भारत में कई ऐसे मन्दिर भी हैं जहाँ, पुरुषों का प्रवेश निषेध है।
कई ऐसे मन्दिर हैं जहाँ केवल महिला ही पुजारी हो सकती है।
और ऐसे मन्दिर भी हैं जहाँ मुख्य पुजारी महिला है, और पुरुष पुजारी उनके अधीनस्थ हैं।
विशेषकर दक्षिण और पूर्वी भारत में ऐसे मन्दिर देखे जा सकते हैं।
भारत में सनातन धर्म में मन्दिरों और मुर्तिपूजा का प्रवेश ब मुश्किल दो हजार वर्ष पुराना भी नही है। कोई मन्दिर ५०० ईस्वी का भी नही मिलता, इससे पुराने की तो कल्पना भी नहीं।
मूल भारतीय धर्म यज्ञ, अष्टाङ्गयोग और ज्ञान (वेद) प्रधान है।
यज्ञ बिना पत्नी के नही हो सकता, लेकिन अकेली महिला को कर्मकाण्ड में अधिकार है। यदि पुत्र हीन पुरुष की मृत्यु हो जाती है तो पति के श्राद्धकर्म में पत्नी का प्रथम अधिकार है।
योगिनियाँ और महिला योगी तो सनातन काल से आज तक बहुत संख्या में मिलती ही हैं।
वागृम्भणी / वाक, लोपामुद्रा, गार्गी, उभयभारती आदि महिला वेदविदों (वेदवादिनियों) की भी भरमार है।
योद्धा रानी और सेना नायिका भी बहुत सी नारियाँ हुई यह सर्वस्वीकार्य है।
पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, तथाकथित सतिप्रथा, ये सब तुर्क, अफगान मुस्लिम आक्रांताओं की देन है।
स्वीपर, चर्मकार जैसी अछुत जातियाँ भी इनकी ही देन है। पहले केवल चाण्डाल (बधिक/ कसाई) ही अस्पृश्य माने जाते थे।और कोई नही।
शुद्र सेवक होते थे, सर्विस सेक्टर में काम करने वाले दर्जी, नाई, धोबी, कुम्हार, बढ़ाई (सुतार), लोहार, लक्कड़हारा, कहार सभी शुद्र हैं लेकिन कोई भी अछुत नही है। शादी विवाह, गङ्गापूजा, यज्ञों में इनके बिना काम नही होता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें