बुधवार, 19 जनवरी 2022

महाकाली, महालक्ष्मी, उमा-पार्वती (गौरी), महासरस्वती (कौशिकी), कालिका- (उमा-पार्वती/ गड़कालिका)- और काली (चामुण्डा) देवी, नौदुर्गा, चण्डिका-शक्ति एवम् अवतार वर्णन ।

मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मनु की उत्पत्ति के प्रसङ्ग में देवी महात्म्य के अन्तर्गत उल्लेखित

१ दुर्गा सप्तशती प्रथम अध्याय / प्रथम चरित्र में उल्लेखित 
 मूल स्वरूपा देवी महामाया -- महाकाली अवतार -- योगनिद्रा --  कमला, श्रीलक्ष्मी, इन्दिरा, रुक्माम्बुजासना,  (स्वर्णकमलासना) तामसी,नन्दा,
जिनके दश मुख,दशभुजा, दशपदा (दस पैर) हैं और पूर्णकृष्णवर्णा (पूरी काली) हैं। ये मूलतः नारायणी हैं जिनके रुप श्री और लक्ष्मी हैं। जो सृष्टि के आरम्भ में योगनिद्रा का आश्रय ले शेषशय्या पर सोये भगवान नारायण के नैत्रों से हिरण्यगर्भ ब्रह्मा की स्तुति पर प्रकट हुई। तब भगवान नारायण ने मधुकैटभ का संहार किया। इनके ही सब अवतार और स्वरुप अन्य सभी देवियाँ है।

२ दुर्गासप्तशती द्वितीयोऽध्याय / मध्यम चरित्र में उल्लेखित
 चण्डिका देवी - महालक्ष्मी अवतार -- अम्बिका, जगदम्बा, रक्तदन्तिका, महिशासुर मर्दिनी -- 
 जो देवताओं की स्तुति पर सभी देवताओं के शरीर से प्रकट तेज के संघनित होकर प्रकट हुई जो विचित्रवर्णा, अष्टादशभुजा हैं।
जिनने महिषासुर मर्दन किया। ये नारायणी की प्राकृत अवतार है।

३ दुर्गासप्तशती पञ्चमोऽध्याय, उत्तर चरित्र में उल्लेखित
चण्डीदेवी कौशिकी -- उमा, सती- पार्वती,  गौरी, कालिका, कात्यायनी, कौशिकी । 
वे सती-पार्वती के देहकोश से प्रकट हुई इसलिए कौशिकी कहलाती हैं।  जिनके द्वारा शुम्भ- निशुम्भ का वध किया गया। वे अत्यन्त गौरवर्णा और अष्टादशभुजा चण्डीदेवी कौशिकी है। 

४ दुर्गा सप्तशती पञ्चमोऽध्याय मन्त्र ८४ से ८८ तक 
 कालिका - सती -पार्वती के शरीर से कौशिकी के निकलने पर पार्वती जी कृष्णवर्णा/ कृष्णा (काली) होगयी थी। उस समय वे कालिका और हिमालय में विचरण करने वाली गढ़कालिका कहलायी।

चण्डीदेवी कौशिकी के शरीर से उत्पन्न  और  अन्त में इनके ही देहकोश में लय होजाने वाली दो देवियाँ काली और चण्डिका-शक्ति (शिवदूति) ---

५ दुर्गासप्तशती सप्तमोऽध्याय/मन्त्र ६ तथा महाभारत/ शान्तिपर्व/ मौक्ष पर्व/ अध्याय २८३ से २८४ तक 
काली -- चामुण्डा, कात्यायनी, भीमा, एकवीरा, कालरात्रि,और कामदा --
दक्ष के यज्ञ के विध्वन्स के लिए शंकरजी के मुख से उत्पन्न वीरभद्र की सहायतार्थ उमा पार्वती के क्रोध से उत्पन्न काली देवी या भद्रकाली देवी ही कौशिकी के क्रोधित होने पर उनके ललाट मध्य से जो प्रकट हुई थी। वे चतुर्भुजा अत्यन्त काली,अत्यन्त कृषकाय, विशालमुखा, अत्यन्त भयानक हैं  वे कालीदेवी ही चण्डमुण्डविनाशिनि होने का कारण  चामुण्डा कहलाती हैं। 

