मंगलवार, 13 नवंबर 2018

नौ ग्रहों की दान सामग्री दान कर नौ ग्रहों के पौराणिक मन्त्र जप विधि।भाग - 2

परमात्मा का अहर्निश ध्यान और चिन्तन और  निष्ठा, लगन, उत्साह और तत्परता पुर्वक अविरत हरिस्मरण, के साथ ही उतनी ही  निष्ठा, लगन, उत्साह और तत्परता पुर्वक निष्काम कर्म योगतथा कर्त्तव्य भाव से  निरन्तर जगत सेवा, ईश्वर स्मरण और संसार की सेवा में रत रहना, पञ्च महाऋणो से उऋण होने हेतु शास्त्रीय विधि से पञच महायज्ञ करना,और ईश्वर की कृपाओं के प्रति कृतज्ञता।
यही हमारा धर्म है।इसके अतिरिक्त केवल स्मार्त नैमित्तिक कर्म भी करना चाहिए।
किन्तु सकाम आराधना/ उपासना भूल कर भी नही करना चाहिए।

फिर भी जिन्हे ईश्वर  के दीये पर भरोसा कम हैं ; ऐसे लोगों लिये ग्रहों की दान सामग्री दान करना और  पौराणिक मन्त्रों के जप की विधि प्रस्तुत है।

मङ्गल की दान सामग्री एवम् जप विधि  ----

नोट -- पहले मङ्गल का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

धरणी गर्भ सम्भूतम् 
विद्युत कान्ति समप्रभम्।
कुमारम् शक्ति हस्तम्
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

मङ्गल का पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भसम्भूतम्  विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम्
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ सोमवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या  रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो रक्त पुष्प मंगलवार को सुबह भी ले सकते हैं।
मंगलवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि मंगलवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम  लेकर) मैं मङ्गल को बल प्रदान करने के निमित्त मङ्गल की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ।कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

मङ्गल के पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भसम्भूतम्  विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम्
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

मङ्गल की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- प्रवाल /  मूङ्गा ( Coral .)
मार्सडीज / सर्डानिया / सिसली या कोर्सिका (भूमध्यसागर) का मूंगा 8,9,12 या 12  रत्ती का लें।
किन्तु 5 या 14 रत्ती न लें।

(अथवा  विद्रुममणी या सङ्गमूङ्गी
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- रक्त वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।)

यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या मङ्गल की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- तामृ /  ताम्बे  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- रक्त वस्त्र
यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का लाल चोल का कपड़ा (हनुमानजी की लङ्गोट जैसा लाल कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े / पुरे मसूर (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव  खड़े मसूर यानि पुरे मसूर लेलें दाल न लें ।)

7 -- गन्ने के रस से बना मालवी गुड़। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- रक्त पुष्प / फुल ले लें।

(लाल गुलाब या लाल कनेर (करवीर) या गुडहल कोई भी लाल फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- अग्नि पुराण,स्कन्द पुराण, पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नागजीव्हा की जड़ । (नागजीव्हा की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- खेर, (कत्था), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात मङ्गल का पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भसम्भूतम्  विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम्
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन मंगलवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

घर पर जप करने हेतु--

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर मङ्गल का पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भसम्भूतम्  विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम्
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108  बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच  (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

निर्धारित जप संख्या 15,000 (पन्द्रह हजार) यानि 150 माला पुर्ण होने के बाद अगले मंगलवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --

15,000 (पन्द्रह हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 150 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी मंगलवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- प्रवाल /  मूङ्गा ( Coral .)
मार्सडीज / सर्डानिया / सिसली या कोर्सिका (भूमध्यसागर) का मूंगा 8,9,12 या 12  रत्ती का लें।
किन्तु 5 या 14 रत्ती न लें।

(अथवा  विद्रुममणी या सङ्गमूङ्गी
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- रक्त वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।)

यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या मङ्गल की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- तामृ /  ताम्बे  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- रक्त वस्त्र
यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का लाल चोल का कपड़ा (हनुमानजी की लङ्गोट जैसा लाल कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े / पुरे मसूर (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव खड़ेमसूर यानि पुरे मसूर लेलें दाल न लें ।)

7 -- गन्ने के रस से बना मालवी गुड़। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- रक्त पुष्प / फुल ले लें।

(लाल गुलाब या लाल कनेर (करवीर) या गुडहल कोई भी लाल फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- अग्नि पुराण,स्कन्द पुराण,  यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नागजीव्हा की जड़ । (नागजीव्हा की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- खेर, (कत्था), का पौधा लें।
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात मङ्गल के पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भसम्भूतम्  विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम्
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

मङ्गल का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,मङ्गल , बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश,वायु,अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

बुध की दान सामग्री एवम् जप विधि  ----

नोट -- पहले बुध का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

प्रियङ्गु कलिका श्यामम्
रुपेण अप्रतिम् बुधम् ।
सौम्यम् सौम्यगुण उपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

बुध का पौराणिक मन्त्र --

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम् तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ मंगलवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या  रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो हरित पुष्प बुधवार को सुबह भी ले सकते हैं।
बुधवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि बुधवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम  लेकर) मैं बुध को बल प्रदान करने के निमित्त बुध की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

बुध के पौराणिक मन्त्र --

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम्
रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

बध की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- पन्ना ( Emerald .)
कोलम्बिया का पन्ना लें।

(अथवा  हरित नील मणि Aquamarine लें
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- गज   (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी हाथी या बुध  की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य /  काँसे  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- हरित वस्त्र / हरा कपड़ा

(यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का हरे रङ्ग का कपड़ा (भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के हरे रंग जैसा हरा कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या  रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े हरे मूँगिया मूँग / पुरे हरे  मूँगिया मूँग (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव , खड़ेमूँग यानि पुरे मूँग लेलें ।)

7 -- देशीगौ के दूध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव देशीगाय के दुध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ ही लें।)

8 -- हरित पुष्प / हरा रङ्ग का फुल ले लें।

(हरा गुलाब या हरा चम्पा, केतकी (केवड़ा)  या कोई भी  फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- वेदिक विष्णुसुक्त, उत्तर नारायण सुक्त सहित पुरुषसूक्त, श्रीमद्भगवद्गीता, वाल्मीकि रामायण, गर्ग संहिता, विष्णु सहस्रनाम, गजेन्द्र मौक्ष विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, कुर्म पुराण, वराहपुराण, नृसिंह पुराण, वामन पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, गरुड़पुराण, आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- बिदायरा या बरधारा की जड़ ।
(बिदायरा या बरधारा की जड़
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- अपामार्ग, (आँधीझाड़ा), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बुध का पौराणिक मन्त्र --

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन बुधवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

घर पर जप करने हेतु--

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर बुध का पौराणिक मन्त्र --

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108  बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच  (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

निर्धारित जप संख्या 6,000 (छः हजार) यानि 60 माला पुर्ण होने के बाद अगले बुधवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --

6,000 (छः हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 60 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी बुधवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- पन्ना ( Emerald .)
कोलम्बिया का पन्ना लें।

(अथवा  हरित नील मणि Aquamarine लें
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- गज   (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी हाथी या बुध  की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य /  काँसे  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- हरित वस्त्र / हरा कपड़ा

(यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का हरे रङ्ग का कपड़ा (भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के हरे रंग जैसा हरा कपड़ा। )

( सुती या शुद्ध रेशम का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या  रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े हरे मूँगिया मूँग / पुरे हरे  मूँगिया मूँग (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव , खड़ेमूँग यानि पुरे मूँग लेलें ।)

7 -- देशीगौ के दूध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव देशीगाय के दुध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ ही लें।)

