवी और प्रत्यधिदेवता भूदेवी
युरेनस (हर्षल) के अधिदेवता निऋति और प्रत्यधिदेवता विरोचन
नेपच्युन के अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधिदेवता वरुण

2 - वैदिक कालीन दशाह पद्यति को इस रूप में पूनर्प्रचलित किया जाना उचित होगा।
दशाह के वासर --
1रविवासर, 2 सौम्य वासर, 3 बुधवासर, 4 शुक्र वासर, 5 भूमिवासर, 6 मंगलवासर, 7 ब्रहस्पति वासर,8 शनिवासर, 9 निऋति वासर, 10 अदिति वासर।

3 इसी प्रकार अंकविद्या में अंको का स्वामित्व भी इसप्रकार निर्धारित कर संस्कृत पद्यति से जन्मनाम निकालकर अंकविद्या अनुसार नाम निर्धारण किया जाना उचित होगा।
अनको के देवता और स्वामी ग्रह -- 
अंक स्वामी ग्रह। अधिदेवता / प्रत्यधिदेवता
0      सूर्य          सवितृ / त्वष्टा                            00
1      चन्द्रमा      वरुण / सोम                              01
2      शुक्र          रुद्र / अहिर्बुधन्य                        02
3      शनि          यम / अश्विनौ                            03
4      मङ्गल        अग्नि / विश्वैदेवाः                       04
5      भूमि          विष्णु / विष्णु (सूर्य से 180° पर) 05
6       बुध           वायु / वसु                               06
7       ब्रहस्पति    ब्रहस्पति / प्रजापति                   07
8       युरेनस       निऋति/ सर्प/ पितृ                    08
9       नेपच्युन      इन्द्र /अदिति                            09     

नामकरण की सुविधार्थ अक्षरों के अंक⤵️

नाम की संस्कृत, / हिन्दी या मराठी वर्तनी के अक्षरों के अंक।

नाम सरनेम सहित जन्मसमय के सायन सौर गतांश का ईकाई अंक और नाम सरनेम सहित जन्म नाम के अंको को जोड़कर प्राप्त योगफल का ईकाई अंक  एक ही हो।

0-   अ,  क,  ट,  प,  ष,  अः, क्ष, ऽ     0

1-  आ,  ख,  ठ,  फ,  स,  त्र ,           1

 2-   इ,   ई,   ग,   ड,  ब,  ह ,           2

 3-   उ,   ऊ,  घ,   ढ,  भ, ळ            3

 4-   ऋ,   ङ, ण,  म,                       4
  
 5-    ए,   च,  त,  य,                       5

 6-    ऐ,   छ,  थ,  र,  ज्ञ,                  6

 7-   ओ,  ज,  द,  द,  ल, ड़,ॉ           7

 8-   औ,  झ,  ध,  व,  ढ़ ऴ                8
 
 9-    अं,  ञ,   न,  श,                        9

  0-    अ,  क,  ट,  प,  ष,  अः, क्ष, ऽ     0   

जन्मनाम निर्धारण संस्कृत पद्यति से।
देखिये अग्निपुराण अध्याय 293 श्लोक 10 से 15 तक।
यह विधि अग्नि पुराण  मन्त्र - विद्या  के अन्तर्गत नक्षत्र - चक्र, राशि चक्र और सिद्धादादि मन्त्र शोधन प्रकार।से ली गई है।

जन्मलग्न के नक्षत्र चरण के अनुसार जन्मनाम/ देह नाम रखें।
नही बने तो अपवाद में दशम भाव स्पष्ट के नक्षत्र चरणानुसार कर्मनाम भी रख सकते हैं।
सुर्य के नक्षत्र चरणानुसार गुरु प्रदत्त अध्यात्मिक नाम / आत्म नाम।
तन्त्र क्रिया हेतु तान्त्रिक आचार्य प्रदत्त नाम मानस नाम जन्म कालिक चन्द्रमा के नक्षत्र चरणानुसार रखें।

राशि/नक्षत्र के चरणानुसार जन्म नाम का प्रथम वर्ण


राशि /नक्षत्र चरण    1   2    3   4  
  
मेष  /   अश्विनि       अ  अ   अ  अ                              मेष  /    भरणी       आ आ  आ  आ                            मेष  /   कृतिका      इ    
                 
                          1   2    3   4  

वृष   / कृतिका            इ    ई    ई
वृष   / रोहिणी      उ   उ   ऊ   ऊ
वृष   / मृगशिर्ष     ऋ  ऋ  

                          1   2    3   4  

मिथुन/ मृगशिर्ष               ऋ  ऋ
मिथुन/ आर्द्रा         ए   ए    ऐ   ऐ
मिथुन/पुनर्वसु       ओ  ओ  औ 

