शनिवार, 28 नवंबर 2020

अवसाद चिकित्सा

बच्चे के जन्म के बाद प्रायः हर माँ को डिप्रेशन होता है। पढ़ाई पूर्ण होनें पर हर विद्यार्थी को अवसाद होता है। व्यवसाय में नौकरी में उतार चड़ाव पर हर व्यक्ति को अवसाद होता है। यह जीवन के व्यस्थापन की मूलभूत प्रणाली है इसे बदला नही जा सकता। तो फिर इसकी चिन्ता क्यों पाली जाये।
जो सम्पूर्ण जगत का सञ्चालन कर रहा है वही इसकी भी व्यवस्था करेगा। आपसे यदि कोई गलती हो भी गई हो तो उस व्यवस्थाप के सामने अपना दोष स्वीकार कर व्यवस्था उसपर छोड़दो। यह हमारा कार्य नही है। वही निबटेगा। हम क्यों सोचे।
किसी नें हमारे साथ अनुचित किया है तो यह जान समझ लो कि, इसकी सुचना भी व्यवस्थापक को है और उसकी स्व नियन्त्रित प्रणाली (ऑटोमेटिव सिस्टम) में इसकी व्यवस्था भी हो चुकी है। (प्रोसेस हो चुकी है।) पर हर रिपोर्ट आपके ध्यान में लाई जाये यह आवश्यक नही है। आपकी क्षमता जितना झेल सकती है और जिस पर आपको कुछ करना आवश्यक हो उतनी ही जानकारी आप तक पहूँचाई जाती है। पुरी जगत की जानकारी आप झेल नही सकते। अतः उसे व्यवस्थाप पर ही छोड़ो।
इसकी चिकित्सा उच्च स्वर में भजन करना है न कि, उसी बात को बार बार सोचना।
भजन में आनन्द तो है ही सर्वकष्ट निवारण शक्ति भी होती है।
प्रत्यैक व्यक्ति के जीवन में उतार चड़ाव आते हैं। यदि श्री राम और श्री कृष्ण के जीवन का अध्ययन करें तो सर्वाधिक कष्ट उनके जीवन में आये। लेकिन उनने उनका निवारण किया चिन्तन नही।
आशा और विश्वास के योग्य केवल परमात्मा, ॐ, विष्णु ही है।अपनें आत्म स्वरूप का ध्यान, (परम आत्म यानी वास्तविक मैं का सदैव स्मरण रखना) परमात्मा का स्मरण - ध्यान ही है। 
सम्पुर्ण जगत में परमात्मा को ही देखना, परमात्मा के अलावा कुछ है ही नही यह ध्यान रखते हुए जगत से व्यवहार करना विश्वात्मा ॐ का ध्यान है।
सबकुछ परम आत्म परमात्मा ही है। वही जगत है वही मैं हूँ, परम आत्म (वास्तविक मैं) ही सबकुछ है, इसके अतिरिक्त कुछ हो ही नही सकता तो कौन मैं कौन तु, क्या मेरा,क्या तेरा सबकुछ तो मैं ही हूँ।
सोते समय और जागनें के बाद और बिस्तर छोड़नें/ उठने के पहले यह ध्यान करना। 
यही विष्णु का ध्यान है।
यही वास्तविक आराधना उपासना है। और जगत से व्यवहार के समय भी यही तथ्य याद रखते हुए ही व्यवहार करना है।
सदैव परमात्मा (आत्म स्वरूप/परम आत्म / परम मैं) का ध्यान रखना और हर समय जगत की सेवा में तत्पर रहना यही जीवन है।
यह समझ लेना ही वास्तविक जाग्रति। वास्तविक जागरण है।
जगत में न कोई भलाई है न कोई बुराई है। वह तो अपना दृष्टिकोण बदलने पर बदल जाता है। जगत वास्तवमें ऐसा नही है जैसा हम समझ रहे हैं। जिसे हम जगत / ब्रह्माण्ड कहते समझते हैं यह केवल हमारी सोच समझ में ही है। आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकारनें लगा है। अतः जगत चिन्तन त्याग कर आत्म चिन्तन करो।
दुसरों की भलाई-बुराई जो हम जान समझ रहे हैं यह यथार्थ से बहुत परे है।
जागो दुनिया वह नही है जो तुम देख समझ रहे हो। दुनिया को अपने आप में खोजो।जगत भी मैं ही हूँ यह ध्यान रखो। याद रखो आत्म से परे कुछ नही है।

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