शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

शनि के ३०,००० पौराणिक मन्त्र जप विधि।

*शनि की दान सामग्री एवम् जप विधि* ----

*नोट -- पहले शनि का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

नीलाञ्जन समाभासम् 
रविपुत्रम् यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम् 
तम् नमामि शनैश्चरम्।।


शनि का पौराणिक मन्त्र --

*नीलाञ्जन समाभासम् रविपुत्रम्यमाग्रजम्।*
*छाँयामार्तण्ड सम्भूतम् तम् नमामि शनैश्चरम्।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं शनि को बल प्रदान करने के निमित्त शनि की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

शनि के पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम् 
रविपुत्रम् यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम् 
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

शनि की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- नीलम / नीलमणि (Sapphire)
कश्मीर या सुमजावा की खान का 10 या 11 रत्ती का नीरम लें। 
(अथवा कोलम्बिया की खान का पन्ना Emerald लें।
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- महिषी / देशी भैस

यदि सामर्थ्य न हो तो --
लोह पत्र या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी महिषी या भैंस या शनि की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- लोह / लोहा का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार कढ़ाई, खोँचा, सढ़सी, चिमटा,तवी तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- काली भेड़ के उन से बना काला कम्बल या काली शाल।

6 -- खड़े काले उड़द (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खड़े काले उड़द लेलें चलेगा।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- यम सुक्त, अर्यमा सुक्त, या अश्विनीकुमारों का सुक्त या कठोपनिषद या यमगीता की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी की जड़ । (बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- शमि या खेजड़ी, का पौधा लें। 
(नगर/ ग्राम या घर के पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शनि का पौराणिक मन्त्र -- 

नीलाञ्जन समाभासम् 
रविपुत्रम् यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम् 
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर शनि का पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम् 
रविपुत्रम् यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम् 
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 30,000 (तीस हजार) यानि 300 माला पुर्ण होने के बाद अगले शनिवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

30,000 (तीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 300 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शनिवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)
 
2 -- नीलम / नीलमणि (Sapphire)
कश्मीर या सुमजावा की खान का 10 या 11 रत्ती का नीरम लें। 
(अथवा कोलम्बिया की खान का पन्ना Emerald लें।
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- महिषी / देशी भैस

यदि सामर्थ्य न हो तो --
लोह पत्र या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी महिषी या भैंस या शनि की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- लोह / लोहा का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार कढ़ाई, खोँचा, सढ़सी, चिमटा,तवी तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- काली भेड़ के उन से बना काला कम्बल या काली शाल।

6 -- खड़े काले उड़द (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खड़े काले उड़द लेलें चलेगा।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- यम सुक्त, अर्यमा सुक्त, या अश्विनीकुमारों का सुक्त या कठोपनिषद या यमगीता की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी की जड़ । (बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- शमि या खेजड़ी, का पौधा लें। 
(नगर/ ग्राम या घर के पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शनि के पौराणिक मन्त्र -- 

नीलाञ्जन समाभासम् 
रविपुत्रम् यमाग्रजम्।
छाँया मार्तण्ड सम्भूतम् 
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

शनि का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

 *सहयोगी उपाय ---* 

शनि के अधिदेवता यमराज हैं और प्रत्यधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा हैं।
शनि सूर्य और सरण्यु की बहन छाँया के पुत्र और शनिदेव सूर्य और सरण्यु (संज्ञा) के पुत्र यमराज और यमुना तथा सूर्य और (सरण्यु के ही रूप) अश्विनी की सन्तान नासत्य और दस्र यानि आयुर्वेद के आदि वैद्य अश्विनी कुमारों के भाई हैं। 
नासत्य की पत्नी का नाम देवी है। जो मानव शरीर की अधिष्ठात्री देवी मानी गई है। तथा दस्र की पत्नी मायाद्री (माया की देवी) मानी गई है।
सृष्टि में सर्वप्रथम मरनें वाले यमराज को मृत्यु का देवता नियुक्त कर मृत्युलोक का नियन्ता/ शासक बनाया गया।
शनि की सगी बहन मान्दी है। मान्दी को ताजिक (वर्षफल) में ग्रह मानी गई है।