                           1   2    3   4  

कर्क  / पुनर्वसु                      औ
कर्क  / पुष्य           अं  अं  अः अः
कर्क  / आश्लेषा      क  क  ख  ख 

                             1  2    3   4  

सिंह  / मघा             ग  ग    घ  घ
सिंह/पुर्वाफाल्गुनि     च  च   छ  छ
सिंह/उत्तराफाल्गनि   ज

                                1  2    3   4  

कन्या/उत्तराफाल्गुनि     ज  झ  झ
कन्या  /  हस्त               ट  ट    ठ  ठ
कन्या  /  चित्रा              ड  ड   

                                  1  2    3   4  

तुला  /    चित्रा                         ढ  ढ
तुला  /    स्वाती              त  त   थ  थ
तुला  /  विशाखा             द   द   ध    

                                    1  2    3   4  

वृश्चिक/ विशाखा                             ध
वृश्चिक/ अनुराधा              न  न    न   न
वृश्चिक/ ज्यैष्ठा                  प  प   फ  फ

                                     1  2    3   4  

धनु   /  मुल                     ब  ब   भ  भ
धनु   / पुर्वाषाढ़ा               म  म   म   म
धनु  / उत्तराषाढ़ा              य

                                      1  2    3   4  

मकर/ उत्तराषाढ़ा                   य    य   य
मकर /  श्रवण                    र   र    र   र
मकर / धनिष्ठा                    ल  ल

                                      1   2    3   4  

कुम्भ / धनिष्ठा                               ल  ल
कुम्भ / शतभिषा                 व   व    व  व
कुम्भ / पुर्वाभाद्रपद             श  श   ष  

                                       1  2    3   4  

मीन /  पुर्वाभाद्रपद                              ष
मीन / उत्तराभाद्रपद            स  स    स   स
मीन /  रेवती                      ह  ह     ह   ह


मात्रा लगाने की विधि / नियम --

प्रथम एवम् त्रतीय चरण में मुल स्वर हैं। द्वितीय और चतुर्थ चरण में आ से औ तक की मात्रा वाले अक्षर  जन्मनाम का प्रथमाक्षर रहेगा।

जिन नक्षत्रों में प्रथम और त्रतीय चरण में अलग अलग वर्ण हो उनमें द्वितीय चरण में प्रथम चरण के वर्ण में और चतुर्थ चरण में त्रतीय चरण के वर्ण में ००ं-००' से ००ं-२०' तक ा की मात्रा लगायें। तदनुसार ही आगे भी ००ं-२१' से ००-४०' तक ि  की मात्रा लगायें।००ं-४१' से ०१ं-००' तक ई की मात्रा ।०१ं-०१' से ०१ं-२०' तक ु की मात्रा।०१ं-२१' से ०१ं-४०' तक ू की मात्रा।०१ं-४१' से ०२ं-००' तक ृ की मात्रा।०२ं-०१' से ०२ं-२०'  तक   े की मात्रा।०२ं-२१ से ०२ं-४०' तक ै की मात्रा। ०२ं-४१' से ०३ं-००' तक ो की आत्रा । और , ०३ं-००' से ०३ं-२०' तक ौ की मात्रा लगाकर नाम का प्रथमाक्षर रखें।

जबकि, जिन नक्षत्रों में चारों चरणों में एक ही व्यञ्जन हो वहाँ प्रथम एवम् द्वितीय चरण में मुल वर्ण से नाम का प्रथमाक्षर रहेगा।जबकि, तृतीय और चतुर्थ चरण में ००ं-००' से ००ं-४०' तक ा की मात्रा लगायें। तदनुसार ही आगे भी ००ं-४१' से ०१-२०' तक  ि  की मात्रा लगायें। ०१ं-२१' से ०२ं-००' तक ई की मात्रा ।०२ं-०१' से ०२ं-४०' तक ु की मात्रा । ०२ं-४१' से ०३ं-२० तक ू की मात्रा।०३ं-२१' से ०४ं-००' तक ृ की मात्रा।०४ं-०१' से ०४ं-४०'  तक   े की मात्रा।०४ं-४१ से ०५ं-२०' तक ै की मात्रा। ०५ं-२१ से ०६ं-००' तक ो की आत्रा । और , ०६ं-०१' से ०६ं-४०' तक ौ की मात्रा लगाकर नाम का प्रथमाक्षर रखें।】