8 -- हरित पुष्प / हरा रङ्ग का फुल ले लें।

(हरा गुलाब या हरा चम्पा या केतकी (केवड़ा) पुष्प या कोई भी  फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- वेदिक विष्णुसुक्त, उत्तर नारायण सुक्त सहित पुरुषसूक्त, श्रीमद्भगवद्गीता, वाल्मीकि रामायण, गर्ग संहिता, विष्णु सहस्रनाम, गजेन्द्र मौक्ष विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, कुर्म पुराण, वराहपुराण, नृसिंह पुराण, वामन पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, गरुड़पुराण, आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- बिदायरा या बरधारा की जड़ ।
(बिदायरा या बरधारा की जड़
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- अपामार्ग, (आँधीझाड़ा), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बुध के पौराणिक मन्त्र --

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

बुध का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा, ,
बृहस्पत्ति,ध्रुव तारा, विद्युत- पर्जन्य, आकाश,वायु,अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

बृहस्पति की दान सामग्री एवम् जप विधि  ----

नोट -- पहले बृहस्पति का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

देवानाम् च ऋषिणाम् च
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धि भूतम् त्रिलोकेशम्
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च गुरुम्काञ्चनसन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम्
तम्नमामि बृहस्पतिम्।।

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ बुधवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या  रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो पीला पुष्प गुरुवार को सुबह भी ले सकते हैं।

गुरुवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि गुरुवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम  लेकर) मैं बृहस्पति ( गुरु) को बल प्रदान करने के निमित्त बृहस्पति ( गुरु) की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम्
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

बृहस्पति (गुरु) की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- पुष्पराग / पुखराज  ( Topaz .)

ब्राजील की खान का जो माणिक्य के साथ मिला हो ऐसा का पीला पुखराज 7 या 12 केरेट का लें। किन्तु 6 या 11 या 15 केरेट ना लें।
(सामर्थ्य न हो तो सुनेला या पीला सोनेला ( साइट्रोन ) ले लें।

या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही लेलें।)

3 -- गज   (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी/ उभरी हुई हाथी या बृहस्पति  की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य पात्र यानि काँसे  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- पीत  वस्त्र / पीला कपड़ा

(यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का पीले रङ्ग का कपड़ा (भगवान विष्णु के पीताम्बर के रंग का कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या  रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- देशी चने की दाल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव , देशी / काँटेवाले/ कत्थई रंग के चने की दाल ले लें।)

7 -- शकरा यानि खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खाण्ड  /  खाण्डसारी यानि पीली शकर ही लें।)

8 -- पीत पुष्प / पीला रङ्ग का फुल ले लें।

(पीला गुलाब या वैजन्ती या कदली पुष्प या पीली कनेर (करवीर) का फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 --  ब्रह्मणस्पत्ति सुक्त या बृहस्पति सुक्त या ब्रह्म पुराण या ब्रह्म वैवर्त पुराण  आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ ।
(नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।नारङ्गी का फल सन्तरा / सन्तरे और कीनु के फल से भिन्न फल है । यह उपर और नीचे चपटी होती है।)

11 -- पीपल का पौधा का पौधा लें।
(नोट --  नगर/ ग्राम / घर के उत्तर में लगाना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम्
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें। एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन गुरुवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

घर पर जप करने हेतु--

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर बृहस्पति का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम्
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108  बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच  (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

निर्धारित जप संख्या 25,000 (पच्चीस हजार) यानि 250 माला पुर्ण होने के बाद अगले गुरुवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --

25,000 (पच्चीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 250 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी गुरुवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- पुष्पराग / पुखराज  ( Topaz .)