अतः शनि को बलवान बनानें के लिए तथा शनिदेव को प्रसन्न करनें के लिए सबसे महत्वपूर्ण धर्माचरण, सदाचारी जीवन, आयुर्वेद के नियमों का दृढ़ता पूर्वक पालन करते हुए जीना है। 
 यमराज और देवताओं के भी पितामह प्रजापति की पूजन करके पीपल के वृक्ष की पुजा करके ताम्बे के कलश में पानी में दो चम्मच कच्चा दूध, दो बून्द शहद डाल कर उस जल से सिंचते हुए पिपल की सात प्रदक्षिणा रोज करें। काली गाय को रोटी में थोड़े से उड़द और काले तिल रखकर खिलाना चाहिए।

केतु के २३,००० पौराणिक मन्त्र जप विधि ।

*केतु की दान सामग्री एवम् जप विधि* ----

*नोट -- पहले केतु का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

पलाश पुष्प सङ्काश् 
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् 
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

केतु का पौराणिक मन्त्र --

*पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।*
*रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें। 
शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि, -- है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं केतु की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें।
 क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर फिर 

केतु के पौराणिक मन्त्र --

पलाश पुष्प सङ्काश् 
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् 
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

केतु की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- चान्दी का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार चान्दी का काँटा, कंगन से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) म्यांमार की गोमोक खान का 3,या 5 या 6 या 7 कैरेट का लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) लें। 
किन्तु 2 या 4 या 12 या 13 रत्ती का न लें।

(या गोदन्ती मणि लें या
 सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- कोई भी अनाज या अन्न/ धान्य/ सस्य ले लें।

या केतु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- ताम्र / ताम्बा Copper का बर्तन लें ।

सामर्थ्य अनुसार ताम्र / ताम्बा Copper की, आचमनी,या तरभाणा,या कलश या जग, घड़ा यथा सामर्थ्य जो लेसकें ले लें ।

5 -- कृष्ण वस्त्र / काला कपड़ा ।

(सुती या शुद्ध रेशमी कृष्ण वस्त्र / काला रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।

6 -- काले तिल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- गणेश पुराण या कल्याण का गणेश अङ्क या अष्टविनायक तिर्थ का विवरण, कथा, आरती आदि की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ ।

(अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- कुश / कुशा का पौधा लें। 

(कुश एक घाँस जो पवित्री के रुप में और श्राद्ध में पिण्डदान के पिण्ड का आसन के रुप में काम आती है। नगर/ ग्राम या घर के वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात केतु का पौराणिक मन्त्र -- 

पलाश पुष्प सङ्काश् 
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् 
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर केतु का पौराणिक मन्त्र --

पलाश पुष्प सङ्काश् 
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् 
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 23,000 (तेईस हजार ) यानि 230 माला पुर्ण होने के बाद अगले शनिवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

23,000 (तेईस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 230 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शनिवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- चान्दी का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार चान्दी का काँटा, कंगन से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) म्यांमार की गोमोक खान का 3,या 5 या 6 या 7 कैरेट का लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) लें। 
किन्तु 2 या 4 या 12 या 13 रत्ती का न लें।

(या गोदन्ती मणि लें या
 सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- कोई भी अनाज या अन्न/ धान्य/ सस्य ले लें।

या केतु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- ताम्र / ताम्बा Copper का बर्तन लें ।

सामर्थ्य अनुसार ताम्र / ताम्बा Copper की, आचमनी,या तरभाणा,या कलश या जग, घड़ा यथा सामर्थ्य जो लेसकें ले लें ।

5 -- कृष्ण वस्त्र / काला कपड़ा ।

(सुती या शुद्ध रेशमी कृष्ण वस्त्र / काला रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।

6 -- काले तिल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- गणेश पुराण या कल्याण का गणेश अङ्क या अष्टविनायक तिर्थ का विवरण, कथा, आरती आदि की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ ।

(अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- कुश / कुशा का पौधा लें। 

(कुश एक घाँस जो पवित्री के रुप में और श्राद्ध में पिण्डदान के पिण्ड का आसन के रुप में काम आती है। नगर/ ग्राम या घर के वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात केतु के पौराणिक मन्त्र -- 

पलाश पुष्प सङ्काश् 
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् 
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

अब केतु का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि और अष्ट विनायकों को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

