गुरुवार, 12 मई 2022

भारत में आतंक के भय से आतंकी या उसके इष्ट की पूजा और घरेलू शत्रु / भेदिये।

महाभारत शान्ति पर्व/ मौक्ष पर्व/ अध्याय २८३ से २८४ तक  दक्षयज्ञ का भङ्ग और उनके क्रोध से ज्वर की उत्पत्ति तथा उसके विविध रूप के अन्तर्गत अध्याय २८४  में उल्लेखित तथ्य के अनुसार सर्वप्रथम उचित - अनुचित और सत्य की जानकारी होते हुए भी पत्नी (पार्वती) के द्वारा उत्तेजित करने पर रुद्र शंकर जी ने दक्षयज्ञ विध्वन्स कर दादागिरी/ गुण्डागिरी और आतंक स्थापित कर रुद्र के लिए यज्ञभाग प्राप्त कर पत्नी को प्रसन्न किया।
उसके बाद रुद्र पूजा, विघ्नेश्वर विनायक की पूजा बल्कि प्रथम निमन्त्रण/ प्रथम पूजा, ज्वर के भय से शीतला पूजन, और निषिद्ध बासी भोजन करना सब अपना लिया।

फिर जैनों और बौद्धों के आतंक काल में सिद्धार्थ गोतम बुद्ध भी विष्णु अवतार हो गये। महावीर भी रुद्रावतार होगये। रावण जैनों के अगले तिर्थंकर होंगे इसलिए सनातन वैदिकों के लिए भी रावण विद्वान और ज्ञानी महा तपस्वी और भक्त कहलाने लगे।  कार्तवीर्यार्जुन सहस्त्रार्जून - भगवान सहस्त्रार्जून कहलाने लगे।

मुस्लिम आतंक ने अल्लाह को ईश्वर और ईसाई अंग्रेजों के आतंक के कारण (यहोवा तो कोई जानता नही इसलिए) यीशु ही गॉड कहलाने लगे।

अफ्रीका के माली सुमाली और पेरू आदि लेकिन अमरीकी देश और पेरु एवम् मेक्सिको के मयासुर को कुबेर के विरुद्ध लड़ने के लिए रावण ने आमन्त्रित किया।
यमन (अरब) से कालयमन को श्रीकृष्ण से लड़ने के लिए जरासन्ध ने आमन्त्रित किया।
विक्रमादित्य के पिता गन्धर्वसेन से लड़ने हेतु उज्जैन से काबुल तक पैदल यात्रा कर जैनाचार्य महेसरा सूरी/ कालकाचार्य ने काबुल (अफगानिस्तान) से शकराज को आमन्त्रित किया। शकराज ने शिकार पर गये गन्धर्वसेन को अकेला पा कर अत्यन्त क्रूरता पूर्वक मारा। (क्या यह हिन्सा नही थी?)
चन्द्रगुप्त द्वितीय के बड़ेभाई रामगुप्त के विरुद्ध शकराज को रामगुप्त की पत्नी ध्रुव स्वामिनी का हरण करनें के लिए आक्रमण की सलाह देकर रामगुप्त की कमजोर कड़ियां बतला कर राम गुप्त को परास्त करवने और ध्रुव स्वामिनी का अपहरण करने जैसे नृशंस कृत्य बौद्ध भिक्षुओं/ बौद्धाचार्यों ने इसलिए किया क्योंकि चीनी बौद्ध थे और रामगुप्त आदि गुप्त वंशी राजा वैष्णव थे।
मोहम्मद बीन कासीम को सिन्ध विजय के गुप्त रहस्य बतलानें वाले बौद्ध भिक्षु और मोहम्मद घोरी (ग़ौरी) को भारत पर आक्रमण का निमन्त्रण देनें चित्तोड़ की रानी पद्मिनी के सौन्दर्य का बखान कर उसे प्राप्त करने हेतु चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करने की सलाह देनें वाले भी सूफियों के अनुयाई राजपूत ही थे।
गुरुनानक देव जी के सुपुत्र चन्द्रदेव के अनुयाई उदासीन अखाड़े के साधुओं, निरंकारियों, आदि पर अकालियों को प्राधान्य प्राप्त करने के लिए अकालियों द्वारा अंग्रेजों को सहयोग देकर हरिमंदिर साहब पर एकाधिकार जमाने वाले अकाली। उक्त  सब भारतीय ही थे।
भारत में यदि राष्ट्रीयता होती तो देश विदेशियों का गुलाम नही होता।
विदेशी आक्रमणकारी यहीं के भाड़े के सैनिक भरती कर लेते थे। जो भारतीय राजाओं के सैनिकों से लड़ते थे। लूटपाट करने थे। ऐसे भारतीय भी हुए हैं।
ईसाइयों के लिए भारतीयता से अधिक अहम ईसाईयत होती है। तो मुस्लिमों के लिए विश्व का हर मुसलमान उनका भाई है।  जब भी टर्की, अरब पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि किसी मुस्लिम राष्ट्र से यदि भारतीय हितों से टकराव हो तो अधिकांश भारतीय मुस्लिम भारतीय हितों के विरुद्ध मुस्लिम राष्ट्र के पक्ष में खड़े रहते हैं। कश्मीर की राजनीति में मेहबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला के बयानों में तो स्पष्ट ही देखा जा सकता है।
आज भी कुछ राजनीतिक जन तक भारत के विरुद्ध चीन और पाकिस्तान की पैरवी करते पाये जाते हैं।
भारत के वाम पन्थियों पर आरोप लगते हैं कि, वे भारत चीन आक्रमण के समय चीन के पक्ष में पैरवी करते थे।और आज भी भारतीय हितों के विरुद्ध चीन का पक्ष लेते हैं।
कांग्रेसी नेताओं पर आरोप है कि वे चीन और पाकिस्तान के शासनाध्यक्षों से मोदी जी के विरुद्ध सहयोग मांगते हैं।
दासत्व इतना कूट कूट कर भरा है कि, भाजपा नेता तक सार्वजनिक मञ्च पर बोलते थे कि, कांग्रेस के राज से तो अंग्रेजी राज अच्छा था। इतनी महंगाई नही थी। नारी रात में भी सुरक्षित घूमती थी। मतलब उनके अनुसार अंग्रेजों ने भारत में सुराज स्थापित किया था। जिसे भारतियों (कांग्रेसियों) ने समाप्त कर दिया।
हम भारतियों की स्थिति यह है कि, 
भारतीय विधि -विधान और नियमों की धड़ल्ले से अवहेलना करके, टेक्स चोरी, बिजली चोरी करके, अतिक्रमण करके, रिश्वत ले देकर, दहेज ले देकर, अतिथि नियन्त्रण कानून तोड़कर अपराध बोध अनुभव करने के स्थान पर हुए डींग हाँकते हुए अपनी बड़ी महत्ता सिद्ध करते हैं। और फिर बोलेंगे सौ में से निन्यानवे बेईमान फिर भी मेरा देश महान।
किसको दोष दें? किस किस को दोष दें?
भारतियों में ही राष्ट्रीयता है ही नही।

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