*मुहुर्त*
प्रायः मुहुर्त पूछने वाले निम्नलिखित गलतियाँ करते हैं।
1 आज वाहन क्रय करना है, मुहुर्त बतला दीजिए।
अरे भाई जब आज दिनांक का मुहुर्त तो तुमने स्वयम् ही निकाल लिया है फिर पूछा क्यों रहे हो?
साहब समय बतला दीजिए।
यदि वाहन पर सवारी करनें का मुहुर्त आज नहीं हुआ तो समय कैसे बतला पाऊँगा?
मूलत: मुहुर्त वाहन क्रय करनें का नहीं होता। मुहुर्त होता है वाहन पर सवार होकर सवारी करने का। राइडिंग का मुहुर्त होता हो, बुक करना, पेमेण्ट करना ये व्यापारिक गतिविधियाँ है। आप चलते रास्ते बहुत सी व्यापारिक गतिविधियाँ करते रहते हैं, उनमें कोई मुहुर्त विचार नही करते। करना आवश्यक भी नहीं है तो वाहन क्रय करने का मुहुर्त विचार क्यों? व्यर्थ विचार है। मुहुर्त विचारना होगा सवारी करनें का, गाड़ी अधिग्रहित कर/टेक ओवर कर शोरूम से गाड़ी बाहर निकालकर उसे सड़क पर चलाने का। फिर विचार करें वाहन लेकर सर्वप्रथम कहाँ जायें, किसको दिखायें। मतलब मन्दिर जायें, या माता-पिता या गुरुजनों को दिखायेंगे आदि-आदि।
तो वाहन क्रय करना हो या कोई भी मुहुर्त पूछना हो तो पर्याप्त समय पहले मुहुर्त निकलवा लें फिर वाहन क्रय करने करें।
2 कुछ मुहुर्त ऐसे हैं जो मास विशेष में ही होते हैं। हर समय नहीं होते। जैसे गृह प्रवेश मुहूर्त वैशाख, ज्यैष्ठ, श्रावण,कार्तिक, मार्गशीर्ष,माघ और फाल्गुन सौर मास में ही होते हैं।
विष्णु-माया, श्री हरि-कमला, नारायण- श्रीलक्ष्मी, हिरण्यगर्भ-वाणी, प्रजापति-सरस्वती, ब्रहस्पति, इन्द्र-शचि, ब्रह्मणस्पति, द्वादश आदित्य, वाचस्पति, अष्ट वसु, श्री राम अवतार, श्री कृष्ण अवतार आदि सात्त्विक देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा उत्तरायण में (परम्परागत उत्तरायण 22/23 दिसम्बर से 22/23जून तक) होती है जबकि, रुद्र, काली, दुर्गा, विनायक, भैरव आदि तामसिक देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा दक्षिणायन में (परम्परागत दक्षिणायन 22/23 जून से 22/23 दिसम्बर तक) होती हैं।
कई बार नये मन्दिर निर्माण करने वाले आयोजक सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार के देवताओं की स्थापना करते हैं और दोनों की प्राण प्रतिष्ठा एक ही दिन करना चाहते हैं। अब आप ही सोचें एक ही दिन सात्विक और तामसिक देवताओं की प्राण-प्रतिष्ठा मुहुर्त कैसे निकलेगा?
चोल-मुण्डन संस्कार, उपनयन/ यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह संस्कार गृहारम्भ, गृह-प्रवेश के मुहुर्त अति बारीकी से देखना होते हैं। इनमे अलग-अलग दोषों और चक्रों का ध्यान रखते हुए मुहुर्त देखना होता है। (अर्थात इनमें बहुत सी टर्म्स एण्ड कण्डिशन्स ध्यान रखना होती है।) अतः मुहुर्त शोधन में अधिक समय लगता है। लोग चार-पाँच जोड़ों का विवाह एक साथ करना चाहते हैं। साथ ही एकादशी, प्रदोष उद्यापन आदि भी साथ ही करने का आग्रह करते हैं। ऐसे मुहुर्त खोजना कई बार लगभग असम्भव हो जाता है।
3 चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी तिथि रिक्तता तिथि होती है। तथा अष्टमी तिथि भी शुभ नहीं मानी जाती है। मुहुर्त में शारदीय नवरात्र भी अच्छे नहीं माने जाते हैं। (अतः गणेश चतुर्थी,महा अष्टमी, महा नवमी,राम नवमी, शिवरात्रि को मुहुर्त नहीं निकलते।) विवाह में पुष्य नक्षत्र निषेध है। श्राद्धपक्ष में भी शुभ कर्म निषिद्ध हैं। किन्तु पितरों और दुर्गा देवी, शिवजी के भक्त गण इन तिथियों में मुहुर्त चाहते हैं। किन्तु हमें इनकार करना पड़ता है। लोग मानने को तैयार नहीं होते।
4 मुहुर्त निकालने में कर्म करनें वाले (पूजा में बैठनें वाले) की जन्म कुण्डली में जन्म के समय की सूर्य, चन्द्रमा और लग्न के राशि/ नक्षत्र को ध्यान में रखकर तिथि और लग्न (समय) निकाला जाता है। अतः मुहुर्त सबके लिए अलग-अलग निकालना होता है। पूर्व दिशा में उदयीमान राशि को लग्न कहते हैं। मुहुर्त में लग्न का ही महत्व है। चौघड़िया या होरा का नहीं। होरा का उपयोग तब मान्य है जब कोई कार्य किसी विशेष वार में करना हो लेकिन उस वार में मुहुर्त नहीं निकल रहे हों तब यदि शुभ लग्न के समय सम्बन्धित वार के ग्रह का होरा मिल जाते तो उसे ग्राह्य कर लिया जाता है। पर बहुत से ज्योतिषियों को भी ऐसे विकल्पों का ज्ञान नहीं होता।
व्रत-उपवास, जयन्तियों और उत्सवों में पूजा का समय निर्धारित रहता है। उसी निर्धारित समयावधि में ही शुभ लग्न/ स्थिर लग्न देखा जाता है। जैसे श्राद्ध अपराह्न में ही होते हैं। गणेश स्थापना मध्याह्न में ही होना चाहिए। नवरात्र में घटस्थापना सूर्योदय से चार घण्टे में ही होती है। दीपावली को दीपमाला की पूजा प्रदोषकाल में ही होती है। हनुमज्जन्मोत्सव सूर्योदय के समय होना चाहिए न कि, सुबह छः बजे। रामजन्म मध्याह्न में होना चाहिए न कि दिन के बारह बजे। नृसिंह जन्म सूर्यास्त के समय मनाना चाहिए न कि, नाम छः बजे। जन्माष्टमी का महोत्सव मध्यरात्रि में होना चाहिए न कि, रात बारह बजे। पर कोई मानने को तैयार ही नहीं।
इसलिए किसी भी कार्य की योजना बनाने के पहले सम्भावित मुहुर्त की सुचि तैयार करवा लेवें।फिर योजना बनायें।
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