गुरुवार, 28 जुलाई 2022

भाषा का आदान - प्रदान

भाषा का आदान - प्रदान
राजा बलि के भारत से निष्कासन पर बलि अपने साथियों दास- दस्युओं और पणियों को लेकर सिन्ध, अफगानिस्तान, ईरान, होते हुए लेबनान में जाकर ठहरे वहाँ फोनिशिया बसाया। युरोप की सभी लिपियों और अकाउंट्स प्रणाली की जनक फोनिशियाई संस्कृति ही है।
फोनिशिया (लेबनान) के बाद बलि राजा नें दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में बोलिविया बसाया। वे लोग मानते हैं कि, हमारे पुर्वज दैत्य/ दानव थे।
इस बीच कई लोग भूले-भटके, पिछड़ जाने आदि परिस्थितियों के विभूषित होकर मार्ग में पड़नें वाले अनुकूल स्थानों पर रुक गये। और वहीँ बस गये। जिसमें सिन्ध, ईरान, इराक, सीरिया, टर्की, और क्रीट द्वीप मुख्य हैं।  
बलि और उनके साथी काले थे। और भारत से गये थे। इतने बड़े निष्कासित समुह के कई लोगों नें मार्ग में पड़ने वाले लोगों से कभी-कभार लूटपाट, मारपीट, हत्या, बलात्कार, सेंधमारी की घटनाएँ की होगी। यह असाधारण नही है। प्राचीन ईरानी भाषा में काले रङ्ग के लिए हिन्दू शब्द प्रचलित था। और अफ्रीकी काले लोगों को पश्चिम एशिया और मध्य एशिया में दास के रूप में कृय करना आम बात थी। अतः वे काले दास लोगों को भी हिन्दू कहते थे। ये अफ्रीकी काले दास कभी कभी चोरी, लूटमार, डकेती, सेंधमारी भी कर लेते थे।  स्वयम् को दास कहनें वाले और वैदिकों द्वारा जिन्हें दस्यु सम्बोधित किया जाता था, बलि के उन साथियों द्वारा भी यही कार्य करते देख उन्हें भी हिन्दू कहना आरम्भ कर दिया।
भारत से कृष्ण द्वैपायन व्यास ज़रथ्रुष्ट से शास्त्रार्थ करनें ईरान पहूँचे। संयोग से वे भी काले थे। इस कारण ईरानियों नें भारतियों को हिन्दू कहना प्रारम्भ कर दिया।
 सीरिया के लोग स्वयम् को सूर कहते हैं।ये नागमाता सुरसा (होलिका) की सन्तान हैं।
 इराक के असीरिया के लोग स्वयम् को असूर (अश्शुर) कहते हैं।
तनख (बायबल ओल्ड टेस्टामेंट की पहली पुस्तक उत्पत्ति) के अनुसार यहोवा (एल पुरुरवा) ने आदम (आयु) को दक्षिण पूर्व टर्की के युफ्रेटिस घाँटि में ईलाझी शहर में अदन वाटिका में अकेले ही पाला था। (क्योंकि इराक के उर शहर की निवासी और हिमालय मे स्वर्ग के राजा कश्यप ऋषि के पुत्र देवेन्द्र के दरबार की नर्तकी उर्वशी से अस्थाई विवाह की अवधि में गर्भवती हो गई और शर्त की अवधि समाप्त होने पर वह वापस स्वर्ग लौट गई। तथा आयु को जन्म देकर बिडिंग की अवधि पूर्ण कर पुरुरवा को सौंप गई थी। )
कश्यप ऋषि के कश्यप सागर क्षेत्र में तपस्या पूर्ण कर कश्मीर लौटने पर कश्यप ऋषि की सन्तान नाग वंशी (सीरियाई), और अत्रि की सन्तान चन्द्रवंशी भी कश्मीर में आ बसे।
इस प्रकार भाषा का आदान- प्रदान हुआ।

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