शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

गुरु बृहस्पति के २५,००० पौराणिक मन्त्र जप विधि।

*बृहस्पति की दान सामग्री एवम् जप विधि* ----

*नोट -- पहले बृहस्पति का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --
 
अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धि भूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

*देवानाम् च ऋषिणाम् च गुरुम्काञ्चनसन्निभम्।*
*बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् तम्नमामि बृहस्पतिम्।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ बुधवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो पीला पुष्प गुरुवार को सुबह भी ले सकते हैं।

 गुरुवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि गुरुवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं बृहस्पति ( गुरु) को बल प्रदान करने के निमित्त बृहस्पति ( गुरु) की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

बृहस्पति (गुरु) की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- पुष्पराग / पुखराज ( Topaz .)

ब्राजील की खान का जो माणिक्य के साथ मिला हो ऐसा का पीला पुखराज 7 या 12 केरेट का लें। किन्तु 6 या 11 या 15 केरेट ना लें।
(सामर्थ्य न हो तो सुनेला या पीला सोनेला ( साइट्रोन ) ले लें।

या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही लेलें।)

3 -- गज (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी/ उभरी हुई हाथी या बृहस्पति की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य पात्र यानि काँसे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- पीत वस्त्र / पीला कपड़ा

(यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का पीले रङ्ग का कपड़ा (भगवान विष्णु के पीताम्बर के रंग का कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- देशी चने की दाल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव , देशी / काँटेवाले/ कत्थई रंग के चने की दाल ले लें।)

7 -- शकरा यानि खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर ही लें।)

8 -- पीत पुष्प / पीला रङ्ग का फुल ले लें।

(पीला गुलाब या वैजन्ती या कदली पुष्प या पीली कनेर (करवीर) का फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- ब्रह्मणस्पत्ति सुक्त या बृहस्पति सुक्त या ब्रह्म पुराण या ब्रह्म वैवर्त पुराण आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ । 
(नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ 
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।नारङ्गी का फल सन्तरा / सन्तरे और कीनु के फल से भिन्न फल है । यह उपर और नीचे चपटी होती है।)

11 -- पीपल का पौधा का पौधा लें।
 (नोट -- नगर/ ग्राम / घर के उत्तर में लगाना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र -- 

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें। एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन गुरुवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर बृहस्पति का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 25,000 (पच्चीस हजार) यानि 250 माला पुर्ण होने के बाद अगले गुरुवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

25,000 (पच्चीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 250 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी गुरुवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- पुष्पराग / पुखराज ( Topaz .)

ब्राजील की खान का जो माणिक्य के साथ मिला हो ऐसा का पीला पुखराज 7 या 12 केरेट का लें। किन्तु 6 या 11 या 15 केरेट ना लें।
(सामर्थ्य न हो तो सुनेला या पीला सोनेला ( साइट्रोन ) ले लें।
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही लेलें।)

3 -- गज (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी हाथी या बृहस्पति की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य पात्र यानि काँसे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- पीत वस्त्र / पीला कपड़ा

(यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का पीले रङ्ग का कपड़ा (भगवान विष्णु के पीताम्बर के रंग का कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- देशी चने की दाल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव , देशी / काँटेवाले/ कत्थई रंग के चने की दाल ले लें।)

7 -- शकरा यानि खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर ही लें।)

8 -- पीत पुष्प / पीला रङ्ग का फुल ले लें।

(पीला गुलाब या वैजन्ती का पुष्प या कदली पुष्प या पीली कनेर (करवीर) का फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- ब्रह्मणस्पत्ति सुक्त,या बृहस्पति सुक्त या ब्रह्म पुराण या ब्रह्म वैवर्त पुराण आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ । 
(नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ 
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें। 
नारङ्गी का फल सन्तरा / सन्तरे और कीनु से भिन्न फल है । यह उपर और नीचे चपटी होती है।)

11 -- पीपल का पौधा का पौधा लें।
 (नोट -- नगर/ ग्राम / घर के उत्तर में लगाना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बृहस्पति (गुरु) के पौराणिक मन्त्र -- 

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

 बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा, , बृहस्पत्ति,ध्रुव तारा, विद्युत- पर्जन्य, आकाश,वायु,अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

 *सहायक कर्म* 

देवगुरु ब्रहस्पति के अधिदेवता - हिरण्यगर्भ ब्रह्मा हैं। और प्रजापति ब्रह्मा, देवगुरु ब्रहस्पति देवता, ब्रह्मणस्पति और वाचस्पति की आराधना उपासना से भी ब्रहस्पति प्रसन्न रहते हैं।
ब्रहस्पति के प्रत्यधिदेवता देवराज इन्द्र हैं। लक्ष्मीनारायण के साथ इन्द्र की पूजन से भी देवगुरु ब्रहस्पति प्रसन्न होते हैं।

केले के पौधे की पूजा करके ताम्बे के कलश में पानी में दो चम्मच कच्चा दूध, दो बून्द शहद डाल कर उस जल से सिंचते हुए केले के पौधे की सात प्रदक्षिणा रोज करें। देशी गाय का घीँ लगी रोटी में देशी चनें की दाल रखकर खिलाना।
देशी चना यानी कत्थई रङ्ग का नोंकवाला चना जिसे काला चना भी बोलते हैं। या काँटे वाला चना भी बोलते हैं।

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