प्रजापति से कश्यप प्रजापति तक।
वंशों का वर्णन देखें।
आधिदैविक दृष्टि से इन्हें मुख्यरूप से हिरण्यगर्भ ब्रह्मा और उनकी शक्ति अथवा पत्नी वाणी के इन मानस पुत्र प्रजापति हुए। प्रजापति की शक्ति अथवा पत्नी सरस्वती है।
प्रजापति को तीन प्रजापतियों की जोड़ी बतलाया गया है।
(1) दक्ष प्रजापति (प्रथम)-प्रसुति,
(2) रुचि प्रजापति-आकुति और
(3) कर्दम प्रजापति-देवहूति।
प्रसुति, आकुति और देवहूति को ब्रह्मा की मानस सन्तान और स्वायम्भुव मनु-शतरूपा की पुत्री भी कहा जाता है।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के इन मानस पुत्रों के अलावा तेरह मानस पुत्र और भी हैं। जिनमें से नौ तो भूस्थानी प्रजापति, तथा चार देवस्थानी प्रजापति एवम् एक देवर्षि नारद मुनि हैं।
भूस्थानी नौ प्रजापति ये हैं
दक्ष (प्रथम)-प्रसुति - 1 के अलावा,
(4) मरीची-सम्भूति, -2
(5) भृगु-ख्याति, -3
(6) अङ्गिरा-स्मृति, -4
(7) वशिष्ट-ऊर्ज्जा, -5
(8) अत्रि-अनसुया, -6
(9) पुलह-क्षमा,-7
(10) पुलस्य-प्रीति, -8
(11) कृतु-सन्तति। -9
ये सभी ब्रह्मर्षि भूस्थानी प्रजापति हुए। और इनकी पत्नियाँ दक्ष प्रजापति (प्रथम) और उनकी पत्नी प्रसुति की पुत्रियाँ थी। इन ब्रह्मर्षियों का वासस्थान ब्रह्मर्षि देश (हरियाणा) कहलाता है। इनके साथ ही धर्म का क्षेत्र (धर्मक्षेत्र) कुरुक्षेत्र भी ऋषिदेश का ही भाग था। इन ऋषियों की सन्तान ब्रह्मज्ञ ब्राह्मण हुए। तथा
इनके अलावा
(12) स्वायम्भुव मनु- शतरूपा भी भूस्थानी प्रजापति ही हैं जिनकी सन्तान मनुर्भरत (राजन्य / क्षत्रिय) कहलाती है। इनका क्षेत्र पञ्जाब, सिन्ध (पाकिस्तान), राजस्थान, गुजरात, बलुचिस्तान (पाकिस्तान), उत्तरपश्चिम प्रदेश (पाकिस्तान), अफगानिस्तान, और ईरान था।
इनके अलावा निम्नलिखित स्वर्गस्थानी देवगण हुए
(13) अग्नि- स्वाहा, इनकी सन्तान आग्नैय कहलाती है।
(14) पितरः (पितृ अर्यमा) - स्वधा और
(15) रुद्र- रौद्री (शंकर - सति पार्वती) एवम्
(16) धर्म और उनकी तेरह पत्नियाँ । (1 श्रद्धा,2 लक्ष्मी, 3 धृति, 4 तुष्टि, 5 पुष्टि, 6 मेधा, 7 क्रिया,8 बुद्धि, 9 लज्जा, 10 वपु, 11 शान्ति,12 सिद्धि,13 कीर्ति ) ये देवस्थानी प्रजापति हैं। इनकी पत्नियाँ दक्ष प्रजापति (प्रथम) और प्रसुति की कन्याएँ थी ।
इनके अलावा
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र
(17) नारद बाल ब्रह्मचारी ही रहे। अतः प्रजापति के स्थान पर मुनि और देवर्षि ही कहे जाते हैं।
अभी तक मैथूनी सृष्टिआरम्भ न होने से ये आपस में भाई बहन नही माने जाते थे।
1 ब्रह्मर्षि ब्राहमण वंश-- दक्ष प्रजापति (प्रथम) की पत्नी प्रसुति स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की पुत्री थी। तथा दक्ष प्रसुति की कन्याओं का विवाह से वशिष्ठ, मरीचि, अत्रि, भृगु, पुलह, पुलस्य, कृतु, अङ्गिरा से हुआ। यह ब्राह्मण वंश कहलाता है।
2 क्षत्रिय वंश -- स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की अन्य सन्तान उत्तानपाद और प्रियवृत दो पुत्र तथा प्रसुति एवम् आकुति दो पुत्रियाँ थी।
स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियवृत से आग्नीध्र, आग्नीध्र से नाभी, नाभी की पत्नी मरुदेवी से ऋषभदेव, ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत , भरत के पुत्र सुमति हुवे। ये सब मनुर्भरत कहलाते हैं। सरस्वती नदी का सारस्वत क्षेत्र - पञ्जाब, सिन्ध, राजस्थान, गुजरात, बलुचिस्तान, अफगानिस्तानऔर ईरान तक इन्ही का राज्यक्षेत्र था। इन्हीं मनुर्भरतों में वेन हुए । वेन से पृथु हुए जिनका राज्य क्षेत्र पृथ्वी कहलाता है। यह क्षत्रिय वंश कहलाता है।
इन चक्रवर्ती सम्राट भरत की सन्तान ही मनुर्भरत कहलाती है। जिनमें से एक सुदास भी थे जो शतवर्षिय दशराज युद्ध विजेता थे।
[वैवस्वत मन्वन्तर में दक्ष द्वितीय हुए -- इसी मनुर्भरत वंश में प्राचीनबर्हि के पुत्र प्रचेताओं की पत्नी मारिषा से दक्ष (द्वितीय) हुवे। दक्ष (द्वितीय) ने वरुण के वंशज वीरण प्रजापति की पुत्री असिक्नी से विवाह किया।]
3 हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि हुवे। मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। कश्यप का विवाह दक्ष (द्वितीय) और असिक्नी से उत्पन्न तेरह कन्याओं से हुआ।कश्यप ने केस्पियन सागर तट पर विभिन्न स्थानों पर तप किया । भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न दक्ष द्वितीय की पुत्रियों की सन्तानों को जन्म दिया।
सूर्य वंश -- कश्यप की पत्नी अदिति से बारह आदित्य हुए। उनमें से विवस्वान आदित्य के पुत्र वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु का कुल सुर्यवंश कहलाता है। अयोध्या को सुर्यवंशियों ने राजधानी बनाया। इन्ही वैवस्वत मनु की पुत्री इला हुई। इला को वैवस्वत मनु द्वारा दिया गया राज्यक्षेत्र इलाका कहलाता है।
4 हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्रि की पत्नि अनसुया से सोम (चन्द्र) नामक पुत्र हुवे। सोम और बृहस्पति की पत्नी तारा से बुध हुवे। बुध का विवाह वैवस्वत मनु की पुत्री इला से हुवा। बुध इला के पुत्र पुरुरवा से चन्द्रवंश जन्मा।
पुरुरवा तथा उर्वशी अप्सरा से आयु का जन्म हुआ। आयु का विवाह राहु की पुत्री से हुआ। आयु से नहुष हुए, नहुष से ययाति हुए।
ययाति से शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से यदु और तुर्वसु हुए। यदु से यदुवंश चला। जिसमें श्रीकष्ण हुवे। वृषपर्वा दानव की पुत्री शर्मिष्ठा से ययाति के पुरु, द्रुहु, तथा अनु हुए। पुरु की सन्तान ही भारत में चन्द्रवंशी कहलाती है। चन्द्रवंशियों की राजधानी प्रयागराज हुई।
5 सुदास के पुरोहित ब्राह्मणों के नायक वशिष्ठ थे। मनुर्भरतों ने सुर्यवंशियों को अयोध्या में बसाया था। मनुर्भरतों के नायक राजा सुदास से इन्ही ययाति पुत्रों से युद्ध हुआ था। सुदास ने शतवर्षिय दशराज युद्ध में ययाति की उक्त चन्द्रवंशी सन्तानों को परास्त कर चन्द्रवंशियों को प्रयागराज में बसाया।
इन्ही चन्द्रवंशियों को मेक्समुलर के चेले आर्य कहते हैं। क्यों कि वे सेमेटिक माने जाते हैं। ताकि युरोपीय स्वयम् को दानव के बजाय आर्य सिद्ध कर सके। जो सरासर गलत है। आर्य नामक कोई जाती थी ही नही बल्कि सुसंस्कृत जनों को आर्य कहते हैं और कुसंस्कारियों को अनार्य कहते थे। श्रेष्ठजन आर्य और असभ्य, असंस्कृत, दस्यु, चोर आदि अनार्य कहलाते हैं।