राहु के २४,००० पौराणिक मन्त्र जप विधि।

*राहु की दान सामग्री एवम् २४० माला जप विधि* ----

*नोट -- पहले राहु का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

अर्धकायम् महा वीर्यम् 
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् 
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।


राहु का पौराणिक मन्त्र --

*अर्धकायम् महावीर्यम् चन्द्रादित्यविमर्दनम्।*
*सिंहिकागर्भ सम्भूतम् तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें। 
शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि, -- है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं राहु की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें।
 क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर फिर 

राहु के पौराणिक मन्त्र --

अर्धकायम् महा वीर्यम् 
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् 
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

राहु की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 

2 -- गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) सिंहल द्वीप/ श्रीलंका की खान का 6 या 11 या 13 कैरेट का गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) लें। 
किन्तु 3 या 6 केरेट का न लें।

(या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- अरबी कृष्णाश्व / अरबी काला घोड़ा लें।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
सीसा/ कथीर के पत्रे या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी गई कृष्ण अश्व या काले घोड़े या राहु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- सीसा / कथीर Lead की छड़ या प्लेट जो मिले ले लें ।

सामर्थ्य अनुसार छड़ या प्लेट कुछ भी लेलें (चलेगा)। बेटरी सेल का खोल सीसे का होता है। यह निकल और टीन से मिलता जुलता किन्तु अलग धातु है। बोहरोंक्षके पास मिल सकता है।पहले छत की चद्दर / पतरे पर वायसर लगाने के काम आता था।
कटोरी में रख कर गरम करने पर पिघल जाता है।और कागज के पेन्सिल नुमा साँचे में डालो तो ठण्डा होते ही जम जाता है।कागज पर पेन्सिल मार्क जैसा इससे लिख भी सकते हैं।

5 -- नीला Indigo या आसमानी Blue वस्त्र।

(सुती या शुद्ध रेशमी नीले रंग Indigo का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।

6 -- काले तिल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- नाग मन्त्र, निऋति सुक्त, रक्षोहा सुक्त, यातुधान सुक्त, महाभारत आस्तिक पर्व या भैरवाष्टक, भैरव आरती की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- मलय चन्दन की जड़ ।

(मलय चन्दन की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- दुर्वा / दुब का पौधा लें। 

(दुर्वा एक घाँस जो गणेशजी को प्रिय है। नगर/ ग्राम या घर के नैऋत्य कोण यानि दक्षिण पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात राहु का पौराणिक मन्त्र -- 

अर्धकायम् महा वीर्यम् 
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् 
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर राहु का पौराणिक मन्त्र --

अर्धकायम् महा वीर्यम् 
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् 
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 24,000 (चौवीस हजार ) यानि 240 माला पुर्ण होने के बाद अगले शनिवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

24,000 (चौवीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 240 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शनिवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)
 
2 -- गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) सिंहल द्वीप/ श्रीलंका की खान का 6 या 11 या 13 कैरेट का गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) लें। 
किन्तु 3 या 6 केरेट का न लें।

(या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- अरबी कृष्णाश्व / अरबी काला घोड़ा लें।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
सीसा/ कथीर के पत्रे या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी गई कृष्ण अश्व या काले घोड़े या राहु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- सीसा / कथीर Lead की छड़ या प्लेट जो मिले ले लें ।

सामर्थ्य अनुसार छड़ या प्लेट कुछ भी लेलें (चलेगा)। बेटरी सेल का खोल सीसे का होता है। यह निकल और टीन से मिलता जुलता किन्तु अलग धातु है। बोहरोंक्षके पास मिल सकता है।पहले छत की चद्दर / पतरे पर वायसर लगाने के काम आता था।
कटोरी में रख कर गरम करने पर पिघल जाता है।और कागज के पेन्सिल नुमा साँचे में डालो तो ठण्डा होते ही जम जाता है।कागज पर पेन्सिल मार्क जैसा इससे लिख भी सकते हैं।

5 -- नीला Indigo या आसमानी Blue वस्त्र।

(सुती या शुद्ध रेशमी नीले रंग Indigo का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।

6 -- काले तिल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- नाग मन्त्र, निऋति सुक्त, रक्षोहा सुक्त, यातुधान सुक्त, महाभारत आस्तिक पर्व की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- मलय चन्दन की जड़ ।