६ दुर्गासप्तशती/अष्टमोऽध्याय/ मन्त्र १२-१३ से २१ तक।
कौशिकी की सहायतार्थ प्रकट हुई और उनके ही देह कोश में लय हो जाने वाली नौ दुर्गा  --
0 कौशिकी की सहयोग कर्ता नौ देवियाँ जो कार्य सम्पन्न कर पूनः उनके कोश में समागयी --- 
 1 चण्डिका-शक्ति (शिवदुती) 2 काली या चामुण्डा 3 वैष्णवी, 4 ब्राह्मी या ब्रह्माणी 5 ऐन्द्री, 6 माहेश्वरी 7 कौमारी 8 वाराही, 9 नारसिंही  ।

७ दुर्गासप्तशती/अष्टमोऽध्याय/ मन्त्र २३ में कौशिकी के शरीर से उत्पन्न देवी चण्डिका-शक्ति
चण्डिका-शक्ति -- शिवदुती और  भ्रामरी -- 
कौशिकी के कोश से प्रकट हुई और शिवजी को दूत बनाकर शुम्भ - निशुम्भ के पास भेजकर कहलाया कि सभी असुर पाताल लोट जायें तथा देवताओं को निर्द्वन्द्व करदें। शिवको दूत बनाने के कारण शिवदुती कहलायी।

८ दुर्गासप्तशती/एकादशोऽध्याय/ मन्त्र ४९ से ५५ तक में भावी अवतारों के वर्णन में मन्त्र ४८-४९ में शाकम्बरी का वर्णन है। वे कौशिकी ही है। दुर्गासप्तशती / मुर्तिरहस्य मन्त्र १२ से १७ शाकम्भरी आदि अवतारों का अन्यदेवियों के रूप में वर्णन यथा -
 १ नन्दा, प्रकृति, इन्दिरा, कमला, श्री-लक्ष्मी, योगनिद्रा, महामाया, योगमाया, रूक्माम्बुजा, महाकाली। 
 २ रक्तदन्तिका, रक्तचामुण्डा, योगेश्वरी, काली।
३ उमा, कौशिकी,कालिका, चण्डी, दुर्गा, शाकम्भरी, शताक्षी ।
४ भीमा, एकवीरा, कालरात्रि, कामदा।
५ भ्रामरी, चित्रभ्रामरी, महामारी, पाणी‌

मन्त्रार्थ सहित प्रमाण --
मार्कण्डेय पुराण के सावर्णि मनु की उत्पत्ति के प्रसङ्ग में देवी महात्म्य के अन्तर्गत उल्लेखित दुर्गा सप्तशती प्रथमोऽध्याय से त्रयोदशोऽध्याय के अनुसार महाकाली (अर्थात भगवान नारायण की योगनिद्रा महाकाली)। 
हिमालय वासिनि उमा पार्वती के शरीर कोश से कौशिकी देवी के प्रादुर्भाव के पश्चात भगवती उमा के काले हो जाने पर  कालिका और हिमालय पर विचरण करने वाली लोक प्रसिद्ध गढ़कालिका हुई।
उमा पार्वती के शरीर कोश से उत्पन्न कौशिकी देवी के रोष से उनका मुख काला पड़ जानें और भृकुटी टेड़ी हो जाने पर उनके भृकुटी से उत्पन्न काली देवी। काली देवी द्वारा चण्ड मुण्ड का वध कर उनके मुण्ड कौशिकी देवी को सोपनें पर कौशिकी देवी द्वारा काली देवी ने कहा लोक में तुम चामुण्डा नाम से प्रसिद्ध होगी। अतः काली का ही नाम चामुण्डा है।

सुचना - ये काली देवी/ चामुण्डा देवी मूलतः महाभारत शान्ति पर्व/ मौक्ष पर्व/ अध्याय २८३ से २८४ तक  दक्षयज्ञ का भङ्ग और उनके क्रोध से ज्वर की उत्पत्ति तथा उसके विविध रूप के अन्तर्गत अध्याय २८४ 

