विचित्र किन्तु सत्य
नोट --
सनातन धर्म में वार एवम् दिन परिवर्तन सुर्योदय से होता है। वार एवम दिन सुर्योदय से सुर्योदय तक रहते हैं
न कि, मध्यरात्रि से। रात्रि 12:00 बजे से केवल अंग्रेजी तारीख Date एवम् Day ही बदलते है।वार एवम दिन नही बदलते।
वार एवम दिन सुर्योदय से सुर्योदय तक चलते हैं।
मेकाले शिक्षा से उत्पन्न मान्सिकता ने भारतीयों में भी रात्रि 12:00 बजे बाद दिन बदल गया इसलिए उपास छोड़ दो/ उपवास तोड़ लो वाक्य सुनने में आते हैं।जो धर्मशास्त्र के विपरीत है।
यह विचित्र किन्तु सत्य है , कि, आम भारतीय की मानसिकता अधर्मी हो गयी।
हमारे देश में सनातन धर्म में पञ्चदेवोपासना तो समझ में आती है किन्तु इन देवों के उपासकों के भी विभिन्न पन्थ - सम्प्रदायों (Schools) की प्रथक-प्रथक वृत पर्वोत्सव विधियों के कारण धार्मिक कार्यों में अनेक मतभेद होगये।
दक्षिण भारत में सुर्य की निरयन राशि और चन्द्रमा के नक्षत्र से निर्णय होता है, तिथियाँ नही चलती है।
दक्षिण भारतीय आचार्यों के अनुयायियों ने दक्षिण भारतीय सुर्य की निरयन राशि और चन्द्रमा के नक्षत्र को तिथियों में बदलने के चक्कर में बहुत गड़बड़ करदी।
और शेष भास्कराचार्य के बाद मुगलकाल में हुवे गणेश देवज्ञ ने आंशिक रुप से वैध लिये। और बाद में वेध लेने की परम्परा का ही लोप होगया। परिणामस्वरूप वेधसिद्ध शुद्ध पञ्चाङाग बनना बन्द होगई।और किसी ने आकाश में स्थित ग्रह नक्षत्रों से मैल नही रखने वाली गलत पञ्चाङ्गो को सही सिद्ध करने के लिये बाण वृद्धि रसक्षय का सुत्र रच लिया जिसका मतलब होता है कोई भी तिथि पाँच घटि यानि दो घण्टे से अधिक वृद्धि नही होती और छः घटि यानि दो घण्टे चौविस मिनट से कम नही होती।
अर्थात तिथिमान 21 घण्टे 36 मिनट से कम नही होता और 26 घण्टे से अधिक बड़ी नही होती।
बाबा ने इसे धर्मशास्त्रीय सिद्धान्त कहकर लोगों कै दिग्भ्रमित किया।और पढ़ने लिखने से परहेज करने वाले आलसी लोगों के द्वारा बाबा वाक्यम् प्रमाणम् मानने से नयी परम्परा आरम्भ हो गयी।
स्व.श्री दीनानाथ शास्त्री चुलेट की अध्यक्षता में शुद्ध पंचांग प्रवर्तक कमेटी इन्दौर में होल्कर शासन ने बिठाई जिसकी रिपोर्ट 06 अप्रेल 1931 ई. को प्रकाशित की गयी।उक्तरिपोर्ट के प्रष्ठ 49 पर निर्णय दिया गया है कि, धर्मशास्त्र कहलाने वाले वेदों, - उपवेदों, वेदाङ्गो, सुत्रों / कल्प सुत्रों, स्मृतियों और षडदर्शनों में बाणवृद्धि रसक्षय का सिद्धान्त कहीँ उल्लेखित नही है। इस दावे को गलत पाया।
इसी रिपोर्ट में दृग्तुल्य पञ्चाङ्ग (जैसा आकाश में दिखे वही पञ्चाङ्गो में अंकित हो ।) और चित्रापक्षीय अयनांश को ही स्वीकार्य की गयी। (चित्रा तारे से 180° पर निरयन मेषादि बिन्दु और अश्विनी नक्षत्रारम्भ बिन्दु को स्वीकारा गया। )
