निरयन मेषादि बिन्दू को 00°00'00" माना जाता है, यही बिन्दू 360° भी है।अर्थात निरयन मेषादि बिन्दु आकाश में नक्षत्र मण्डल का आरम्भ और अन्त है। तथा चित्रा तारा मध्य बिन्दु है। तदनुसार सिंह राशि के आरम्भ बिन्दु ,00°00'00" को 120° तथा धनु राशि के आरम्भ बिन्दु ,00°00'00" को 240° कहते हैं।
00° यानि 360°, 120° और 240 ° और फिर 360° मिलकर एक त्रिभुज यानि त्रिकोण बनाते हैं।
फलित ज्योतिष में ये अतिशुभ दृष्टियोग माना जाता है।भाव स्पष्ट में इन बिन्दुओं पर यानि त्रिकोण में स्थित ग्रह अति शुभ माने जाते हैं। किन्तु जन्म समय में भचक्र / नक्षत्रमण्डल / राशि चक्र में इन बिन्दुओं पर स्थित चन्द्रमा को को अत्यन्त अशुभ घोषित किया गया। मूलतः जब चन्द्रमा इन बिन्दुओं पर हो तो इस समय जन्मा बालक का जीवन क्रान्तिकारी या संघर्षमय माना जाता है।
निरयन मतानुसार मीन राशि का अन्तिम नक्षत्र रेवती और मेष राशि का आरम्भिक नक्षत्र अश्विनी तथा कर्क राशि का अन्तिम नक्षत्र आश्लेषा और सिंह राशि का प्रथम नक्षत्र मघा एवम् वृश्चिक राशि का अन्तिम नक्षत्र ज्यैष्ठा और धनु राशि का प्रथम नक्षत्र मूल ये दोनो संधि नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र कहलाते हैं।
इनमें भी रेवती का अन्तिम चरण और अश्विनी का प्रथम चरण तथा आश्लेषा के अन्तिम तीन चरण तथा मघा का प्रथम दो चरण एवम् ज्यैष्ठा पुरा (चारों चरण) तथा मूल के प्रथम तीन चरण हानिकारक माने गये हैं। शेष हानिकारक नही है। यहाँ तक की मूल अन्तिम चरण (यानि चौथा चरण) भी शान्ति से शुभ होना माना गया है।
धर्मशास्त्र और संहिता ज्योतिष के नियम बतलाये हैं। शास्त्र भेद से फलों में किञ्चित भिन्नता बतलाई जाती है तथा अनुभव से भी फलों की पुष्टि नही देखी जाती। इसलिये फल नही बतलाये हैं।
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