मंगलवार, 4 जनवरी 2022

भारतीय राजनीतिक दलदल

आजकल भारतियों को सबकुछ पका-पकाया ही चाहिए। नकल करनें में ही महानता समझनें लगे हैं।
भाषा, भुषा,भवन निर्माण प्रणाली, शिक्षा प्रणाली, राजनीतिक प्रणाली, शासन प्रणाली,आर्थिक प्रणाली,औद्योगिकीकरण प्रणाली,  नगरीकरण प्रणाली सभी तो विदेशों से, यूरोप- अमेरीका से नकल की है।
राजनीतिक दलों के नाम तक विदेशियों की देन है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (मतलब भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन) किसी राजनीतिक दल के रूप में इस नाम का क्या अर्थ ? कुछ भी नहीं। क्योंकि,  कांग्रेस के संस्थापक एक अंग्रेज ए.ओ. ह्युम थे और वर्तमान संचालक (अध्यक्ष सोनिया गांधी) इटली की है। मतलब आरम्भ से आजतक सोच विदेशी, नेता विदेशी सबकुछ विदेशी ही है। 
कांग्रेस की विचारधारा का पता लगने पर ही उस टिप्पणी कर पाऊँगा। कई शोधार्थी कांग्रेस की विचारधारा की शोध में मर खप जायें तो भी कांग्रेस की विचारधारा पता नहीं लगा पायेंगे। जो है ही नहीं, उसे कैसे खोजेंगे?
जनसंघ -  जन संघ मतलब  लोक संगठन। जिसे जन  अर्थात भारतीय जनता नें कभी पसन्द नहीं किया। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्मक मानवतावाद जनसंघ के जमानें में भी उनके नेताओं को समझ नहीं पड़ा।
मोरारजी प्रधानमंत्री बन गये और अटल बिहारी देखते रह गये। जनसंघ चला नहीं तो नये दल का नया नाम भारतीय जनता पार्टी  रख लिया पाकिस्तान पिपुल्स पार्टी की नकल में ।
भारतीय जनसंघ हो या भारतीय जनता पार्टी इनकी आर्थिक नीति उनके नेताओं को भी पता नहीं तो मुझे कहाँ से पता चले। एकात्मक मानवतावाद का तो कई नेताओं को तो भी शायद नाम मालूम न हो। 
राजीव गांधी , नरसिंहा राव, मनमोहनसिंह की जिस जिस  आर्थिक नीति का विरोध किया उन सब नीतियों को अपनी सत्ता में प्राथमिकता से लागू किया।
जनसंघ / भाजपा की राजनीति भी बड़ी सरल है केवल विरोध करना। जनसंघ के अध्यक्ष श्री बलराज मधोक का विरोध कर उन्हें पार्टी से निकाल दिया। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और उमा भारती का विरोध कर उन्हें भी पार्टी से निकाल दिया। आडवानी जी और गोविन्दाचार्य जी को साइड लाइन में कर दिया।  
बैचारे सत्ता में रहकर भी विरोध ही करते रहते हैं। गांधी को मरे पचहत्तर वर्ष होगये, नेहरू को मरे अट्ठावन हो गये। इन्दिरा गांधी को मरे सैंतीस वर्ष होगये , राजीव गांधी को मरे तीस वर्ष होगये पर भाजपाइयों के दिमाग में आज भी छाये हुए हैं। सपनें में भी शायद नेहरू ही दिखते होंगे । तभी तो  वैशभुषा तक नेहरू जैसी ही रखते हैं। 

कम्युनिस्ट पार्टि का तो नाम, विचारधारा, कार्यप्रणाली सबकुछ विदेशी है यह सर्वमान्य है ही।

समाजवादी पार्टी - वाह ! दुनिया भर के राजनीतिशास्त्री आरम्भ से आजतक समाजवाद क्या होता है, इसे नही जान-समझ पाये। समाजवादी पार्टी के नेताओं को तो समाजवाद के विषय में सोचनें की न आवश्यकता नहीं पड़ी ।उन्हें तो कमानें से ही फुर्सत नहीं है।
लोकदल, लोजपा, जैसे की दल नाम मात्र के रह गये हैं। इसलिए इनपर विचार व्यर्थ है।
आप का नाम दिल्ली में बहुत है। बाहर आप को कोई नहीं पूछता है। इसलिए आप पर विचार कर आपका समय बर्बाद नहीं करना चाहता। बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश तक, तृणमूल कांग्रेस प. बङ्गाल तक, डी. एम.के., ए.डी.एम.के. तमिलनाडु तक, वार.एस.आर. तेलंगाना तक, शिवसेना महाराष्ट्र तक सीमित है।
क्षेत्रीय दलों को राजनितिक दल मानना चुनाव आयोग की विशेषता है।  राजनीतिक दल की किसी कसोटी पर क्षेत्रीय दलों को कोई राजनीति शास्त्री भी राजनितिक दल सिद्ध नहीं कर सकता। पर चुनाव आयोग की ही विशेषता है कि, उसने इन्हें राजनीतिक दल मान लिया।

इसलिए मैं भी एक दल दल बनानें पर गम्भीरता पूर्वक विचार कर रहा हूँ। नाम सच्चा है ना? दलदल। 
विचार ही करूँगा और कुछ नहीं।  इससे आगे कुछ किया भी नहीं जा सकता।
दलदल का घोषणा-पत्र पढ़कर ही सब पगला जायेंगे।
घोषणा-पत्र की बानगी प्रस्तुत है।--
१ आपको कुछ नहीं करना होगा, सभी कार्य रोबोट ही करेगा। यहाँ तक की आपको खाने-पीने की भी आवश्यकता नहीं । 
(खाओगे कहाँ से, कोई उपजायेगा, पकायेगा तभी तो खाओगे ना!)
२ ठण्ड, गर्मी से बचाव के लिए व्यवस्था प्राकृतिक ही रखी जायेगी। 
(जब कोई कुछ काम नहीं करेगा तो अपने आप जंगल उग ही जायेंगे। सब प्राकृतिक होगा।)
३ आपको जब, जहाँ जो कुछ भी चाहिए तत्काल उपलब्ध कराया जाएगा। 
(हमें आपकी आवश्यकताओं की जानकारी समय पर न लगे तो कुछ नहीं कर पायेंगे। समय निकल जाने पर आपकी आवश्कता भी तो बदल ही जायेगी। अतः करना धरना तो हमें भी कुछ नहीं है। आखिर हम भी तो आप में से ही हैं।)
मैं समझता हूँ निकम्मों के लिए इतनी घोषणा ही पर्याप्त है। जिन्हें सबकुछ फ्री में चाहिए, जिन्हें स्वयम् को स्वस्थ्य रखनें की सावधानी रखने हेतु भी डण्डे की मार आवश्यक लगती हो, उन्हें रिझाने (और खिझाने) के लिए इतनी घोषणा ही पर्याप्त है।

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