सुचना -- मेरी मंशा तो असमान भोगांश वाले अट्ठाइस नक्षत्रों के चरणों के अनुसार नामकरण करनें की विधि विकसित करनें की थी। किन्तु  तैत्तरीय संहिता आदि प्राचीन वैदिक खगोलशास्त्रिय ग्रन्थों में स्थिर भृचक्र (Fixed Zodiac) में नक्षत्रों की दर्शाई गई आकृति के असमान भोगांश वाले अट्ठाइस नक्षत्रों के योगतारा को केन्द्र मानकर नक्षत्र योगतारा के आसपास असमान भोगांश वाले नक्षत्र के चरणानुसार नाम का प्रथमाक्षर निर्धारण करने की थी। 
किन्तु ऐसे असमान भोगांश वाले अट्ठाइस नक्षत्रों की दर्शाई गई आकृति के आरम्भ और समाप्ति वाले भोगांश की सुची और नक्षत्र चरणों के आरम्भ और समाप्ति वाले भोगांश की सुची उपलब्ध न होनें से आधुनिक 13°20' के समान भोगांश वाले सत्ताईस नक्षत्र और 03°20' के समान भोगांश वाले नक्षत्र चरणानुसार जन्मनाम के प्रथम वर्ण निर्धारित करना पड़े।

वर्तमान गलत परम्पराएँ ---

आजकल लोग ईश्वर, भगवान और देवी-देवताओं  को एलोपैथिक दवाई जैसा उपयोग करने लगे हैं। जैसे पिछली बार डिस्प्रिन से दर्द बन्द नही हुआ तो इसबार पेरासिटामोल लेलिया। ऐसे ही आज इस देवता को पूज लिया कल दुसरे को पटालेंगे।
इष्टदेव कौन है यह तो कोई समझता ही नही।
जो समझते हैं वे भी कभी इष्ट देवता को, कभी कुलदेवता को, कभी दिन विशेष के देवता को तो कभी कार्य विशेष के लिए देवता को जैसे परीक्षा में सरस्वती जी तो धनप्राप्ति हेतु लक्ष्मीजी को पटालो।
ये कोई पूजा (सेवा) हुई। पूजा में पूर्ण समर्पण चाहिए। अव्यभिचारिणी भक्ति चाहिए।
रविवार के देवता ईश/ ईश्वर और अग्नि हैं लेकिन लोग सूर्याय नमः लिखते हैं यहाँ तक भी ठीक पर सवितृ और सूर्य (मार्तण्ड) का अन्तर तो कोई जानता समझता नही लेकिन ज्ञानोपदेश अवश्य प्रेषित कर देते हैं।
सोमवार या तो नमः शिवाय या चन्द्रदेव को नमस्कार।सोम और चन्द्रमा का अन्तर कोई जानता नही। पर ज्ञान जरूर बघारते हैं। जबकि सोमवार के देवता उमा और अप् हैं।
मंगलवार को हनुमानजी याद आ जाते हैं। महारष्ट्रीय गाणपत्य सम्प्रदाय वालों को मंगलवार को सिद्धिविनायक याद आते हैं। जबकि मंगलवार के देवता कार्तिकेय और भूमि है।
बुधवार विष्णु का वार है लेकिन इसदिन विष्णुजी को कोई नही पूछता। मालवा में लोगों को गणेशजी याद आजाते हैं।
गुरुवार ब्रह्माजी और इन्द्र का वार है पर इसदिन ब्रह्माजी और इन्द्रदेव को कोई नही पूछता लोगों को नारायण याद आजाते हैं।
शुक्रवार इन्द्र और शचि (इन्द्राणी) का वार है पर इन्द्रदेव और इन्द्राणी को कोई नही पूछता सब लक्ष्मीजी को प्रणाम करने लगते हैं। शनिवार को भय के मारों को शनिदेव और हनुमानजी याद आ जाते हैं।
पर यमराज और प्रजापति को कोई याद नही करता।
तिथियों का महत्व तो नगण्य लोग ही जानते हैं। कुछ लोग ही सप्तमी के स्थान पर षष्टी को सूर्य की पूजा करते हैं।, अष्टमी को शिवजी के स्थान पर देवी की पूजा करते हैं जबकि नवमी को दुर्गा देवी को भूल जाते हैं। एकादशी को विश्वेदेवाः के स्थान पर विष्णु जी को याद करते हैं लेकिन विष्णुजी की तिथि द्वादशी को भगवान विष्णु को भूल जाते हैं। तृयोदशी को यदि प्रदोष हो तो शंकरजी को याद करते हैं जबकि तिथि कामदेव की है और शंकरजी की तिथि चतुर्दशी को शंकरजी को कोई नही पूछता। पूर्णिमा को चन्द्रमा और अमावस्या को सप्त पितरः को याद नही करते।

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