परमात्मा का अहर्निश ध्यान और चिन्तन और निष्ठा, लगन, उत्साह और तत्परता पुर्वक अविरत हरिस्मरण, के साथ ही उतनी ही निष्ठा, लगन, उत्साह और तत्परता पुर्वक निष्काम कर्म योगतथा कर्त्तव्य भाव से निरन्तर जगत सेवा, ईश्वर स्मरण और संसार की सेवा में रत रहना, पञ्च महाऋणो से उऋण होने हेतु शास्त्रीय विधि से पञच महायज्ञ करना,और ईश्वर की कृपाओं के प्रति कृतज्ञता।
यही हमारा धर्म है।इसके अतिरिक्त केवल स्मार्त नैमित्तिक कर्म भी करना चाहिए।
किन्तु सकाम आराधना/ उपासना भूल कर भी नही करना चाहिए।
फिर भी जिन्हे ईश्वर के दीये पर भरोसा कम हैं ; ऐसे लोगों लिये ग्रहों की दान सामग्री दान करना और पौराणिक मन्त्रों के जप की विधि प्रस्तुत है।
सुर्य की दान सामग्री एवम् जप विधि ----
नोट -- पहले ये दो मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --
उच्चारण की सुविधा हेतु अन्वय सहित सावित्री / गायत्री मन्त्र --
ओ३म् भूः भूवः स्वः ।
तत् सवितुः वरेण्यम् ।
भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।
सावित्री / गायत्री मन्त्र
ओ३म् भूर्भूवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गोदेवस्य धीतमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
उच्चारण की सुविधा हेतु अन्वय सहित सुर्य का पौराणिक मन्त्र --
जपा कुसुम संकाशम्
काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोअ्रिम् सर्व पापघ्नम्
प्रणतो अ्स्मि दिवाकरम् ।।
सुर्य का पौराणिक मन्त्र --
जपाकुसुमसंकाशम्
काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।
फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शनिवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।
घर में ही पौधे में लगा हो या सम्भव हो तो रक्त पुष्प रविवार को सुबह भी ले सकते हैं।
रविवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें।
रविवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं सुर्य को बल प्रदान करने के निमित्त सुर्य की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ।
दान सामग्री कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले। गायत्री मन्त्र --
ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।
का एक बार जप कर फिर ; सुर्य के पौराणिक मन्त्र --
जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।
का एक बार जप कर
दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।
आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।
सुर्य की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--
1-- स्वर्ण का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा ले लें।)
2 -- माणिक Dubey 3 रत्ती।
(अथवा कंटकिज मणी Spinel स्पाइनल या तामड़ा Garnet .
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- लाल वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।)
यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे की शीट पर उकेरी हुई वृषभ प्रतिमा ले लें।
या चान्दी के पत्रे फर उकेरी सुर्य की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है वह ले लें।
4 -- ताम्र ताम्बे का बर्तन।
सामर्थ्य अनुसार आचमनी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें ।
5 -- शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का चटकीला लाल कपड़ा।
( सुती या शुद्ध रेशम का ही हो। चटक लाल रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य लेलें ।)
6 -- गेहूँ (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव चन्दोसी से लेकर लोकवन तक कोई सा भी गेहूँ ले लें।)
7 -- गन्ने से बना मालवी गुड़।(सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)
8 -- लाल पुष्प।
लाल गुलाब, लाल कनेर, या गुडहल का फुल लेलें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- चारों वेद, ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद, श्रोतसुत्र, ग्रह्य सुत्र, शुल्बसुत्र,धर्मसुत्र, पुर्वमिमांसा, उत्तरमीमांसा दर्शन, सांख्य कारिका और सांख्य दर्शन और योग दर्शन, न्याय और वैशेषिक दर्शन, मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति, वाल्मीकि रामायण- महाभारत,सुर्यसुक्त, उषःसुक्त, चाक्षुषोपनिषद, सन्ध्योपासना विधि, सावित्री जप/ गायत्री जप विधि, आदित्यहृदय स्तोत्र आदि यथा सामर्थ्य कुछ भी लेलें।
10 -- बैंत की जड़ या बैल मूल। ( बि्ल्वपत्र की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- मले में अर्क/ आँक /आँकड़े का पौधा लेलें।
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात सुर्य के पौराणिक मन्त्र --
जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।
का जप करें। फिर गायत्री मन्त्र --
ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।
का जप एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।
घर पर जप करने हेतु--
घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर सुर्य का
पौराणिक मन्त्र --
जपाकुसुमसंकाशम्
काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।
का जप करें।
नोट --
इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।
एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।
निर्धारित जप संख्या 10,000 (दस हजार)यानि 100 माला पुर्ण होने के बाद अगले रविवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --
10,000 (दस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 100 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी रविवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर
सुर्य की निम्नलिखित दान सामग्रियाँ --
।
1-- स्वर्ण का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
2 -- माणिक Dubey 3 रत्ती।
(अथवा कंटकिज मणी Spinel स्पाइनल या तामड़ा Garnet .
