बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

नवरात्र मे देव्याराधन-उपासना में किन किन देवियो के नामोल्लेख मिलते हैं?


देवियों के नामों सुची -- जिनकी पूजा नवरात्र में होती है।

वैदिक दृष्टि से सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति का निमित्तोपादान कारण परमात्मा ही है। परमात्मा ने अपने ॐ संकल्प से स्वयम् को प्रज्ञात्मा परब्रह्म स्वरूप में प्रकट किया। इसी प्रज्ञात्मा को अध्यात्मिक दृष्टि से परम दिव्य पुरुष और पराप्रकृति कहते हैं और परब्रह्म को विष्णु और माया के आधिदैविक स्वरूप में जानते हैं।

ये विष्णु माया ही प्रथम आदिदेवी हैं। अन्य सभी देवियाँ इन माया देवी के ही अंशभूत स्वरूप हैं। जो क्रमशः (पराप्रकृति) माया -> (प्रकृति) सावित्री-> (अपरा त्रिगुणात्मक प्रकृति) श्रीलक्ष्मी-> (धारयित्व) रचना (वाणी/ब्राह्मी)  -> (आभा) सरस्वती -> (विद्युत) शचि -> (वृति/ चेत) प्रभा -> (मेधा) देवी -> (अस्मिता) उमा -> (संकल्प) शतरूपा -> (स्वभाव) भारती -> (स्वाहा) मही, (वषट) सरस्वती, (स्वधा) ईळा -> तुषिताएँ, मरुताएँ, रौद्रियाँ,-> सिद्धियाँ, रचना और वैनायकी।

तन्त्रशास्त्र का सर्वस्वीकृत प्रामाणिक ग्रन्थ दुर्गा सप्तशती जो मार्कण्डेय पुराण से उद्धृत है।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार  भी

 1 मधुकैटभ से रक्षा के लिए नारायण को योगनिद्रा से जाग्रत करने हेतु हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी ने योगनिद्रा की स्तुति की। नारायण के नैत्रों से योगनिद्रा दशभुजा महाकाली स्वरूप में प्रकट हुई। इन्हें दुर्गासप्तशती में महाकाली अवतार भी कहा है। ये महाकाली (श्रीलक्ष्मी) देवी ही आदि शक्ति मानी गई है।  प्राकृतिक रहस्य में इनके अन्यनाम योगमाया, योगनिद्रा, तामसी और नन्दा (नन्द यशोदाजी की पुत्री / विन्द्यवासीनि देवी) भी कहा है।
अन्य सभी देवियाँ इन्ही आदिशक्ति योगमाया अपरा प्रकृति श्रीलक्ष्मी के ही स्वरूप या अवतार हैं। जो क्रमशः इस प्रका है।

2  महामाया के  परम्परागत प्रचलित स्वरूप - सावित्री देवी, श्री देवी, लक्ष्मी देवी, सरस्वती देवी (ब्राह्मी), उमा - पार्वती (माहेश्वरी) देवी, ऐन्द्री, (कार्तिकेय की शक्ति) कौमारी, तथा अवतारों की शक्ति वाराही और नारसिंही के अलावा निम्नांकित देवियोंका वर्णन है।
3 महिषासुर से रक्षार्थ देवताओं की स्तुति पर देवताओं के तेज के संयुक्तिकरण से प्रकट हुई महालक्ष्मी अवतार। 
दुर्गासप्तशती अध्याय दो मध्यम चरित्र में इनको चण्डिका, अम्बिका, और जगदम्बा भी कहा है। प्राकृतिक रहस्य में रक्त दन्तिका भी महालक्ष्मी अवतार को ही बतलाया गया है। इनकी सहस्त्रों भुजाएँ बतलाई गई है लेकिन मुर्तिरहस्य के अनुसार प्रतिमाओं और चित्रों में  बहुरङ्गी, अष्टादश भुजा वाली बतलाई जाती है। द्वितीय अध्याय मध्यम चरित्र के अनुसार चण्डिका ने तलवार से महिषासुर का सिरकाटा था किन्तु प्रतिमाओं में प्रायः शूल (भाले) से महिषासुर का सीना बिन्धते हुए बतलाते हैं।
महिषासुर वध के पश्चात देवताओं की स्तुति पर भविष्य में भी देवताओं के आव्हान पर प्रकट होकर सहायता का आशिर्वाद प्रदान किया था। अतः
 
