गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

हमारा वास्तविक स्वरूप/ वास्तविक मैं

  इड़ा, पिङ्गला, सुशुम्ना, स्थूल शरीर,लिङ्ग शरीर,सुक्ष्म शरीर,कारण शरीर, पञ्च इन्द्रियाँ,पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ, अन्तःकरण चतुष्टय,
 [१ {मनसात्मा (मन - संकल्प)}, २ {लिङ्गात्मा (अहंकार - अस्मिता)}, 
३ {ज्ञानात्मा (बुद्धि - मेधा/ बोध), ४ {विज्ञानात्मा (चित्त - वृत्ति/चेत)}, 
{अभिकरण ५ {अणुरात्मा  (तेज- विद्युत), 
{६ सुत्रात्मा (ओज- आभा)}] है।
उक्त सभी तो जड़ प्रकृति के अङ्ग जड़ पदार्थ ही हैं।

अधिकरण [{ १ भुतात्मा (प्राण/ चेतना/ देही -धारयित्व/ धृति/ अवस्था}  और 
{ २ जीवात्मा (अपर पुरुष/जीव - अपरा प्रकृति/ आयु /जीवन)} मध्य स्थिति है। 
जबकि 

{प्रत्यगात्मा /अन्तरात्मा (पुरुष - प्रकृति) अधिष्ठान है। प्रत्येक का प्रथक प्रथक स्वरूप है।
इनसे परे आत्म तत्व आरम्भ होते है।
[{प्रज्ञात्मा (परम पुरुष- परा प्रकृति}, और इनसे परे
विश्वात्मा /ॐ, इससे पर परमात्मा (परम आत्म/ वास्तविक मैं) हम सबका मूल स्वरूप है।

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