शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

सायन सौर राशिनक्षत्रों के नवीन नामकरण होना चाहिए।वृतोत्सव को सायन सौर गणना से जोड़ना आवश्यक है।

भूमि जिस पथ पर सुर्य की परीक्रमा करती है उसे क्रान्तिवृत्त कहते हैं।सुर्य को केन्द्र मानकर भूमध्य रेखा के समान आकाश मध्यरेखा कल्पित की गई है।सुर्य के आसपास इस रेखा से बननेवाले वृत्त को विषुव वृत्त  कहते है। विषुव वृत्त को क्रान्ति वृत्त दो स्थानों पर 23°26'07"79"' का कोण बनाते हुए काटता है।
किन्तु भूमि की परिक्रमा विषुव वृत्त के ठीक उसी बिन्दु पर समाप्त नही होती जहाँ से आरम्भ हुई थी बल्कि उस बिन्दु से 00°50'12' से 00°50'18" पहले अर्थात पश्चिम में या  पीछे जाकर पुर्ण करती है। 00°50'12' से 00°50'18" के बीच की औसत गति अयनांश गति कहलाती है।इस गति से पिछड़ते हुए 22 मार्च 285 से  1734 वर्ष बाद  20/21 मार्च 2019 को 24°07'16" खिसक चुका है।यही अयनांश कहलाता है। 2435 ई. में पुरा 30° यानी एक राशि के बराबर खिसक जायेगा।अर्थात अयनांश 30° हो जायेगा।
क्रान्तिवृत्त के इन दोनो क्रास बिन्दुओं के लगभग नौ- नौ अंश (09° - 09°) उत्तर दक्षिण  में नक्षत्र पट्टिका का विस्तार है। इसी नक्षत्र पट्टिका में उत्तर दक्षिण क्रान्ति करते हुए चन्द्रमा, भूमि और ग्रह सुर्य की परिक्रमा करते हैं।सुर्यकेन्द्रिय स्पष्ट ग्रह साधन से किसी विशेष समय पर ग्रहों की स्थिति/ पोजीशन ज्ञात की जा सकती है।और इसे सापैक्ष में भूमि से देखने पर भूमि की परिक्रमा करते हुए आभास होता है। जिसकी गणना भूकेन्द्रीय स्पष्ट ग्रह साधन कहलाता है।
जब गणना इस नक्षत्र पट्टिका के सापैक्ष में की जाती है तब नाक्षत्रीय पद्यति या निरयन पद्यति से गणना या सेडरल सिस्टम से गणना करना कहते हैं।
जब विषुव वृत्त के सापैक्ष में गणना की जाती है तब इसे सायन पद्यति से गणना या ट्रॉपिकल सिस्टम से गणना कहते हैं।
तैत्तरीय संहिता के अनुसार श्रष्टि के आरम्भ में चित्रा तारा आकाश के मध्य में था। अतः तत्कालीन समय में चित्रा तारे से 180 ° पर स्थिति रेवती नक्षत्र का योग तारे को नाक्षत्रीय पद्यति का आरम्भ बिन्दु माना गया। इसे निरयन मेषादि बिन्दु कहते हैं किन्तु वर्तमान में वहाँ कोई तारा स्थित नही है। यहीँ से प्रथम नक्षत्र अश्विनी नक्षत्र और प्रथम राशि  निरयन मेष राशि का आरम्भ होता है। नक्षत्र पट्टिका वृत्त में 13°20' के 27 नक्षत्रों की आकृतियाँ कल्पित की गयी है।और 30°-30° की बारह राशियों की आकृतियाँ कल्पित की गयी है। इन्हे ही नक्षत्र और राशियाँ कहते हैं।
ताराओं की गति अति मन्द होती है।  22 मार्च 285 ई. से 20 /21 मार्च 2019 तक 1734 वर्ष में चित्रा तारा 00°01'01" खिसका है।मघा तारा की गति भी मन्द है किन्तु रेवती तारा समुह के तारों की गति तुलनात्मक काफी तेज है।झीटा पिशियम तारा 04° से भी अधिक खिसक चुका है।
भारतशासन केनेश्नल अल्मनाक युनिट जिसे आजकल पोजिश्नल एस्ट्रोनॉमी सेण्टर कहते हैं इस संस्थान के संस्थापक ऑफिसर इन चार्ज और भारत शासन की पञ्चाङ्ग रिफार्म कमेटी के संस्थापक सचिव और अन्तराष्ट्रीय एस्ट्रोनॉमीकल युनिट पेरिस के भू.पु. सदस्य और प.बंगाल शासन के स्टेट अल्मनाक कमिटी के संस्थापक सदस्य स्व. निर्मलचन्द्र लाहिरी ने चित्रा के इस क्षरण ( खिसकने/ गति) की गणना कर इस आधार पर लाहिरी अयनांश बनाया।तदनुसार 22मार्च 285 ई. को चित्रा तारा का निरयन भोग 180°00'03" था।
किन्तु  1956 ई. से भारत शासन द्वारा पञ्चाङ्ग रिफार्म कमिटी के निर्णयानुसार 21 मार्च 1956 ई. को   चित्रापक्षीय अयनांश 23°15'00" मानकर प्रकाशित राष्ट्रीय अल्मनाक और पञ्चाङ्ग रिफार्म कमिटी की पारित रिपोर्ट के आधार पर प्रकाशित पञ्चाङ्ग का अयनांश  भी  लाहिरी अयनांश से 5.8" यानि 05"48"' कम है। हालाँकि1985 ई. में भारत शासन ने भी इण्डियन एस्ट्रोनॉमीकल इफेमेरिज में 0.658" का सुधार किया है।
फिर भी कहा जा सकता है कि सबसे शुद्ध पञ्चाङ्ग लाहिरी की इण्डियन इफेमेरिज ही है। दुसरे नम्बर पर चित्रापक्षिय केतकी पञ्चाङ्ग यथा उज्जैन के अक्षांश देशान्तर पर तैयार सिद्धविजय पञ्चाङ्ग, काशी के अक्षांश देशान्तर पर आधारित वाराणसी से प्रकाशित चिन्ताहरण पञ्चाङ्ग और चिन्तामणि पञ्चाङ्ग और महाराष्ट्र का कालनिर्णय पञ्चाङ्ग केलेण्डर आदि  और  भारतीय राष्ट्रीय पञ्चाङ्ग शुद्ध है। तीसरे नम्बर पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रकाशित सुर्यसिद्धान्त आधारित विश्वविजय पञ्चाङ्ग है।
