*एकादशी व्रत और प्रदोष व्रत।*
*एकादशी व्रत ---*
विष्णु को ऋग्वेद में परमपद कहा है जबकि एकादश रुद्र, अष्ट वसु ओर बारह आदित्य, इन्द्र और प्रजापति ये तैंतीस देवता भी विष्णु परमपद के दर्शन को भी तरसते हैं।
एकादशी व्रत अन्तःकरण शुद्धि कर मौक्ष में सहायक होने से कर्तव्य माना गया है। इसी कारण मरने वाले कै भी एकादशी का ही पुण्य दान करते हैं। मृत्यु उपरान्त सभी श्राद्ध कर्म में विष्णु पूजा ही होती है। गया और बद्रीनाथ भी विष्णु तीर्थ ही है।
यह विष्णु पूजन और एकादशी व्रत का महत्व है।
एकादशी व्रत अन्तःकरण शुद्धि कर मौक्ष में सहयोगी पारमार्थिक व्रत है।
पितृ मौक्ष के लिए भी विष्णु पूजा और एकादशी व्रत का पुण्य दान ही किया जाता है। इसलिए मैं एकादशी व्रत का प्रचार ही करता हूँ।
*प्रदोष व्रत ---*
प्रदोष व्रत सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करने के लिए किया जाने वाला सकाम व्रत है।
प्रदोष व्रत में प्रदोष काल अर्थात सूर्यास्त के बाद, सूर्यास्त से लगभग दो घण्टा चौबीस मिनट के अन्दर भोजन करना होता है।
(रात्रिमान ÷ ५= घण्टा मिनट अवधि ) में ही भोजन करना होता है।
यथा प्रदोष व्रत सोमवार दिनांक २५ जुलाई २०२२ को है।
प्रदोष व्रत पारण समय प्रदोष काल में १९:११ से २१:१८ बजे के बीच रहेगा।
जबकि एकादशी व्रत का पारण दिनांक २५ जुलाई २०२२ सोमवार को १६:१५ बजे के पहले करना आवश्यक है।
चूँकि एकादशी व्रत आवश्यक/ अनिवार्य माना गया है अतः पारमार्थिक एकादशी व्रत करनें वालों को सकाम प्रदोष व्रत नही करना चाहिए ।
*प्रदोष व्रत के सम्बन्ध में ज्योतिर्विद आदरणीय ब्रजेन्द्र शरण श्रीवास्तव से. नि. प्राध्यापक एवम् गणितज्ञ के मतानुसार ---*
प्रदोष व्रत के आराध्य शिवपार्वती
शिव जी गृहस्थ संन्यासी हैं इसलिए वे अपने भक्तों की घर गृहस्थी और दुनियादारी से जुड़ी चिंताओं का शीघ्र निवारण करने को तत्पर रहते हैं ।
प्रदोष के समय शिवजी पार्वती सहित वृष पर आरूढ़ होकर अपने गणों सहित विचरण करते हैं । इसलिए इस समय शिव की उपस्थिति सहज होने से प्रार्थना फलीभूत जल्दी होती है ।
यह एक तरह से दिन रात की संधि का समय है ,
प्रदोष व्रत में तिथि निर्णय - यह व्रत अपने किसी भी सांसारिक कार्य की सिद्धि पाने के लिए शिव पार्वती की प्रसन्नता के उद्देश्य से किया जाता है । प्रदोष व्रत में त्रयोदशी 13 तिथि ग्रहण की जाती है।
पर ध्यान देने की बात है कि प्रदोष व्रत के दिन सूर्य उदय समय त्रयोदशी तिथि हो या न हो परन्तु सूर्यास्त समय त्रयोदशी तिथि व्याप्त होना अनिवार्य है।
इसका सीधा अर्थ यह है कि प्रदोष व्रत के लिए त्रयोदशी 13 तिथि सूर्योदय समय होना जरूरी नहीं ।
सूर्योदय समय भले ही 12 द्वादशी तिथि हो दिन में भी हो पर प्रदोष काल में 13 तिथि है तो उसे दिन प्रदोष व्रत होगा ।
पूजन विधि : सरल शब्दों में कहें तो यह सोमवार के व्रत की तरह है और इसक दिन शिव पार्वती की ही पूजा की जाती है।
शिव को प्रिय आक पुष्प
सुबह यथा शक्ति ध्यान शिव मंत्र जप पाठ करना चाहिए पर शाम को ध्यान जप पाठ अनिवार्य रूप से करना चाहिए ।