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- लाल वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।)
यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे की शीट पर उकेरा वृषभ।
या चान्दी के पत्रे उकेरी सुर्य की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है।
4 -- ताम्र ताम्बे का बर्तन।
सामर्थ्य अनुसार आचमनी से लेकर घड़े तक कुछ भी चलेगा।
5 -- चटकीला लाल या गुलाबी शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का कपड़ा।
( सुती या शुद्ध रेशम का ही हो। ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।)
6 -- गेहूँ (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव चन्दोसी से लेकर लोकवन तक कोई सा भी गेहूँ।)
7 -- गन्ने से बना मालवी गुड़।(सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)
8 -- लाल पुष्प।
लाल गुलाब, लाल कनेर, या गुडहल का फुल।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- चारों वेद, ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद, श्रोतसुत्र, ग्रह्य सुत्र, शुल्बसुत्र,धर्मसुत्र, पुर्वमिमांसा, उत्तरमीमांसा दर्शन, सांख्य कारिका और सांख्य दर्शन और योग दर्शन, न्याय और वैशेषिक दर्शन, मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति, वाल्मीकि रामायण- महाभारत,सुर्यसुक्त, उषःसुक्त, चाक्षुषोपनिषद, सन्ध्योपासना विधि, सावित्री जप/ गायत्री जप विधि, आदित्यहृदय स्तोत्र आदि यथा सामर्थ्य कुछ भी ।
10 -- बैंत की जड़ या बैल मूल। ( बि्ल्वपत्र की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- अर्क/ आँक /आँकड़े का पौधा।
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात सुर्य के
पौराणिक मन्त्र --
जपाकुसुमसंकाशम्
काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।
का जप करें।
फिर गायत्री मन्त्र --
ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।
एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
इसके बाद उगते सुर्य को अर्ध्य देते हुएँ नित्य केवल गायत्री मंत्र
ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।
का ही जप यथाशक्ति करना चाहिए।
सुर्य का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।
चन्द्रमा की दान सामग्री एवम् जप विधि ----
नोट -- पहले चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --
अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।
दधि शंख तुषाराभम्
क्षीरोदार्णव सम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोः मुकुट भूषणम् ।।
चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र --
दधिशङ्खतुषाराभम् क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम् शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।
फिर निम्नांकित सामग्रियाँ रविवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो श्वेत पुष्प सोमवार को सुबह भी ले सकते हैं।
सोमवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि सोमवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं चन्द्रमा को बल प्रदान करने के निमित्त चन्द्रमा की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।
चन्द्रमा के पौराणिक मन्त्र --
दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।
का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।
आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।
चन्द्रमा की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--
1-- स्वर्ण का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
2 -- मौक्तिक / मुक्ता ( Pearl .)
बसरा का मोती 02 या 4 या6 या 11 रत्ती का लें।
किन्तु 7 या 8 रत्ती न लें।
(अथवा चन्द्रमणी
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- श्वेत वृषभ। (सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल।)
यदि सामर्थ्य न हो तो --
या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या चन्द्रमा की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।
4 -- रोप्य / चांदी का बर्तन।
सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।
5 -- श्वेत वस्त्र
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का सफेद कपड़ा।
( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)
6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव बाँसमति, कालीमुछ कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)
7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)
8 -- श्वेत पुष्प।
सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- कोई भी धार्मिक, पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
10 -- खिरनी की जड़ । (खिरनी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- ढाँक, (पलाश), का पौधा लें।
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र --
दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।
का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन सोमवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।
घर पर जप करने हेतु--
घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र --
दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।
का जप करें।
नोट --
इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।
एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।
निर्धारित जप संख्या 15,000 (पन्द्रह हजार) यानि 150 माला पुर्ण होने के बाद अगले सोमवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --
15,000 (पन्द्रह हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 150 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी सोमवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर
1-- स्वर्ण का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)
2 -- मौक्तिक / मुक्ता ( Pearl .)