नाक्षत्रीय पद्यति में ग्रहचार चुँकि फिक्स झाडिक / नक्षत्र पट्टिका में होता है और नक्षत्र पट्टिका में ताराओं के समुह से निर्मित रेखिक आकृतियाँ कल्पित कर उनका नामकरण नक्षत्रों और राशियों के रुप में कर लिया गया है। ताराओं की अत्यल्प गति के कारण लाखों करोड़ो वर्षों में इन कल्पित आकृतियों में बहुत फेर बदल नही हुआ और नही होगा अतः नक्षत्रीय/ निरयन राशि नक्षत्रों के नाम सार्थक हैं।
किन्तु सायन पद्यति में सायन मेषादि बिन्दु प्रति वर्ष लगभग 50°12' से 50°18' की विलोम गति से विषुववृत्त में पीछे खिसकता रहता है अस्तु सायन गणना का आरम्भ आकाश के किसी निश्चित तारा समुह से  नही होता।और 22 मार्च 285 ई.के राशियों के तारा समुह और उनसे बनी आकृतियों की तुलना में  वर्तमान  के  राशियों के तारा समुह और उनसे बनी आकृतियों में बहुत अन्तर हो गया है।क्योंकि, सायन मेषादि बिन्दु 24° 07'16" पीछे पश्चिम में खिसक चुका है। अब स्थिति यह है कि, सायन में  जिसे मेष राशि कहते हैं उसमें तारा सममुह की आकृती मीन राशि की है।सायन सिंह की आकृति कर्क के समान होगयी है।और 2435 ई. में पुरा 30° यानी एक राशि के बराबर खिसक जायेगा। तब सायन मेष राशि और निरयन वृष राशि के तारा समुह में होगी। तब सायन राशि के नाम पुर्णतः  बेमतलब हो जायेंगे।
अतः सायन राशियों के नामों को  निरयन राशियों के ही नाम रख लेने का निर्णय गलत था।
वह केवल  22 मार्च 285 ई. को ही सही था जिस दिन सायन निरयन सौर मेष संक्रान्ति साथ साथ हुई थी। उस समय अयनांश शुन्य था।
अतः सायन राशियों के नामकरण नये सिरे से करना आवश्यक है।
संस्कृत हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगला, तमिल , मलयालम जैसी भारतीय भाषाओं में चाहे तो यजुर्वेदीय मासों के नाम पर मेष का मधु, वृष का माधव आदि नामकरण कर सकते हैं या ऋग्वैदिक मास नाम पवित्र आदि से नामकरण कर सकते हैं।सभी भाषाओं में आज भी राशियों के नाम अलग अलग ही है अतः युनिवर्सल का चक्कर छोड़ कर  भारतीय भाषाओं में तो उक्त नाम कर ही सकते हैं।
साथ ही सायन नक्षत्रों के भी नामकरण करना चाहिए। ताकि संहिता ज्योतिष में उल्लेखित मोसम विज्ञान का सायन पद्यति के नक्षत्रों सें सम्बन्ध जोड़कर सही भविष्य कथन हो सके।
उल्लेखनीय है कि ,  अयन,तोयन, ऋतु / मोसम, दिनमान/ दिन छोटे- बड़े होना, सुर्योदयास्त आदि सायन पद्यति से ही चलती है।जबकि चलते चलते भी रात्रि में चन्द्रमा या किसी भी ग्रह को किसी तारासमुह / नक्षत्र / राशि में देखकर बतला सकते हैं कि, चन्द्रमा या अमुक ग्रह किस निरयन राशि नक्षत्र में चल रहा है।दोनो पद्यतियों का अलग-अलग उपयोग और महत्व है।
सायन नक्षत्रों में सुर्य की स्थिति की ये अवधि या दिनांक  लाखों करोड़ों वर्ष पहले से यथावत रहते हुए आगे भी लाखों करोड़ों वर्ष तक यथावत जारी रहेगी। जबकी नाक्षत्रीय पद्यति के राशि नक्षत्रों में सुर्य का भ्रमण में लगभग हर 71 वर्ष में एक दिन / तारीख पीछे होती जायेगी। जैसे विवेकानन्द जी के जन्म समय निरयन मकर संक्रान्ति 12 जनवरी को पड़ती थी जो आजकल 14/15 जनवरी को आती है।जलियांवाला बाग हत्याकांड  के समय वैशाखी 13 अप्रेल को पड़ती थी जबकि अब 14 अप्रेल को आती है।
तदनुसार निरयन सौर संस्कृत शक संवत के चैत्र वैशाखादि मास और उनपर आधारित वृतोत्सव भी मोसम से असम्बद्ध हो जायेंगे।  22 मार्च  285 ई. से 20/21 मार्च 2019 तक लगभग 1734 वर्षों में अभी तो 24 दिन का अन्तर पड़ा है। लगभग तेरह हजार वर्षों में छः माह का अन्तर हो जायेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी वसन्तारम्भ में और गुड़ी पँड़वा और रामनवमी वर्षान्त में आने लगेगी। आषाढ़ में पड़ने वाला कोकिला वृत ठण्ड में आयेगा। होली बरसात में जलाना पड़ेगी।
अन्ततः वेदों की ओर लोटना ही पड़ेगा। और सायन सौर संवत और मधु- माधव  मास को फिरसे अपनाना पड़ेगा। तब सातवाहनों और कुषाणों द्वारा चीन के
उन्नीस वर्षिय चक्र वाले  निरयन  सौर  संस्कृत केलेण्डर पर आधारित  शक  संवत वाले केलेण्डर पर गर्व करने वालों की स्थिति क्या होगी  विचार करें।
यदि राशियों के समान  नक्षत्रों के नाक्षत्रीय नाम ही सायन पद्यति में अपना कर सायन नक्षत्रों का वर्षा से सम्बन्ध का उदाहरण प्रस्तुत है।

