क्या श्री बुद्ध अवतार और गोतम बुद्ध, और सिद्धार्थ बुद्ध तीनों एक ही है या भिन्न- भिन्न?
सनातन धर्म में प्रत्येक चार लाख बत्तीस हजार वर्ष की अवधि में दशावतारों में से एक अवतार होने की अवधारणा है।
तदनुसार कृतयुग (सतयुग) की कालावधि चार कलियुग के बराबर १७,२८,००० वर्ष होती है अतः सतयुग में चार अवतार १ मत्स्य २ कुर्म (कश्यप),३ वराह और ४ नृसिंह हुए।
त्रेतायुग की कालावधि तीन कलियुग के बराबर १२,९६,००० वर्ष होती है। अतः त्रेतायुग में तीन अवतार १ श्री वामन अवतार (विष्णु आदित्य) २ श्री परशुराम जी और ३ श्रीरामचन्द्र जी हुए।
द्वापर की कालावधि दो कलियुग तुल्य अर्थात ८,६४,००० वर्ष है। अतः द्वापरयुग में दो अवतार द्वापरयुग में दो अवतार १ श्री बलराम और २ श्रीकृष्ण हुए। श्री कृष्ण तो निर्विवाद है, लेकिन द्वापरयुग के दुसरे अवतार बलराम हैं या बुद्ध इसमें मतभेद है। नियमानुसार मुख्य अवतार अन्त में होता है अतः श्रीकृष्ण बाद में होना चाहिए उनके पहले बलराम अवतार होना तार्किक है।
लेकिन कुछ लोग भागवत पुराण में उल्लेख के अनुसार और संकल्प बोले जानेवाले (श्री बोद्धावतारे) तथा पञ्चाङ्गो में लिखे जानेंवाले चौवीस अवतारों में से इक्कीसवें और दशावतारों में नौवे अवतार श्री बुद्ध नामक को मानते हैं। उनका मत है कि, बिहार में गया के निकट कीटक नामक स्थान पर आश्विन शुक्ल दशमी (विजयादशमी/ दशहरे) (मतान्तर से पौष शुक्ल सप्तमी) के दिन पिता अजिन (या मतान्तर से हेमसदन) के घर माता अञ्जना के गर्भ से भगवान श्री बुद्ध का अवतार हुआ ऐसा मानते हैं।
श्रीललित विस्तार ग्रंथ के 21 वें अध्याय के 178 पृष्ठ पर बताया गया है कि संयोगवश गौतम बुद्ध जी ने उसी स्थान पर तपस्या की जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या की थी। इसी कारण लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया।
बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति। - भागवतपुराण
कलियुग की कालावधि ४,३२,००० वर्ष है। कलियुग में दशावतारों में से केवल एक अवतार कल्कि अवतार ही होता है। जो कलियुग समाप्ति के ८२१ वर्ष पहले सम्भल ग्राम में विष्णुयश शर्मा नामक ब्राह्मण के घर होगा। कल्कि की माता का नाम सुमति होगा।
कुछ लोग श्रीमद्भागवत पुराण में उल्लेख बतलाकर बिहार और नेपाल की सीमा पर लुम्बिनी नामक स्थाध पर ईसापूर्व 563 में राजा शुद्धोदन की पत्नी मायादेवी के गर्भ से जन्में सिद्धार्थ गोतम बुद्ध को विष्णुअवतार मानते हैं।
किन्तु यह सही नही लगता क्योंकि,
(1) तथागत बुद्ध का वर्णन रामायण अयोध्या काण्ड/सर्ग 108 एवम् 109 में है। सर्ग 109 के 34 वें श्लोक में श्रीराम ने जाबालि को बुद्ध के मत को माननें वालों से वार्तालाप करना तक निषिद्घ और उन्हें चोर के समान दण्ड का पात्र बतलाया है। मतलब बुद्ध और उनके मतावलम्बी श्रीरामचन्द्रजी के पूर्व में भी थे। स्पष्टतः यह वर्णन श्रमण सम्प्रदाय का है जो वर्तमान में 1 नागा, 2 शैव, 3 शाक्त, 4 गाणपत्य, ५ नाथ, 6 जैन और 7 बौद्ध सम्प्रदाय के रूप में पाया जाता है।
(२) सिद्धार्थ के जन्म के समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि, यह बालक चक्रवर्ती राजा होगा या बुद्ध होगा।
मतलब उनके जन्म के पहले कोई बुद्ध हो चुके थे। सिद्धार्थ या गोतम बुद्ध उन प्राचीन श्रीबुद्ध अवतार के अनुयाई रहे होंगे। अर्थात यह कहा जा सकता है कि, नारायण अवतार श्रीबुद्ध के पन्थ पर ही जैन तीर्थंकर और अन्य बुद्ध तथा सिद्धार्थ गोतम बुद्ध भी चले थे।
