विक्रम संवत और गुप्त संवत
महाराज नाबोवाहन ने पञ्जाब- हरियाणा के मालव प्रान्त से आकर (भोपाल के निकट सोनकच्छ से लगभग २० कि.मी. दर) गंधर्वपुरी को राजधानी बनाया था। बाद में नाबोवाहन के पुत्र गन्धर्वसेन गन्धर्वपुरी के राजा हुए। जिन्हें महेन्द्रादित्य भी कहा जाता था। उनकी पत्नी सोम्यदर्शना थी जिनका अन्य नाम वीरमती था।
भृतहरि और विक्रमादित्य के पिता गन्धर्व पूरी के शासक गन्धर्वसेन कट्टर वेदिक धर्मावलम्बी और विष्णु भक्त थे। इस कारण जैन आचार्य महेसरा सूरी उनसे रुष्ट थे। जैन आचार्य महेसरा सूरी/ कालक आचार्य ने अफगानिस्तान तक पैदल जाकर शक राजा/ कुषाण क्षत्रप के दरबार में गंधर्वसेन के विरुद्ध गुहार लगाई तथा उज्जैन पर आक्रमण हेतु आमन्त्रित किया। शक शासक/ कुषाण क्षत्रप ने महाराज गन्धर्वसेन पर अनेक अत्याचार किये परिणाम स्वरूप गंधर्वसेन की मृत्यु जंगल में होगई। जैन ग्रन्थों में गन्धर्वसेन को गर्दभिल्ल, गदर्भ भिल्ल, गदर्भ वेश भी कहा गया है।
जैनाचार्य ने अफगानिस्तान तक पैदल यात्रा कर गन्धर्व पूरी के राजा गन्धर्व सेन पर आक्रमण करनें के लिए शकराज को आमन्त्रित किया। गन्धर्व सेन के पुत्र भृतहरि की पत्नी को पर भ्रष्टकर भृतहरि को नाथ सम्प्रदाय में सम्मिलित करने की कुटिल चाल तान्त्रिकों ने चली। बौद्धाचार्यों वें चन्द्रगुप्त द्वितीय के भाई रामगुप्त के विरुद्ध चीन के शकराज को समर्थन दिया और समझोते में रामगुप्त की पत्नी ध्रुव स्वामिनी को शकराज के हवाले करनें का दुष्ट समझोता करवाया। जिसे चन्द्रगुप्त (द्वितीय) ने असफल कर शकराज का वध किया।
इस प्रकार वास्तविक विक्रमादित्य और चन्द्रगुप्त द्वितीय में अन्तर स्पष्ट करनें के बाद मूल विषय पर आते हैं।
अवन्तिका अर्थात उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने ई.पू. 58 में निरयन मेष संक्रान्ति से विक्रम संवत चलाया था। कुछ स्थानों पर इसे मालव संवत के नाम से भी उल्लेख किया गया है।
निरयन मेष संक्रान्ति वर्तमान में प्रायः 14 अप्रेल को पड़ती है। हर 71 वर्ष में निरमन वर्ष का आरम्भ सायन वर्ष की एक दिन बाद के दिनांक से आरम्भ होता है।
ग्रेगोरियन केलेण्डर सायन वर्ष पर आधारित है अतः हमारे सामनें ही निरयन मेष संक्रान्ति 13 अप्रेल के स्थान पर 14 अप्रेल को पड़ने लगी है।
पञ्जाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मु, हिमाचल प्रदेश, उड़िसा, बङ्गाल, तमिलनाड़ु,और केरल में निरयन सौर वर्ष आज भी प्रचलित है। किन्तु निरयन सौर वर्ष के साथ विक्रम संवत वर्तमान में केवल पञ्जाब में ही प्रचलित रह गया है।
हिन्दीभाषी क्षेत्रों में निरयन सौर वर्ष से संस्कारित चान्द्र वर्ष शक संवत के आरम्भ दिवस यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत का आरम्भ होता है। जबकि गुजरात में दिवाली के दुसरे दिन अर्थात उक्त शक संवत के कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत का आरम्भ होता है।
विक्रमादित्य कौन थे इसे जानने के लिए वेबदुनिया की लिंक प्रस्तुत है। कृपया अवश्य देखें।
https://m-hindi.webdunia.com/indian-history-and-culture/emperor-vikramaditya-117121300044_1.html?amp=1
गुप्त संवत का आरम्भ चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त प्रकाल नाम से 319 ई. में किया था। किन्तु यह वर्तमान में अप्रचलित है। किन्तु गुप्तकालीन दस्तावेजों में गुप्त प्रकाल का उल्लेख मिलता है।
कुछ लोग चन्द्रगुप्त द्वितीय को विक्रमादित्य समझने की भूल करते हैं।
चन्द्रगुप्त प्रथम को जानने के लिए गुप्तवंश का इतिहास विकिपीडिया पर देखने का कष्ट करें। लिंक प्रस्तुत है।
https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%82%E0%A4%B6
इसके अतिरिक्त हिन्दी क्वोरा पर दिनांक 21 मार्च 2020 को शक संवत का प्रारम्भ कब किया गया था प्रश्न पर मेरा उत्तर भी पढ़ने का कष्ट करें।
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