जबतक प्रत्येक सनातनी को सैन्य प्रशिक्षण नहीं दिया जाएगा, जब तक सनातनी पराङ्ग्मुखापेक्षी रहेगा तब तक हमारी दब्बू प्रवृत्ति बनी रहेगी।
पहले भी यही हुआ। क्षत्रिय आपस में लड़ते रहे, जन साधारण जमींदारों , ठाकुरों की लठेत सेना के भरोसे छोड़ दी गई।
हम न ईरानी आक्रमण सह पाते, न तजाकिस्तान-तुर्कमेनिस्तान के शक- कुषाण, हूण आक्रमण रोक पाया,न युनानी आक्रमण रोक पाये, तो इराक, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान-तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान के मुस्लिम आक्रांताओं को रोक पाये और न पूर्तगाल, नीदरलैंड्स के डच, फ्रांस और ब्रिटिश आक्रमण रोक पाये।
हमेशा लुटते-पिटते मन्दिरों में घण्टी बजाते पुजारी- पुरोहित, खेतों में हल जोतते किसान, व्यापारी, कारीगर सब देखते रहे या आक्रमणकारियों की सेना में भर्ती हो गए लेकिन अपने घर- परिवार, कुटुम्ब, ग्राम, राज्य, देश और धर्म की रक्षा की चिन्ता नहीं की। उसका उत्तरदायित्व क्षत्रियों पर छोड़ दिया।
सारे क्षत्रिय मर खप गये या युद्ध करना छोड़ खेती-बाड़ी करने लग गए तो कुषाण, शक, हूण, खस, ठस, बर्रबरों की शुद्धि कर उन्हें अग्नि वंशीय राजपूत बना दिया। और बाद में शकों को सूर्यवंशी, हूण- गुर्जरों को चन्द्र वंशीय घोषित कर दिया। और देश- धर्म की रक्षा का भार उनको सोप कर फिर से निश्चिन्त हो गये।
पुराने अनुभव से सीखें बिना लूटते-पिटते रहे, इस्लाम स्वीकार करते रहे। ईसाई बनते रहे। देशद्रोह करते रहे। और अपने घर परिवार में खुश रहे। मन्दिरों में नाच- गान करते रहे।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ललकारा, बाइबल, इसाई मजहब , कुरान, इस्लाम मज़हब और सनातध धर्म के मत पन्थ सम्प्रदाय का खणृडध कर इधर मत, पनृथ सम्प्रदायों को भूलकर भूलकर वेदों की ओर लौटने का कहा, जाति व्यवस्था छोड़कर गुण-कर्मानुसार वर्ण व्यवस्था की ओर लौटने का आह्वान किया तथा मूर्ति पूजा छोड़ वैदिक पञ्च महायज्ञ की ओर लौटने का कहा, मुस्लिम और ईसाई बने सनातनियों की शुद्धि कर वापस सनातनी बनाने लगे तो उन्हें नास्तिक, अंग्रैजों और ईसाइयों का एजेंट कहने लगे।