काश्यफ वंश---
कश्यप वंश -- केस्पियन सागर/ कश्यप सागर के क्षेत्रों में रह कर तपस्या कर विभिन्न अनुसन्धान करने वाले कश्यप ऋषि ने विभिन्न जातियों को जन्म दिया/ या पहचान कर वर्गीकृत किया। इन्ही जातियों का वर्णन मनुस्मृति में भी है और मनुस्मृति मे अपनी ही जाती में विवाह करने का आदेश का मतलब भी इन्ही जातियों से सम्बन्धित है। (कश्यप ऋषि का एक सुक्त ऋग्वेद में भी है, वे प्रजापति भी थे।)
कश्यप वंश का वर्णन ---
विष्णु पुराण प्रथम अंश/अध्याय 15 एवम् 21 से--
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की मानस सन्तान स्वायम्भूव मनु-शतरूपा के वंशज मनुर्भरतों में एक प्राचीनबर्हि हुए।
प्राचीनबर्हि के पुत्र प्रचेता हुए। प्रचेताओं की पत्नी मारिषा से दक्ष (द्वितीय) हुवे।
दक्ष (द्वितीय) ने आदित्य वरुण के वंशज वीरण प्रजापति की पुत्री असिक्नी से विवाह किया।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि हुवे। मरीचि की पत्नी सम्भूति से पुत्र कश्यप हुए।
दक्ष (द्वितीय) और असिक्नी की तेरह कन्याओं का विवाह कश्यप से हुआ।
इसके अलावा वैश्वानर की दो पुत्रियाँ 1 पुलोमा और 2 कालका से भी कश्यप का विवाह हुआ। जिनकी सन्तान पौलोम और कालकेय कहलाये।
कश्यप ने केस्पियन सागर तट पर विभिन्न स्थानों पर तप किया । भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न पत्नियों से सन्तानों को जन्म दिया। इस प्रकार अलग अलग संस्कृति वाले अलग अलग कुल बने जो कालान्तर में जातियाँ बन गई।
1 कश्यप की पत्नी अदिति से 1 विष्णु, 2 इन्द्र, 3भग, 4 अर्यमा, 5 धातृ, 6 सवितृ 7 त्वष्टा, 8 पूषा,9 विवस्वान, 10 मित्र, 11 वरुण और 12 अंशु नामक बारह आदित्य हुए। (मतान्तर से आठ पुत्र हुए।)
उनमें से विवस्वान आदित्य के पुत्र वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु का कुल सुर्यवंश कहलाता है। सुर्यवंशियों ने अयोध्या को राजधानी बनाया। इन्ही वैवस्वत मनु की पुत्री इला हुई। इला को वैवस्वत मनु द्वारा ईरान में दिया गया राज्यक्षेत्र इलाका कहलाता है।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्री हुए। अत्री की पत्नी अनसूया के पुत्र चन्द्रमा हुए। चन्द्रमा से ब्रहस्पति की पत्नी तारा से बुध जन्में। बुध का विवाह स्वायम्भूव मनु की उक्त पुत्री इला से हुआ। बुध और इला के पुत्र पुरुरवा हुए जो इलापुत्र होने से एल / इलाही/ अल्लाह कहलाये ।
पुरुरवा के पुत्र ययाति (आदम) हुए।
भारत में इतिहास लेखन और राजदरबार की बैठकों का ब्योरा (मिनट्स ) लिखने की परम्परा नही होनें से यहाँ मुख्य मुख्य व्यक्तियों के नाम ही इतिहास में मिलते हैं, सबके नही। इसकारण हमारे पुराणों में आयु की के बाद नहूष का नाम आ जाता है। जबकि, बायबल में आदम और न्युहु के बीच कई पीढ़ियाँ है।
अध्याय 15 से--
दक्ष (द्वितीय) -असिक्नी की पन्द्रह पुत्रियों का विवाह हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र कश्यप से हुआ। इसके अलावा वैश्वानर की दो पुत्रियाँ 1 पुलोमा और 2 कालका से भी कश्यप का विवाह हुआ।