ब्राजील की खान का जो माणिक्य के साथ मिला हो ऐसा का पीला पुखराज 7 या 12 केरेट का लें। किन्तु 6 या 11 या 15 केरेट ना लें।
(सामर्थ्य न हो तो सुनेला या पीला सोनेला ( साइट्रोन ) ले लें।
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही लेलें।)

3 -- गज   (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी हाथी या बृहस्पति  की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य पात्र यानि काँसे  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- पीत  वस्त्र / पीला कपड़ा

(यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का पीले रङ्ग का कपड़ा (भगवान विष्णु के पीताम्बर के रंग का कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या  रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- देशी चने की दाल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव , देशी / काँटेवाले/ कत्थई रंग के चने की दाल ले लें।)

7 -- शकरा यानि खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर ही लें।)

8 -- पीत पुष्प / पीला रङ्ग का फुल ले लें।

(पीला गुलाब या  वैजन्ती का पुष्प या कदली पुष्प या पीली कनेर (करवीर) का फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 --  ब्रह्मणस्पत्ति सुक्त,या बृहस्पति सुक्त या ब्रह्म पुराण या ब्रह्म वैवर्त पुराण  आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ ।
(नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।
नारङ्गी का फल सन्तरा / सन्तरे और कीनु से भिन्न फल है । यह उपर और नीचे चपटी होती है।)

11 -- पीपल का पौधा का पौधा लें।
(नोट --  नगर/ ग्राम / घर के उत्तर में लगाना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बृहस्पति (गुरु) के पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम्
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा, , बृहस्पत्ति,ध्रुव तारा, विद्युत- पर्जन्य, आकाश,वायु,अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

शुक्र की दान सामग्री एवम् जप विधि  ----

नोट -- पहले शुक्र का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

हिमकुन्द मृणालाभम्
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
सर्व शास्त्र प्रवक्तारम्
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

शुक्र का पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्दमृणालाभम् दैत्यानाम्परमम्गुरुम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारम्  भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ गुरुवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या  रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो श्वेत पुष्प शुक्रवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शुक्रवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि शुक्रवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम  लेकर) मैं शुक्र को बल प्रदान करने के निमित्त शुक्र की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

शुक्र के पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्द मृणालाभम्
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
सर्व शास्त्र प्रवक्तारम्
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

शुक्र की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- हीरा /  हीरक  (Diamond)
बुन्देलखण्ड की सोन नदी से दक्षिण भारत की पिनेर नदी के बीच के क्षेत्र का वारितिर हीरा 0.25  से 0.5 केरेट का हीरा लें।
किन्तु 2 या 6 रत्ती का हीरा न लें।

(अथवा श्रीलंका की खान का गोमेद  Zircon  या फारस की खाड़ी का मोती Pearl
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- श्वेत वस्त्राच्छादित श्वेत वृषभ। या कोई भी पशु (सफेद कपड़ा औढ़ाया हुआ सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल या कोई भी पशु चलेगा।)

यदि सामर्थ्य न हो तो --
या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या शुक्र की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- रोप्य /  चांदी  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- चित्र विचित्र वस्त्र
यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का  रङ्गबिरङ्गा कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव बाँसमति, कालीमुछ  कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)

7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)

8 -- श्वेत पुष्प।

सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- रुद्र अष्टाध्यायी या शिव पुराण, या शिवमहिम्न स्तोत्र  पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- अरण्डे या वाघण्टी की जड़ । (अरण्डे या वाघण्टी  की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- गुलर, का पौधा लें।
(नगर/ ग्राम या घर के पुर्व दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शुक्र का पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्द मृणालाभम्
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
सर्व शास्त्र प्रवक्तारम्
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शुक्रवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

घर पर जप करने हेतु--

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर शुक्र का पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्द मृणालाभम्
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
सर्व शास्त्र प्रवक्तारम्
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108  बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच  (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

निर्धारित जप संख्या 21,000 (एक्कीस हजार) यानि 210 माला पुर्ण होने के बाद अगले शुक्रवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --

21,000 (एक्कीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 210 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शुक्रवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)

2 -- हीरा /  हीरक  (Diamond)
बुन्देलखण्ड की सोन नदी से दक्षिण भारत की पिनेर नदी के बीच के क्षेत्र का वारितिर हीरा 0.25  से 0.5 केरेट का हीरा लें।
किन्तु 2 या 6 रत्ती का हीरा न लें।

