बुधवार, 12 अप्रैल 2023

विक्रम संवत २०८० का प्रारम्भ

*विक्रम संवत २०८० का प्रारम्भ दिनांक १४ अप्रेल २०२३ शुक्रवार को होगा।*

*कलियुग संवत ५१२४ का प्रारम्भ वसनृत सम्पात के साथ दिनांक २१ मार्च २०२३ को हुआ।*
*शकाब्द १९४५ का प्रारम्भ गुड़ी पड़वा दिनांक २२ मार्च २०२३ को हुआ।*
*विक्रम संवत २०८० का प्रारम्भ निरयन मेष संक्रान्ति दिनांक १४ अप्रेल २०२३ शुक्रवार को (दोपहर ०२:५८ बजे) होगा। जो संकल्पादि में दिनांक १५ अप्रेल २०२३ शनिवार को सूर्योदय से लागू माना जाएगा।*
*नाक्षत्रीय गणनानुसार इस वर्ष निरयन मेष संक्रान्ति १४ अप्रेल २०२३ को १४:५८ बजे (दोपहर ०२:५८ बजे) होगी। अतः दिनांक १५ अप्रेल २०२३ शनिवार से युधिष्ठिर संवत्सर ५१२४ का प्रारम्भ होगा।(मतान्तर से युधिष्ठिर संवत ५१६१ प्रारम्भ होगा।)*
 *पञ्जाब, हरियाणा में सूर्योदय नियमानुसार १४ अप्रेल को वैशाखी पर्व से इस दिन विक्रम संवत २०८० का प्रारम्भ होगा।* और 

*उड़िसा में सूर्योदय नियमानुसार १४ अप्रेल को उड़िया नववर्ष प्रारम्भ होगा।*

*केरल में १८ घटिका नियमानुसार १५ अप्रेल को मलयाली नव संवत्सर प्रारम्भ होगा।*
 *केरल में कोलम नववर्ष ११९८ निरयन सिंह संक्रान्ति (१७ अगस्त २०२३ को १३:३२ बजे से) प्रारम्भ होगा।*

*तमिलनाडु में सूर्यास्त नियमानुसार १४ अप्रेल को मेढम मासारम्भ के साथ तमिल नव वर्ष प्रारम्भ होगा।* लेकिन 

*बङ्गाल और असम में मध्यरात्रि नियमानुसार १५ अप्रेल को बङ्गाली संवत्सर प्रारम्भ होगा। और असमिया नव संवत्सर १४२८ प्रारम्भ का पर्वोत्सव/ त्योहार मनाया जाएगा।*

*वैशाखी का त्योहार वैदिक सनातन धर्मियों, बौद्धों और खालसा सिखों के लिए महत्वपूर्ण है।* 
*जिस समय सूर्य का परिभ्रमण करते हुए भूमि भचक्र/ नक्षत्र मण्डल में चित्रा नक्षत्र के योग तारा चित्रा तारे के साथ या समक्ष दिखाई देती है। सापेक्ष में भूमि के केन्द्र से सूर्य चित्रा तारे से १८०° पर निरयन मेषादि बिन्दु पर दिखता है उस समय को निरयन मेष संक्रान्ति कहते हैं।*

*निरयन मेष संक्रान्ति या निरयन सौर वैशाख मास के पहले दिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नव वर्ष के त्यौहार वैशाखी , जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, बोहाग बिहू, विशु, पुथण्डु के नाम से मनाया जाता हैं।*

*ऐसा माना जाता है कि गङ्गा देवी इसी दिन पृथ्वी पर उतरी थीं। सनातन धर्मी इसे गङ्गा स्नान,पूजा करके और भोग लगाकर मनाते हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश में निरयन मेष संक्रान्ति अर्थात बैसाखी पर्व पर भारी मेला लगता है।* 

*उत्तराखंड के बिखोती महोत्सव में लोगों को पवित्र नदियों में डुबकी लेने की परंपरा है। इस लोकप्रिय प्रथा में प्रतीकात्मक राक्षसों को पत्थरों से मारने की परंपरा है।*

*बिहार और नेपाल के मिथल क्षेत्र में, नया साल जुरशीतल के रूप में मनाया जाता है। यह मैथिली पंचांग का पहला दिन है। परिवार के सदस्यों को लाल चने सत्तू और जौ और अन्य अनाज से प्राप्त आटे का भोजन कराया जाता है।*

*बंगाली नए साल निरयन मेष संक्रान्ति को 'पाहेला बेषाख' के रूप में मनाया जाता है और पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और बांग्लादेश में एक उत्सव 'मंगल शोभाजात्रा' का आयोजन किया जाता है।* 
*यह उत्सव 2016 में यूनेस्को द्वारा मानवता की सांस्कृतिक विरासत के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।*

*ओडिशा में (निरयन मेष) संक्रांति को महाविषुव संक्रान्ति कहते हैं। उड़िया नए साल का प्रारम्भ दिवस समारोह में विभिन्न प्रकार के लोक और शास्त्रीय नृत्य शामिल होते हैं, जैसे शिव-संबंधित छाऊ नृत्य।*

*असमिया नव वर्ष की शुरुआत के रूप में बोहाग बिहू या रंगली बिहू निरयन मेष संक्रान्ति को मनाते हैं। इसे सात दिन के लिए विशुव संक्रांति (मेष संक्रांति) वैसाख महीने या स्थानीय रूप से 'बोहग' (भास्कर कैलेंडर) के रूप में मनाया जाता है।*