1 वैवस्वत मन्वन्तर के आरम्भ मे चाक्षुष मन्वन्तर के द्वादश तुषितों ने द्वादश आदित्यों के रूप में 1 विष्णु, 2 इन्द्र 3 अर्यमा, 4 धातृ, 5 त्वष्टा, 6 पूषा, 7 विवस्वान, 8 सवितृ, 9 मित्र, 10 वरुण, 11 अंशु और 12 भग ने कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया।
2 विवस्वान के पुत्र से सूर्यवंश चला।
कश्यप की पत्नी दिति से दैत्य हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नामक दो पुत्र और सिंहिका नामक पुत्री उत्पन्न हुई । इनके अलावा स्वारोचिष मन्वन्तर में उन्चास मरुद्गण भी उत्पन्न हुए।
(अध्याय 21 से।)
हिरण्याक्ष के पुत्र 1 उत्कुर, 2 शकुनि 3 भूयसन्तापन 4 महाभाग, 5 महाबाहु तथा 6 कालनाभ हुए।
अध्याय 15 से--
हिरण्यकशिपु के पुत्र 1 अनुह्लाद,2 ह्लाद 3 प्रह्लाद और 4 संह्लाद हुए।प्रह्लाद का पुत्र विरोचन हुआ। विरोचन का पुत्र बलि हुआ।तथा बलि के पुत्र बाण हुआ। प्रह्लाद के ये सब वंशज वंशज निवातकवच दैत्य कहलाये। ये सब इराक और अरब, जोर्डन,इज्राइल,स्वेज, लेबनान और मिश्र में फैल गये।
सिंहिका के गर्भ से असम के असुर राजा विप्रचित्ति के पुत्र 1 व्यंश 2 शल्य, 3 नभ , 4 वातापी, 5 नमुचि, 6 इल्वल 7 खसृम, 8 अन्धक, 9 नरक, 11कालनाभ, 12 महावीर, 14 स्वर्भानु (राहु), और वक्त्रयोधी हुए।
अध्याय 21 से --
3 कश्यप की पत्नी दनु से डेन्यूब नदी के तटवर्ती जर्मनी,आस्ट्रिया, हङ्गरी, स्लावाकिया, रोमानिया, बुल्गारिया और युक्रेन देशों में दानव 1द्विमुर्धा 2 शम्भर 3अयोमुख 4 शंकुशिरा 5कपिल 6 शंकर 7 एकचक्र 8 महाबाहु, 9 तारक 11 स्वर्भानु 12 वृषपर्वा, 13 महाबली, 14 पुलोम और 15 विप्रचित्ति नामक दानव हुए।
वृषपर्वा की पुत्रियाँ 1 प्रभा, 2 शर्मिष्ठा 3 उपदानी और 4 हयशिरा थी।
4 कश्यप की पत्नी ताम्रा से 1 शुकी, 2 श्येनी, 3 भासी, 4 सुग्रीवी, 5 शुचि और 6 गृद्ध्रिका नामक पुत्रियाँ हुई।
शुकी से 1शुक,2 उलूक, तथा 3 काक हुए।
श्येनी से श्येन (बाज) हुए।
भासी से भास हुए।
गृद्ध्रिका से गृद्धों का जन्म हुआ।
शुचि से जल के पक्षी (बतख,हन्स आदि) हुए।
सुग्रीवी से 1अश्व, 2 गदर्भ और 3 उष्ट्र उत्पन्न हुए।
5 कश्यप पत्नी विनता से दो पुत्र 1 गरुड़ और 2 अरुण हुए। ये गर्डेशिया में बसे।
6 कश्यप पत्नी सुरसा से सर्प हुए। ये सीरिया में बसे और सूर कहलाये।
7 कश्यप पत्नी कद्रू से नाग हुए। 1शेषनाग, 2 वासुकी, 3 तक्षक 4 शंखश्वेत, 5 महापद्म, 6 कम्बल, 7 अश्वतर, 8 एलापुत्र, 9 नाग, 10 कर्कोटक, 11धनञ्जय हुए। ये भी पुरे सिथिया में और कश्मीर तक में फैल गये। वर्तमान में भी भारत में कालबेलिया नाथ के रूप में फैले हुए हैं। नगालैण्ड इनका मुख्य स्थान है।
8 कश्यप पत्नी क्रोधवशा से क्रोधवश गण तथा पिशाच हुए।
9 कश्यप पत्नी सुरभि से गौ तथा महिष आदि हुए। ये भी भारत और ईरान में में भी फैले। गौमाता कहलाते हैं।
10 कश्यप इराक की पत्नी इरा से वृक्ष, लता, बेल तथा तृण हुए। मेसापोटामिया, से सिथिया और स्टेपी (युक्रेन) तक फैले।
11 कश्यप पत्नी खसा से यक्ष और राक्षस हुए। ये चीन में यक्ष रहते हैं। और राक्षस अफ्रीका तथा उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और आस्ट्रेलिया में निग्रो के नाम से जाने जाते हैं।
