एकादशी के सम्बन्ध में नारद पुराण में राजा रुक्माङ्गद की कथा ।
कृपया गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संक्षिप्त नारद पुराण पृष्ठ ६१२ से ६३९ तक देखें।
नारद पुराण में एकादशी व्रत दृढ़तापूर्वक करने वाले राजा रुक्माङ्गद द्वारा ब्रह्मा की मानस पुत्री मोहिनी को कार्तिक मास की महिमा बतलाते हुए एकादशी को व्रत रखने के उल्लेख और अगले अध्याय में राजा रुक्क्माङ्गद की आज्ञा से रानी संध्यावली द्वारा कार्तिक मास में कृच्छ्व्रत आरम्भ करने और राजा रुकमाङ्गद एकादशी व्रत दृढ़तापूर्वक करने की घोषणा, उसके बाद मोहिनी द्वारा बुलवाये गये गोतम ब्राह्मणों द्वारा एकादशी व्रत अवैदिक बतलाने पर भी राजा रुक्माङ्गद का वैष्णवों के लिए एकादशी व्रत की अनिवार्यता बतलाने के प्रकरण से एकादशी तिथि को व्रत रखने की परम्परा का आरम्भ माना जाता है।
[विशेष सुचना --- गोतम ब्राह्मणों का कथन असत्य नही था। वेदों में तिथियों का उल्लेख नही है, उस समय सौर गणना (केलेण्डर) प्रचलित थी। सौर मास और चन्द्रमा के नक्षत्र के अनुसार जैसे आज भी दक्षिण भारत में व्रत उत्सव होते हैं, बङ्गाल में दुर्गा पूजा में तिथियों की तुलना में चन्द्रमा के नक्षत्रों के अनुसार दुर्गा का आव्हान, पूजन, बलिदान और विसर्जन निर्धारित किया जाता है, वैसे ही कुछ व्रत उत्सव सायन सौर मधु - माधवादि मासों और चन्द्रमा के नक्षत्रों के अनुसार निर्धारित होते थे। तिथियों का उल्लेख तो वाल्मीकि कृत मूल रामायण में भी नही है। महाभारत में अवश्य तिथियों का उल्लेख है।
अतः एकादशी वैदिक व्रत नही है यह गोतम ब्राह्मणों की का कथन पूर्ण प्रामाणिक सत्य था।
राजा मोरध्वज से पुत्र का बलिदान करवानें की कथा में उक्त बलिदान करवानें वाले दिन एकादशी तिथि थी। इस आधार पर मेसोपोटामिया के चन्द्रवंशियों में एकादशी तिथि प्रचलन में आई थी। तब भारत में ऐसा कोई व्रत प्रचलित नही था। चन्द्रवंशियों द्वारा भारत में तिथि वाला उन्नीस वर्षीय चक्र वाली सौर चान्द्र गणना (केलेण्डर) प्रचलित किया। जिसे अन्त में विक्रमादित्य के समय वराहमिहिर ने प्रचलित करवाया।]
इस प्रकार राजा रुक्माङ्गद नें चन्द्र वंशियों में प्रचलित परम्परा अनुसार एकादशी व्रत भारत में भी आरम्भ करवाया।
जिसमें एकादशी के पूर्वदिन सायंकालीन भोजन का त्याग, एकादशी के दिन प्रातः कालीन भोजन का त्याग और द्वादशी के दिन निराहार उपवास करना उल्लेखित है।
गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संक्षिप्त नारद पुराण पृष्ठ ६३७ से ६३८ तक में राजा रुक्माङ्गद की उक्त कथा में ब्राह्मणों के शाप से मोहिनी को किसी भी लोक में स्थान न पाने पर ब्रह्मा जी ने मोहिनी को दशमी तिथि अन्तिम भाग में स्थान देकर के तेरहवें मुहुर्त के पश्चात अरुणोदय से सूर्योदय तक व्रत में रहकर दशमी विद्धा एकादशी करने वाले ब्राह्मणों के एकादशी व्रत के पुण्य फल प्राप्त करने का अधिकार दिया। इसलिए एकादशी व्रत करने वाले दशमी विद्धा एकादशी में व्रत नहीं करते। किन्तु वैध कब से आरम्भ हो इसपर स्मार्त, पौराणिक और महाभागवतों में मतभेद हैं।
एकादशी में दशमी वैध --
गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संक्षिप्त नारद पुराण पृष्ठ ६३७ से ६३८ तक में उल्लेख के अनुसार दशमी तिथि समाप्ति और एकादशी तिथि आरम्भ के समय के अनुसार तीन प्रकार के वैध बतलाते गये हैं।
१ गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संक्षिप्त नारद पुराण पृष्ठ ६३७ पर श्रोत्रिय/ वैदिकों और स्मार्तों अर्थात केवल वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों, उपनिषदों, उपवेदों, वेदाङ्गो, षड्शास्त्रों (षड दर्शनों) और स्मृतियों को ही धर्मशास्त्र मानने वाले स्मार्तों के लिए सूर्योदय समय या सूर्योदय के बाद दशमी तिथि समाप्त होकर एकादशी आरम्भ होने पर दूसरे दिन / परा अर्थात् उदिता एकादशी में व्रत करना।
[विशेष सुचना --- लेकिन वेदों, ब्राह्मण ग्रन्थों, ग्रह्य सुत्रों, श्रोतसुत्रों सभी में एक निश्चित नियम है कि, व्रत की पूर्णता व्रत के पारण पर ही होती है, इसलिए व्रत रखनें की अगली तिथि में पारण आवश्यक है।
यदि एकादशी का व्रत करना है तो द्वादशी में पारण आवश्यक है। यदि द्वादशी में पारण नही होता तो एकादशी का व्रत अपूर्ण माना जाएगा।]
२ गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संक्षिप्त नारद पुराण पृष्ठ ६३८ पर पौराणिक वैष्णवों के लिए अरुणोदय विद्धा एकादशी का त्याग कहा है। और रात्रि के अन्तिम दो मुहुर्त को अरुणोदय बतलाया है।
सामान्यतया पौराणिक वैष्णव छप्पन घटि का वैध मानते हैं। अर्थात सूर्योदय से २२ घण्टे २४ मिनट बाद दशमी तिथि समाप्त होकर एकादशी आरम्भ हो तो पौराणिक वैष्णव दुसरे दिन उदिता एकादशी न हो तो द्वादशी तिथि में एकादशी का व्रत करते हैं।
रामानुजन सम्प्रदाय वाले अरुणोदय पचपन घटि पर मान कर पचपन घटि का वैध मानते हैं अर्थात सूर्योदय से २२ घण्टे बाद दशमी तिथि समाप्त होकर एकादशी आरम्भ हो तो रामानुजन सम्प्रदाय वाले वैष्णव दुसरे दिन उदिता एकादशी न हो तो द्वादशी तिथि में में एकादशी का व्रत करते हैं।
३ गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित संक्षिप्त नारद पुराण पृष्ठ ६३८ में उल्लेख निष्काम एवम् विरक्त वैष्णव परम भागवत जन अर्धरात्रि के समय भी दशमी विद्ध एकादशी को त्याग देते हैं वचन के अनुसार निम्बार्क सम्प्रदाय मध्यरात्रि या पैंतालीस घटि का वेद मानते हैं। तदनुसार मध्यरात्रि या सूर्योदय के अठारह घण्टे बाद दशमी तिथि समाप्त होकर एकादशी आरम्भ हो तो निम्बार्क सम्प्रदाय वाले वैष्णव दुसरे दिन उदिता एकादशी न हो तो द्वादशी तिथि में में एकादशी का व्रत करते हैं।
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