बसरा का मोती 02 या 4 या6 या 11 रत्ती का लें।
किन्तु 7 या 8 रत्ती न लें।
(अथवा चन्द्रमणी
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- श्वेत वृषभ लें । (सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल।)
यदि सामर्थ्य न हो तो --
या चान्दी के पत्रे उकेरी साण्ड या चन्द्रमा की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है लेलें।
4 -- रोप्य / चांदी का बर्तन।
सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें चलेगा।
5 -- श्वेत वस्त्र
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का सफेद कपड़ा।
(सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें लेलें।)
6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव बाँसमति, कालीमुछ कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)
7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)
8 -- श्वेत पुष्प।
सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- कोई भी धार्मिक पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
10 -- खिरनी की जड़ ।
(खिरनी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- ढाँक, (पलाश), का पौधा लें।
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात चन्द्रमा के पौराणिक मन्त्र --
दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।
का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।
अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।
राहु की दान सामग्री एवम् जप विधि ----
नोट -- पहले राहु का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --
अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।
अर्धकायम् महा वीर्यम्
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम्
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
राहु का पौराणिक मन्त्र --
अर्धकायम् महावीर्यम् चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भ सम्भूतम् तम्
राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें।
शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि, -- है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं राहु की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें।
क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर फिर
राहु के पौराणिक मन्त्र --
अर्धकायम् महा वीर्यम्
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम्
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।
आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।
राहु की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--
1-- स्वर्ण का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
2 -- गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) सिंहल द्वीप/ श्रीलंका की खान का 6 या 11 या 13 कैरेट का गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) लें।
किन्तु 3 या 6 केरेट का न लें।
(या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- अरबी कृष्णाश्व / अरबी काला घोड़ा लें।
यदि सामर्थ्य न हो तो --
सीसा/ कथीर के पत्रे या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी गई कृष्ण अश्व या काले घोड़े या राहु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।
4 -- सीसा / कथीर Lead की छड़ या प्लेट जो मिले ले लें ।
सामर्थ्य अनुसार छड़ या प्लेट कुछ भी लेलें (चलेगा)। बेटरी सेल का खोल सीसे का होता है। यह निकल और टीन से मिलता जुलता किन्तु अलग धातु है। बोहरोंक्षके पास मिल सकता है।पहले छत की चद्दर / पतरे पर वायसर लगाने के काम आता था।
कटोरी में रख कर गरम करने पर पिघल जाता है।और कागज के पेन्सिल नुमा साँचे में डालो तो ठण्डा होते ही जम जाता है।कागज पर पेन्सिल मार्क जैसा इससे लिख भी सकते हैं।
5 -- नीला Indigo या आसमानी Blue वस्त्र।
(सुती या शुद्ध रेशमी नीले रंग Indigo का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।
6 -- काले तिल (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)
7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)
8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।
काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- नाग मन्त्र, निऋति सुक्त, रक्षोहा सुक्त, यातुधान सुक्त, महाभारत आस्तिक पर्व या भैरवाष्टक, भैरव आरती की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
10 -- मलय चन्दन की जड़ ।
(मलय चन्दन की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- दुर्वा / दुब का पौधा लें।
(दुर्वा एक घाँस जो गणेशजी को प्रिय है। नगर/ ग्राम या घर के नैऋत्य कोण यानि दक्षिण पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात राहु का पौराणिक मन्त्र --
अर्धकायम् महा वीर्यम्
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम्
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।
घर पर जप करने हेतु--
घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर राहु का पौराणिक मन्त्र --
अर्धकायम् महा वीर्यम्
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम्
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
का जप करें।
नोट --
इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।
एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।
निर्धारित जप संख्या 24,000 (चौवीस हजार ) यानि 240 माला पुर्ण होने के बाद अगले शनिवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --
24,000 (चौवीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 240 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शनिवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर
1-- स्वर्ण का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)
2 -- गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) सिंहल द्वीप/ श्रीलंका की खान का 6 या 11 या 13 कैरेट का गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) लें।
किन्तु 3 या 6 केरेट का न लें।
(या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- अरबी कृष्णाश्व / अरबी काला घोड़ा लें।
यदि सामर्थ्य न हो तो --
सीसा/ कथीर के पत्रे या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी गई कृष्ण अश्व या काले घोड़े या राहु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।
4 -- सीसा / कथीर Lead की छड़ या प्लेट जो मिले ले लें ।
सामर्थ्य अनुसार छड़ या प्लेट कुछ भी लेलें (चलेगा)। बेटरी सेल का खोल सीसे का होता है। यह निकल और टीन से मिलता जुलता किन्तु अलग धातु है। बोहरोंक्षके पास मिल सकता है।पहले छत की चद्दर / पतरे पर वायसर लगाने के काम आता था।
कटोरी में रख कर गरम करने पर पिघल जाता है।और कागज के पेन्सिल नुमा साँचे में डालो तो ठण्डा होते ही जम जाता है।कागज पर पेन्सिल मार्क जैसा इससे लिख भी सकते हैं।
5 -- नीला Indigo या आसमानी Blue वस्त्र।
(सुती या शुद्ध रेशमी नीले रंग Indigo का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।