12 कश्यप पत्नी मुनि से अप्सराएँ हुई। ये ईरान से अफगानिस्तान और बलुचिस्तान, सिन्ध तक फैले हुए हैं। इसके अलावा फिनलैण्ड, वियतनाम, कम्बोडिया में भी फैले हैं।
13 कश्यप पत्नी से अरिष्टा से गन्धर्व हुए।ये ईरान से अफगानिस्तान और बलुचिस्तान, सिन्ध तक फैले हुए हैं।
14 और 15 वैश्वानर की दो पुत्रियाँ 1 पुलोमा और 2 कालका भी कश्यप पत्नी थी। जिनकी सन्तान पौलोम और कालकेय कहलाये।
ये जातियाँ है-
सूर - सिरिया के सर्पवंशी , सुरसा की सन्तान।
(इन्ही ने आदम ( आयु) को बूद्धीवृक्ष का फल खाने को उकसाया था। )
असुर - ईराक के असीरिया निवासी अस्सुर। बेबिलोन के बाल देवता ( नन्दी) के उपासक, मेसापोटामिया के शैव इनके ही बान्धव थे।
दैत्य - मिश्र, सिनाई,( स्वेज) से इराक तक के असुर।---
(एल/ ईलाहि/ अल्लाह)= ( चन्द्रमा के पौत्र ; बुध और ईला के पुत्र ऐल - पुरुरवा ) ने आदम ( आयु) को पुर्वी टर्की स्थिति अदन वाटिका से श्री लंका के श्रीपाद पर्वत शिखर पर शिफ्ट कर दिया था।
इब्राहिम ( ययाति) अरब की खाड़ी.से होते हुए इज्राइल में बसा। मोरक्को में भी रहा। ययाति (इब्राहिम) के समय काबा का शिव मन्दिर बना। इसने शिवाई धर्म / साबई धर्म चलाया। ययाति (इब्राहिम) यहुदियों/ ईसाइयों और मुस्लिमों का पहला नबी हुआ।
राक्षस - अंग रक्षक का कार्य करने वाले, नीग्रो, अफ्रीका/ अमेरिका के निवासी। परम शैव, शिवदान/ सुडान, सुलेमान की महारानी बनी शिवा / शिबा अफ्रीका में शिव पूजा के प्रमाण हैं।
दानव - डेन्युब नदी / दानवी नदी के कछार में रहने वाले , आस्ट्रिया, प्रशा ( जर्मनी), युगोल्साविया के स्लाव, चेक, आदि यूरोपिय दानव कहलाते थे।
दैत्य दानव टेक्नोलॉजी में आगे थे।
यक्ष- भूख सहन नही करपाने वाले सर्व भक्षी यक्ष (चीनी जाती) , राक्षसों ( नीग्रो) के बान्धव पर ठीक विपरीत हैं। विपरीत होने से कई साम्य भी हैं।
ज्ञायव्य है कि, कनाड़ा, ग्रीनलेण्ड चीन के बहुत निकट है।
आत्म पिड़न, कठोर साधना, तन्त्र, ज्ञान पिपासा में कहीँ से भी कैसे भी सीख लेना, सीखने के लिये कुछ भी कर गुजरना यक्षों (चीनियों) की विशेषता है। परन्तु धर्म के प्रति ईनकी मान्यता बिल्कुल भिन्न तन्त्रमार्गी अवेदिक है। वेदमन्त्रों को और वेदों को ब्रह्म भी कहते हैं। इस लिए ये ब्रह्मा जी को खाने दोड़े थे ऐसा कहा गया।
जैन यक्षोंकी पूजा करते हैं। मण्डलों में यक्षों की पूजा करना और भारत में मुर्तिपूजा आरम्भ जैनो की विशेषता है।
शाक्त सम्प्रदाय और तन्त्र शास्त्र के जनक शुक्राचार्य के पुत्र त्वष्टा के प्रथम शिष्य कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन को परशुरामजी ने मारा था और दुसरे शिष्य राक्षस राज रावण को श्रीराम ने मारा था। ( जो अगला तिर्थंकर होगा।)
देव- पामिर, तिब्बत, कश्मीर , उत्तराखण्ड क्षेत्र में निवास करते थे। बड़े साधक, तपस्वी और सिद्ध थे। अभी भी निवासरत हैं, यदा कदा ही अपनी पहचान प्रकट करते हैं।विज्ञान में बहुत आगे हैं।
मानव- राजा प्रथु का राज्य क्षेत्र यानि पृथ्वी ( भूमि नही), अर्थात ईरान से म्यामांर तक, कश्मीर से विन्द्याचल के उत्तर तक निवास करते थे।इसी को आर्यावर्त कहते हैं। ( तब दक्षिण भारत का भूभाग अफ्रीका- आष्ट्रेलिया से जुड़ा था।)। नैष्ठिक धर्मी।
