गुरुवार, 29 मई 2025

वैदिक धर्म के अत्यावश्यक ग्रन्थ।

ऋग्वेद -ब्रह्माण्ड विज्ञान, धर्म-दर्शन,
यजुर्वेद सामाजिक विज्ञान, नीति- दर्शन, कर्मकाण्ड,
सामवेद - स्तुति गायन, और प्राण विद्या और अथर्ववेद - क्रियाएँ एवम विज्ञान - तकनीकी
उक्त वेदों की व्याख्या - ब्राह्मण ग्रंथों में है। जिनके पूर्वाध में वर्णाश्रम धर्म-नीति, व्यवहार, कर्मकाण्ड, यज्ञ आदि है उत्तरार्ध में पहले ब्रह्माण्ड विज्ञान और अन्त में आरण्यक (वानप्रस्थाश्रम के धर्म-कर्म, गुरुकुल संचालन आदि) तथा अन्त में उपनिषद हैं। इसलिए उपनिषदों को वेदान्त कहते हैं। उपनिषदों में आत्मज्ञान और अपरोक्ष ब्रह्मज्ञान है। इसलिए श्रीमद्भगवद्गीता में उपनिषदों को ब्रह्म सूत्र कहा है।

सूत्र ग्रन्थ --- ब्राह्मण ग्रन्थों में उल्लेखित कर्मकाण्ड की क्रिया विधि - निषेध, कर्मकाण्डी के धर्माचरण, के लिए सूत्र ग्रन्थ हैं। *सूत्र ग्रन्थ षड वेदाङ्ग के भाग है।*

वेदाङ्गो के वर्णित विषय -

1. शिक्षा - वेदस्‍य वर्णोच्‍चारणप्रकिया ।


2. व्याकरणम् - शब्‍दनिर्माणप्रक्रिया ।


3. ज्योतिषम् - कालनिर्धारणम् ।


4. निरुक्तम् - शब्‍दव्‍युत्‍पत्ति: ।


5. छन्द - या पिङ्गल शास्त्र


6. कल्पः -


कल्प के अन्तर्गत

 
1श्रोत सूत्र - बड़े-बड़े सत्र यज्ञों की विधि- निषेध।


2 गृह्यसूत्र - वार्षिक यज्ञ (पञ्च दिवसीय वार्षिक यज्ञ वर्षान्त से नव संवत्सर प्रारम्भ 16 मार्च से 20 मार्च तक चलते थे।)

फिर 21 मार्च वसन्त विषुव सायन मेष संक्रान्ति को संवत्सर प्रारम्भ यज्ञ)

अर्ध वार्षिक यज्ञ --
(21 मार्च से 22 सितम्बर तक उत्तर गोल या वैदिक उत्तरायण/  23 सितम्बर से 20 मार्च तक दक्षिण गोल या वैदिक दक्षिणायन)
अर्ध वार्षिक और त्रेमासिक यज्ञ -(23 जून से 21 दिसम्बर तक उत्तर तोयन या परम्परागत दक्षिणायन/22 दिसम्बर से 21 जून तक दक्षिण तोयन या परम्परागत उत्तरायण)

ऋतु यज्ञ - 21 मार्च वसन्त ऋतु यज्ञ (आजकल गुड़ी पड़वा), 22 मई ग्रीष्म ऋतु  यज्ञ, 23 जुलाई वर्षों ऋतु यज्ञ (आजकल दिवासा या हरियाली अमावस्या), 23 सितम्बर शरद ऋतु यज्ञ (आजकल शरद पूर्णिमा), 22 नवम्बर हेमन्त ऋतु यज्ञ (दीवाली -अग्रहायण/ अन्नकूट), 21 जनवरी शिशिर ऋतु यज्ञ।
मासिक यज्ञ - बारह सायन संक्रान्तियों पर ।
पाक्षिक यज्ञ- अमावस्या -प्रतिपदा पर और पूर्णिमा -प्रतिपदा पर।
नित्यकर्म- पञ्च महायज्ञ।
इनके अलावा व्रत, पर्व, उत्सव और त्यौहार मनाने के विधि-विधान -निषेध का वर्णन।

3 धर्म सूत्र -  प्राकृतिक, स्वाभाविक,जीवन यापन के लिए धर्म शास्त्र - कर्तव्य कर्म या कार्य कर्म करने के विधि-विधान और निषेध, अकर्तव्य कर्म या विकर्म तथा अकर्तव्य कर्म या विकर्म करने और कर्तव्य कर्म या कार्य कर्म न करने का प्रायश्चित एवम् निषिद्ध कर्म करने का दण्ड वर्णन।

