हनुमान जयन्ती की वास्तविक तिथि के विषय में बहुत भ्रम है।
उत्तर भारतीय चैत्र पूर्णिमा को सूर्योदय के समय हनुमान जयन्ती मनाते है। इस दिन प्रायः चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर रहता है।
उड़ीसा में निरयन मेष संक्रान्ति (वर्तमान में 13/14 अप्रेल) को मनाते हैं। इस दिन सूर्य केन्द्रीय ग्रहों में (मध्यम ग्रह) में भूमि चित्रा नक्षत्र पर रहती है।
अयोध्या के हनुमान गड़ी मन्दिर में अमान्त आश्विन पूर्णिमान्त कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (काली चौदस/ रूप चौदस) को सूर्यास्त के समय मेष लग्न में हनुमान जयन्ती मनाते हैं। इस दिन भी प्रायः चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर रहता है।
मतलब चित्रा तारे का हनुमान जन्म से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
लेकिन;
कर्नाटक में मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को हनुमान व्रतम् मनाते हैं। ज्ञातव्य है कि, हनुमान जी का कार्यक्षेत्र कर्नाटक के हम्पी क्षेत्र में ही रहा। सम्भवतः कर्नाटक के हम्पी से 15 किलोमीटर दूर अनेगुड़ी (अञ्जनी) गाँव में स्थित अञ्जनाद्री पर्वत पर पर्वतीय किलेनुमा स्थान पर स्थित मन्दिर को हनुमानजी का जन्मस्थान मानते हैं। रा.स्व.से.संघ नें वहाँ हनुमान जन्मस्थली मन्दिर बनाने हेतु एक सौ बीस करोड़ रुपए का फण्ड तैयार कर रखा है।
तमिलनाडु में अमान्त मार्गशीर्ष अमावस्या* को हनुमथ जयन्ती पर्व मनाया जाता है।
*आन्ध्र* प्रदेश और *तेलङ्गाना* मे चैत्र पूर्णिमा से दीक्षा आरम्भ कर 41 से दिन पश्चात *अमान्त वैशाख पूर्णिमान्त ज्येष्ठ कृष्ण दशमी* को हनुमान जयन्ती मनाते हैं। और पर्व का समापन करते हैं। तो
ध्यातव्य है कि, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम तिरुमला स्थित अञ्जनाद्री पर्वत पर स्थित अञ्जनी मन्दिर को हनुमान जन्मस्थली मानता है।
अस्तु;
हनुमानजी का जन्म के समय चित्रा नक्षत्र महत्वपूर्ण माना जा रहा है अतः जिस समय मध्यम ग्रह (सूर्य केन्द्रीय ग्रहों) में भूमि चित्रा नक्षत्र पर रहती है अर्थात निरयन मेष संक्रान्ति को हनुमान जी का जन्म दिन माना जा सकता है। या निरयन तुला संक्रान्ति को हनुमानजी का जन्म दिन मान सकते हैं जिस दिन सूर्य चित्रा तारे पर रहता है। काली चौदस/ रूप चौदस इसी समय पड़ती है।
या फिर चैत्र पूर्णिमा तो है ही, जिस दिन चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र पर रहता है। या
निष्कर्ष ---
वसन्त सम्पात के समय सायन मेष संक्रान्ति (20/21 मार्च) को हनुमानजी का जन्म हुआ हो सकता है। और श्री रामचन्द्र जी का जन्म भी वसन्त सम्पात के समय सायन मेष संक्रान्ति (20/21 मार्च) को हुआ था।
जिसदिन सूर्य भूमध्य रेखा पर होनें से दिनरात बराबर होते हैं। उत्तरीध्रुव पर सूर्योदय होता है, दक्षिण ध्रुव पर सूर्यास्त होता है।
सूर्य क्रान्तिवृत्त में जिस तारे से आरम्भ होता है अगले वर्ष उस तारे से 50.3' पीछे (पश्चिम में) आता है। इस अयन चलन के कारण 25778 वर्ष में सूर्य क्रान्तिवृत्त में पूरा 360° घूम जाता है। इससे निरयन मेष संक्रान्ति और सायन मेष संक्रान्तियों में लगभग 71 वर्ष में एक अंश का अन्तर होने से लगभग एक दिन का अन्तर पड़ जाता है। ग्रेगोरियन केलेण्डर सायन मान से चलता है अतः निरयन संक्रान्ति एक दिन बाद होती है। सन 285 ई. में 22 मार्च को वसन्त सम्पात अर्थात् सायन मेष संक्रान्ति और निरयन मेष संक्रान्ति एक साथ पड़ी थी। जिसमें अब 24° अर्थात 24 दिन से अधिक का अन्तर पड़ गया।
चूँकि, चैत्र वैशाखादि निरयन सौर संस्कृत चान्द्रमास भी निरयन संक्रान्तियों पर आधारित है अतः वर्तमान में सायन संक्रान्तियों की तुलना में 24 दिन का अन्तर पड़ता है। इसी अन्तर के परिणाम स्वरूप सायन मेष संक्रान्ति कभी चैत्र पूर्णिमा को तो कभी मार्गशीर्ष अमावस्या को पड़ती रही है। इस कारण हनुमान जयन्ती कि तिथियों में बहुत अन्तर देखनें को मिलता है।
हनुमान जी का जन्म यदि त्रेता युग समाप्त होने के मात्र सौ वर्ष पहले भी माना जाए तो;
त्रेता के अन्तिम सौ वर्ष+ द्वापर युग के आठ लाख चौंसठ हजार वर्ष + वर्तमान कलियुग संवत 5125 वर्ष कुल मिलाकर आठ लाख उनहत्तर हजार दो सौ पच्चीस वर्ष (8,69,225 वर्ष) से अधिक समय पहले हनुमान जी का जन्म हुआ होगा।
फिर भी एक जन्मस्थान आन्ध्र प्रदेश का तिरुमला तिरुपति हो या कर्नाटक में हम्पी के निकट अनेगुड़ी (अञ्जनी) गाँव कोई एक स्थान और निरयन मेष संक्रान्ति (14 अप्रैल) या सायन मेष संक्रान्ति (21 मार्च)या चैत्र पूर्णिमा नियत किया जावे।
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