सोमवार, 15 नवंबर 2021

भारत को पुर्ण स्वतन्त्रता 26 जनवरी 1950 को मिली न कि, 2014 में

निर्विवादित रूप से वर्तमान के वामपन्थी (जिन्हें तथाकथित मार्क्सवादी कहा जाता है), वर्तमान में वे भारत विरोधी, भारतीय सनातन संस्कृति और  सनातन वैदिक धर्म के न केवल विरोधी अपितु शत्रु भी हैं यह माननें में मुझे किञ्चित मात्र संकोच नही है।
वहीँ स्वातन्त्र्य आन्दोलन में मुख्य पुरोधा अमर शहीद लाला लाजपतराय, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह,सुभाषचन्द्र बोस आदि सभी क्रान्तिकारी मार्क्सवादी थे। यह माननें में दक्षिणपन्थियों को संकोच करना गलत है।
क्रान्तिकारी दल का नाम ही हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन था। जिसमें कट्टर आर्यसमाजी और शुद्धिकरण आन्दोलन में मुस्लिमों को पुनः वैदिक धर्म में लानें वाले रामप्रसाद बिस्मिल भी थे उन्हे दक्षिणपन्थी तो कतई नही माना जा सकता।
कार्लमार्क्स प्रथम गैरभारतीय विचारक थे जिनने आर्य आक्रमण थ्योरी और आर्य द्रविड़ थ्योरी का खण्डन कर भारत के मूल निवासी आर्यों को ही माना।जिसे बाद में अम्बेडकर ने भी सही सिद्ध किया।
अब आज के वामपन्थी और भीम-मीम समर्थक बहुजन समाज पार्टि वाले इससे विपरीत मत रखते हैं अतः न उन्हें मार्क्सवादी कहा जा सकता है न अम्बेडकर वादी कहा जा सकता है।
भारतीय स्वातन्त्र्य आन्दोलन में आज के दक्षिणपन्थियों का योगदान से इन्कार नही करता लेकिन उनका योगदान प्रतिशत नगण्य था।
दक्षिणपन्थियों की एक मुख्य संस्था के संस्थापक को ही क्रान्तिकारी सावरकर भी अंग्रेजों का एजेण्ट कहते थे, जिनने सुभाषचन्द्र बोस को सहयोग देनें को राजी नही होकर उन्हें अपना मार्ग बदलकर हिन्दू एकता के लिए कार्य करनें का उपदेश देकर पल्ला छुड़ालिया हो, जिनने क्रान्तिकारियों के लिए तन, मन धन किसी से भी कुछ भी सहयोग नही किया  उन्हें ब्रिटिश विरोधी स्वतन्त्रता आन्दोलन में सहयोगी बोलना सम्भव नही। लेकिन वे लोग सही बोल नही सकते तो बात घुमा रहे हैं।
इसलिए वे स्वतन्त्रता को भीख में मिली घोषित करके आत्मसन्तुष्टि कर रहे हैं।

कंगना उनके ये समर्थक 26 जनवरी 1950 से 2014 के बीच की तुलना नही करते।
15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक की स्थिति को ही 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 के बजाय सीधे 2014 में मान लेते हैं। ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा हमारे देश पर थोपा इण्डियन इण्डिपेण्डेण्ट एक्ट 1947 निरस्त करके 26 जनवरी 1950 का संविधान की अन्तिम धारा अनुच्छेद 395 भारत को पूर्ण स्वतन्त्र सम्प्रभुता सम्पन्न भारत घोषित करता है।
यहाँ कुछ ब्रिटिश भक्त लोग आपत्ति उठाते हैं कि, अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अन्तर्गत इण्डियन इण्डिपेण्डेण्ट एक्ट 1947 निरस्त करने का अधिकार केवल ब्रिटिश पार्लियामेंट को ही है। भारतीय संसद निरस्त नही कर सकती। उसका उत्तर है कि,  इकहत्तर वर्ष पूर्ण हो चुके बहत्तर वर्ष पूर्ण होनें में मात्र दो ढाई माह शेष हैं , ब्रिटेन की सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में आजतक यह आपत्ति नही उठाई। कृपया वे दास जन बतलायें कि, लिमिटेशन एक्ट में ऐसे कितने वर्ष तक का प्रावधान है कि, कोई आपत्ति न लेने पर भी उसका कब्जा बरकरार माना जायेगा। कनाड़ा पर तो ब्रिटेन ने तत्काल सैन्य कार्रवाई कर दी और विजय हाँसिल की। भारत पर क्यों नही की?
वे दासजन चाहते हैं कि, ब्रिटश पार्लियामेंट इण्डियन इण्डिपेण्डेण्ट एक्ट 1947 निरस्त कर देती तो उनकी यह बात प्रमाणित हो जाती की आजादी भीख में मिली। जबकि सच्चाई वे स्वयम जानते हैं कि, ब्रिटेन की सरकार  सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज तथा  भारतीय नौसेना में हुए विद्रोह जिसमें कामरेड डांगे का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा के चलते बिना दस लाख युरोपियन सेन्यबल के भारत पर नियन्त्रण नही रखा जा सकता ; इसी दबाव के चलते अंग्रेजों को भारत छोड़नें के लिए विवश होना पड़ा। और इसी कारण ब्रिटिश शासन-प्रशासन अंग्रेजों के भारत छोड़नें की विवशता में गान्धी कांग्रेस के कार्यक्रमों को महत्वपूर्ण नही मानती।
भारत को आज भी ब्रिटेन का गुलाम घोषित करने वाले ऐसे बेतुके देशद्रोही बयान जारी करनें वाले दासजन विदेशमन्त्री रहकर विदेशी मामलों के विशेषज्ञ मानेजाने वाले भू.पू. प्रधान मन्त्री अटल बिहारी वाजपेई और चाणक्य माने जाने वाले प्रधानमन्त्री नरेन्द्रभाई मोदी पर भी अविश्वास प्रकट कर रहे हैं।
इन्दिरा गान्धी ने बयालीसवें संविधान संशोधन जो 01 अप्रेल 1977 से लागू हुआ तबसे समाजवादी और सेकुलर राष्ट्र घोषित किया। ऐसा 2014 में संविधान में क्या नया हुआ जो पहले नही था। मतलब कुछ नही हुआ। आज भी वही और वैसा ही है जो 1977 में था। यह बात भी कुछ अंग्रेज भक्त दासजन स्वीकारते है।
विदेशनीति परिस्थितियों के अनुसार परिवर्नशील होती है। इसमें किसी भी एक पक्ष का सम्पूर्ण योगदान नही होता। तो विदेशनीति में हुए आंशिक परिवर्तन को स्वतन्त्रता घोषित करना स्वतन्त्रता के अर्थ को ही बदलने का प्रयास मात्र है।
यदि इसे मान्यता दी गई तो भविष्य में भी ऐसे परिवर्तनों पर स्वतन्त्रता प्राप्ति कहा जायेगा।
अतः भारत शासन का दायित्व है कि, वह स्पष्ट करे कि, पूर्ण स्वतन्त्रता 26 जनवरी 1950 को मिली। और उसके बाद सम्प्रभुता में कोई परिवर्तन नही हुआ और सम्पूर्ण सम्प्रभु होने के बाद सम्प्रभुता में कोई और विकास होना सम्भव ही नही है।

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