सोमवार, 1 अप्रैल 2019

नित्य, नैमित्तिक कर्म कार्य कर्म , सकामोपासना नशा और टोने टोटके विष हैं।

हम जो कार्य जीवन भर करें वह अन्तिम अवस्था में छोड़ने की आशा करनाऔर जो जीवन भर नही किया वह कार्य अन्तिम अवस्था में करने की आशा करना बहुत बड़ी भूल है।
ईश्वर भक्ति और शास्त्र जिज्ञासा पर हम बच्चों को कहते हैं अभी पढ़ाई पर ध्यान दो, अंग्रेजी, गणित विज्ञान  ही आगे काम आयेगें। कमाना सीखो, बचाना सीखो, समय पर पैसे ही काम आयेंगे।
लोगों से सम्बन्ध बनाओ, सम्पर्क बढ़ाओ जरुरत पड़ने पर काम आयेंगे।
श्रीमद्भगवद्गीता का नित्य पाठ करने वालों को भी यह विश्वास नही होता कि, भगवान ने स्पष्ट आश्वासन दिया है कि,अव्यभिचारी भक्त जो अनन्य आश्रित होकर निरन्तर परमात्मा का चिन्तन करता हुआ अपने कर्त्तव्य कर्म करता हुआ जीवन व्यतीत करता है उसके प्राप्तव्य की व्यवस्था और प्राप्त की रक्षा (योग क्षेम) मैं स्वयम् वहन करता हूँ।
जब उन्हे ही विश्वास नही , वे भी ईश्वर को रिश्वतखोर, चापलूसी प्रिय ऑफिसर समझते हैं।  सकाम उपासना करते हैं,स्वयम् मान लेते हैं, मान पुरी नही करपाने पर डरते हैं। कहते हैं कर्म तो हमें ही करना पड़ेगा, भगवान मुँह में गुलाब जामुन थोड़े ही  डालेंगे।
उन्हे यह पता नही होता कि, पुर्व जन्मों में किये गये कर्मों के संचित के महासागर का थोड़ा सा भाग जो इस जन्म में भोग हेतु प्रारब्ध के रुप में  उदित हो चुका है। (कम्प्यूटर की भाषा में सिलेक्ट हो चुका है) । उसे तो इस जन्म में भोगना ही है। चाहे आप वशिष्ठ ऋषि से बड़े ब्रह्मज्ञानी हों या विश्वामित्र से बड़े क्रियाशील हों या नारद, प्रहलाद, ध्रुव, हनुमान से बड़े भक्त हों या श्रीकृष्ण और शंकरजी के समान योगेश्वर हों या श्रीराम जैसे वीर शस्त्रधारी हों इस जन्म के लिए उदित होचुके प्रारब्ध भोग तो भोगने ही होंगें।
नित्य कर्म की क्रियाओं, कर्मकाण्ड तो कर्त्तव्य है, कार्य कर्म है।जिनका न करना दोष पुर्ण है। नैमित्तिक कर्म करना भी उचित है। न करने में कोई दोष तो नही पर न करके बाद में पछताने से समय पर कर प्रसन्न रहना उत्तम है।
प्रायश्चित और ग्रहशान्ति प्रयोग, विनायक शान्ति प्रयोग, प्रायश्चित के लिये की जाने वाली क्रियाएँ यानी कर्मकाण्ड सकाम उपासना या टोने- टोटके की श्रेणी में नही आते।
ये प्रभावित व्यक्ति को स्वयम् ही करना होते हैं क्योंकि, ये दवाई है, या फिजियो थेरेपी है।जो स्वयम को ही लेना/ करना पड़ते हैं कोई आचार्य सही विधि से क्रियाएँ करवाने में सहायता कर सकते हैं पर करना स्वयम् ही पड़ती है।
सकामोपासना नशा है। जो केवल हानिकारक, दुःख कारक परिणाम ही देता है। सकाम उपासना करना नशा करने के समान है।जिससे अज्ञान ही उपजता है।
टोने- टोटके जहर खाने के समान है। मृत्यु या गंभीर अक्षमता उपजाते हैं।इनसे दूर ही रहना उचित है।
ऋत का ज्ञान होने से ब्रह्मज्ञानी उसे प्राकृतिक गुणों का आपसी व्यव्हार के रुप में देखते हुए अप्रभावित हुए सानन्द भोगते हैं उन्हे कोई सुख- दुःख, क्लेश नही होता।
बुद्धियोगी/ निष्काम कर्मयोगी उसे स्वाभाविक मान कर बगैर सुखी- दुःखी हुए क्लेश रहित, सानन्द भोग लेते हैं।
भक्त ईश्वरीय प्रसाद मानकर कृपानुभूति मानकर सानन्द गृहण करता है।सुखी-दुःखी हुए बगैर अपने इष्ट के ध्यान में - भक्ति में मस्त रहते अन्जान सा रहकर भोग लेते हैं।
पर सकामोपासक हिरण्यकशिपु, और रावण के समान संकट आने पर टोने-टोटके, सकाम क्रिया- कर्मकाण्ड, रिश्वत- चापलूसी, धोंस-दपट,ब्लेकमेलिंग का सहारा लेकर अनततः असफल ही होते हैं।
पर उन्हे सदाचारी - ज्ञानी, बुद्धियोगी, निष्काम कर्मयोगी, भक्त सब कष्टित दिखते हैं और स्वयम् को सफल कहते हुए भी सदैव परेशान, डरे हुए ही रहते हैं। और असफल षड़यन्त्र करते हुए जीवन भर दुःखी ही रहते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें