शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

तन्त्र/ हटयोग के चक्रो का सम्बन्ध ग्रहों से।

१ महाराष्ट्र के गाणपत्य सम्प्रदाय में गणपति को मङ्गल (अग्नि) से सम्बन्धित माना है। कार्तिकेय को भी अग्नि पुत्र माना जाता है।
अग्नि प्रथम देवता और विष्णु अन्तिम देव ऋग्वेद के एतरेय ब्राह्मण का कथन है। अग्नि की गति उर्ध्व है। अग्नि का सम्बन्ध प्रकाश / चेत से भी है।
 तदनुसार *कुण्डलिनी* को भूमिपुत्र *मङ्गल* से सम्बन्धित माना जा सकता है।
२ देव सेनापति (कार्तिकेय) के राजा इन्द्र - *नेपच्यून* को *मूलाधार* माना जा सकता है।
३ शुक्र को स्पष्ट रूप से शुक्र (वीर्य)  का प्रतीक माना जाता है। अतः स्वधा से सम्बन्धित मानकर *स्वाधिष्ठान* चक्र से *शुक्र* का सम्बन्ध मान सकते हैं।
४ ब्रहस्पति को जीव कहते हैं। गुरु का सम्बन्ध गुरुत्व बड़प्पन से है। जीवात्मा का वास भी हृदय में मान्य है। तदनुसार *अनाहत* चक्र का सम्बन्ध *ब्रहस्पति* से माना जा सकता है।
५ बुध बुद्धि का प्रतीक है और बुद्धि का स्थान मन से उपर है यह सर्वमान्य है। बुद्धि का स्थान सम्बन्ध आज्ञा चक्र से मान सकते हैं। तदनुसार *बुध* का सम्बन्ध *आज्ञा* चक्र से माना जा सकता है।
६ सूर्य को प्राण और आत्मा कहा गया है। अतः कम से कम सुत्रात्मा प्रजापति तो मानना ही पड़ेगा। लेकिन सूर्य को प्राण और आत्मा कहा गया है। अतः कम से कम सुत्रात्मा प्रजापति तो मानना ही पड़ेगा। लेकिन ब्रहस्पति को जीव कहते हैं। गुरु का सम्बन्ध गुरुत्व बड़प्पन से है।
अतः सूर्य को प्रत्यगात्मा (अन्तरात्मा) ही मानना होगा।
अतः सूर्य को प्रत्यगात्मा (अन्तरात्मा) ही मानना होगा।
तदनुसार *सहस्त्रार* चक्र को *सूर्य* से सम्बन्धित माना जा सकता है।


चन्द्रमा को स्पष्ट रूप से मन का प्रतीक कहा गया है।यह तो निर्विवाद है। लेकिन अष्ट ग्रहों में चन्द्रमा को नहीं लिया जा सकता।
बचे शनि और युरेनस
मणिपुर और विशुद्ध 
यदि शनि को विशुद्ध (न्याय कर्ता/ निष्पक्ष) मानें तो युरेनस (राहु) को मणिपुर चक्र मानना होगा।
एतदनुसार -- 
१ मूलाधार -नेपच्यून (देवेन्द्र) एवम् कुण्डलिनी- मङ्गल (अग्नि),
२ मणिपुरक युरेनस (असुरराज) एवम् स्वाधिष्ठान शुक्र (असुराचार्य) ,
३ अनाहत - ब्रहस्पति (जीव) एवम् विशुद्ध - शनि (निष्पक्ष)
४  सहस्त्रार - सूर्य (आत्म तत्व/ आकाश) एवम् आज्ञा - बुध (सूर्य का निकटतम ग्रह/ वायु)।

सुचना ---

ग्रह १ बुध, २ शुक्र, ३ भूमि, ४ मङ्गल, ५ ब्रहस्पति, ६ शनि, ७ युरेनस और ८ नेपच्यून हैं। भूमि के स्थान पर सूर्य को ले लें और चन्द्रमा को छोड़ दें तो भी  आठ ग्रह आठ चक्र है।
१ कुण्डलिनी, २ मूलाधार, ३ स्वाधिष्ठान, ४ मणिपुरक, ५ अनाहत, ६ विशुद्ध, ७ आज्ञा, ८ सहस्त्रार ।
इसे मुख्य और उप (सहायक) चक्र के रूप में ऐसे देखा जा सकता है।
१ मूलाधार- कुण्डलिनी,
२ मणिपुरक - स्वाधिष्ठान,
३ अनाहत - विशुद्ध 
४  सहस्त्रार - आज्ञा।

कुछ लोगों नें राहु और कुण्डलिनी को सर्प मानकर दोनों का सम्बन्ध स्थापित किया है। लेकिन फलित ज्योतिष की दृष्टि से राहु मोह और भ्रम का कारक है। जो कुण्डलिनी (तन्त्र मत में चित् शक्ति) से मैल नही खाता।
मेरे मत में युरेनस असुर (वत्रासुर) सर्प का प्रतीक है। लेकिन देवत तत्व के अनुसार नेपच्यून को देवेन्द्र पुरन्दर (इन्द्र) से और युरेनस को उसके समकक्ष असुर राज विरोचन से सम्बन्धित माना है।
अतः सर्प के तर्क से कुण्डलिनी को युरेनस से जोड़ना होगा।
लेकिन तन्त्र में कुण्डलिनी को चित् शक्ति मानने के तर्क को नकारा नही जा सकता। क्योंकि चक्र की अवधारणा तन्त्र की है। न कि, वैदिक। अतः उसकी व्याख्या तन्त्र के नियमों के अधीन ही होना चाहिए।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

हमारा वास्तविक स्वरूप/ वास्तविक मैं

  इड़ा, पिङ्गला, सुशुम्ना, स्थूल शरीर,लिङ्ग शरीर,सुक्ष्म शरीर,कारण शरीर, पञ्च इन्द्रियाँ,पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ, अन्तःकरण चतुष्टय,
 [१ {मनसात्मा (मन - संकल्प)}, २ {लिङ्गात्मा (अहंकार - अस्मिता)}, 
३ {ज्ञानात्मा (बुद्धि - मेधा/ बोध), ४ {विज्ञानात्मा (चित्त - वृत्ति/चेत)}, 
{अभिकरण ५ {अणुरात्मा  (तेज- विद्युत), 
{६ सुत्रात्मा (ओज- आभा)}] है।
उक्त सभी तो जड़ प्रकृति के अङ्ग जड़ पदार्थ ही हैं।

अधिकरण [{ १ भुतात्मा (प्राण/ चेतना/ देही -धारयित्व/ धृति/ अवस्था}  और 
{ २ जीवात्मा (अपर पुरुष/जीव - अपरा प्रकृति/ आयु /जीवन)} मध्य स्थिति है। 
जबकि 

{प्रत्यगात्मा /अन्तरात्मा (पुरुष - प्रकृति) अधिष्ठान है। प्रत्येक का प्रथक प्रथक स्वरूप है।
इनसे परे आत्म तत्व आरम्भ होते है।
[{प्रज्ञात्मा (परम पुरुष- परा प्रकृति}, और इनसे परे
विश्वात्मा /ॐ, इससे पर परमात्मा (परम आत्म/ वास्तविक मैं) हम सबका मूल स्वरूप है।

गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

महर्षि अगस्त का समुद्र का पानी पी जाना और विंध्याचल को झुके रहनें का आदेश की वास्तविकता।

वास्तव में उल्का टकराने से भूमि का झुकाव बढ़ जाने के कारण या अगस्त तारा का दक्षिण में खिसकने के परिणामस्वरूप या उसी समय अफ्रीका से टूटकर एक खण्ड जिसके उत्तर में सतपुड़ा पर्वत था आर्यावर्त वाली भूमि जिसका दक्षिण सीमा पर विन्यगिरि स्थित था उस विन्द्य गिरि से टकरा कर दक्षिण भारत का हिस्सा भारत में जुड़ने से नर्मदा घाँटी का समुद्र का पानी फैलकर अरब सागर और बङ्गाल की खाड़ी में चले जाना और उस स्थान पर विंध्याचल पर्वत बड़ा ऊँचा हो जाना फिर विन्याचल का अधिकतम (सीमान्त) ऊँचाई पा लेनें के बाद अचानक धँस जाना। बादमें और एशिया यूरोप से जुड़ गया यूराल पर्वत के रोकने के कारण ठीक इसी प्रकार उत्तर सागर के स्थान पर उत्तर गिरि बनना जो कुछ वर्षों बाद हिमाचल बन गया और अब हिमालय बन गया। अफ्रीका से आस्ट्रेलिया भी अलग हो गया। आज भी नर्मदा घाँटी और हिमालय में समुद्र के अवशेष मिलते हैं। और दोनों भाग अन्दर से पोले / खोखले माने जाते हैं।
इसी घटना को अगस्त मुनि के दक्षिण में जानें पर विन्द्याचल का झुकना और अगस्त द्वारा झुके रहनें का निर्देश के पालन में आजतक झुका रहना तथा अगस्त द्वारा समुद्र का पानी सोख लेना कहा जाता है।
जैसे आर्य आक्रमण की थ्योरी गड़ी गई उसी प्रकार विन्याचल और यूराल पर्वत के बीच के भाग को भी अफ्रीका का हिस्सा बतलाया गया। जबकि विंध्याचल और सतपुड़ा, उत्तर भारत और दक्षिण भारत की रचना में जमीन आसमान का अन्तर है।
सुचना - अगस्त तारा का दक्षिण में खिसकना और महिषासुर द्वारा खूर से भूमि को तेजी से घुमाना (मार्कण्डेय पुराण/ दुर्गा सप्तशती मध्यम चरित्र) की घटनाओं का मतलब  उल्का टकराने से भूमि का झुकाव बढ़ना और कुछ समय भूमि का अपनी धूरी पर तेजी से घूमना की घटना होना अधिक सम्भव है।  

मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

खगोलीय घटना होनें के पहले सतर्कता बरतें।

खगोलीय घटना होनें के पहले सतर्कता बरतें। घटना के बाद स्नान -दान, यज्ञ-होम करें।

धर्मशास्त्र में एक अनोखी परम्परा है कि, सूर्य और चन्द्रमा और भूमि के परस्पर विशिष्ट योग निर्मित होनें पर उस योग बननें के पहले उस की सावधानियाँ बरती जाती है। और घटना घटित होने के बाद स्नान - दान, यज्ञ - होम करने का विधान है।
जैसे संक्रान्ति, सूर्यग्रहण, चन्द्र ग्रहण तथा शुक्ल पक्ष की अष्टमी, एकादशी, पूर्णिमा और कृष्णपक्ष की पञ्चमी, अष्टमी, एकादशी,अमावस्या तिथियों को उपास रखते हैं और दूसरे दिन स्नान - दान, यज्ञ - होम करते हैं।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2022

राष्ट्रीय शक केलेण्डर में सुधार के सुझाव।

भारतीय राष्ट्रीय शक केलेण्डर में निम्नलिखित सुधार अत्यावश्यक है। इन्हें शिघ्रातिशिघ्र लागू किया जाना उचित होगा।
(१) शक वर्ष के स्थान पर कलियुग संवत या युगाब्ध लागु किया जाए।

(२) महिनों के नाम चैत्र वैशाख के स्थान पर निम्नानुसार १ मधु, २ माधव, ३ शुक्र, ४ शचि, ५ नभस, ६ नभस्य, ७ ईष, ८ ऊर्ज, ९ सहस, १० सहस्य, ११ तपस और १२ तपस्य किये जाएँ।

(३) मासारम्भ के दिनांक ग्रेगोरियन केलेण्डर / C.E. के दिनांक निम्नानुसार हो।

१-  मधुमास  21 मार्च से प्रारम्भ होकर 31 दिन का मास रहेगा। 
२- माधव मास 21 अप्रेल से प्रारम्भ होकर 31 दिन का मास रहेगा। 
३-मिथुन /  शुक्र/ 22 मई से प्रारम्भ होकर 31 दिन का मास रहेगा। 
४- शचि मास  22 जून से प्रारम्भ होकर 31 दिन का मास रहेगा। 
वर्षा ऋतु 
५-  नभस मास 23 जुलाई से प्रारम्भ होकर 31 दिन का मास रहेगा। 
६ नभस्य मास 23 अगस्त से प्रारम्भ होकर 31 दिन का मास रहेगा। 
७- ईष मास 23 सितम्बर से प्रारम्भ होकर 30 दिन का मास रहेगा। 
८-  उर्ज मास 23 अक्टूबर से प्रारम्भ होकर 30 दिन का मास रहेगा। 
९-  सहस मास 22 नवम्बर से प्रारम्भ होकर 30 दिन का मास रहेगा। 
१०- सहस्य मास 22 दिसम्बर प्रारम्भ होकर 29 दिन का मास रहेगा। 
११- तपस मास 20 जनवरी से प्रारम्भ होकर 30 दिन का मास रहेगा। 
१२-  तपस्य मास 19 फरवरी से प्रारम्भ होकर सामान्य वर्ष में 30 दिन का रहेगा और प्रति चौथे वर्ष  प्लूत वर्ष (लीप ईयर) में 31 दिन का रहेगा।

