विष्णु पुराण ही क्यों?
क्यों कि, वेदिक प्रवृत्ति मार्गी वैष्णव जन इसे वेदव्यास जी के पिता महर्षि पाराशर की रचना मानते हुए प्रथम पुराण मानते हैं।
वेदिक सृष्टि उत्पत्ति सिद्धान्त से आगे का वर्णन वेदव्यास जी के पिता महर्षि पाराशर की रचना और प्रथम पुराण विष्णु पुराण से मानव सृष्टि/ मानव वंश का वर्णन --
( प्रजापति ब्रह्माजी की मानस सन्तान ) स्वायम्भुव मनु को उनकी पत्नी ( प्रजापति ब्रह्माजी की मानस सन्तान )शतरुपा से उत्तानपाद और प्रियव्रत दो पुत्र और प्रसूति और आकूति नामक दो कन्याएँ उत्पन्न हुई ।
उत्तानपाद की पत्नी सुनीति से ध्रुव, और सुरुचि से उत्तम का जन्म हुआ।
ध्रुव के दो पुत्र शिष्टि और भव्य हुए।
भव्य से शम्भु हुए ।
शिष्टि की पत्नी सुच्छाया से रिपु, रिपुञ्जय,विप्र, वृकल और वृकतेजा हुए।
रिपु की पत्नी वृहती से चाक्षुष हुए।
वरुण कुल में वीरण प्रजापति की पुत्री पुष्करणी से चाक्षुष के घर छटे मन्वन्तर के मनु चाक्षुष मनु का जन्म हुआ।
चाक्षुष मनु को वैराज प्रजापति की पुत्री नड़वला से कुरु, पुरु, शतधुम्न, तपस्वी,सत्यवान, शुचि, अग्निष्टोम, अतिरात्र, सुधुम्न, और अभिमन्यु नामक पुत्र हुए।
कुरु की पत्नी आग्नैयी से अङ्ग, सुमना, ख्याति, अङ्गिरा, और शिबि नामक पुत्र हुए।
अङ्ग की पत्नी (मृत्यु की प्रथम पुत्री )सुनीथा से वैन का जन्म हुआ।
वेन की उरु (यानि जांघ) के मन्थन से ( विन्ध्याचल के आदिवासी) निषाद राज जन्मे । और वैन की दाहिनी भुजा के मन्थन से वैन्य पृथु उत्पन्न हुए।
पृथु से अन्तर्धान और वादी जन्मे। अन्तर्धान की पत्नी शिखण्डनी से हविर्धान का जन्म हुआ।
हविर्धान की पत्नी (अग्नि कुल की ) घीषणी से प्राचीनबर्हि, शुक्र,गय,कृष्ण, बृज और अजिन नामक पुत्र जन्मे।
प्रजापति प्राचीनबर्हि की पत्नी (समुद्र पुत्री) सुवर्णा से दस प्रचेताओं का जन्म हुआ ।
प्रचेता गण के यहाँ (गोमती तट वासी कण्डु ऋषि और प्रम्लोचा अप्सरा की सन्तान वृक्षों द्वारा पालित पुत्री) मारिषा से दक्ष द्वितीय का जन्म हुआ।
( वरुण वंशजा,चाक्षुष मनु के श्वसुर वीरण प्रजापति की पुत्री ) असिन्की से दक्ष (द्वितीय) प्रजापति के घर साठ कन्याएँ जन्मी जिनमे सती (शंकर जी पहली पत्नी ) हुई
उल्लेखनीय है कि, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र दक्ष प्रथम की पत्नी प्रसुति ( जो स्वायम्भुव मनु की पुत्री थी उस प्रसूति ) से चौवीस कन्याएँ जन्मी थी।
इस प्रकार दोनो दक्ष में पिढियों का अन्तर है।
स्वायम्भुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत की पत्नी ( जो कर्दम पुत्री थी ) उससे सम्राट और कुक्षि (दो) पुत्रियाँ और (दस पुत्र) आग्नीध्र, अग्निबाहु, वपुष्मान, द्युतिमान, मेघा, मेघातिथि,भव्य,सवन,पुत्र , ज्योतिष्मान।मेघा, अग्निबाहु और पुत्र निवृत्तिपरायण हो गये।
आग्नीन्ध्र को जम्मुद्वीप, मेघातिथि को प्लक्षद्वीप, वपुष्मान को शाल्मलद्वीप, ज्योतिष्मान को कुशद्वीप, भव्य को शाकद्वीप, सवन को पुष्करद्वीप,।
आग्नीन्ध्र ने नाभि ( जिन्हे अजनाभ भी कहते है उन नाभि को कोहिमवर्ष या (अजनाभ वर्ष ) यानि भारतवर्ष का राज्य दिया।
किम्पुरुष को हेमकुटवर्ष।