4 *शुल्ब सुत्र* - 

*संस्कार और यज्ञ सत्र के लिए* *सृष्टि ,ब्रह्माण्ड, सोलह भुवन और अठारह लोक, आकाश गङ्गा, सौर मण्डलों तथा नक्षत्रों तथा तारा (ग्रहों) के नक्शों के आधार पर मण्डप, मण्डल और यज्ञ बेदी बनाने की विधि- विधान और निषेध का वर्णन।* अर्थात यज्ञवेदीनिर्माणप्रक्रिया ।*


निम्नलिखित शुल्ब सूत्र इस समय उपलब्ध हैं:

आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र
बौधायन शुल्ब सूत्र
मानव शुल्ब सूत्र
कात्यायन शुल्ब सूत्र
मैत्रायणीय शुल्ब सूत्र (मानव शुल्ब सूत्र से कुछ सीमा तक समानता है)
वाराह (पाण्डुलिपि रूप में)
वधुल (पाण्डुलिपि रूप में)
हिरण्यकेशिन (आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र से मिलता-जुलता)

वास्तुशास्त्र, वास्तुकला विशेषज्ञ बनने के लिए शिल्पवेद या स्थापत्य वेद के साथ शुल्बसूत्रों का ज्ञान आवश्यक है।

बुधवार, 28 मई 2025

अर्थिंग करने के लिए

3 K.W. से 5 K.W. तक लोड वाले घरों के लिए।
18 किलो ग्राम कोयला और 6 किलो ग्राम नमक।
या 21 किलोग्राम कोयला और 7 किलोग्राम कुड़ा का नमक डले।
और 5 किलो ग्राम Bentonite powder  डालना चाहिए।

हमारी इच्छा

मुस्लिम लोगों ने पाकिस्तान के पक्ष में वोटिंग करके पाकिस्तान नहीं गये मुस्लिमों को भारत में सभी मौलिक अधिकारों और नागरिक अधिकारों से वञ्चित कर दिया जाए।
26 जनवरी 1950 के बाद सनातनियों का मत परिवर्तन दण्डनीय अपराध घोषित कर हो चुके मत परिवर्तन को शुन्य घोषित किया जाए।
प्रत्येक ग्राम में वैदिक गुरुकुल स्थापित किया जाए, एवम् प्रत्येक व्यक्ति को अनिवार्य वैदिक शिक्षा दी जाए।
वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था लागू कर जातिप्रथा को अवैध घोषित की जाए।

मंगलवार, 27 मई 2025

पर्जन्य देवता की कार्यावधि में आंधी -अन्धड़, तुफानी वर्षा का सम्बन्ध मरुद्गणों से है; न कि, इन्द्र से।

मरुद्गणों का अधिकार आंधी, अन्धड़, तुफान पर है। अर्थात आंधी, अन्धड़, तुफान, और तुफानी वर्षा पर जिसमें गर्जन तर्जन होता है उसके सञ्चालक देवता मरुद्गण हैं।
मुख्य मरुद्गण सात थे। उनके प्रत्येक के छः-छः अनुचर (पुत्र) हैं। इस प्रकार कुल उनचास मरुद्गण हुए।
ये सैनिकों के समान गणवेश में मार्च पास्ट करते हैं।

उमड़-घुमड़ कर आते काले-सफेद, लाल और श्याम वर्णी बादलों से इस रूपक की तुलना करो।
पौराणिक लोग इस घटना का सम्बन्ध इन्द्र से जोड़ते हैं।
जबकि, मरुद्गण इन्द्र के सैनिक हैं।

 श्रीमद्भागवत पुराणोक्त कथा के अनुसार ब्रजवासियों द्वारा बलि पूजा के दिन की जाने वाली (बलि नामक दैत्य जो कुछ काल के लिए इन्द्र पद पर आसीन रहा होगा उस रूप में) इन्द्र की पूजा के कार्यक्रम बलिवर्धन पूजा का विरोध कर गोवर्धन पूजा का उपदेश किया था। तब अतिवृष्टि का सम्बन्ध इन्द्र के कोप से जोड़ा गया, उस समय श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को तत्कालीन गोवर्धन पर्वत की किसी गुफा में  शरण लेकर समय व्यतीत करने की समसामयिक राय दी होगी।
जिससे लोगों ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज क्षेत्र रक्षक के रूप देखकर गोवर्धन पूजा प्रारम्भ कर दी।