4 शुम्भ निशुम्भ से रक्षणार्थ हिमालय पर एकत्र हो देवताओं को पुकार करते देख पार्वतीजी ने देवताओं से पुछा कि, आपलोग किसका स्तवन कर किसको पुकार रहे हैं? तब देवताओं के उत्तर देनें के पूर्व ही पार्वतीजी के शरीर कोश से अत्यन्त गौरवर्ण अति सुन्दर, कौशिकी देवी प्रकट हुई; उन कौशिकी देवी ने ही पार्वतीजी को उत्तर दिया कि, ये स्तुति द्वारा मुझे पुकार रहे हैं। पार्वती जी के शरीर कोश से प्रकट होनें के कारण ही इनका नाम कौशिकी पड़ा।
कौशिकी को दुर्गा सप्तशती अध्याय तीन, पाँच, सात, आठ और ग्यारह तथा प्राकृतिक रहस्य में कात्यायनी, चण्डी, दुर्गा और शाकम्भरी भी कहा गया है।

5 पार्वतीजी के शरीर कोश से कौशिकी के प्रकटीकरण से माता पार्वतीजी एकदम काली पड़ गई। शिवजी उन्हें कृष्णा (कालीका) कहकर चिड़ाते थे। ये चूँकि हिमालय के गड़ में विचरती थी अस्तु गड़कालिका भी कहलाई। इसप्रकार पार्वती देवी का ही नाम कालिका और गड़कालिका हुआ।

6 उक्त कौशिकी चण्डी, कात्यायनी, दुर्गा के आव्हान पर  पूर्व से अस्तित्व में रही निम्नलिखित  देवियाँ कौशिकी चण्डी देवी के शरीर से प्रकट हुई और पुनः उनमें ही लय होगई। ---
(क) दक्षयज्ञ विध्वन्स के लिये शिवजी नें पार्वतीजी की प्रसन्नता के लिए जिन वीरभद्र और भद्रकाली को नियुक्त किया था वे ही भद्रकाली
सप्तमोsध्याय मे - चण्डी देवी के क्रोध से तुरन्त कालीदेवी के रूप में प्रकट हुई। इन कालीदेवी का स्वरूप ऐसा बतलाया गया है मानो अस्थिकंकाल पर चर्म लिपटा हो। ये अत्यन्त काली हैं। इनका मुख अति विशाल और भयंकर है। ये नरमुण्डों की माला धारण करती हैं। इनका शस्त्र तलवार, पाश और खट्वाङ्ग है। और चीते के चर्म की साड़ी पहनतीं हैं। ये रथ सहित दैत्यों का भक्षण कर जाती हैं। इन्हे ही प्राकृतिक रहस्य में  कालरात्रि, निऋति, दुरत्यया, एकवीरा, महामारी, निद्रा,तृष्णा, क्षुधा, तृषा कहा है। ये ही ज्यैष्ठा,  अलक्ष्मी, शीतला (ज्वर) भी कहलाती है। चण्ड मुण्ड की गरदन काटकर उनके मुण्ड चण्डी को भेट करने के कारण चण्डी कौशिकी ने इन्हें चामुण्डा नाम दिया।

7 अष्टमोsध्याय मे- ब्राह्मी (ब्रह्माणी), शिवा (माहेश्वरी), कौमारी (कार्तिकेय जी की शक्ति), नारायणी (वैष्णवी), वाराही, नारसिंही और ऐन्द्री भी सहायतार्थ उपस्थित हुई।

8 अष्टमोsध्याय मे ही-  चण्डिका शक्ति जिन्हें  शुम्भ निशुम्भ के पास शिवजी को  दूत बनाकर भेजने के कारण शिवदूती भी कहा गया है प्रकट हुई। ये चण्डिका शक्ति/ शिवदूती सेकड़ों गिदड़ियों के समान उच्च स्वर निकालती है।ये चौसठ योगिनियों की प्रमुख हे। प्राकृतिक रहस्य मे उल्लेखित भ्रामरी देवी भी ये ही ह़ै। भ्रामरी देवी के छः पेर हैं। 
इस प्रकार दुर्गा सप्तशती में उक्त देवियों के चरित्र वर्णन हैं। इन सबकी आराधना-उपासना नवरात्र में होती है।