6 -- काले तिल (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)
7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)
8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।
काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- नाग मन्त्र, निऋति सुक्त, रक्षोहा सुक्त, यातुधान सुक्त, महाभारत आस्तिक पर्व की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
10 -- मलय चन्दन की जड़ ।
(मलय चन्दन की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- दुर्वा / दुब का पौधा लें।
(दुर्वा एक घाँस जो गणेशजी को प्रिय है। नगर/ ग्राम या घर के नैऋत्य कोण यानि दक्षिण पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात राहु के पौराणिक मन्त्र --
अर्धकायम् महा वीर्यम्
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम्
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।
का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
अब राहु का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।
अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।
केतु की दान सामग्री एवम् जप विधि ----
नोट -- पहले केतु का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें। --
अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।
पलाश पुष्प सङ्काश्
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
केतु का पौराणिक मन्त्र --
पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें।
शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि, -- है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं केतु की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें।
क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर फिर
केतु के पौराणिक मन्त्र --
पलाश पुष्प सङ्काश्
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।
आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।
केतु की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--
1-- चान्दी का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार चान्दी का काँटा, कंगन से हार तक कुछ भी चलेगा।)
2 -- लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) म्यांमार की गोमोक खान का 3,या 5 या 6 या 7 कैरेट का लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) लें।
किन्तु 2 या 4 या 12 या 13 रत्ती का न लें।
(या गोदन्ती मणि लें या
सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- कोई भी अनाज या अन्न/ धान्य/ सस्य ले लें।
या केतु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।
4 -- ताम्र / ताम्बा Copper का बर्तन लें ।
सामर्थ्य अनुसार ताम्र / ताम्बा Copper की, आचमनी,या तरभाणा,या कलश या जग, घड़ा यथा सामर्थ्य जो लेसकें ले लें ।
5 -- कृष्ण वस्त्र / काला कपड़ा ।
(सुती या शुद्ध रेशमी कृष्ण वस्त्र / काला रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।
6 -- काले तिल (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)
7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)
8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।
काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- गणेश पुराण या कल्याण का गणेश अङ्क या अष्टविनायक तिर्थ का विवरण, कथा, आरती आदि की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
10 -- अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ ।
(अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- कुश / कुशा का पौधा लें।
(कुश एक घाँस जो पवित्री के रुप में और श्राद्ध में पिण्डदान के पिण्ड का आसन के रुप में काम आती है। नगर/ ग्राम या घर के वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात केतु का पौराणिक मन्त्र --
पलाश पुष्प सङ्काश्
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।
घर पर जप करने हेतु--
घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर केतु का पौराणिक मन्त्र --
पलाश पुष्प सङ्काश्
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
का जप करें।
नोट --
इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।
एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।
निर्धारित जप संख्या 23,000 (तेईस हजार ) यानि 230 माला पुर्ण होने के बाद अगले शनिवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --
23,000 (तेईस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 230 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शनिवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर
1-- चान्दी का आभुषण।
(सामर्थ्य अनुसार चान्दी का काँटा, कंगन से हार तक कुछ भी चलेगा।)
2 -- लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) म्यांमार की गोमोक खान का 3,या 5 या 6 या 7 कैरेट का लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) लें।
किन्तु 2 या 4 या 12 या 13 रत्ती का न लें।
(या गोदन्ती मणि लें या
सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)
3 -- कोई भी अनाज या अन्न/ धान्य/ सस्य ले लें।
या केतु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।
4 -- ताम्र / ताम्बा Copper का बर्तन लें ।
सामर्थ्य अनुसार ताम्र / ताम्बा Copper की, आचमनी,या तरभाणा,या कलश या जग, घड़ा यथा सामर्थ्य जो लेसकें ले लें ।
5 -- कृष्ण वस्त्र / काला कपड़ा ।
(सुती या शुद्ध रेशमी कृष्ण वस्त्र / काला रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।
6 -- काले तिल (सवाया लें।)
(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)
7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।)
(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)
8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।
काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।
और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।
9 -- गणेश पुराण या कल्याण का गणेश अङ्क या अष्टविनायक तिर्थ का विवरण, कथा, आरती आदि की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।
10 -- अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ ।
(अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)
11 -- कुश / कुशा का पौधा लें।
(कुश एक घाँस जो पवित्री के रुप में और श्राद्ध में पिण्डदान के पिण्ड का आसन के रुप में काम आती है। नगर/ ग्राम या घर के वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात केतु के पौराणिक मन्त्र --
पलाश पुष्प सङ्काश्
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।
का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।
अब केतु का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।
अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि और अष्ट विनायकों को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।
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