मंगलवार, 4 जुलाई 2023

अशोच अर्थात सुतक

अशोच के विषय में हारीत स्मृति का मत तो यह है कि, मरण में परिवार दुःखी होता है अस्तु दुःखी मनःस्थिति के कारण अशोच माना गया है।
तदनुसार जन्म में तो अशोच ही नही हुआ।
  स्मृतिकारों में
अशोच विषयक इतने अधिक मतभेद हैं कि,मिताक्षरा और मदन रत्न ने तो इनकी मिमान्सा करना असम्भव माना।
एक रात्रि, त्रिरात्र, और दश रात्रि का अशोच लोक प्रचलित है।
जो जन्मने/ मरने वाले से सम्बन्ध/ जन्म/ मरण स्थान की दूरी/ जन्म स्थान बहू का मायका हो तो कम और ससुराल में हो तो अधिक ऐसे सेकड़ों मतभेद हैं।
इनमें संक्षेपण / संकोच (छोटा करना/ कम करना) को मान्यता है विस्तार को नही।
शास्त्रोक मत यह भी  है कि,यज्ञादि देव कर्मों का विस्तार किया जाये और श्राद्धादि पितृकर्मों को संक्षेप में किया जाये ।
ऐसे सब विचार कर निर्णय किया जाता है।

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