हरिवर्ष को नैषधवर्ष ।
इलावृत को लावृतवर्ष दिया (जिसके मध्य मे मेरुपर्वत है।)
रम्य को नीलाचल से लगाहुआ वर्ष।
हिरण्यवान को श्वेतवर्ष (रम्य के देश से उत्तर में)।
कुरु को श्रृंगवान पर्वत के उत्तर का देश ।
भद्राश्व को मेरु के पुर्व का देश।
केतुमाल को गन्धमादन पर्वत का देश का राज्य दिया।
सप्त द्वीपों का बटवारा सात पुत्रों में कर आग्नीन्ध्र शालग्राम में तप करने गये।उनके पुत्र नाभि हिमवर्ष (भारतवर्ष) के राजा हुए।
नाभि की पत्नी मेरुदेवी से ऋषभदेव का जन्म हुआ।ये वेदिक ऋषि भी हैं। (ऋग्वेद में) इनका सुक्त भी है जो अहिंसा सुक्त कहलाता है।
त्रषभदेव से भरत हुए जोभरत/चक्रवर्ती सम्राट कहलाये और बाद में जड़भरत के नाम से भी प्रसिद्ध हुए। हिम वर्ष का नाम भारतवर्ष इनके नाम पर ही पड़ा।
भरत को उत्तराधिकार सोप ऋषभदेव पुलहाश्रम में वानप्रस्थ तप करने चले गये।जहाँ सन्यास लेकर दिगम्बर ( निर्वस्त्र/ पुर्ण नग्न हो कर घुमने लगे।
इस कारण कालान्तर में जैन सम्प्रदाय ने ऋषभदेव को अपना आद्य तिर्थंकर घोषित कर दिया।
उत्तानपाद शाखा वाले वेदिक संहिताओं और ईशावास्योपनिषद पर आधारित ब्राह्मण धर्म , यज्ञ, पञ्चमहायज्ञादि , बुद्धियोग ( निष्काम कर्मयोग) और अष्टांग योग ,और ऋते ज्ञानान मुक्ति और सर्व खल्विदं ब्रह्म और पर आधारित ब्राह्मण धर्म पालन करते धे।
ये तीन आश्रम ब्रह्मश्चर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ के सफलतापूर्वक निर्वहन के पश्चात संन्यस्थ जीवन जीते थे। पर यज्ञ और वस्त्र का त्याग नही करते थे।
श्रोत्रिय धर्म पालक ब्रह्मर्षि कालान्तर में ये प्रवृत्ति मार्ग कहलाया और ये वैष्णव कहलाये।
जबकि प्रियव्रत शाखा ब्राह्मण ग्रन्थों पर आधारित राजधर्म / क्षात्र धर्म ,अष्टांग योग, हटयोग, उग्र तप, और ब्राह्मण ग्रन्थों के अन्तिम अध्याय आरण्यकों और उपनिषदों पर आधारित ज्ञान मिमान्सा पर आधारित धर्म आचरण कर आयु के अन्तिम पड़ाव पर सन्यास ग्रहण कर नगर के बाहर उन्मुक्त विचरण करते थे।कालान्तर में ये राजर्षी गण निवृत्ति मार्ग , योगी,यति, तपस्वी,सन्यासी और कहलाये और शैव कहलाये।
प्रजापति ब्रह्मा जी की मानस सन्तान
1 दक्ष ( प्रथम) और उनकी पत्नी प्रसुति ।( जो स्वायम्भुव मनु की पुत्री भी कही गई है)
2 रुचि प्रजापति और उनकी पत्नी आकूति। ( जो स्वायम्भुव मनु की पुत्री भी कही गई है)
3 स्वायम्भुव मनु । और उनकी पत्नी
4 शतरुपा।
दक्ष प्रजापति ( प्रथम) की पत्नी (स्वायंभुव मनु की पुत्री) प्रसूति से चौवीस कन्याएँ हुई।
1 श्रद्धा 2 चला/चंचला (लक्ष्मी) 3धृति 4तुष्टि 5 मेधा 6 पुष्टि 7 क्रिया 8 बुद्धि 9 लज्जा 10 वपु 11 शान्ति 12 सिद्धि 13 कीर्ति इन तेरहों दक्ष कन्याओं का विवाह ब्रह्माजी के मानस पुत्र धर्म से हुआ।
धर्म की पत्नियों (दक्ष पुत्रियों) की सन्तान-
1 श्रद्धा से काम।काम की पत्नी रति से हर्ष हुआ ।
2 चला ( लक्ष्मी) से दर्प।
3 धृति से नियम।
4 तुष्टि से सन्तोष।
5 पुष्टि से लोभ।
6 मेधा से श्रुत।
7 क्रिया से दण्ड, नय और विनय।
8 बुद्धि से बोध।
9 लज्जा से विनय।
10 वपु से व्यवसाय।
11 शान्ति से क्षेम।
12 सिद्धि से सुख।
13 कीर्ति से यश हुआ।
[ नोट- प्रसंगवश अधर्म कज वंश का वर्णन -
अधर्म की पत्नी हिन्सा है।
अधर्म - हिन्सा से -अनृत (मिथ्या/ झूठ) नामक पुत्र और निकृति नामक पुत्री हुई।
अनृत की जुड़वाँ सन्तान - भय और उसकी पत्नी माया हुए मामा की सन्तान मृत्यु नामक पुत्र हुआ।
मृत्यु पत्नी व्याधि, जरा,शोक, तृष्णा। सभी का न विवाह हुआ न सन्तान हुई।
अधर्म - हिन्सा से दुसरी ( युग्म/जुड़वाँ) सन्तान नरक और उसकी पत्नी वेदना हुए। रोरव नरक की पत्नी वेदना की सन्तान दुख हुआ।]
14 ख्याति (का विवाह भ्रगु से हुआ जो प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान थे)।
भ्रगु -ख्याति से लक्ष्मी जन्मी जिनका विवाह विष्णुजी से हुआ। भ्रगु -ख्याति से दो पुत्र भी हुए धाता (धातृ) और विधाता।
धाता का विवाह (मेरु की पुत्री) आयति से हुआ।
विधाता का विवाह (मेरु की ही दुसरी पुत्री) नियति से हुआ।
धाता-आयति से प्राण उत्पन्न हुए।
प्राण से द्युतिमान हुए।द्युतिमान से राजवान हुए।
विधाता- नियति से मृकण्डु हुए।मृकण्डु से मार्कण्डेय।मार्कण्डेय से वेदशिरा हुए।
15 सती का विवाह रुद्र से हुआ जो प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान थे।
रुद्र जन्मते ही रोने लगे और इधर उधर दोड़ने लगे।ब्रह्माजी ने उनके रोने का कारण पुछा तो रुद्र ने कहा मेरा नाम रख दो ।रोने के कारण ब्रह्माजी ने उनका नाम रुद्र रखा।
रुद्र बाद में फिरसे सात बार और रोये तो हर बार रोने पर ब्रह्माजी ने उनके सात नाम और रखे। 1 रुद्र के अलावा 2 भव 3 शर्व 4 ईशान ,5 पशुपति, 6 भीम, 7 उग्र और 8 महादेव नाम से पुकारा।और उनके स्थान नियत किये जो रुद्र की अष्टमूर्ति कहलाई ।
1रुद्र का स्थान / मुर्ति सुर्य और उनकी पत्नी सुवर्चला उषा ।जिनके पुत्र शनि हुए।
2 भव का स्थान / मुर्ति जल और उनकी पत्नी विकेशी ।और उनके पुत्र शुक्र हुए।
3 शर्व का स्थान / मुर्ति पृथिवी और उनकी पत्नी अपरा ।और उनके पुत्र लोहिताङ्ग (मंगल) हुए।
4 ईशान का स्थान / मुर्ति वायु और उनकी पत्नी शिवा ।और उनके पुत्र मनोजव ( सम्भवतया हनुमानजी) हुए।
5 पशुपति का स्थान / मुर्ति अग्नि और उनकी पत्नी स्वाहा। और उनके पुत्र स्कन्द ( कार्तिकेय) हुए।
6 भीम का स्थान / मुर्ति आकाश और उनकी पत्नी दिशा। और उनके पुत्र सर्ग (स्रष्टि ) हुए।
7 उग्र का स्थान / मुर्ति यज्ञ में दीक्षित ब्राह्मण और उनकी पत्नी दीक्षा ।और उनके पुत्र सन्तान हुए।
8 महादेव का स्थान / मुर्ति चन्द्रमा और उनकी पत्नी रोहिणी और उनके पुत्र बुध हुए।
ये रुद्र सर्ग कहलाता है।
16 सम्भूति का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान मरीचि से हुआ ।
मरीचि- सम्भूति से पुर्णमास नामक पुत्र हुए।पुर्णमास से विरजा और पर्वत दो पुत्र हुए।
17 स्मृति का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान अंगिरा से हुआ ।
अंगिरा-स्मृति से सिनीवाली, कुहू, राका और अनुमति नामक पुत्रियाँ हुई, जो अमावस्या के चार प्रकार हैं।
18 प्रीति का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान पुलस्य से हुआ ।
पुलस्य- प्रीति से दत्तोलि हुए जो पुर्व जन्म में ( स्वायम्भुव मन्वन्तर में) अगस्त्य कहे जाते थे।
19 क्षमा का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान पुलह से हुआ ।
पुलह- क्षमा से कर्दम, उर्वरीयान् और सहिष्णु नामक तीन पुत्र हुए।
20 सन्तति का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान कृतु से हुआ ।
कृतु - सन्तति से बालखिल्यादि साठ हजार ऊर्ध्वरेता मुनि हुए जो अङ्गुष्ठ प्रमाण वाले (अंगुठे के पोरुओं के समान शरीर वाले) थे।
21 अनसूया का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान अत्रि से हुआ ।
अत्रि - अनसूया से सोम (चन्द्रमा), दुर्वासा और योगी दत्तात्रेय हुए।
22 उर्ज्जा का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान वशिष्ठ से हुआ ।
वशिष्ठ - उर्जा से रज, गौत्र, उर्ध्वबाहु, सवन, अनध, सुतपा और शुक्र नामक सात पुत्र हुए। ये तीसरे मन्वन्तर में सप्तर्षि हुए।
23 स्वाहा का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान अग्नि से हुआ ।
अग्नि - स्वाहा से पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए।
इन तीनो के पन्द्रह-पन्द्रह पुत्र हुए।
अग्नि + तीन पुत्र + पैतालीस पौत्र सब मिलकर उनचास अग्नि कहलाते हैं
24 स्वधा का विवाह प्रजापति ब्रह्मा की मानस सन्तान अनग्निक, अग्निष्वात्ता, साग्निक और बर्हिषद नामक पितरों से हुआ ।
अनग्निक, अग्निष्वात्ता, साग्निक और बर्हिषद नामक पितरो की पत्नी स्वधा से मेना और धारणी दो कन्याएँ हुई। दोनो योगिनी और ब्रह्मवादिनी हुई।
(हिमाचल से मेना की पुत्री पार्वती हुई।)
रुचि प्रजापति और आकूति से यज्ञ नामक पुत्र और दक्षिणा नामक पुत्री ये दो युगल ( जुड़वाँ) सन्तान हुई।
यज्ञ और दक्षिणा पति -पत्नी हो गये।
यज्ञ की पत्नी दक्षिणा से बारह पुत्र हुए। जो स्वायंभुव मन्वन्तर में याम नामक देवता कहलाये।
नोट -महावीर स्वामी ने सनातन वैदिक परम्परा के ऋषि और जीवन के अन्तिम चरण सन्यास आश्रम में मुनी हुए ऋषभदेव जी को प्रथम तीर्थंकर घोषित कर महावीर स्वामी को चौवीसवाँ तिर्थंकर घोषित कर इस महायुग की तिर्थङ्कर परम्परा समाप्त घोषित कर यह घोषित कर दिया कि,अगले महायुग में रावण अगला तीर्थंकर होगा और तिर्थङ्कर परम्परा पुनः आरम्भ होगी।
यह लगभग वैसा ही है जैसे ही दशम गुरु गोविन्द राय जी तक सनातन धर्म भी अपने ही सन्त और गुरु मानता रहा।
किन्तु गुरु गोविन्द राय ने गुरु गोविन्द सिंह जी कहला कर खालसा पन्थ की स्थापना करने पर उनने गुरु नानकदेव जी को प्रथम गुरु और स्वयम् को अन्तिम गुरु और उनके बाद गुरु ग्रन्थ साहब को आगे सदा के लिये गुरु पद घोषित कर दिया। और खालसा पन्थ स्थापित किया।
इब्राहीमी सम्प्रदाय में भी यहुदियों ने मुसा को ईसाइयों ने ईसा को और इस्लाम ने मोहमद साहब को अन्तिम नबी घोषित कर सिलसिला ए नबुव्वत खत्म होने की घोषणा के साथ ही कयामत के समय कोई मसीहा उतरेगा।जो यहुदियों के अनुसार अभीतक नही हुआ है।ईसाइयों के अनुसार इसा मसीह पुनः.उतरेंगे।
इस्लाम के अनुसार भी ईसा फिरसे उतरेंगे।और मेंहदीआलेसलाम कयामत के समय अन्तिम नबी होंगें।
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