जयन्ती शब्द का जीवित और मरने के बाद से कोई सम्बन्ध नहीं है।
जीवित व्यक्ति की भी जयन्ती ही होती है। क्योंकि वह इतने वर्ष तक जी रहा है, यह भी उसकी विजय ही है।
मरे हुओं का भी जयन्ती के दिन उनके जन्म समय पर जन्मोत्सव ही मनाया जाता है।
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा हनुमान जयन्ती है। और सूर्योदय के समय आरती आदि करके जन्मोत्सव मनाया गया।
चैत्र शुक्ल नवमी (राम नवमी) श्रीरामचन्द्र जी की जयन्ती ही है। और मध्याह्न के समय उनका जन्मोत्सव मनाते हैं।
अमान्त श्रावण पूर्णिमान्त भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) श्रीकृष्ण जयन्ती ही है। और मध्यरात्रि के समय श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं।
जयन्ती पूरे दिन भर रहती है, जबकि जन्मोत्सव बमुश्किल आदा-एक घण्टा।
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