नारायणी धर्म ( भगवान नारायण ब्रह्मा द्वारा हिरण्यगर्भ ब्रह्मा को उपदिष्ट वेदिक धर्म/ श्रोतीय धर्म,ब्राह्मण धर्म/ ब्राह्मधर्म । आदि प्रजापति द्वारा दक्ष प्रजापति आदि ऋषियों और देवताओं, स्वायम्भुव मनु को उपदिष्ट प्रजापत्य धर्म, मनुस्मृति पर आधारित मानवधर्म के अध्ययन से प्राप्त मेरी शास्त्रीय जानकरियों के अनुसार दैत्य हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद जी परम विष्णुभक्त हुए। प्रहलाद जीकी भक्ति के प्रताप से पिता द्वारा दियेगये कष्टों से भी कोई प्रभाव नही पड़ा।
मतलब पिता के कर्म नही अपने कर्म ही काम आते हैं।
न्याय से चुके उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव अपनी साधना, आराधना के बल पर ध्रुव / अचल पद और बाद में परमपद पा गये।
माता जबाला कई लोगों की सेवा में रही, इस कारण पुत्र को पिता का नाम और गौत्र नही बतला पाई। उन माता के पुत्र अपनी सत्यनिष्ठा के बल पर महर्षि सत्यकाम जबाल हुए।
याज्ञवल्क्य द्वारा विवाह कर सन्तानोत्पत्ति न करने के कारण श्राद्ध - तर्पण न करने, पिता का ऋण न चुकाने, पिता के अधुरे कार्य पुर्ण न करने के कारण उनके पितर कष्ट झेल रहे थे।नर्क में गिरने वाले हैं यह बतलाकर पुत्र को विवाह कर सन्तानोत्पत्ति का कर्तव्य बोध कराया।
महर्षि कपिल के शाप की अग्नि में जल रहे सगर के एक हजार पुत्रों को उनके वंशजों ने तप कर सुर सरिता गङ्गा को कपिल आश्रम लेजाकर सद्गति करवाई।
माता-पिता के कर्मों का फल सन्तान को भोगना पड़े ऐसा उल्टा ज्ञान मेने नही पढ़ा सुना।
यहाँ तक कि, जैन, बौद्ध ,खालसा भी उक्त मत वाले ही हैं इससे विपरीत नही मानते हैं।
हाँ आदम के वंशजों का पन्थ आदमी पन्थ के इब्राहीमी, साबई, दाउदी, सुलेमानी,यहुदी, ईसाई और इस्लाम सम्प्रदाय अवश्य यह मानते हैं कि, यहोवा (पिता) के आदेश के विरुद्ध बुद्धिवृक्ष का फल खाने के पाप स्वरुप मैथुन में प्रवृत्त होने का पाप सभी आदमी (आदम के वंशज) भोग रहे हैं।उस पाप से मुक्ति दिलाने का कार्य मसिहा करेगा।ईसाई यीशू को मसीह मानते हैं।यहुदी नही मानते। किसी मसीह की प्रतिक्षारत हैं।मुस्लिम भी ईसा मसीह को पुनः भेजे जाने और मेंहदी नामक नबी की प्रतिक्षा में हैं। अतः उनके मत में भी किसी मसीहा का इन्तजार ही है।कोई हल नही है।
उक्त आदमी पन्थ में मुझे किञ्चित मात्र भी श्रद्धा नही है। अतः मैं किसी मसीहा की प्रतिक्षा न स्वयम् करता हूँ, न इसका उपदेश देसकता हूँ।
मेरी मान्यता तो यही है कि, पुर्व जन्मों के सञ्चित कर्मों में से इस जन्म में भोगे जा सकने वाले कर्मों का समुह यानि प्रारब्ध भोगने के लिये श्री राम, श्री कृष्ण, गोतमबुद्ध, शङ्कराचार्य, रामकृष्ण परम हन्स, रमण महर्षि, और विवेकानन्द जैसी हस्तियाँ भी बाध्य थी तो हमें तो भोगना ही है।
हाँ, वर्तमान शुभकर्मों से उनका प्रभाव कम किया जा सकता है। और अशुभ कर्मों से बढ़ाया जा सकता है।
ऋत का ज्ञान होने से केवल आत्मज्ञ / ब्रह्मज्ञानी ही प्रारब्ध भोगते हुए भी श्रीकृष्ण की तरह अप्रभावित रह सकता है।
इति शुभम्।
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