होरा शास्त्र के जातक स्कन्द के फलित ज्योतिष का सबसे महत्वपूर्ण भाग द्वादश भावों का कारकत्व है।
द्वितीय भाग राशियों और नक्षत्रों का स्वभाव।
तृतीय भाग ग्रहों का स्वभाव।
चतुर्थ भाग राशियों और नक्षत्रों में ग्रहों की स्थिति से दर्शित फल
पञ्चम भाग जन्म समय में जन्मस्थान पर भारतीय फलित ज्योतिष में भू केन्द्र से क्रान्तिवृत में बारह कोणों पर स्थित नाक्षत्रीय स्थिति अर्थात भाव मध्य स्पष्ट और यूरोपीय फलित ज्योतिष में भू पृष्ठ से विषुव वृत में बारह कोणों पर स्थित सायन राशियों की अंशात्मक स्थिति अर्थात भाव स्पष्ट से ग्रहों से दर्शित फल।
षष्ट भाग ग्रहों में परस्पर अंशात्मक दूरी (दृष्टि योग) से दर्शित फल। यूरोपीय फलित ज्योतिष में इसका महत्व सर्वाधिक है।
सप्तम भाग में भारतीय फलित ज्योतिष में ग्रहों और भावों के षड्बल, षोडश वर्ग, और जेमिनीय पद्यति से बलाबल
अष्टम भाग विभिन्न दशाओं में लागू होनें वाली महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर दशा, सुक्ष्म दशा और प्राण दशा और इन दशाओं से सम्बन्धित ग्रहों के उपर दर्शाये अनुसार ही गोचर फल, और गोचर में बलाबल जानने हेतु अष्टक वर्ग और यूरोपीय फलित ज्योतिष में गोचर में ग्रहों और भावों में और सभी ग्रहों में परस्पर अंशात्मक दूरी से बने शुभाशुभ योग के अनुसार गोचर देखकर फल कथन करना, समय निर्धारित करने की पद्यति है।
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