क्या ब्रह्म मुहूर्त, अभिजित मुहूर्त, विजय मुहूर्त आदि तीस मुहुर्त को भी प्रातः,सङ्गव, मध्याह्न, अपराह्न, सायाह्न, प्रदोष, महानिशिथ काल और अरुणोदय काल के समान दीनमान-रात्रिमान के अनुपात में गणना की जाना चाहिए या निश्चित दो घटि (48 मिनट) के ही माना जाना चाहिए।
यह विषय धर्मशास्त्र सम्बन्धित है। इसमें ज्योतिष केवल सहायक की भूमिका में ही रहता है। निर्णय धर्मशास्त्र का ही मान्य होता है।
उपर उल्लेखित ब्रह्म मुहूर्त, अभिजित मुहूर्त, विजय मुहूर्त अथर्ववेद में वर्णित हैं। अतः अथर्ववेद के अनुसार ही मान्य होगा।
मुहूर्त समय मापन की इकाई है, अतः घटि-पल-विपल के समान ही मुहुर्त मान भी निश्चित और अपरिवर्तनीय होता है। अतः अथर्ववेदोक्त तीस मुहुर्त का मान निश्चिन्त दो घटिका अर्थात 48 मिनट के निश्चित समय के ही होते हैं।
लेकिन प्रातः,सङ्गव आदि कालावधि है, अतः ये दिनमान या रात्रि मान के घटबड़ के अनुपात में घटते-बढ़ते रहते हैं।
इसलिए ये काल या कालावधि 66°40' से अधिक उत्तर दक्षिण अक्षांश पर लागू नहीं होता।
इसी प्रकार 66°40' से अधिक उत्तर अक्षांश पर मकर लग्न उदय होते नहीं दिखता है। और 66°40' से अधिक दक्षिण अक्षांश पर कर्क लग्न उदय होता नहीं देखा जा सकता है।
ध्रुव प्रदेशों में तो दिन और रात ही छः-छः महीने के होते हैं। वहाँ मध्याह्न नहीं होता तथा कोई भी लग्न उदय अस्त नहीं होता।
अतः वहाँ के लिए मुहूर्त निकालते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
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