ध्यान
कृपया निम्न वाक्यांशों पर आपका ध्यानार्षण चाहूँगा।
आपने ध्यान दिया होगा, (गौर किया होगा), आपको ध्यान ही होगा, (स्मरण होगा), मैं आपका ध्यानाकर्षित करना चाहूँगा (चित्ताकर्षक/ एकाग्रता), विशेष ध्यान दीजिएगा (गौर फरमाइयेगा), आपको ध्यान है आज आपका जन्मदिन (नही) है? आपको ध्यान ही होगा कि, आजके ठीक एक साल पहलें ठीक इसी जगह इसी समय हमारा प्रथम परीचय हुआ था।(स्मरण होगा/ याद होगा), अरे आपका ध्यान भटक गया! चलो मुद्दे पर आते हैं।
इन सब वाक्यांशों में ध्यान शब्द आया है। सबमें ध्यान शब्द का अर्थ एकाग्रता, सचेत रहना, याद रखना, विशेष गौर करना आदि है। जिनको कहने आषय और उद्देश्य एक ही होता है।
अर्थात किसी चीज को सतत याद रखना, उसी पर केन्द्रित रहना ध्यान है।
मैं आपसे पुछूँ कि, आपको ध्यान है आज आपने कौनसे कपड़े पहनें हैं, तो तुरन्त आपको स्मरण हो जायेगा , इस समय आप अन्य सब चीजें भूलकर केवल कपड़ो के विषय में ही सोचने लगे। बस यही तो ध्यान करना है । यही याद करना भी कहलाता है। आपका ड्रायविंग लायसेंस कब रिन्यू करवाना है ? उत्तर या तो सकारात्मक होगा या कहेंगे; अरे! अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया मुझे तो ध्यान ही नही था। यह विस्मृति ही ध्यान की विरुद्ध अवधारणा है। और स्मृति ही ध्यान है।
किसी स्वरुप का ध्यान करना मतलब उस नाम रूप को बारीकी से याद करना ही तो है।
अकारण दिमाग थकाने वाली जबर्जस्ती ध्यान नही है। क्योंकि, इस जबरजस्ती में आप मग्न नही हो सकते हैं। बिना मग्नता के ध्यान कैसा?
चित्ताकर्षक चिजों को याद करना, भूली बिसरी कोई बात अचानक याद आजाना, उस याद में ही तल्लीन होजाना ये ध्यान ही तो है। फिर जोर जबरजस्ती की क्या आवश्यकता?
रमणेति रामः ; जो योगियों के चित्त में सदा रमण करता है वह राम है। योगिर्भिः ध्यान (न) गम्यम। योगियों के ध्यान से हटता ही नही। यहाँ यही अर्थ हुआ ना कि, योगियों को सदैव याद रहता है। योगी उसे कभी भूलते नहीँ।
आज तक के ध्यानाभ्यास में देखा होगा कि,
बैठनें का अभ्यास न होने के कारण पहले तो बैठने की आदत डालना पड़ता है, फिर प्राणायाम अभ्यास न होने से कभी श्वसन पर ध्यान जाना तो कभी कभी श्वसन ही भूलजाना और फिर लम्बी श्वाँस लेना या छोड़ना। प्रत्याहार का अभ्यास न होने से कभी कहीँ खुजलाहट होना तो कभी असफलता की खीज होना, कभी पैरों में तो कभी कमर में दर्द होना बस यही ध्यान रहता है और धारणा का अभ्यास नही तो ध्यान कहाँ से लगेगा। ध्यान नही लगने की झुँझलाहट होती है। क्या ऐसे कोई ध्यान कर सकता है। कभी नही।
यह तो ठीक वैसा ही हुआ कि, भाषा के दोष निवारणार्थ सिखाया जाने वाला व्याकरण उसे सिखाते हैं जिसे वह भाषा न बोलना आती है न पढ़ना न लिखना। इसी कारण बच्चे गणित और विदेशी भाषा में कमजोर होते हैं।
अब आप उब गये ना? कहेंगे ये सब समस्या तो हमें भी पता है पर हल क्या है? यह तो बतलाओ।
हाँ भाई इसी जिज्ञासा को उत्पन्न करनें का ही उपक्रम कर रहा था। जिज्ञासु को दिया ज्ञान ही फलिभूत होता है। शोकिया ज्ञान भूलजाना स्वाभाविक है।
तो आप केवल चलते - फिरते, हँसते - रोते - गाते, सोते - जागते, कोई भी कार्य कर रहे हो हर समय किसी भी नाम या रुप को सतत याद रखनें की आदत बनालो।
अब आप कहेंगें कार्य करते समय, हँसते समय या रोते समय और विशेषकर सोते समय कैसे याद रहेगा?
अरे भाई! क्या कार्य करते समय आपको और कोई विचार नही आते? आते हैं ना? तो उन विचारों में बहो मत। सतर्क रहो, सावधान होजाओ, बहना छोड़ो, अपनी इच्छानुसार तैरना सीखो। अपने मन को बारम्बार उसी ओर मोड़ते रहो।
सर्वश्रेष्ठ तो है ॐ (ओ३म) का जप ध्यान या रामनाम जपना भी आसान है।पर यह केवल सुझाव है, निर्देश नही। आप अपना ध्यान कैसे रख सकते हैं यह आप स्वयम् किसी ओर से ज्यादा अच्छे से समझते हैं। ऐसे ही आप ध्यान कैसे कर सकते हैं यह आप ही ज्यादा अच्छी तरह जानते हैं।
मार्गदर्शक केवल दिग्दर्शन करते हैं मार्ग या पथ अपना स्वयम् ही खोजना चाहिए। कौनसी पट्टी सुगम होगी यह उसपर चलकर ही जानी जा सकती है।
जैसे ही कोई अड़चन आई कि ॐ परमात्मा, ईश्वर गुरु (मार्गदर्शक) तत्काल उपस्थित होगें। आपको मार्गदर्शन कर चले जायेंगे। पर उँगली पकड़ कर नही चलायेंगे। हाथ तो आपको पकड़ना है। उनका सतत स्मरण ही हाथ पकड़ना है।
साथ साथ ही अहिन्सा, सत्य, अस्तैय,अपरिग्रह, पाँच यम।शोच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान ये पाँच नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी के क्रम में ही अष्टाङ्गयोग अभ्यास जारी रखें।अन्तःकरण शुद्धि के लिये ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ,नृयज्ञ यानि अतिथि यज्ञ, , भूतयज्ञ यानि बलिवैश्वदेव और पितृयज्ञ भी साथ में करते रहें।जगत की निस्वार्थ सेवा में सदैव तत्पर रहैं।
बस योगिभिः ध्यानगम्यम् प्रभु आके ध्यान से भी नही जायेंगे सदैव आपके ध्यान में बनें ही रहेंगे।
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