शुकदेव जी ने कभी भी आस्तिक मत से तटस्थता नहीं दर्शाई।
फिर वे कैशोर्य अवस्था तक पहूँचने के पूर्व ही ब्रह्मलोक को सिधार गए।
कृपया महाभारत शान्ति पर्व/ मौक्षधर्म पर्व/ अध्याय ३३२ एवम् ३३३ गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत पञ्चम खण्ड (शान्ति पर्व) पृष्ठ ५३२५ से ५३२९ तक देखें। विशेषकर श्लोक २६-१/२ पृष्ठ ५३२८ देखें।
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