*नोट -- पहले राहु और केतु का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --
अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।
अर्धकायम् महा वीर्यम्
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम्
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
पलाश पुष्प सङ्काश्
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
राहु का पौराणिक मन्त्र --
*अर्धकायम् महावीर्यम् चन्द्रादित्यविमर्दनम्।*
*सिंहिकागर्भ सम्भूतम्*
*तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।*
*पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।*
*रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्*
*तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।*
*केतु की दान सामग्री दान विधि* ----
फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें।
शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि, -- है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं राहु की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें।
क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर फिर
राहु के पौराणिक मन्त्र --
अर्धकायम् महा वीर्यम् चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।
आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।
राहु केतु की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--
1-- स्वर्ण का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
चान्दी का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार चान्दी का काँटा, कंगन से हार तक कुछ भी चलेगा।)
2 -- गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) सिंहल द्वीप/ श्रीलंका की खान का 6 या 11 या 13 कैरेट का गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) लें।
किन्तु 3 या 6 केरेट का न लें।
लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) म्यांमार की गोमोक खान का 3,या 5 या 6 या 7 कैरेट का लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) लें।
किन्तु 2 या 4 या 12 या 13 रत्ती का न लें।
(या गोदन्ती मणि लें।)
(या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- अरबी कृष्णाश्व / अरबी काला घोड़ा लें।
यदि सामर्थ्य न हो तो --
सीसा/ कथीर के पत्रे या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी गई कृष्ण अश्व या काले घोड़े या राहु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।
कोई भी अनाज या अन्न/ धान्य/ सस्य ले लें।
या केतु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।
4 -- सीसा / कथीर Lead की छड़ या प्लेट जो मिले ले लें ।
सामर्थ्य अनुसार छड़ या प्लेट कुछ भी लेलें (चलेगा)। बेटरी सेल का खोल सीसे का होता है। यह निकल और टीन से मिलता जुलता किन्तु अलग धातु है। बोहरोंक्षके पास मिल सकता है।पहले छत की चद्दर / पतरे पर वायसर लगाने के काम आता था।
कटोरी में रख कर गरम करने पर पिघल जाता है।और कागज के पेन्सिल नुमा साँचे में डालो तो ठण्डा होते ही जम जाता है।कागज पर पेन्सिल मार्क जैसा इससे लिख भी सकते हैं।
ताम्र / ताम्बा Copper का बर्तन लें ।
सामर्थ्य अनुसार ताम्र / ताम्बा Copper की, आचमनी,या तरभाणा,या कलश या जग, घड़ा यथा सामर्थ्य जो लेसकें ले लें ।
5 -- नीला Indigo या आसमानी Blue वस्त्र।
(सुती या शुद्ध रेशमी नीले रंग Indigo का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।
कृष्ण वस्त्र / काला कपड़ा ।
(सुती या शुद्ध रेशमी कृष्ण वस्त्र / काला रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।
6 -- काले तिल (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)
7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)
8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।
काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- नाग मन्त्र, निऋति सुक्त, रक्षोहा सुक्त, यातुधान सुक्त, महाभारत आस्तिक पर्व या भैरवाष्टक, भैरव आरती की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
गणेश पुराण या कल्याण का गणेश अङ्क या अष्टविनायक तिर्थ का विवरण, कथा, आरती आदि की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
10 -- मलय चन्दन की जड़ ।
(मलय चन्दन की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ ।
(अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- दुर्वा / दुब का पौधा लें।
(दुर्वा एक घाँस जो गणेशजी को प्रिय है। नगर/ ग्राम या घर के नैऋत्य कोण यानि दक्षिण पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)
कुश / कुशा का पौधा लें।
(कुश एक घाँस जो पवित्री के रुप में और श्राद्ध में पिण्डदान के पिण्ड का आसन के रुप में काम आती है। नगर/ ग्राम या घर के वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात राहु और केतु का पौराणिक मन्त्र --
अर्धकायम् महा वीर्यम् चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।
अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि और नाग देवता को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।
*राहु -केतु शान्ति के लिए सहयोगी उपाय*
राहु के अधिदेवता काल और प्रत्यधिदेवता सर्प है। राहु को भी सर्प ही माना गया है। राहु प्रहलाद की बहन सिंहिका (होलिका) का असुर पुत्र है। इसलिए राहु - केतु स्वयम् अपूजनीय/ अपूज्य है।
अतः केवल काल और सर्प की ही पूजा की जाती है।
यहाँ काल का स्वरूप रुद्र भैरवनाथ का है। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 श्लोक 03 से 32 तक मे उल्लेखित(महा) काल से यह काल भिन्न हैं।
उज्जैन स्थित महाकाल की पूजन करना उचित है। नागचन्द्रेश्वर मन्दिर भी महाकाल मन्दिर के उपर ही है।
इनकी पूजा ही राहु की शान्ति में उपयोगी है।
नासिक के त्र्यम्बकेश्वर का राहु से कोई सम्बन्ध नही है।
केतु के अधिदेवता चित्रगुप्त जी हैं। जो यमराज के महालेखापाल हैं। कागज कलम, काली स्याही की दवात इनके उपकरण हैं। यम दिवाली के तीसरे दिन द्वितिया / भाईदूज को चित्रगुप्त पूजा भी होती है। कुछलोग इसीदिन (भाईदूज को ही) विश्वकर्मा पूजा भी करते हैं।
तथा केतु के प्रत्यधिदेवता हिरण्यगर्भ ब्रह्मा यानी (विश्वकर्मा) हैं। विश्वकर्मा के पुत्र त्वष्टा हैं जिनकी शक्ति (पत्नी) रचना है। जिनने ब्रह्माण्ड के पिण्डों (गोलों) को सुतार की भाँति गढ़ा। त्वष्टा की रचना ये अनन्त ब्रह्माण्ड ही हैं।
राहु का धड़ या सर्प की पुच्छ केतु असुर है अतः राहु के समान ही केतु की भी पूजा नही होती। राहु केतु दोनों ही अपूज्य हैं।
अतः केतु की शान्ति के लिए चित्रगुप्त और विश्वकर्मा की पूजा का विधान है।
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