श्री निर्मलचन्द्र लाहिरी की अध्यक्षता में भारत शासन द्वारा नियुक्त केलेण्डर रिफार्म कमेटी ने भी उक्त प्रश्न पर विचार किया किन्तु कोई धर्मशास्त्रीय प्रमाण उपलब्ध नही हुआ न कोई दावा प्रस्तुत कर पाया।मार्च 1956 में प्रकाशित रिपोर्ट में दृग्तुल्य पञ्चाङ्ग (जैसा आकाश में दिखे वही पञ्चाङ्गो में अंकित हो ।) और चित्रापक्षीय अयनांश (चित्रा तारे से 180° पर निरयन मेषादि बिन्दु और अश्विनी नक्षत्रारम्भ बिन्दु को स्वीकारा गया।) को ही स्वीकार्य की गयी।
फिरभी हटी लोभियों ने गलत पञ्चाङ्गो के पक्ष में कुछ महामण्डलेश्वरों से मान्यता लिखवाकर अशुद्ध/ गलत पञ्चाङ्ग प्रकाशन जारी रखा।
जिनका डॉटा ही गलत होता है तो पञ्चाङ्ग तो गलत होगी ही क्योंकि, भास्कराचार्य के सुत्र होँ चाहे न्युटन के, परिणाम तो गलत आयेगा ही।
अतः सहुलियत के लिये गणेश देवज्ञ के ग्रहलाघव करणग्रन्थ और बाद में बने मकरन्द नामक करणग्रन्थ की सारणियाँ ही पञ्चाङ्ग बनाने के साधन हो गये।
साधारण गणित जानने वाला भी इनके आधार पर जोड़ बाकी गुणाभाग करके पञ्चाङ्ग बनाने लगा। और विभिन्न स्थुल पञ्चाङ्ग प्रकाशित होने लगे।
न वेध लिया न गणित सही तो पञ्चाङ्गो का बण्टाढार कर दिया।
स्थिति यह होगयी कि, 24 अगस्त 2019 शनिवार कोसुबह गोगा नवमी मनी और रात में दक्षिण भारतीय आचार्यों के अनुयायी महाभागवतों ने जन्माष्टमी मनाई। जबकि पर्व कालीन मध्यरात्रि में अष्टमी शुक्रवार 23 अगस्त 2019 को थी शनिवार 24 अगस्त 2019 को अष्टमी तिथि प्रातः 08:32 बजे ही समाप्त हो गयी थी। अतः जन्माष्टमी 23 अगस्त 2019 शुक्रवार को थी। पर दक्षिण भारतीय आचार्यों के अनुयायी महाभागवतों ने दुसरे दिन शनिवार 24 अगस्त 2019 को जन्माष्टमी मनाई।
मतलब पहले नवमी (09) फिर अष्टमी (08)। है ना विचित्र।
ऐसाही दिनांक 26 अगस्त 2019 सोमवार को एकादशी वृत था। एकादशी तिथि क्षय थी । दिनांक 26 अगस्त 2019 सोमवार प्रातः 07:03 बजे लगी और दिनांक 26 /27 अगस्त 2019 सोमवार (Tuesday) को हीउत्तर रात्रि 05:10 बजे समाप्त होगयी। एकादशी मंगलवार के सुर्योदय समय के लगभग एक घण्टा पहले ही समाप्त होगयी।किन्तु दक्षिण भारतीय आचार्यों के अनुयायी महाभागवतों ने दुसरे दिन मंगलवार 27 अगस्त 2019 को द्वादशी तिथि में एकादशी वृत किया । है ना विचित्र।
गलत पञ्चाङ्गो के कारण 02 सितम्बर 2019 सोमवार को सुबह चतुर्थी में गणेश स्थापना होगी और रात में हरतालिका तृतीया का पुजन जागरण होगा। जबकि हरतालिका तृतिया रविवार 01 सितम्बर 2019 को है तृतीया तिथि क्षय है, 01/02 सितम्बर 2019 रविवार ( Monday) को रात्रि 04:58 बजे ही समाप्त हो जायेगी।
मतलब पहले चतुर्थी (04) फिर तृतीया (03)
है ना विचित्र किन्तु सत्य।
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