शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

आत्म स्वरूप अर्थात मैं

नारायण के पुत्र हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति,  प्रजापति के पुत्र  (१) दक्ष-प्रसुति, (२) रुचि-आकुति, (३) कर्दम- देवहुति ये तीन भूस्थानि प्रजापति गण हुए। तथा 
ब्रह्मर्षि देश (हरियाणा) में आठ ब्रह्मर्षि गण (4) मरीची-सम्भूति, (5) भृगु-ख्याति, (6) अङ्गिरा-स्मृति, (7) वशिष्ट-ऊर्ज्जा, (8) अत्रि-अनसुया, (9) पुलह-क्षमा, (10) पुलस्य-प्रीति, (11) कृतु-सन्तति भी प्रजापति कहलाते हैं।  
तथा  पञ्जाब,सिन्ध, राजस्थान, गुजरात, अफगानिस्तान के सारस्वत क्षेत्र के (१२) स्वायम्भूव मनु - शतरुपा भी भूस्थानी प्रजापति हुए।
 और दो अन्तरिक्ष स्थानिक देवत् प्रजापति (1३) रुद्र- रौद्री (शंकर - उमा) तथा (१४) पितरः - स्वधा हुए।
और  
देवस्थानी प्रजापति (१५) अग्नि - स्वधा एवम् (१६) धर्म - और उनकी तेरह पत्नियाँ  [(1( श्रद्धा, (2) लक्ष्मी, (3) धृति, (4) तुष्टि, (5) पुष्टि, (6) मेधा, (7) क्रिया, (8) बुद्धि, (9) लज्जा, (10) वपु, (11) शान्ति, (12) सिद्धि, (13) कीर्ति ] हुए।
विश्व की सभी जातियों के द्विपद इन्हीं के वंशज हैं।  प्रजापतियों की सन्तान ब्राह्मण कहलाये। स्वायम्भूव मनु की सन्तान क्षत्रिय कहलाये। दशपुरी वैश्य जो इत्र आदि सुगन्धित पदार्थ एवम् यज्ञ, हवन तथा पूजा सामग्री का व्यापार करते हैं ब्राह्मण से वैश्य हुए। अग्रवाल आदि वैश्य क्षत्रियों से ही हुए। महेश्वरी स्वयम् को महेश की सन्तान मानते हैं। 
वैश्यों से ही सर्विस सेक्टर में काम करने वाले सेवक शुद्र हुए।
ये सभी वेदों के अनुयाई होने के कारण स्वयम् और इनकी सन्तान परम्परा यह मानती है कि,आत्म स्वरूप में हर जड़ चेतन साक्षात परमात्मा ही है, क्योंकि परमात्मा से भिन्न कुछ है ही नही। जीव भाव में भी परमात्मा का अंश ही है। मतलब परमात्मा के अतिरिक्त कोई अस्तित्व ही नहीं है।
दैहिक दृष्टि से स्थूल शरीर भी आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि से निर्मित है।
आदम और उसके आदमी मानते हैं कि, वे मिट्टी से बने हैं। इनकी वंश परम्परा निम्नलिखित हैं।⤵️
अत्रि- अनसुया के के पुत्र चन्द्रमा हूए, दुर्वासा और दत्तात्रेय हुए।
चन्द्रमा नें ब्रहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण कर बुध को उत्पन्न किया।
सप्तम मनु वैवस्वत के पुत्र श्रापवश आधे समय स्त्री रूप में ईळा के नाम से रहे थे। इसी ईळा या इला का विवाह बुध से हुआ। बुध और ईळा के पुत्र पुरुरवा हुए। इला के पुत्र होने के कारण पुरुरवा एल कहलाते हैं। ईराक की भाषा आरामी में लिखे यहुदी धर्मगन्थ तनख में एल शब्द को ईश्वर वाचक माना हैं।  उनके  पूर्वज याकुब का एक नाम इज्राएल भी है। इसी इला पुत्र के लिए प्राचीन अरबी में इलाही शब्द बना जिससे अल्लाह शब्द बना।
पुरुरवा नें इराक के उर क्षेत्र की वासी वर्तमान में (उईगर मुस्लिमों के क्षेत्र) पूर्वी तुर्किस्तान के झिंगयाङ्ग के निवासी कश्यप पुत्र आदित्य आदि देवताओं के राजा इन्द्र के दरबार की नृत्याङ्गना उर्वशी से संविदा आधार पर मुताह विवाह किया। उर्वशी से पुरुरवा की प्रथम सन्तान आयु (आदम) के गर्भ में रहते मायके उर चली गई। आयु (आदम) के जन्म के पश्चात दुग्धपान अवधि में अपने पास रखकर बाद में आयु (आदम) को पुरुरवा के पास छोड़कर इन्द्रसभा में ड्यूटी पर छोड़ आई। पुरुरवा नें आयु (आदम) को दक्षिण पूर्वी टर्की में तोरोत पर्वत के दक्षिण पूर्वी भाग युफ्रेटस की खाड़ी में बनी अदन वाटिका में अकेले ही पाला। जहाँ उसकी धाय माँ की पुत्री हव्यवती के साथ बड़ा हुआ। नागमाता सुरसा की सन्तान सीरिया निवासी सूरों नें आयु (आदम) को एल पुरुरवा के खिलाफ भड़काया। तो एल पुरुरवा नें आयु (आदम) को श्रीलंका में विस्थापित कर दिया। बाद में वहाँ से आयु (आदम)  भारत में केरल होते हुए, ईरान, इराक होते हुए पुनः स्वदेश में लौटा। जैसे स्वायम्भूव मनु और वैवस्वत मनु की सन्तान मानव कहलाती है वैसे ही आयु (आदम) की सन्तान आदमी कहलाती है।

आयु (आदम) के वंशज नहुष का विवाह शंकर पार्वती की पुत्री अशोक सुन्दरी से हुआ। जिसे इन्द्रासन मिला लेकिन कामलोलुप नहुष को इन्द्रपद छोड़कर नृग नामक सर्प योनि प्राप्त हुई।
इसी की सन्तान परम्परा में जन्मे ययाति (इब्राहिम) नें दत्तात्रेय से शैवशाक्त दीक्षा लेकर शिवाई पन्थ सबाईन नामक पन्थ ईराक और अरब में चलाया। इसकी सन्तान परम्परा में दाऊद नें दाउदी पन्थ चलाया। इसकी सन्तान परम्परा में मूसा ने इस्राइल में यहुदी पन्थ चलाया। इसकी सन्तान परम्परा में यीशु ने भारत में बौद्ध दीक्षा लेकर बाद में इस्राइल लौटकर ईसाई पन्थ चलाया। सीरिया के ईसाई पादरी से दीक्षित होकर मक्केश्वर महादेव के पूजारी के पुत्र मोह मद नें इस्लाम पन्थ चलाया। ये लोग स्वयम् को मिट्टी से बना मिट्टी का पुतला मानते हैं।

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