द्रविड़- वसुओं की सन्तान, अर्थ ( धन प्रधान ) मान्सिकता वाले पणी कहलाते थे। दास, दृविड़, पणी वर्तमान दक्षिण भारत के निवासी, ये स्वयम् को दास कहते थे। इन्हे दस्यु कहा जाता था। इन्ही की एक जाति स्वयम् को चोल कहती थी, इसी चोल का रुपान्तरण चोर शब्द है। राजा बलि के निष्काशन पर ईरान होते हुए लेबनान/ फोनेशिया की यात्रा के समय ईसी दास, दस्यु, चौल / चोर और पणियों को इनके सावले रंग का पर्यायवाची इरानी शब्द हिन्दु शब्द से इन्हे गाली दी गई थी।
किन्नर - किन्नोर ( गड़वाल- उत्तराखंड) निवासी, देव सेवक।
गन्धर्व- सिन्ध के पश्चिम से अफगानिस्तान तक के निवासी गन्धर्व और अप्सराएं कहलाते थे। संगीत, नृत्य, चित्र कला आदि ललित कलाओं में पारंगत और सौन्दर्यवान थे।
चन्द्रवंश वर्णन ---
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्री और हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष प्रथम-प्रसुति की सन्तान अनसुया। अत्रि की पत्नी अनसुया की सन्तान चन्द्रमा है। अङ्गिरा के पुत्र देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा है।चन्द्रमा ने देवगुरु ब्रहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण कर बुध को जन्म दिया।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के पुत्र मरीचि की पत्नी सम्भूति दक्ष प्रथम की पुत्री थी। मरीचि और सम्भूति के पुत्र प्रजापति कश्यप हुए।
प्रचेताओं के पुत्र दक्ष द्वितीय की पुत्री अदिति का विवाह कश्यप से हुआ।
कश्यप और अदिति की सन्तान आदित्य हुए। जिनमें त्वष्टा और विवस्वान (मार्तण्ड) भी हैं। त्वष्टा की पुत्री सरण्यु का विवाह विवस्वान से हुआ।
विवस्वान और सरण्यु की सन्तान श्राद्धदेव (जो सप्तम मन्वन्तर के मनु हुए और विवस्वान के पुत्र होनें से वैवस्वत मनु कहलाये।) , यम और यमि (यमुना) हुए। श्राद्धदेव (वैवस्वतमनु) की पत्नी श्रद्धा थी किन्तु मनु पत्नी होने से शतरूपा भी कही जाती है।
श्राद्ध देव (वैवस्वत मनु) और श्रद्धा (शतरूपा) की सन्तान ही सूर्यवंशी कहलाते हैं। जबकि स्वायम्भुवमनु की सन्तान मनुर्भरत कहलाते हैं।
श्राद्धदेव (वैवस्वत मनु) और श्रद्धा की पुत्री ईळा हुई। ईळा को सामान्यतः ईला बोला जाता है। ईरान इराक के बीच का राज्य क्षेत्र ईलाक कहलाता था। क्योंकि यह ईला के अधिकार में था।
ईला का विवाह चन्द्रमा और तारा के पुत्र बुध से हुआ। यहाँ तक ब्रह्मर्षियों,मनुर्भरतों, सूर्यवंशियों और चन्द्रवंशियों के कुलों में साहचर्य था।
ब्रह्मर्षि देश हरियाणा क्षेत्र में दक्ष प्रथम, और मरीचि, भ्रगु, अत्रि आदि सभी ब्रह्मर्षि रहते थे। दक्ष द्वितीय का राज्यक्षेत्र कनखल हरिद्वार में था। प्रजापति महर्षि कश्यप का राज्यक्षेत्र कश्मीर था। कश्यप जी की सन्तान आदित्य एवम अन्य देवगण तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, तिब्बत क्षेत्र मे रहते थे। गन्धर्व बलुचिस्तान अफगानिस्तान में, किन्नर किन्नोर में, सूर सीरिया में और असूर इराक में रहते थे।
इन्द्र की अप्सरा उर्वशी जो ऊर देश की निवासी होने के कारण उर्वशी कहलाती थी।
