मंगलवार, 30 नवंबर 2021

बद्रिनाथ मन्दिर में नारायण की पद्मासनस्थ ध्यान मुद्रा में प्रतिमा।

कुछ लोग बद्रिनाथ की पद्मासनस्थ ध्यान मुद्रा में नारायण अवतार की प्रतिमा को ऋषभदेव जी की मूर्ति सिद्ध कर उसे जैन मन्दिर मानने का आग्रह करते हैं।
सनातन धर्मियों की सबसे बड़ी कमजोरी शास्त्राध्ययन का अभाव है। इसलिए वे उत्तर नहीं दे पाते हैं।

स्वायम्भूव मनु के पुत्र प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र (जम्बूद्वीप के शासक), आग्नीध्र के पुत्र अजनाभ या नाभि  (हिमवर्ष के शासक) जिनने हिमवर्ष का नाम  अजनाभ वर्ष या नाभि वर्ष रखा, और नाभि के पुत्र हुए ऋषभदेव । ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती जिनने अपने नाम पर हिमवर्ष या अजनाभ वर्ष या नाभि वर्ष का नाम भारतवर्ष रखा।
आदिनाथ मतलब उक्त वैदिक ऋषि ऋषभदेव हैं। ऋषभदेव स्वयम् राजर्षि थे । वैदिक ऋषि थे। चौविस अवतारों में अष्टम अवतार ऋषभदेव जी हैं।  ऋषभदेव के समय तक जैन सम्प्रदाय का नामोनिशान तक नहीं था। 
नर नारायण भी चौथे अवतार ही हैं। ऋषभदेव आठवें अवतार हैं। नर नारायण भी तपस्वी थे। ऋषभदेव भी संन्यास आश्रम में तपस्वी हुए।
तो मानलो वह मूर्ति नारायण की न होकर ऋषभदेव की हुई तो है तो भी है तो किसी विष्णु अवतार की ही ना?
इन्दौर जिले की देपालपुर तहसील के बनेडिया का चौबीस अवतार मन्दिर जिसके पास ही जैन मन्दिर भी है, या देपालपुर का सबसे नवीन चौवीस अवतार मन्दिर हो; सभी जगह अवतार ऋषभदेव जी की मूर्ति है। तो क्या वे सभी मन्दिर भी जैनों के हो गये ?
पद्मासन पर ध्यान मुद्रा में भगवान शंकरजी की सेंकड़ों मूर्तियाँ है तो क्या वे सब जैनों की हो गई?
कल से मुसलमान कहने लगे कि, सनातन धर्मी तो अन्त्यैष्टि में शवदाह करते हैं। इसलिए सभी साधु महात्माओं की समाधि मुस्लिमों की है, तो कौन मुर्ख मानेगा?

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