(४) इस प्रकार कलियुग संवत या युगाब्ध में उत्तरायण - दक्षिणायन, उत्तर तोयन - दक्षिण तोयन, और  १ वसन्त ऋतु, २ ग्रीष्म ऋतु, ३ वर्षा ऋतु, ४ शरद ऋतु, ५ हेमन्त ऋतु और ६ शिशिर ऋतु का प्रत्यक्ष सम्बन्ध जुड़ जाएगा।

(५) क - उत्तर गोल, उत्तरायण/ उत्तर तोयन।
वसन्त ऋतु 
१-मेष /  मधु / 21 मार्च से / 31 दिन। 
२-वृष /  माधव/ 21 अप्रेल से / 31 दिन।  

ग्रीष्म ऋतु।
३-मिथुन /  शुक्र/ 22 मई से / 31 दिन। 

उत्तर गोल, दक्षिणायन/दक्षिण तोयन।
४-कर्क / शचि/  22 जून से / 31 दिन। 

वर्षा ऋतु 
५-सिंह /  नभस / 23 जुलाई से / 31 दिन। 
६ कन्या / नभस्य / 23 अगस्त / 31 दिन। 

 दक्षिण गोल, दक्षिणायन/दक्षिण तोयन 

शरद ऋतु
७-तुला / ईष / 23 सितम्बर से / 30 दिन। 
८-वृश्चिक /  उर्ज / 23 अक्टूबर से / 30 दिन। 

हेमन्त ऋतु 
९-धनु / सहस / 22 नवम्बर से /30 दिन। 

दक्षिण गोल, उत्तरायण/ उत्तर तोयन
१०-मकर / सहस्य / 22 दिसम्बर से/ 29 दिन। 

शिशिर ऋतु 
११-कुम्भ / तपस / 20 जनवरी से /30 दिन। 
१२-मीन / तपस्य / 19 फरवरी से / 30 या 31 दिन।

(६) इससे प्राचीन भारतीय इतिहास समझने में आसानी होगी।
(७) भारतीय व्रत, पर्व, उत्सव और त्योहारों को इस केलेण्डर से जोड़ कर एकरूपता लानें में सहायता मिलेगी।

ग्रेगोरियन केलेण्डर में सुधार का सुझाव।

ग्रेगोरियन केलेण्डर में सुधार कर वर्ष का प्रारम्भ वसन्त सम्पात दिवस ( वर्तमान केलेण्डर के अनुसार २१ मार्च) से करते हुए यदि --

१ - 21 मार्च को 01 मार्च कर दिया जाए। मधुमास 31 दिन 
२ - 21अप्रेल को 01 अप्रेल कर दिया जाए। माधवमास 31 दिन 
३ - 22 मई को 01 मई कर दिया जाए। शुक्रमास 31 दिन 
४ - 22 जून को 01 जून कर दिया जाए। शचिमास 31 दिन 
५ - 23 जुलाई को 01 जुलाई कर दिया जाए। नभसमास 31 दिन 
६ - 23 अगस्त को 01 अगस्त कर दिया जाए। नभस्यमास 31 दिन 
७ - 23 सितम्बर को 01 सितम्बर कर दिया जाए। ईषमास 31 दिन 
८ - 23 अक्टूबर को 01 अक्टूबर कर दिया जाए। ऊर्ज 30 दिन 
९ - 22 नवम्बर को 01 नवम्बर कर दिया जाए। सहसमास 30 दिन 
१० - 22 दिसम्बर को 01 दिसम्बर कर दिया जाए। सहस्यमास 29 दिन 
११ - 20 जनवरी को 01 जनवरी कर दिया जाए। तपसमास 30 दिन 
१२ - 19 फरवरी को 01 फरवरी कर दिया जाए। तपस्यमास 30या 31 दिन
तो ग्रेगोरियन केलेण्डर, एस्ट्रोनॉमिकल केलेण्डर के समान हो जाएगा।
उचित तो यह होगा कि, जूलाई को क्विंटिलिस और अगस्त को सेक्स्टिलिस पूर्ववत रोमन केलेण्डर के समान संख्यात्मक नाम दे दिए जायें तो और भी व्यावहारिक हो जाएगा।

मासारम्भ १८ से २२ दिन पहले करने होंगे। तथा वर्ष आरम्भ ८० या ८१ दिन बाद में होगा।

लेकिन इससे ग्रेगोरियन केलेण्डर एस्ट्रोनॉमिकल केलेण्डर से पूर्णतः जुड़ जायेगा।