देव्य कवच में देवी के  निम्नलिखित नाम  दुर्गासप्तशती में उल्लेखित नामों के अलावा आये हैं।
लेकिन वर्ष 2000 ईसवी के बाद से मिडिया ने ना जानें क्यों  केवल तृतीय से पञ्चम श्लोक तक में उल्लेखित नौ दुर्गा के नामों का महत्व बड़ा दिया है।
"प्रथमम् शैलपुत्री, च द्वितीयम् ब्रह्मचारिणी, तृतीयम् चन्द्रघण्टेति, कुष्माण्डेति चतुर्थकम् ।3
पञ्चम स्कन्दमातेति, षष्टम कात्यायनीति च,सप्तम कालरात्रीति, महागौरीति चाष्टकम्।4
नवमम् सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः, उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।5"
बिना किसी आधार के देवी के उक्त अलग-अलग नौ नामों को देवी न उक्त अलग-अलग देवियाँ घोषित कर दिया। फिर उन्हें नवरात्र की नौ तिथियों की अलग-अलग तिथियों की अलग अलग पूजनीय देवी घोषित कर दिया गया। इसका सिरपेर आजतक कोई भी नही बतला पाया कि, नौदुर्गा के इन नामों का अलग-अलग तिथियों से क्या सम्बन्ध है? पर जन समान्य नें इसे आँखमून्द कर मान लिया।
कवच में आये देवी के  नाम  ---
1 शैलपुत्री (माहेश्वरी), 2 ब्रह्मचारिणी (ब्रह्माणी), 3 चन्द्रघण्टा (सम्भवतया वाराही), 4 कुष्माण्डा (वैष्णवी), 5 स्कन्दमाता (पार्वतीजी या स्कन्द शक्ति कौमारी), 6 कात्यायनी (लक्ष्मी),7 कालरात्रि (चामुण्डा), 8महागौरी ( कौशिकी), 9सिद्धिदात्री ( ऐन्द्री या वैनायकी) हैं। इनके अलावा भी कवच में निम्नलिखित नाम और उल्लेख हैं। ---
10 स्वाहा (अग्निशक्ति),11 वारुणी, 12 मृगवाहना, 13 शूलधारिणी, 14जया, 15 विजया, 16अजिता, 17 अपराजिता, 18 उद्योतिनी, 19 उमा, 20मालाधरी, 21 यमघण्टा, 22 शंखिनी, 23 द्वारवासिनी, 24 सुगन्धा, 25 चर्चिका, 26 अमृतकला, 27  चित्रघण्टा, 28 कामाक्षी, 29  सर्वमङ्गला, 30 भद्रकाली, 31 धनुर्धरी, 32 नीलग्रीवा, 33 नलकुबरी,  34 खड्गिनी, 35 वज्रधारिणी,  36 दण्डिनी, 37 शुलेश्वरी, 38 कुलेश्वरी, 39 महादेवी, 49 शोकविनाशिनी, 41 ललिता, 42 गुह्येश्वरी, 43 पुतना, 44 कामिका, 45 महिषवाहिनी, 46 भगवती, 47 विन्द्यवासीनी,  48 महाबला, 49 तैजसी, 50 श्रीदेवी, 51 द्रंष्टाकराली, 52 उर्ध्वकेशिनी, 53 कौबेरी, 54 वागीश्वरी, 55 पार्वती,  56 मुकुटेश्वरी, 57 पद्मावती, 58 चूड़ामणि, 59  ज्वालामुखी, 60 अभेद्या, 61 छत्रेश्वरी,  62 धर्मधारिणी, 63  वज्रहस्ता, 64 कल्याणशोभना, 65 योगिनी, 66 नारायणी, 67 वैष्णवी, 68 चक्रिणी, 69 इन्द्राणी, 70 सुपथा, 71 क्षेमकरी नाम  आये हैं।

इनके अलावा कुछ कष्टकारी योनियों के नाम भी आये हैं-- भूचर (ग्रामदेवता), खेचराः (आकाशचारी), जलज,उपदेशिका (उपदेश मात्र से सिद्ध होजाने वाले), सहजा, (जन्म के साथ प्रकट होनें वाले देवता), कुलजा (कुलदेवता), माला (कण्ठमाला), डाकिनी, शाकिनी (शक जाति की), महाबला, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, वैताल, कुष्माण्ड (विनायक), भैरव आदि।

और अर्गलास्तोत्रम्  के प्रथम श्लोक 
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।
की ग्यारह देवियों को कोई महत्व क्यों नही दिया गया? यह भी समझ से परे है। और अष्टोत्तरशतनाम में तो 108 नाम हैं। उनका क्या तर्क। क्या उन्हें नक्षत्र चरण से जोड़ोगे?
वस्तुतः पूरे नवरात्र की सभी नौ तिथियों में उक्त सभी देवियों की पूजा, आराधना, उपासना होती है।

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