जबकि भविषपुराण में तथागत गोतम बुद्ध को राक्षस कहागया है।और कल्कि पुराण में तो कहा गया है कि, सिद्धार्थ गोतम बुद्ध स्वयम् और उनकी माता मायादेवी और पिता शुद्दोधन पुनः उत्पन्न होकर अपने अनुयायी बौद्धों फट को साथ लेकर कल्कि अवतार से युद्ध करनें और श्री कल्कि से परास्त होनें का वर्णन है।
अतः सिद्धार्थ विष्णु अवतार तो कदापि नही माने जा सकते।
हरिवंश पुराण 01/41, विष्णु पुराण 3/18, पद्म पुराण3-252 एवम् गरुड़ पुराण उ/15/26 में मायामोह और नग्न नाम से श्रमण और जैन सम्प्रदाय का वर्णन है।
श्रीबुद्ध, सिद्धार्थ - गोतम बुद्ध में तुलना ---
(१) तथाकथित नारायण अवतार श्री बुद्ध का जन्म 3225 ई.पू. से पहले से लेकर 3100 ई.पू. के बीच पहले यानी आज से लगभग 5121 वर्ष पूर्व से लेकर 5246 वर्ष पूर्व का द्वापर युग में हुआ ऐसा कहा जाता है ।
जबकि सिद्धार्थ गोतम बुद्ध का जन्म 623 ई.पू.का अर्थात कलियुग संवत 3723 में यानि आज से लगभग 2644 वर्ष पहले का होनें के कारण उन्हें नारायण अवतार बुद्ध नही कहा जा सकता है।
(२) साथ ही तथाकथित नारायण अवतार श्री बुद्ध और सिद्धार्थ गोतम बुद्ध दोनों के माता-पिता, जन्म स्थान और जन्म तिथि बिल्कुल ही भिन्न-भिन्न (अलग-अलग) है।
(३) बोद्ध परम्परा के अनुसार सिद्धार्थ के जन्म के समय ही ज्योतिषियों नें यह भविष्यवाणी की थी कि, यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट होगा या बुद्ध होगा। मतलब सिद्धार्थ के जन्म के पहले कोई बुद्ध हो चुके थे जिनके नाम पर सिद्धार्थ को गोतम बुद्ध कहा गया।
(४) बोद्ध मानते हैं कि सिद्धार्थ के जन्म के पहले कई लोग सम्बोधि प्राप्त कर बुद्ध हो चुके थे। मतलब बोद्ध परम्परा के अनुसार बुद्ध शब्द का अर्थ सम्बोधि प्राप्त व्यक्ति होता है जो कोई भी हो सकता है।
५कुछ लोग सिद्धार्थ बुद्ध और गोतम के शिष्य गोतम बुद्ध को भी अलग-अलग मानते हैं।
जबकि सनातन धर्म के नारायण अवतार बुद्ध को सम्बोधि प्राप्त नही करना पड़ती है। नारायण अवतार बुद्ध अन्य अवतारों की भाँति जन्मजात आत्मज्ञ होते हैं। गलती से भी कोई गलती नही करते। केवल लोक कल्याणार्थ लीलाएँ रचते हैं।
(६) कुछ लोगों का तो आरोप है कि, पुराणों और अन्य हिन्दू ग्रंथों में वामपंथियों और अन्य सेक्युलर विद्वानों द्वारा भारी मात्रा में मिलावट कर दी गयी है और युवा वर्ग उसे ही सच मानने लगे हैं। अन्यथा सनातन धर्म और बौद्ध दोनों में से कोई भी सिद्धार्थ गोतम बुद्ध को नारायण अवतार नही मानता।
जो लोग बुध (ग्रह) और बुद्ध में अन्तर नही जानते वे गोतम बुद्ध तो क्या स्वयम् को भी नारायण अवतार कह दें तो क्या कर सकते हैं। भारत में और सनातन धर्मियों में शास्त्र अध्येता बचे ही कितने हैं?
भगवान श्रीबुद्ध की गणना दशावतारों में न करना तो पूर्ण उचित ही है लेकिन चौवीस अवतारों में भी की जाए अथवा नही इसमें भी मतभेद है क्योंकि,
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
वचन भी श्रीबुद्ध के चरित्र में नही था। अतः दशावतार और चौबीस अवतारों में भी श्रीबुद्ध के स्थान पर श्री बलराम जी को ही अवतार मानना उचित है।
निष्कर्ष यह कि, बुद्ध तो कई हुए लेकिन किसी बुद्ध को अवतार घोषित करने का षड़यन्त्र बोद्ध से सनातन धर्म में आये किसी पूर्व बोद्ध आचार्य की श्रद्धा का प्रतिफल और सनातन धर्म के साथ धोखा है।
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