बुध और ईला का पुत्र पुरुरवा हुआ। ईला का पुत्र होनें के कारण पुरुरवा को एल कहते हैं। पुरुरवा ने अपना राज्य टर्की में स्थापित किया। पुरुरवा ने आसक्तिवश उर्वशी से सशर्त अस्थाई संविदा विवाह / मूता विवाह कर लिया। एल पुरुरवा और उर्वशी की सन्तान आयु हुई। (यह आयु ही आदम भी कहलाता है।)
ध्यान दें पुरुरवा को ईला के पुत्र होने के कारण संस्कृत में एल कहा जाता है। इला का जागीर वाला क्षेत्र इलाका कहलाता है।
इज्राएल, ऐल साल्वेडोर जैसे शब्दों में तोरह (बायबल पुराना नियम) के अनुसार एल मतलब ईश्वर वाचक है। यहुदियों के बारह गोत्रों का आदि पुरुष इज्राएल कहलाता है। जिसके नाम पर ही देश का नामकरण हुआ। ऐल साल्वेडोर जैसे नाम भी इसी एल की किर्ती में रखे गये।
और कुरान में ईश्वर के लिये प्रयुक्त
ईलाहि और अल्लाह शब्द है। जो इला से ही व्युत्पन्न हैं।
पुरुरवा की पत्नी उर्वषी के पुत्र आयु हुआ।
प्राण के लिये दम शब्द भी है।दम निकलने पर आयु पुर्ण होजाती है ।
(ध्यान दें आदम शब्द पर।)
अप्सरा उर्वषी के स्वर्ग अर्थात पामिर-कश्मीर लोट जाने के कारण आयु का पालन पोषण पुरुरवा ने पूर्वी टर्की की अदन वाटिका में बिना माँ के अकेले ही किया।
अकेले में पालित आयु /आदम को किसी नाग वंशी सीरियाई द्वारा पिता की आज्ञा के विरुद्ध जीवन और बुद्धि वृक्ष का अधपका फल खाने की प्रेरणा दी । ( शायद फल कच्चा होने के कारण पुरुरवा ने इन्कार किया होगा।)
आयु / आदम द्वारा पित्रआज्ञा उल्लङ्घन से नाराज होकर ऐल पुरुरवा ने आदम को डाँट डपट कर अदन वाटिका से बाहर कर दिया ।
तो वह किसी प्रकार सागर मार्ग से या वायुमार्ग से श्रीलंका के श्रीपाद पर्वत शिखर / आदम शिखर पर पहूँच गया। फीर वहाँ से फारस की खाड़ी होते हुए इज्राइल गया।
टर्की के चंन्द्रवंशी ऐल पुरुरवा के वंशज चन्द्रवंशीय क्षत्रिय राजा खत्तुनस के वंशज खाती/खत्री (बायबल के हित्ती) ईरान होते हुए जब भारत आये तो दशराज युद्ध में ऋषभदेव और भरत चक्रवर्ती की सन्तान मनुर्भरतों को मात देकर कश्मीर से प्रयाग (इलाहाबाद) तक बस गये।
और केस्पियन सागर तट पर तपस्यारत महर्षि कश्यप के पुत्र बारह आदित्यों में से विवस्वान के पामिर कश्मीर होते हुए विवस्वान के पुत्र वेवस्वत मनु के नेत्रत्व में सुर्यवंशियों का अयोध्या में राजधानी बनाना।इसके पहले वे भी पहले ही सिंध पंजाब में बस गये थे। फिर अयोध्या तरफ भी आ गये।पर सजातीय होने के कारण मनुर्भरतों का सुर्यवंशियों से संघर्ष नही हुआ। कुछ सुर्य वंशी ईरान में बस गये जो सुर्पुजक मग संस्कृति कहलाई।ईरान में बसे चन्द्रवंशी मीड कहलाते ह़ै।मीड शैव थे।इसलिये शंकरजी का नाम मिढिश पड़ा।
सुर्यवंशियों के मामा पक्ष होने से सुर्यवंशियों ने चन्द्रवंशियों को अपना लिया।और संघर्ष विराम हो गया।
यहाँ तक की सुर्यवंशी दशरथ ने अपनी पुत्री शान्ता चन्द्रवंशी मित्र कुन्तिभोज को गोद देदी।इसी शान्ता के पति श्रंगी ऋषि के आचार्यत्व में हुए पुत्रेष्ठि यज्ञ से दशरथ जी की तीनो रानियों की चार सन्तान राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न जन्मे।
मनुर्भरतों और चन्द्रवंशियों का यह संघर्ष परशुरामजी तक चला। परशुराम जी ने माँ की हत्या से क्षुब्द हो फिर से इस संघर्ष को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया।और अन्त में स्वयम् ही युद्ध विराम घोषित कर दिया।
इसके आगे का भारतीय चन्द्रवंशियों का इतिहास पुराणों में उपलब्ध है।
मेक्समूलर का आर्यों का भारत आगमन का भ्रम इसी चन्द्रवंशियों (खातियों ) के भारत आगमन के आधार पर है।और दुसरे प्रमाण सुर्यवंशियों के लोटने के हैं।
भारतीय चन्द्र वंशी अपने प्राचीन मूल वेदिक धर्मावलम्बी रहे जबकि अपने मूल धर्म संस्कृति से कटे और सुर असुरों के संघर्ष में असुरों की प्रबलता से प्रभावित और मिश्र की सभ्यता के दबाव में पले बड़े पश्चिम एशिया में महाराज एल पुरुरवा ही ईश्वर हो गये और उनके बड़े पुत्र आयु / आदम आदि पुरुष हो गये।
आयु (आदम) की सन्तान परम्परा के मुख्य पुरुषों का विवरण में भारतीय पुराणों और तोरह / बायबल पुराना नियम में काफी समानता है।देखें -
चाक्षुष मनु और न्युहु का जल प्रलय वर्णन । नहुष और न्युहु में नाम साम्य।
ययाति और इब्राहिम का जीवन चरित्र साम्य। ययाति की ध्वजा पर मयुर होने से मोरध्वज उपाधि और एकाद्शी वृत कथा में श्रीकृष्ण , अर्जुनऔर नारदजी के द्वारा परीक्षा लिये जाने पर सिंह को खिलाने के लिये अपने बड़े पुत्र को बलि देने को तैयार होना।
और इब्राहिम मोरियाह पर्वत पर तप और बड़े पुत्र/ दासी हाजरा से उत्पन्न पुत्र ईश्माएल की बली देने को तैयार होना।मूर दानव और मोरक्को स्थापना।
सीरिया निवासी स्वयम् को सूर कहते है। जो नाग माता सुरसा की सन्तान हैं।
इराक में असीरिया के लोग स्वयम् को असुर (अश्शूर) कहते हैं और असुर के पुजक भी थे।
संस्कृत में असुर का मतलब प्राणवान/ दमदार होता है।
दोनों में सदा से प्रतिद्वन्द्विता रही।संग्राम होते रहे।
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धर्म की सन्तानें
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के स्वामी हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की मानस सन्तान धर्म की तेरह पत्नियों से विभिन्न सन्तानें हुई।
हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस पुत्र धर्म की पत्नियों (हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के मानस सन्तान दक्ष प्रजापति प्रथम और प्रसुति की पुत्रियों) की सन्तान-
01 श्रद्धा से काम।काम की पत्नी रति से हर्ष हुआ ।
02 चला ( लक्ष्मी) से दर्प।
03 धृति से नियम।
04 तुष्टि से सन्तोष।
05 पुष्टि से लोभ।
06 मेधा से श्रुत।
07 क्रिया से दण्ड, नय और विनय।
08 बुद्धि से बोध।
09 लज्जा से विनय।
10 वपु से व्यवसाय।
11 शान्ति से क्षेम।
12 सिद्धि से सुख।
13 कीर्ति से यश हुआ।
[ नोट- प्रसंगवश अधर्म कज वंश का वर्णन -
अधर्म की पत्नी हिन्सा है।
अधर्म - हिन्सा से -अनृत (मिथ्या/ झूठ) नामक पुत्र और निकृति नामक पुत्री हुई।
अनृत की जुड़वाँ सन्तान - भय और उसकी पत्नी माया हुए मामा की सन्तान मृत्यु नामक पुत्र हुआ।
मृत्यु पत्नी व्याधि, जरा,शोक, तृष्णा। सभी का न विवाह हुआ न सन्तान हुई।
अधर्म - हिन्सा से दुसरी ( युग्म/जुड़वाँ) सन्तान नरक और उसकी पत्नी वेदना हुए। रोरव नरक की पत्नी वेदना की सन्तान दुख हुआ।]