सोमवार, 7 अप्रैल 2025

वैदिक विष्णु के दो हाथ हैं। पुराणों में भूमा (प्रभविष्णु) अष्टभुजा और महाभारत में भी श्रीहरि चतुर्भुज हैं।

ऋग्वेद का विष्णु चार हाथो वाला होने की बजाय दो हाथो वाला है उसके साथ लक्ष्मी भी नहीं है न ही सवारी गुरूड़ है । वेदों के बाद उपनिषद में भी विष्णु चार हाथों वाला लक्ष्मी या गरुण के साथ नहीं है । 
जबकि, बुद्धिज्म में बोधिसत्व वज्रपाणि, बोधिसत्व अमिताब बुद्ध, मंजूसिरी की हाथो में शंख चक्र गदा पद्म देखने को मिलता है फिर अचानक से पुराणों में विष्णु चार हाथो वाला शंख चक्र गदा पद्म और गरुण इत्यादि वाला हो जाता है ।
क्या वेद उपनिषद के रचना के बाद पुराण लेखकों को भगवान विष्णु ने स्वयम् बताया की अब उनका स्वरूप ऐसा हो गया है।
यदि भगवान विष्णु का मूल स्वरूप ऐसा ही होता तो, क्या वैदिक मन्त्र दृष्टा ऋषि और उपनिषद के ऋषियों को जानकारी नहीं होती? वे ही ऐसा उल्लेख कर सकते थे।
अर्थात बौद्ध धर्माचार्यों के शुद्धिकरण पश्चात वैदिक मत में लौटाए गये लोगों ने पुराण लिखे या पुराणों में संशोधन किया  और विष्णु 4 हाथ शंख चक्र गदा पद्म इत्यादि जोड़ लिया ।
वेद उपनिषद में किसी देवता के हाथ में शंख चक्र गदा पद्म है 4 हाथ, उससे ज्यादा है ? जिसे देखकर को देख कर पुराण में ये विष्णु का ऐसा स्वरूप आया ? 
जबकि भारत सहित सभी बौद्ध देशोंमें पुरातत्त्वीय महत्व की मूर्तियों में मंजूसिरी, वज्रपाणि, अवलिकेतेश्वर बुद्ध की मूर्तियो में ही यह स्वरूप दिखता है ।
ऐसे ही चतुर्मुख ब्रह्मा, द्विमुख अग्नि के विषय में भी विचार किया जाना चाहिए।

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