*निरयन मेष संक्रान्ति को तमिलनाड़ू में पुत्ताण्डु या पुत्थांडु या पुथुवरूषम तमिल नववर्ष कहते हैं।*
 *यह तमिल कैलेंडर के चिथीराई या चिधिराई मास का पहला दिन है। इसे लन्नीसरोल हिन्दू केलेण्डर के सौर चक्र के साथ स्थापित किया गया है।*
*तमिल लोग "पुट्टू वतुत्काका!" अर्थात नया साल मुबारक हो" कहकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं।*
*दक्षिणी तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में, त्योहार को चित्तारीय विशु कहा जाता है।*

*केरल में नव वर्षारम्भ का यह त्योहार 'विशु' कहलाता है।*
 
*तमिलनाडु और श्रीलंका दोनों जगहों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। इसी दिन असम, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर, त्रिपुरा, बिहार, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पूर्वोत्तर भारत की दाई, ताई दाम जनजातियाँ और साथ ही नेपाल में सनातन धर्मियों द्वारा पारंपरिक नए साल के रूप में मनाया जाता है।* 
*दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देश श्रीलंका के सिंहली समुदाय और तमिल समुदाय, मारीशस में तमिल जन, बांग्लादेश के सनातन धर्मी, म्यांमार, कम्बोडिया, लाओस, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर रीयुनियन, के कई बौद्ध समुदाय इस दिन को अपने नए साल के रूप में उसी दिन भी मनाता हैं।*
 
*विक्रम संवत* --- *चित्रा तारे से १८०° पर स्थित बिन्दु पर सूर्य आनें पर नाक्षत्रीय सौर युधिष्ठिर संवत और निरयन सौर विक्रम संवत तथा निरयन मेष मासारम्भ होता है। जिसे पञ्चाब और हरियाणा में वैशाख मास कहते हैं। जब ३६५.२५६३६३ दिन पश्चात सूर्य पुनः इसी बिन्दु पर लौटता है तब संवत्सर पूर्ण होता है।* *प्रकारान्तर से कह सकते हैं कि, सूर्य के केन्द्र का परिभ्रमण करती भूमि जब चित्रा तारे के समक्ष आती है तब नाक्षत्रीय / निरयन सौर वर्ष प्रारम्भ होता है। और चित्रा तारे के समक्ष भूमि का परिभ्रमण पूर्ण होने पर संवत्सर पूर्ण होता है।*
*वर्तमान में मन्दोच्च ७९°०८'१८" पर है। इस कारण मिथुन मास सबसे बड़ा और धनुर्मास सबसे छोटा होता है।*
 *निरयन सौर मासों के नाम* --- *दक्षिण भारत और पूर्व भारत में मेष वृषभादि नाम प्रचलित है । जबकि पञ्जाब और हरियाणा में वैशाखादि नाम प्रचलित है।*
*इस कारण इसके मासों की दिन संख्या इस प्रकार है* ---
*१ मेष (वैशाख) और २ वृषभ (ज्येष्ठ),३ मिथुन (आषाढ़) , ४ कर्क (श्रावण), ५ सिंह (भाद्रपद) और ६ कन्या (आश्विन) ३१ दिन का तथा* 
*७ तुला (कार्तिक) और ८ वृश्चिक (मार्गशीर्ष) ३० दिन का तथा* 
*९ धनु पौष २९ दिन का एवम्*
*१० मकर (माघ), ११ कुम्भ (फाल्गुन) और १२ मीन (चैत्र) ३० दिन का होता है।*

*सम्पात के २५,७७८ वर्षीय चक्र के कारण नाक्षत्रीय सौर वर्ष अर्थात निरयन सौर संवत का प्रारम्भ होनें का दिनांक प्रत्येक ७१ वर्ष में एक दिनांक बढ़ जाती है। इस कारण वर्तमान में १४ अप्रेल से प्रारम्भ होनें वाला नाक्षत्रीय सौर युधिष्ठिर संवत और निरयन सौर विक्रम संवत और मेष (वैशाख) मास भविष्य में १५ अप्रेल से आरम्भ होगा।*
*युधिष्ठिर संवत की गणना भी नाक्षत्रीय सौर वर्ष (निरयन सौर वर्ष) में की जाती थी। लेकिन युधिष्ठिर संवत प्रायः अप्रचलित ही रहा। इसी आधार पर विक्रमादित्य ने विक्रम संवत चलाया था। और विक्रम संवत को भी केवल १३५ वर्ष में शक संवत नें विस्थापित कर दिया।*

*बेबीलोन (ईराक), मिश्र और युनान में भचक्र (Fixed zodiac फ़िक्स्ड झॉडिएक) विभिन्न आकृतियों की बारह राशियों की कल्पना की गई थी। जो भारत में प्रचलित नहीं थी। इन राशियों का भारत में वराहमिहिर नें परिचय कराया। वर्तमान खगोलविदों ने अलग - अलग भोगांश वाली तेरह राशियों की कल्पना की है।* 
*वराहमिहिर के बाद इन ३०° के समान भोग वाली बारह राशियों को नक्षत्रों के साथ जोड़ने के लिए १३°२०' के समान भोग वाले सत्ताइस नक्षत्रों की प्रणाली प्रारम्भ की गई। जिसमे प्रत्येक नक्षत्र में ३°२०' के चार-चार चरण होते हैं। जो राशि प्रणाली में नवांश कहलाते हैं। इस प्रकार निरयन गणना प्रणाली का उदय हुआ जो वर्तमान में भी भारत में प्रचलित है।* 
*उल्लेखनीय है कि, ईरान या तुर्किस्तान के मूल निवासी होने के कारण वराहमिहिर को शक जाति का माना जाता है। आचार्य वराहमिहिर से प्रभावित होनें के कारण सम्राट विक्रमादित्य ने निरयन मेष संक्रान्ति से निरयन सौर विक्रम संवत प्रारम्भ किया था।*

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें