सोमवार, 11 नवंबर 2024

देव शयन और देव प्रबोधन

वर्षा ऋतु में जठराग्नि मन्द हो जाती है, व्यक्ति अधिक समय घर में गुजारता है, डिप्रेस्ड रहता है इसलिए बहुत से उत्सव - त्योहार बनाए गए। तला हुआ गरिष्ठ खाद्य ग्रहण करता है; इसलिए भोजन पूर्णतः नहीं पचता और पौषण नहीं मिलता। आलस्य वर्धन होता है। मन - इन्द्रियों का मन्द होना ही देव शयन है। 

हेमन्त ऋतु में जल जमाव समाप्त होने, कीचड़ सूखने, स्वच्छता बढ़ने से बेक्टिरिया वायरस कम होने और शीत बढ़ने से स्वास्थ्य सुधार होने लगता है। इससे सुशुप्तावस्था मे गये मन - इन्द्रियों का सक्रिय होना ही देव प्रबोधन है।
वेदों, ब्राह्मण ग्रन्थों - उपनिषदों में अन्तरात्मा, जीवात्मा, प्राण,  मन- इन्द्रियों, जठराग्नि आदि अध्यात्मिक (देह के अन्दर सक्रीय) संस्थानों को भी देव कहा गया है। तथा विष्णु, प्रभविष्णु (श्रीहरि), नारायण, हिरण्यगर्भ आदि को भी देव कहा गया है। तथा प्रजापति, इन्द्र, द्वादश आदित्य, अष्ट वसु तथा एकादश रुद्र को देवता कहा गया है। उक्त देवों में हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के दिन अर्थ कल्प के अन्त में रात्रि होने पर जब हिरण्यगर्भ ब्रह्मा सो जाते हैं, तब प्रजापति अपने कारण हिरण्यगर्भ ब्रह्मा में लय हो जाते हैं और नैमित्तिक प्रलय हो जाने से ब्रह्माण्ड नष्ट हो जाता है।
अर्थात विष्णु, प्रभविष्णु श्री हरि (सवितृ), नारायण तो दूर हिरण्यगर्भ ब्रह्मा भी नहीं सोते हैं। तो उठने का प्रश्न ही नहीं।

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