हमारी दासता का मूल कारण
१ आद्य शंकराचार्य जी द्वारा बौद्ध जैन आचार्यों को सनातन धर्म में दीक्षित कर उन्हें आचार्य पद पर विराजमान करना,
२ उनके द्वारा वेद विरुद्ध पुराण रचना करना,
३ वेदिक मत से भिन्न मत वाले पुराणों को धर्मशास्त्र मानना,
४ रट्टुओं का ही सम्मान,
५ खोज, अनुसंधान और विकास को हतोत्साहित करना,
६ विदेश यात्रा पर प्रतिबंध,
७ बौद्ध - जैन अहिंसा,
८ सम्राट अशोक की मुर्खता को आदर्श बतलाकर विदेशों पर आक्रमण नही करना (और उसी मुर्खता को आज भी गौरव बतलाया जाता है।),
९ गृहयुद्ध और पारस्परिक द्वन्द्वयुद्ध के नियमों को विदेशी आक्रांताओं पर लागू करना (जिसे आंशिक रूप से प्रथम बार शिवाजी ने तोड़ा।), और
१० पुराने क्षत्रियों में क्षात्र तेज और आत्मविश्वास जगाने के स्थान पर शक, हूण, खस, ठस,बर्बर जैसी तुर्की जातियों को राष्ट्र की सुरक्षा कवच मान बैठना है।
हम दास हुए अपनी मुर्खताओं के कारण तो दुसरों को दोष देकर अपनी कमजोरियाँ छुपाने से क्या लाभ। यदि हम दास होते ही नहीं तो न हमारा साहित्य नष्ट होता, न कौशल नष्ट होता, न हम धर्मभ्रष्ट होते, न सनातनधर्मी हिन्दू कहलाते, न हमारी वैदिक संस्कृति सिमटती, न हिन्दू सभ्यता आती।
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