21 मार्च से 03 अप्रेल तक सायन अश्विनी।
03 अप्रेल से 16 अप्रेल तक सायन भरणी
17 अप्रेल से 30 अप्रेल तक सायन कृतिका
01 मई से 14 मई तक सायन रोहिणी
15 मई से 28 मई तक सायन मृगशिर्ष
28 मई से 11 जून तक सायन आर्द्रा
12 जून से 25 जून तक सायन पुनर्वसु
26 जून से 09 जुलाई तक सायन पुष्य
09 जुलाई से 23 जुलाई तक सायन आश्लेषा
23 जुलाई से 05 अगस्त तक सायन मघा
06 अगस्त से 19 अगस्त तक सायन पुर्वा फाल्गुनी
20 अगस्त से 02 सितम्बर तक सायन उत्तराफाल्गुनी
02 सितम्बर से16 सितम्बर तक सायन हस्त
16 सितम्बर से 30 सितम्बर तक सायन चित्रा
01 अक्टोबर से 13 अक्टोबर तक सायन स्वाती।
कृपया मिलान करें और देखें सायन नक्षत्रों की अवधि में मोसम कितना सटीक बैठता है।
01 मई से 14 मई के बीच रोहिणी की गर्मी भी सही बैठती है।     
मालवा में लगभग 06 जून से 15 अक्टोबर तक वर्षा होती है।  28 मई से 12 जूनके बीच आर्द्रा में प्रि मानसुन वर्षारम्भ।  13 से 15 जून के बीच सायन आर्द्रा और पुनर्वसु संधि में मानसून आगमन ।
01 अक्टोबर से 13 अक्टोबर तक मोतियों की वर्षा वाला स्वाती की   नक्षत्र भी सटीक बैठता है।