मन्त्र २९ - अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय पत्नी उमा से ऐसी बात कहकर भगवान ने अपने मुख से एक अद्भुत एवम् भयंकर प्राणी (वीरभद्र) को प्रकट किया, जो उनका हर्ष बढ़ाने वाला था। ३०

मन्त्र ३१ -  उस समय भवानी के क्रोध से प्रकट हुई अत्यन्त भयंकर रूपवाली महाभीमा महाकाली महेश्वरी वें भी अपना पराक्रम दिखाने के लिए सेवकों सहित उस वीरभद्र के साथ प्रस्थान किया था। ३१ उत्तरार्ध तथा ३२ पूर्वार्द्ध।

पार्वती जी के क्रोध से उत्पन्न महाभीमा महाकाली जिनके द्वारा वीरभद्र के साथ मिलकर दक्षयज्ञ विध्वन्स किया गया था वे काली ही दुर्गा सप्तशती सप्तमोऽध्याय मन्त्र ६ की काली एवम् मन्त्र २७ की चामुण्डा हैं।

(कृपया गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत पञ्चम खण्ड,शान्ति पर्व/ मौक्ष पर्व/ अध्याय २८४ पृष्ठ ५१६६ या संक्षिप्त महाभारत का पृष्ठ १२८१ देखें।)

१ महाकाली देवी
दुर्गा सप्तशती प्रथमोऽध्याय मन्त्र ६८ से ७१ तक तथा ७३ से ८७ तक प्रजापति ब्रह्मा जी द्वारा नारायण की योगनिद्रा की स्तुति की।
 मन्त्र ८९ से ९१ तक
जब ब्रह्मा जी ने वहाँ मधु और कैटभ को मारने के उद्देश्य से भगवान विष्णु को जगाने के लिए तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा की इस प्रकार स्तुति की, तब वे भगवान नारायण के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय और वक्षःस्थल से निकलकर अव्यक्तजन्मा हिरण्यगर्भ ब्रह्मा जी की दृष्टि के समक्ष  खड़ी हो गई।
दुर्गा सप्तशती वैकृतिकम् रहस्यम्  मन्त्र १ से १६ तक से।
तमोगुणमयी  महाकाली भगवान विष्णु की योगनिद्रा कहीं गई है। मधु और केटभ का नाश करने के लिए ब्रह्माजी ने जिनकी स्तुति की थी, उन्ही का नाम महाकाली है। मन्त्र२
उनके दस मुख,दस भुजाएँ और दस पैर हैं। वे काजल के समान काले रङ्ग की हैं। तथा तीस नेत्र की विशाल पंक्ति से सुशोभित होती हैं। मन्त्र ३
भूपाल! उनके दाँत और बाढ़ें चमकती रहती है । यद्यपि उनका रूप भयंकर है, तथापि वे रूप, सौभाग्य, कान्ति एवम्  महती सम्पदा की अधिष्ठान (प्राप्ति स्थान) हैं। मन्त्र ४
वे अपने हाथों में खड्ग, बाण, गदा, शूल, चक्र,शंख, भुशुण्डि, परिचय, धनुष तथा कटा हुआ सिर धारण करती हैं जिससे रक्त छूता रहता है। मन्त्र ५
ये महाकाली वैष्णवी माया (भगवान विष्णु की दुष्कर माया) है। आराधना करने पर ये चराचर जगत को अपने उपासक के अधीन कर देती हैं। मन्त्र ६