शाम को प्रदोष काल में उपासना के बिना व्रत उपवास पूर्ण नहीं होता।सुबह से शाम तक यथा शक्ति उपवास या हल्का सात्विक आहार लिया जाता है । शाम को प्रदोष काल में शिव को बेल पत्र व पुष्प अर्पण सहित शिव चालीसा कापाठ या शिव सहस्त्र नाम जप अथवा शिव पंचाक्षर पाठ अथवा रामायण के उत्तरकाण्ड में वर्णित रुद्राष्टक का पाठ अथवा नमः शिवाय यह शिव पाँच अक्षर का रुद्राक्ष माला पर 11 माला जप करना चाहिए । पाठ पूजन उपरांत नमक सहित भोजन करना चाहिए।
साधक को चाहिए कि प्रदोष व्रत के दिन वह यथाशक्ति दान भी अवश्य करें । दान असहाय अपाहिज शारीरिक मानसिक विकलांग वृद्ध गरीब बीमार विधवा अनाथ बच्चे, भूखे पशु पक्षी को आश्रय, अन्न जल औषधि वस्त्र सुरक्षा किसी भी रूप में हो सकता है।
केवल मन्दिर में देना पर्याप्त नहीं है।
मलिन वेश धारी अशक्त विकलांग को आप शिवजी के गण ही समझें और जब भी जहाँ भी अवसर मिले इनकी सेवा अवश्य करें।
*इस नारायण सेवा को आपके प्रदोष व्रत से कामना सिद्धि का मूल मंत्र ही समझें।*
सांसारिक कामना पूर्ति तक दोनों पक्षों के प्रदोष व्रत करना चाहिए . शिव जी को आशु तोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाला माना गया है यह समस्त कामनाओं की शीघ्र सिद्धि में सहायक है ।
प्रदोष व्रत सांसारिक कामना के लिए किया जाता है अतः प्रथम प्रदोष व्रत सदैव शुक्लपक्ष के प्रदोष से आरम्भ करें। फिर निरन्तर दोनों पक्षों के प्रदोष व्रत करना चाहिए ।
अभीष्ट संतान की प्राप्ति के लिए श्रद्धा पूर्वक कामना पूर्ति तक प्रदोष व्रत का पालन विधि पूर्वक करने पर उनके कार्य सिद्ध होते हैं।
विद्वानों ने उद्देश्य भेद से इस व्रत के आरंभ करने के लिए अलग अलग वार भी बताए हैं जो इस प्रकार हैं :
कामना भेद से विभिन्न वारों से आरम्भ का विचार:
*रविवार* - पद प्रतिष्ठा पाने के लिए राज्य सत्ता प्राप्ति के लिए , स्वास्थ्य के लिए , जन्म पत्रिका में सूर्य के कारण संकेतित राज भय निवारण राज्य से समर्थन पाने के लिए ।सरकार या मालिक से मतभेद से बनी समस्या के निवारण के लिए
*सोमवार* - कोई भी मनोकामना हो, उसकी पूर्ति के लिए , संतान के कष्ट निवारण के लिए , इच्छित सन्तान प्राप्ति के लिए, जन्म पत्रिका में चन्द्रमा की स्थिति के कारण स्वास्थ्य संतान इत्यादि के निवारण के लिए ।
*मंगलवार* - ऋण , शत्रु भूमि , मुकदमा, दाम्पत्य क्लेश गृह क्लेश, भाईबंधु से जुड़ी समस्या के निवारण के लिए , जन्म पत्रिका में मंगल के कारण कष्ट निवारण के लिए ।
*गुरुवार* - बड़ों से मतभेद निवारण, गुरु कृपा प्राप्ति, संतान प्राप्ति और संतान संबंधी कष्ट से राहत , जन्म पत्रिका में गुरु ग्रह से संकेतित कष्ट निवारण के लिए ।
*शुक्रवार* - विवाह के लिए, दाम्पत्य सुख प्राप्ति के लिए , ख्याति धन ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए , जन्म पत्रिका में शुक्र से संकेतित क्लेश हरण के लिए ।
*शनिवार* - आयु आरोग्य प्राप्ति के लिए , नौकरी रोजगार व्यापार उद्योग में स्थायित्व के लिए , जन्म पत्रिका में शनिसे संकेतित समस्या निवारण के लिए ।
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