बुधवार, 11 मई 2022

भारतीय श्रुति परम्परा और अरबी/ इब्राहिमी किताबी परम्परा में बहुत अन्तर है।

हमारी श्रुत परम्परा की अवधारणा इब्राहिमी यहोवा द्वारा कानून व्यवस्था की किताब देने और मोह मद को जिब्राईल फ़रिश्ते के माध्यम से क़ुरान की चौपाइयां सिखानें की अवधारणा से बहुत अन्तर है।

१ वेद श्रुत परम्परा से हमें प्राप्त हुए। यह सत्य है लेकिन इसका प्रारूप/ स्वरूप ऐसा है ---

परमात्मा के ॐ संकल्प का ही विस्तार वेद वचन/ ऋचाएँ है।
इनका विस्तार क्रमशः इस प्रकार होकर मानवों तक पहूँचा।
इसके भी दो प्रारूप हैं।
१ परमात्मा से ब्रह्म तक केवल एक ही वेद यजुर्वेद ही था ।

 शतपथ ब्राह्मण का मन्त्र कुछ ऐसा है --- 
अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते,वायोर्यजुर्वेदः ; सूर्यात्सामवेदः।

अर्थ --- ब्रह्म से अग्नि को ऋग्वेद संहिता का बोध हुआ, वायु को यजुर्वेद संहिता का बोध हुआ, सूर्य (आदित्य) को सामवेद संहिता का बोध हुआ तथा अङ्गिरा को अथर्ववेद संहिता का बोध हुआ।
 अङ्गिरा के पुत्र/ शिश्य  अथर्वा आङ्गिरस से अपनें शिष्यों को अथर्ववेद का ज्ञान मिला।

 ब्रह्म से चार देवत ऋषियों को वेदिक संहिताओं का बोध हुआ।
यह बात मनुस्मृति में भी कही है। 
मन्त्र है- अग्निर्वायुरविस्तु त्य ब्रह्म सनातन। दुहोय यज्ञसिध्यर्थमृगयजुः सामलक्षणम्। 
महाभारत और पुराणों के अनुसार वेद व्यास जी ने भी इसी परिपाटी को आगे बढ़ाकर --- वेदव्यास जी ने पिप्पलाद या पैल को ऋग्वेद संहिता पढ़ाई/ सिखाई, 
वेदव्यास जी ने याज्ञवल्क्य को यजुर्वेद संहिता सिखाई/ पढ़ाई,  (याज्ञवल्क्य ने वैशम्पायनजी को कृष्ण यजुर्वेद/ तैत्तिरीय संहिता पढ़ाई/ सिखाया), 
वेदव्यास जी ने  जैमिनी को सामवेद संहिता पढ़ाई/ सिखाई, और
वेदव्यास जी नें ही सुमन्त को अथर्ववेद संहिता पढ़ाई/  सिखाई।
उनने अन्य ऋषियों को यह ज्ञान प्रदान किया। जो अष्टपाठ विधि से यथावत सुरक्षित रहा।
ऋषियों ने ब्राह्मण ग्रन्थ रचे।

२ दूसरी परम्परा कहती है,
परमात्मा का ॐ संकल्प का ही विस्तार वेद है। 
परब्रह्म (विष्णु) से ब्रह्म (सवितृ) को 
ब्रह्म (सवितृ) अपरब्रह्म (नारायण) को
अपरब्रह्म (नारायण) से हिरण्यगर्भ ब्रह्मा को,
 हिरण्यगर्भ ब्रह्मा से प्रजापति ब्रह्मा को और 
प्रजापति ब्रह्मा से देव, असुर, मानव, दानव सबको यथा जिज्ञासा वेद (ज्ञान) प्रदान किए।

जैसे याज्ञवल्क्य जी ने तप द्वारा इन्द्र से भी अतिरिक्त वेद ज्ञान प्राप्त किया। 
इब्राहिमी परम्परा ---
जबकि आदम, से न्युहु तक तो स्वयम  सभी आस्थावान यहोवा भक्तों को तो यहोवा स्वयम् ही को गाइड करता रहा। 
यहोवा स्वयम् ने इब्राहिम को (तनख) विधि - विधान (कानून) पढ़ाये, मूसा को तो एक शिला लेख भी दिया था। मूसा, दाउद को कानून और व्यवस्था की किताब दी।
और यीशु के अनुयाई मानते हैं कि, यीशु तो यहोवा के इकलौते पुत्र थे अतः सीधे ही शिक्षित प्रशिक्षित हो कर ही आये थे। जबकि, भारतीय मानते हैं कि, वे बारह वर्ष तक किसी बौद्ध के अनुयाई रहे और बादमें उसके साथ  भारत आकर शिक्षा ग्रहण कर तीस वर्षायु में वापस इज्राइल गये। फिर तैंतीस वर्षायु में क्रुस से उतारे जाने पर वापस भारत आगये थे।
उधर सीरिया, ग्रीसऔर रोमनों ने अपनी-अपनी परम्परानुसार ईसाईयत गढ़ी।

मोह मद को सीरियाई ईसाई पादरी द्वारा जिब्राईल फ़रिश्ते के रूप में आकर बतलाया जाता था कि, अल्लाह जिब्राईल के माध्यम से मोह मद को कुरान की चौपाइयाँ भेज रहा है / जिब्राईल के रूप में उसी सीरियाई पादरी को मोह मद को कुरान की आयतें रटाई गई/   सिखानी भी पड़ी।

मोह मद के अनुयाई मोह मदन कहते हैं कि, अल्लाह ने जिब्राईल फ़रिश्ते के माध्यम से क़ुरान की आयतें भेजी।

अब बतलाईये कहाँ और क्या साम्य है?

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