उत्सवों में भी देखें -
26 जून से 09 जुलाई पुष्य नक्षत्र जिसका स्वामी देवगुरु बृहस्पति है उसमें गुरु पुजा होना कितना सटीक है।
09 जुलाई से 23 जुलाई तक आश्लेषा जिसका स्वामी सर्प है में नाग पुजा कितना सही बैठ रहा है।

शक संवत के चैत्र वैशाखादि माहों की तिथियों में अवधि नही बतलाई जा सकती। क्यों कि सौर गणना और चान्द्र गणना का तालमेल 19 वर्षों में जाकर बैठता है।निरयन राशि/नक्षत्रों के दिनांक भी लगभग 71 वर्षों में एक दिन बाद आरम्भ होंगे।अतः दिनांक भी पुर्ण रुपेण निश्चित नही कहे जा सकते किन्तु लगभग एक शताब्दी तक तो काम आ ही जायेंगे।
पुनः तुलना करें -
निरयन/ नाक्षत्रीय पद्यति से नक्षत्रों की अवधि-
नक्षत्र का नाम दिनांक से दिनांक तक

अश्विनी 14 अप्रेल से 28 अप्रेल तक।
भरणी 28 अप्रेल से 11 मई तक।
कृतिका 12 मई से 25 मई तक।
रोहिणी 25 मई से 08 जून तक।
मृगशिर्ष 08 जून से 22 जून तक।
आर्द्रा 22 जून से 06 जुलाई तक।
पुनर्वसु 06 जुलाई से 20 जुलाई तक।
पुष्य 20 जुलाई से 03 अगस्त तक।
आश्लेषा 03 अगस्त से17 अगस्त तक।
मघा 17 अगस्त से 31अगस्त तक।
पुर्वाफाल्गुनि 31अगस्त से 13 सितम्बर तक।
उत्तराफाल्गुनि  14  सितम्बर से 27 सितम्बर तक।
हस्त  27 सितम्बर से 11 अक्टोबर तक।
चित्रा 11 अक्टोबर से 24  अक्टोबर तक।
स्वाती 24  अक्टोबर से 06 नवम्बर तक।
निरयन नक्षत्रों से ऋतुओं/ मोसम को सम्बद्ध नही किया जा सकता।और वृतोत्सव सभी ऋतुओं /मोसम से जुड़े हुए हैं।यथा बरसात में न होली मना सकते हैं न दीवाली के दिये लगा सकते है।
सावन के झुले ग्रीष्म ऋतु में आनन्द नही देंगे न शिशिर ऋतु/ ठण्ड में।
अतः सायन सौर गणना से वृतोत्सव जोड़ना ही होंगे।
पहले कुछ वर्षों तक वाराणसी के बापुशास्त्री सायन सौर संस्कृत चान्द्र पञ्चाङ्ग का प्रकाशन करते थे। पुर्णिमा, अमावस्या और अष्टका एकाष्टका (साढ़े सप्तमी) वाले वृतोत्सव को ऋतुओं/ मोसम से जोड़ने का वह प्रयोग भी अच्छा था।पर प्रचार के अभाव में और शास्त्रज्ञान के अभाव में रुड़ियों में जकड़ी जनता को समझना भी बहुत कठिन है। अस्तु असफल हो गये।
समय बलवान है।जब समय आयेगा तो जनता को भी समझना ही पड़ेगा।
शेष हरिइच्छा।

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