(अथवा श्रीलंका की खान का गोमेद  Zircon  या फारस की खाड़ी का मोती Pearl
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- श्वेत वस्त्राच्छादित श्वेत वृषभ। या कोई भी पशु (सफेद कपड़ा औढ़ाया हुआ सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल या कोई भी पशु चलेगा।)

यदि सामर्थ्य न हो तो --
या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या शुक्र की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- रोप्य /  चांदी  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- चित्र विचित्र वस्त्र
यानि  शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का  रङ्गबिरङ्गा कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव बाँसमति, कालीमुछ  कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)

7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)

8 -- श्वेत पुष्प।

सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- रुद्र अष्टाध्यायी या शिव पुराण, या शिवमहिम्न स्तोत्र  पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- अरण्डे या वाघण्टी की जड़ । (अरण्डे या वाघण्टी  की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- गुलर, का पौधा लें।
(नगर/ ग्राम या घर के पुर्व दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शुक्र के पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्द मृणालाभम्
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
सर्व शास्त्र प्रवक्तारम्
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

शुक्र का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र,  बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

शनि की दान सामग्री एवम् जप विधि  ----

नोट -- पहले शनि का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

नीलाञ्जन समाभासम्
रविपुत्रम्  यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम्
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

शनि का पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम् रविपुत्रम्यमाग्रजम्।
छाँयामार्तण्ड सम्भूतम्
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या  रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम  लेकर) मैं शनि को बल प्रदान करने के निमित्त शनि की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

शनि के पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम्
रविपुत्रम्  यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम्
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

शनि की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)

2 -- नीलम /  नीलमणि  (Sapphire)
कश्मीर या सुमजावा की खान का  10  या 11 रत्ती का नीरम लें।
(अथवा कोलम्बिया की खान का पन्ना  Emerald  लें।
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- महिषी / देशी भैस

यदि सामर्थ्य न हो तो --
लोह पत्र  या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी महिषी या भैंस या शनि की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- लोह /  लोहा  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार कढ़ाई, खोँचा, सढ़सी, चिमटा,तवी तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- काली भेड़ के उन से बना काला कम्बल या काली शाल।

6 -- खड़े काले उड़द (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव खड़े काले उड़द लेलें चलेगा।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- यम सुक्त, अर्यमा सुक्त, या अश्विनीकुमारों का सुक्त या कठोपनिषद या यमगीता की  पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी की जड़ । (बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी  की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- शमि या खेजड़ी, का पौधा लें।
(नगर/ ग्राम या घर के पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शनि का पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम्
रविपुत्रम्  यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम्
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

घर पर जप करने हेतु--

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर शनि का पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम्
रविपुत्रम्  यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम्
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108  बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच  (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

निर्धारित जप संख्या 30,000 (तीस हजार) यानि 300 माला पुर्ण होने के बाद अगले शनिवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --

30,000 (तीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 300 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शनिवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)

2 -- नीलम /  नीलमणि  (Sapphire)
कश्मीर या सुमजावा की खान का  10  या 11 रत्ती का नीरम लें।
(अथवा कोलम्बिया की खान का पन्ना  Emerald  लें।
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- महिषी / देशी भैस

यदि सामर्थ्य न हो तो --
लोह पत्र  या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी महिषी या भैंस या शनि की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- लोह /  लोहा  का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार कढ़ाई, खोँचा, सढ़सी, चिमटा,तवी तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- काली भेड़ के उन से बना काला कम्बल या काली शाल।

6 -- खड़े काले उड़द (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या  सवापाव खड़े काले उड़द लेलें चलेगा।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।)

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- यम सुक्त, अर्यमा सुक्त, या अश्विनीकुमारों का सुक्त या कठोपनिषद या यमगीता की  पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी की जड़ । (बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी  की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- शमि या खेजड़ी, का पौधा लें।
(नगर/ ग्राम या घर के पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शनि के पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम्
रविपुत्रम्  यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम्
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

शनि का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र,  बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

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