बुधवार, 3 मई 2023

सायन राशियों, नक्षत्रों, सायन सौर मासों पर आधारित चान्द्र मासों और कुछ निरयन राशियों के नवीन नामकरण किय जाना आवश्यक है।

सायन राशियों, सायन नक्षत्रों और सायन सौर संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्र मासों के नवीन नामकरण नाम करना और कुछ निरयन राशियों के नाम बदल कर भारतीय परिप्रेक्ष्य में नवीन नामकरण करना आवश्यक है।

भारतीय सत्ताइस या अट्ठाइस नक्षत्र, आधुनिक एस्ट्रोनॉमी के अठासी या नवासी नक्षत्र,  बेबीलोन (इराक), मिश्र और युनान की संस्कृति के बारह निरयन राशियों के नाम क्रान्तिवृत के उत्तर और दक्षिण में आसपास आठ/ नौ अंश की पट्टी में अर्थात भचक्र ( Fixed zodiac) में ताराओं के समुह से बनी आकृतियों के सादृश्य आकृति वाली वस्तुओं या जीवों के नामों के आधार पर रखे गए हैं।

आकृति आधारित उक्त नामकरण पद्यति विषुववृत्त के विषुवांशों वाली सायन पद्यति में लागू नहीं होती। क्योंकि सायन पद्यति की राशि किसी स्थिर नक्षत्र मण्डल में ही नही रह पाती, अपितु सतत परिवर्तनशील है।

सायन पद्यति में वसन्त सम्पात से गणना करने के कारण कोई स्थाई तारा समुह को एक राशि या नक्षत्र नही कहा जाता है। इसलिए इनके नाम करण भी आकृति आधारित नही हो सकते। इसलिए सायन राशियों और नक्षत्रों के नवीन नामकरण आवश्यक है। 

नाक्षत्रीय पद्धति में निरयन राशियों के उक्त प्रचलित नाम बेबीलोन (इराक), मिश्र और युनानी सभ्यता की दैन है। वराहमिहिर आदि नें संस्कृत में अनुवाद कर निरयन राशियों के संस्कृत में नाम रख दिए थे।
वस्तुतः नाक्षत्रीय प्रणाली में भी भारतीय दृष्टि से इन राशियों के नाम सही नही लगते हैं।  

मध्य एशियाई और युनानी दृष्टिकोण से आकृतियों को भारतीय जन मानस नही समझ पाते हैं। क्योंकि हमारे दिमाग में नक्षत्रों की आकृतियाँ छाई रहती है। अतः निरयन राशियों की आकृतियों के भी नामकरण भारतीय परिप्रेक्ष्य में रखना उचित होगा।

सन १३१७५ ईस्वी में चित्रा तारे का सायन भोगांश १८०° होगा। तब 
जिस समय सूर्य केन्द्रीय ग्रहों में भूमि (का केन्द्र) चित्रा तारे पर (निरयन तुलादि बिन्दु पर) होगा और सापेक्ष में भू केन्द्रीय ग्रहों में सूर्य चित्रा तारे से १८०° पर (निरयन मेषादि बिन्दु पर) होगा तब सूर्य का सायन भोगांश १८०° होगा अर्थात सायन तुला संक्रांति होगी। 
क्या उस सायन तुला राशि में कहीं भी तुला की आकृति दिखाई देगी? कदापि नहीं। उस समय भचक्र (Fixed zodiac) में सायन तुला राशि के तारा समुह भी तुला कहलाने योग्य नही होंगे।
उस समय सायन तुला राशि में ताराओं से बनने वाली आकृति निरयन मेष राशि के तारा मण्डल वाली ही रहेगी।
अतः सायन राशियों के नाम अन्य किसी आधार पर ही रखना होगा।

सन १३१७५ ईस्वी में सायन कन्या संक्रान्ति से सायन तुला संक्रान्ति के बीच सायन कन्या राशि के सूर्य में पड़ने वाली अमावस्या से औसत पन्द्रह दिन बाद की पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा के स्थान पर चैत्र पूर्णिमा नही कहा जा सकता। क्योंकि उस समय सूर्य चित्रा नक्षत्र के तारे पर होगा और चन्द्रमा चित्रा तारे से १८०° पर होगा।

अतः सायन सौर संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्र मासों के नवीन नामकरण करना आवश्यक है।
अतः निष्कर्ष में कहना चाहूँगा कि,
१ सायन राशियों के नाम आकृति आधारित न होकर किसी अन्य आधार पर रखे जाने चाहिए।
२ सायन नक्षत्रों के नाम भी आकृति आधारित न होकर किसी अन्य आधार पर रखे जाने चाहिए। ताकि संहिता ज्योतिष में नक्षत्रों पर आधारित मानसून / मौसम को समझा जा सके।
३ कुछ निरयन राशियों के नाम परिवर्तन भी भारतीय दृष्टिकोण से किये जाना उचित होगा।
४ सायन सौर संक्रान्तियों पर आधारित चान्द्र मासों के नवीन नामकरण करना आवश्यक है। संख्यात्मक नामकरण किया जा सकता है। यथा प्रथम मास, द्वितीय मास आदि।
विशेष --
प्राचीन भारत में जिस नक्षत्र में वसन्त सम्पात पड़ता था उसे प्रथम नक्षत्र और जिस निरयन सौर संस्कृत चान्द्र मास में वसन्त सम्पात पड़ता था उसे प्रथम मास कहा जाता था।
प्राचीन भारत में जिस नक्षत्र में वसन्त सम्पात पड़ता था उसे प्रथम नक्षत्र कहा जाता था। इस कारण प्राचीन शास्त्रों में कहीँ चित्रा को प्रथम नक्षत्र कहा गया तो कहीँ, मघा को, कहीँ धनिष्ठा को तो कहीँ अश्विनी को प्रथम नक्षत्र कहा गया।
कहीँ प्रथम मास चैत्र तो कहीँ वैशाख,तो कहीँ  कार्तिक,कहीँ मार्गशीर्ष, कहीँ माघ को प्रथम मास कहा गया।
रामायण काल में इन्द्र ध्वजारोहण आश्विन मास में होता था इस कारण नेपाल में आज तक आश्विन मास में ही इन्द्र ध्वजारोहण होता है। जबकि भारत में चैत्र मास में होता है।
नेपाल के धर्मशास्त्री इसी परम्परा के अन्तर्गत वैशाख मास को प्रथम मास घोषित करना चाहते हैं।

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