दुर्गा सप्तशती पञ्चमोऽध्याय मन्त्र ८४ से ८८ तक में उल्लेखित कालिका/ गड़ कालिका देवी जो मूलतः उमा पार्वती देवी ही हैं।
इस प्रकार जब देवता स्तुति कर रहे थे, उस समय पार्वती देवी गङ्गाजी के जल में स्नान करने के लिए वहाँ आयी। मन्त्र ८४
उन सुन्दर भौंहों वाली भगवती ने देवताओं से पुछा - आपलोग यहाँ किसकी स्तुति करते हैं? तब उन्हीं के शरीर कोश से प्रकट हुई शिवा देवी बोली -।  मन्त्र ८५
शुम्भ दैत्य से तिरस्कृत और युद्ध में निशुम्भ से पराजित हो यहाँ एकत्रित हुए ये समस्त देवता यह मेरी ही स्तुति कर रहे हैं। मन्त्र ८६
पार्वती के शरीर कोश से अम्बिका का प्रादुर्भाव हुआ था, इसलिए वे समस्त लोकों में "कौशिकी" कहीं जाती हैं। मन्त्र ८७
कौशिकी के प्रकट होने के बाद पार्वती देवी का शरीर काले रङ्ग का हो गया। अतः वे हिमालय पर रहने वाली कालिका देवी नाम से विख्यात हुईं। मन्त्र ८८

दुर्गा सप्तशती सप्तमोऽध्याय  मन्त्र ६ से ८ में उल्लेख के अनुसार-

कौशिकी देवी के रोष के कारण उनका मुख काला हो गया और भौंहें टेड़ी हो गई, और वहाँ से विकरालमुखी काली प्रकट हुई। जो तलवार और पाश धारण किये हुई थी। मन्त्र ६
 काली देवी विचित्र खट्वाङ्ग धारण किये हुए थी और चीते के चर्म की साड़ी पहने नरमुण्डों की माला से सुशोभित थी। उनके शरीर का मांस सूख गया था, केवल हड्डियों का ढाँचा था, जिससे वे अत्यन्त भयंकर जान पड़ती थी।मन्त्र ७
काली देवी का मुख बहुत विशाल था, जीभ लपलपाने के कारण वे और भी डरावनी प्रतीत होती थी। उनकी आँखें भीतर की ओर धँसी हुई और कुछ लाल थीं, वे अपनी भयंकर गर्जना से सम्पूर्ण दिशाओं को गुँजा रही थी।मन्त्र ८

दुर्गा सप्तशती सप्तमोऽध्याय  मन्त्र २६ से २८ में उल्लेख के अनुसार-
वहाँ लाये हुए उन चण्ड-मुण्ड नामक महादैत्यों को देखकर कल्याणमयी चण्डिका (कौशिकी) देवी ने काली से सुमधुर वाणी में कहा-  मन्त्र २६)
देवि! तुम चण्ड और मुण्ड को लेकर मेरे पास लायी हो, इसलिये संसार में चामुण्डा के नाम से तुम्हारी ख्याति होगी। मन्त्र २७

काली देवी जिन्हें चण्ड-मुण्ड वध करनें के कारण कौशिकी देवी ने चामुण्डा नाम दिया वे काली/ चामुण्डा देवी देवी हैं।
ये (१)महाकाली, (२)कालिका या गढ़कालिका (उमा/ पार्वती देवी)  तथा  (३)काली/ चामुण्डा देवी तीनों परस्पर भिन्न भिन्न स्वरूप हैं।

 काली/चामुण्डा देवी की प्रतिमा --
उड़ीसा के जाजपूर में प्राप्त आठवीं शताब्दी की काली/ चामुण्डा की चतुर्भुज प्रतिमा। 
जिनका वामपद (बायाँ पेर) सर्प मुख के समान है। वे नरमुण्डों की माला धारण किये शवासन पर बैठी हुई हैं। उनके दक्षिण हस्तों में दो मुख, और घण्टा है तथा वाम हस्तों में शंख और रक्त टपकता नर मुण्ड  है।  
नीचे दाँई ओर व्रजासनस्थ वीर (हनुमान) है तथा बाँयी ओर भैरव है तथा बाँयी ओर ही  5 गीदड़ है।
सुचना --- यह चित्र मुझे क्वोरा पर श्री रवि पतोण्ड (Patond) महोदय के सौजन्य से प्राप्त हुआ है। इसलिए क्वोरा और श्री रवि पतोण्ड (Patond) महोदय का आभारी हूँ।
चित्र ⤵️

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