मंगलवार, 20 मई 2025

तुर्किस्तान का क्षेत्र

तुर्किस्तान को आजकल तुर्किये गणराज्य अर्थात पश्चिम तुर्किस्तान कहते हैं। मध्य तुर्किस्तान में तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान देश आते हैं और पूर्वी तुर्किस्तान को चीन का शिनजियांग प्रांत. कहते हैं।
इसमें कश्यप ऋषि की सन्तान पूर्वी तुर्किस्तान में आदित्य, आर्मेनिया और अजर बेजान में दैत्य, गर्डेशिया में गरुड़, सीरिया में नाग असिरिया (इराक) में असुर रहती थी। सर्बिया की (लेपांस्कीवीर संस्कृति) और चेकोस्लोवाकिया में डेन्युब (दानवी) नदी के किनारे दानव रहते थे।

मूलतः तुर्क लोग टेंग्रिज्म के अनुयायी थे, आकाश देवता टेंग्री के पंथ को साझा करते थे।
बाद में बौद्ध धर्म के अनुयाई भी हुए। फिर मनिचैइज्म, नेस्टोरियन ईसाई धर्म और के अनुयायी भी हुए। मुस्लिम विजय के दौरान, तुर्कों ने मुस्लिम दुनिया में गुलामों के रूप में प्रवेश किया, अरब छापों और विजयों की लूट के कारण आजकल अधिकांशतः इस्लाम के अनुयाई हैं।

पूर्वी तुर्किस्तान को आज चीन में झिंजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. यह क्षेत्र मध्य एशिया में स्थित है और उइगर लोगों की पारंपरिक मातृभूमि है। पूर्वी तुर्किस्तान नाम को चीन द्वारा अलगाववादी आंदोलन से जोड़कर देखा जाता है। 1884 में, मांचू साम्राज्य ने पूर्वी तुर्किस्तान को अपने क्षेत्र में शामिल किया और इसका नाम झिंजियांग रख दिया, जिसका अर्थ है "नया क्षेत्र"।

सोमवार, 19 मई 2025

प्रारब्ध, कर्म-भोग और सुधार की सम्भावना।

सृष्टि के आदि से विगत जन्म तक मन में उठे सङ्कल्प से निर्मित कर्मों के सञ्चित में से इस जन्म में भोगे जा सकने योग्य जो कर्मफल उदित हो चुके हैं, उसे प्रारब्ध कहते हैं।
इसी प्रारब्ध के आधार पर हमारा जन्म उन कर्मभोगों के भोगने के अनुकूल देश (स्थान), काल (समयावधि के लिए), (देव, मनुष्य, गन्धर्व, किन्नर, यक्ष, असुर, दैत्य, दानव या राक्षस) जाति में, गोत्र और कुल और वंश में, परिवार में, और कर्मभोगों के लिए अनुकूल परिस्थितियों में हमारा जन्म होता है।
 मारी प्रकृति (स्वभाव) और प्रवृत्ति बनती है, और हमारे नवीन कर्म भी उस प्रकृति और प्रवृत्ति के अनुसार ही होते हैं।

इसमें परमात्मा, परब्रह्म, परमेश्वर का कोई हस्तक्षेप नहीं होता।
हम अपने सुधार या बिगाड़ के लिए प्रयास और प्रयत्न करने के लिए स्वतन्त्र हैं।
जब परिस्थितियाँ सुधार के लिए अनुकूल हो तो पूरी ताकत से भिड़ जाना चाहिए। और जब परिस्थितियाँ बिगाड़ के अनुकूल हो तो हर कदम सावधानी से बढ़ाना चाहिए।
यही एक मात्र मार्ग है।

न ईईश्वर कोई किस्मत लिखकर भेजता है और न हम भाग्य के दास हैं।

एक ही सिद्धान्त है कि, मर्जी है आपकी आखिर जीवन है आपका।

शनिवार, 17 मई 2025

वैश्विक भविष्यवाणियों की यथार्थ स्थिति।

सन 1970-71 से मैं यह पढ़ते आया हूँ कि, 1979 या 1981 के आसन्न में विश्वयुद्ध होगा, प्रलय जैसी स्थिति होगी, विश्व की जनसंख्या एक चौथाई से भी कम रह जाएगी। 
फिर सन 1999 तक अखण्ड भारत बनेगा। संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय भारत में होगा। भारत की सम्प्रभुता लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप से अधिक बड़े क्षेत्र में होगी। भारत विश्व गुरु होगा। आर्थिक और सामरिक शक्तियों में भारत प्रथम स्थान पर होगा।
भारत और रूस में दूरियाँ बड़ेगी। भारत अमेरिका में घनिष्ठता बड़ेगी। चीन लगभग खत्म हो जाएगा। 
इसमें हर साल कुछ अवधि बढ़ती जाती है। अब 2032 तक पहूँच गए हैं।

