शनिवार, 8 फ़रवरी 2025

धर्म

धर्म का अर्थ, स्वरूप और लक्षण---

धर्म का अर्थ है,सृष्टि हितेशी, प्रकृति के अनुकूल स्वाभाविक कर्त्तव्य पालन के व्रत और नियम पालन करना ही धर्म है। इसके कुछ यम और कुछ नियम और कुछ संयम होते है।  स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ मानवों द्वारा आचरित आचरण धर्म है।
धर्म का स्वरूप पञ्चमहायज्ञों में परिलक्षित होता है।
धर्म लक्षण--- अहिंसा, अक्रोध, क्षमा , दया, करुणा, 
सत्य, ऋतु के अनुकूल होना,
अस्तेय, अलोभ, पराये धन, पर नारी के प्रति आकर्षण नहीं होना, ब्रह्मचर्य,संयम,निर्व्यसन होना,   
अपरिग्रह, दान
शोच, सन्तोष, शान्ति,पर दोष दर्शन न करना, अपने दोष निवारण,
स्वच्छता, पवित्रता,
तप, अन्द्रिय निग्रह, तितिक्षा, ईज्या अर्थात पञ्च महा यज्ञ, यज्ञ के लिए यज्ञ, यज्ञ-याग, पूजा आदि,  
ईश्वर प्राणिधान,
स्वाध्याय श्रवण, अध्ययन, मनन, चिन्तन, धी, विद्या, सद्गुणों के प्रति श्रद्धा।
ईश्वर प्राणिधान - सम्पूर्ण समर्पण, परमात्मा में अनन्य, अनन्त प्रेम- भक्ति।

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