कत्थक में श्रीकृष्ण ग्यारह वर्ष से अधिक अवस्था के लग रहे हैं।
योगेश्वर चक्रधर नारायणी सेना के संस्थापक श्रीकृष्ण को केवल माखन चोर, गोपियों के वस्त्र हरण करने वाले और रास रचैया बतलाने वाले जयदेव रचित गीत गोविन्द और ब्रह्म वैवर्त पुराण ने सनातन वैदिक धर्मियों का बहुत चारित्रिक पतन किया।
कत्थक की तुलना में भरत नाट्यम में ये दोष नहीं पाये जाते हैं
यही स्थिति शिव पुराण आदि ग्रन्थों ने विष विज्ञानी, अस्त्र-शस्त्रों के निर्माता, व्याकरण, नाट्यशास्त्र आदि विषयों के मर्मज्ञ महायोगी भगवान शंकर जी को भी गंजेड़ी, भंगेड़ी, धतुरा आदि सेवन कर नशे में धूत होकर पार्वती को नग्न कर नचवाने वाला सिद्ध कर दिया और युवाओं का चरित्र भ्रष्ट कर दिया।
महाभारत में जहाँ दक्ष यज्ञ में भगवान शंकर जी को यज्ञ भाग दिलवा कर पार्वती जी और भगवान शंकर दोनों प्रसन्नता पूर्वक कैलाश लौट जाते हैं, वहीं शिव पुराण में दक्ष पुत्री सती को यज्ञ में ही आत्मदाह कर भस्म हो जाना, सती के भस्मीभूत शव को कन्धे पर टांग कर शंकर जी का विक्षिप्त की भाँति भ्रमण करना, भगवान विष्णु द्वारा चक्र से सती के शव के इक्यावन टुकड़े करने से जहाँ-जहाँ जो टुकड़ा गिरा वहाँ-वहाँ शक्ति पीठ स्थापित होना, हिमाचल और मेना की सन्तान पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म होना, फिर कठोर तपस्या खर शंकर जी से विवाह करना आदि असत्य घटनाएँ जोड़ कर उमा पार्वती को मरण धर्मा मानवी सिद्ध कर दिया। जबकि केन उपनिषद में हेमावती उमा को ब्रह्मज्ञानी देवी बतलाया है।
ऐसे ही वाल्मीकि रामायण में किष्किन्धाकाण्ड और युद्ध काण्ड में रावण की लङ्का गुजरात के भरूच से दक्षिण में सौ योजन अर्थात 1287 किलोमीटर और केरल के कोझीकोड से पश्चिम में 23 योजन अर्थात 296 किलोमीटर लक्ष्यद्वीप में बतलाई है और विश्वकर्मा पूत्र नल जैसे विश्वकर्म प्रवीण इंजिनियर ने कोझीकोड से किल्तान द्वीप तक 296 किलोमीटर का सेतु बनाया था।
जबकि, कवि कम्बन ने शायद रावण को तमिल सिद्ध करने के चक्कर में सिंहल द्वीप, श्रीलङ्का/ सिलोन को रावण की लंका बतला दिया।रावण का अत्यधिक महिमा मण्डन भी कर दिया।
और रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान श्री रामचन्द्र द्वारा होना बतला दिया। जिसे तुलसीदास जी ने खूब प्रचारित कर दिया।
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