जो हे सो सामने है।
इसलिए मुझे इन भविष्यवाणियों में रत्ती मात्र भी भरोसा नहीं रहा।

शुक्रवार, 16 मई 2025

अन्धविश्वास और अन्ध अविश्वास दोनों ही समान हानिकारक है।

अन्धविश्वास हो या अन्ध अविश्वास हो इन्हीं दो मुर्खता के कारण सभी सम्प्रदायों का बण्टाढार हो गया।

पूर्ण सत्य तक तो मन्त्रदृष्टा ऋषिगण ही पहूँच पाते हैं।
लेकिन जैसे 

निम्बार्काचार्य और रामानुजाचार्य जी के तर्कों के समाधान के बिना शंकराचार्य जी का दर्शन अधूरा है। 
वैसे ही 

वेद मन्त्रों को समझने के लिए ब्राह्मण ग्रन्थ बने। ब्राह्मण ग्रन्थों के अलग-अलग विषयों को लेकर उपवेद और वेदाङ्ग बने।
(वेदाङ्ग के कल्प के अन्तर्गत ही शुल्ब सूत्र, श्रोत सूत्र, गृह्य सूत्र , और धर्मसूत्र आते हैं।)
फिर षड दर्शन बने, जिसमें वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों के पूर्वभाग कर्मकाण्ड के आधार पर बने शुल्ब सूत्र, श्रोत सूत्र, गृह्य सूत्र , और धर्मसूत्रके स्पष्टीकरण हेतु जेमिनी का पूर्व मीमांसा दर्शन और वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों के अन्तिम भाग आरण्यक और उपनिषदों के स्पष्टीकरण हेतु बादरायण का उत्तर मीमांसा दर्शन बना जिसमें स्मृति अर्थात रामायण-महाभारत और पुराणों तक के प्रमाणों को स्वीकार किया गया। 
इन सब के अध्ययन, मनन, चिन्तन और निदिध्यासन के बिना वेद मन्त्रों का अर्थ नही समझा जा सकता।

वेदों को मन्त संहिता कहते हैं और वेद मन्त्रों को ब्रह्म कहते हैं। तो मन्त्र दृष्टा हुए बिना ब्रह्म ज्ञान केवल दिवास्वप्न मात्र है।

अर्थात विश्व में कुछ भी ऐसा नहीं है जो उपयोग विहीन हो।

बुधवार, 7 मई 2025

ग्रीष्म ऋतु विवरण ---

ग्रीष्म ऋतु विवरण --- विशेष कर सन 2025 ईस्वी में ---

ऋतुओं का सम्बन्ध सायन सौर संक्रान्तियों और भौगोलिक अक्षांशों से है।
निरयन सौर या नक्षत्रीय सौर वर्ष से ऋतुओं का कोई सम्बन्ध नहीं जोड़ा जा सकता है। अतः सूर्य के निरयन संक्रमण आधारित चान्द्र वर्ष और चैत्र - वैशाख आदि चान्द्र मास से तो ऋतुओं का किञ्चिन्मात्र भी सम्बन्ध नहीं है।
दक्षिण भारत में सातवाहन शासकों ने और उत्तर भारत में कुषाण शासकों ने निरयन सौर संक्रमण आधारित चान्द्र वर्ष शकाब्द के साथ चैत्र-वैशाख आदि चान्द्र मास प्रचलित कर दिया। जो ऋतुओं से बिल्कुल असम्बद्ध है।
22 मार्च 285 ईस्वी को जब अयनांश शुन्य अंश था। अतः  
सायन संक्रान्ति और सूर्य का निरयन संक्रमण एक साथ होता था। इसलिए ऋतुओं का आधार सायन सौर संक्रान्तियों और ऋतुओं से असम्बन्धित सूर्य के निरयन संक्रमण के अन्तर पर धर्मशास्त्रियों का ध्यान नहीं गया। 
लगभग 800 ईसापूर्व से सन 1000 ईस्वी तक राजा भोज के समय तक अयनांश 10° ही था। अतः केवल दस दिन का अन्तर पड़ता था। इसलिए व्याकरण तथा छन्दशास्त्र के विद्वान लेकिन खगोल तथा सिद्धान्त ज्योतिष की कम जानकारी वाले धर्मशास्त्रियों का ध्यान इस अन्तर पर नहीं गया। महाराजा पृथ्वीराज चौहान के पतन के बाद सन 1206 के बाद  कुतुबुद्दीन एबक के गुलाम वंश के शासन और आक्रमणों के कारण भारतीय संस्कृति पतनोन्मुख होने लगी। संस्कृत, धर्मशास्त्र, खगोल और सिद्धान्त ज्योतिष का ज्ञान कुछ शास्त्रियों तक सीमित रह गया। अस्तु इस अन्तर पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
वस्तुतः सम्राट विक्रमादित्य के ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के पहले तक
आर्यावर्त क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु सायन वृषभ और मिथुन के सूर्य में मानी जाती थी।
अर्थात सायन वृषभ संक्रान्ति दिनांक 19 उपरान्त 20 अप्रैल 2025 शनिवार Sunday को उत्तर रात्रि 01:27 बजे  से सायन कर्क संक्रान्ति 21 जून 2025 शनिवार को प्रातः 08:13 बजे तक भारत के मध्य क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु रहती है।
जबकि कुरुक्षेत्र हरियाणा, पञ्जाब, उत्तर प्रदेश से उत्तर में ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु सायन मिथुन संक्रान्ति 20 उपरान्त 21 मई को उत्तर रात्रि 12:25 बजे से सायन सिंह संक्रान्ति दिनांक 22 जुलाई 2025 मङ्गलवार को सायम् 07:00 बजे तक रहेगी।
वर्तमान में इस अन्तर पर पञ्चाङ्गकार ध्यान नहीं देते हैं और पूरे भारत वर्ष और नेपाल भूटान तक में ग्रीष्म ऋतु सायन वृषभ और मिथुन के सूर्य में ही दर्शाई जाती है।
इसके अलावा 

