अष्टाङ्ग योग स्वयम् पञ्चमहायज्ञ के ब्रह्म यज्ञ का अङ्ग है। जब-तक यम, नियम पालन में दृढ़ता न आये तब-तक अष्टाङ्ग योग सिद्ध नहीं होता।
जब-तक तन कम से कम एक एक घड़ी (२४ मिनट) से एक मुहुर्त (४८ मिनट) एक ही आसन पर स्थिर स्थित नहीं रह सके तब- तक प्राणायाम का अभ्यास भी आरम्भ नहीं होता ? प्राणायाम आसन सिद्ध व्यक्ति द्वारा की जाने वाला योगाङ्ग है।
तो बिना आसन सिद्ध व्यक्ति द्वारा किया गया प्राणायाम काहे का प्राणायाम?
जब तक प्राणायाम सिद्ध न हो जाए, प्राणों को आयाम न मिल जाते तब तक कैसा प्रत्याहार?
जब-तक प्रत्याहार न बने, सिद्ध न हो जाते, विचार आते जाते रहे, बहाव समाप्त न हो तब-तक धारणा कैसे सम्भव है?
जब-तक कम से कम एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी में पुनि आधी (६ मिनट से २४ मिनट तक) चित्त वृतियाँ एक ही संकल्प में (विचार में) दृढ़तापूर्वक स्थिर न रह पाये तब तक ध्यान का आरम्भ भी सम्भव नहीं। और
जब-तक एक मुहुर्त (४८ मिनट) से तीन मुहुर्त (२ घण्टा २४ मिनट) चित्त वृत्तियाँ एकीभाव में न रह पाये तब-तक कैसी समाधि? और
जब-तक एक अहोरात्र से तीन अहोरात्र तक चित्तवृत्ति निरुद्ध रहनें का अभ्यास न होजाये तब-तक संयम नहीं होता।
और बिना यम, नियम, संयम के योगी नहीं कहलाता/ युक्त नहीं होता।
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