निरयन वृषभ राशि में सूर्य 14 उपरान्त 15 मई 2025 बुधवार Thursday को 00:21 बजे प्रवेश करेंगे।
वृषभ संक्रमण का पुण्य काल 14 जनवरी 2025 बुधवार को सूर्योदय समय (इन्दौर में 05:44 बजे) से सूर्यास्त समय (इन्दौर में07:02 बजे) तक रहेगा। तथा निरयन वृषभ राशि से निरयन मिथुन राशि में सूर्य का संक्रमण 
 15 जून 2025 रविवार को प्रातः 06:45 होगा।
तदनुसार निरयन मिथुन संक्रमण का पुण्य काल 15 जून 2025 रविवार को प्रातः 06:45 से दोपहर 01:09 बजे तक रहेगा।

सेनापति के ऋतु वर्णन में ग्रीष्म ऋतु वर्णन में इसका उल्लेख ऐसे किया गया है।
 *वृष को तरनि तेज, सहसौ किरन करि, ज्वालन के जाल बिकराल बरसत हैं। तपति धरनि, जग जरत झरनि, सीरी छाँह कौं पकरि, पंथी-पंछी बिरमत हैं।*

और भी 

रोहिणी नक्षत्र में सूर्य दिनांक 25 मई 2025 रविवार को दिन में 09:32 बजे से 08 जून 2025 रविवार को प्रातः 07:19 बजे तक रहेगा।
ऐसी मान्यता है कि, रोहिणी नक्षत्र के सूर्य में भी बहुत गर्मी होती है।

इतना ही नहीं 

निरयन वृषभ राशि के सूर्य में जब चन्द्रमा धनिष्ठा नक्षत्र से रोहिणी नक्षत्र तक रहता है तो उन नौ दिनों को जैन ज्योतिष में धनिष्ठा नवक कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन नौ दिनों में गर्मी बहुत होती है।
इस वर्ष धनिष्ठा नवक 19 मई 2025 को सायम्  07:29 बजे से 27 उपरान्त 28 मई 2025 मङ्गलवार को उत्तर रात्रि 02:50 बजे तक रहेगा।

शुक्रवार, 2 मई 2025

भगवान आद्यशंकराचार्य के महत्वपूर्ण कार्य।

भगवान आद्य शंकराचार्य जी का मुख्य कार्य ग्यारह उपनिषदों, श्रीमद्भगवद्गीता और आचार्य बादरायण रचित शारीरिक सूत्र का भाष्य कर अद्वैत वेदान्त मत को सुदृढ़ कर वैदिक अभेद दर्शन को शास्त्रीय स्वरूप प्रदान करने, स्मार्त मत स्थापना, बौद्धों को शास्त्रार्थ में और तानत्रिकों को उनके स्तर पर युद्ध आदि कर विजय कर उन्हें शुद्ध कर स्मार्त मत में सम्मिलित करना रहा है।
विभिन्न बौद्ध मठ मन्दिरों का अधिग्रहण तथा देवी-देवताओं के स्तोत्र रचना में तो परवर्ती शंकराचार्यों का योगदान भी है।