(मलय चन्दन की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- दुर्वा / दुब का पौधा लें। 

(दुर्वा एक घाँस जो गणेशजी को प्रिय है। नगर/ ग्राम या घर के नैऋत्य कोण यानि दक्षिण पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात राहु के पौराणिक मन्त्र -- 

अर्धकायम् महा वीर्यम् 
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् 
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

अब राहु का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

गुरु बृहस्पति के २५,००० पौराणिक मन्त्र जप विधि।

*बृहस्पति की दान सामग्री एवम् जप विधि* ----

*नोट -- पहले बृहस्पति का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --
 
अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धि भूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

*देवानाम् च ऋषिणाम् च गुरुम्काञ्चनसन्निभम्।*
*बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् तम्नमामि बृहस्पतिम्।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ बुधवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो पीला पुष्प गुरुवार को सुबह भी ले सकते हैं।

 गुरुवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि गुरुवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं बृहस्पति ( गुरु) को बल प्रदान करने के निमित्त बृहस्पति ( गुरु) की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

बृहस्पति (गुरु) की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- पुष्पराग / पुखराज ( Topaz .)

ब्राजील की खान का जो माणिक्य के साथ मिला हो ऐसा का पीला पुखराज 7 या 12 केरेट का लें। किन्तु 6 या 11 या 15 केरेट ना लें।
(सामर्थ्य न हो तो सुनेला या पीला सोनेला ( साइट्रोन ) ले लें।

या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही लेलें।)

3 -- गज (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी/ उभरी हुई हाथी या बृहस्पति की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य पात्र यानि काँसे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- पीत वस्त्र / पीला कपड़ा

(यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का पीले रङ्ग का कपड़ा (भगवान विष्णु के पीताम्बर के रंग का कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- देशी चने की दाल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव , देशी / काँटेवाले/ कत्थई रंग के चने की दाल ले लें।)

7 -- शकरा यानि खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर ही लें।)

8 -- पीत पुष्प / पीला रङ्ग का फुल ले लें।

(पीला गुलाब या वैजन्ती या कदली पुष्प या पीली कनेर (करवीर) का फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- ब्रह्मणस्पत्ति सुक्त या बृहस्पति सुक्त या ब्रह्म पुराण या ब्रह्म वैवर्त पुराण आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ । 
(नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ 
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।नारङ्गी का फल सन्तरा / सन्तरे और कीनु के फल से भिन्न फल है । यह उपर और नीचे चपटी होती है।)

11 -- पीपल का पौधा का पौधा लें।
 (नोट -- नगर/ ग्राम / घर के उत्तर में लगाना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र -- 

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें। एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन गुरुवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर बृहस्पति का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 25,000 (पच्चीस हजार) यानि 250 माला पुर्ण होने के बाद अगले गुरुवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

25,000 (पच्चीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 250 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी गुरुवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- पुष्पराग / पुखराज ( Topaz .)

ब्राजील की खान का जो माणिक्य के साथ मिला हो ऐसा का पीला पुखराज 7 या 12 केरेट का लें। किन्तु 6 या 11 या 15 केरेट ना लें।
(सामर्थ्य न हो तो सुनेला या पीला सोनेला ( साइट्रोन ) ले लें।
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही लेलें।)

3 -- गज (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी हाथी या बृहस्पति की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य पात्र यानि काँसे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- पीत वस्त्र / पीला कपड़ा

(यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का पीले रङ्ग का कपड़ा (भगवान विष्णु के पीताम्बर के रंग का कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- देशी चने की दाल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव , देशी / काँटेवाले/ कत्थई रंग के चने की दाल ले लें।)

7 -- शकरा यानि खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खाण्ड / खाण्डसारी यानि पीली शकर ही लें।)

8 -- पीत पुष्प / पीला रङ्ग का फुल ले लें।

(पीला गुलाब या वैजन्ती का पुष्प या कदली पुष्प या पीली कनेर (करवीर) का फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- ब्रह्मणस्पत्ति सुक्त,या बृहस्पति सुक्त या ब्रह्म पुराण या ब्रह्म वैवर्त पुराण आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ । 
(नारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़ 
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें। 
नारङ्गी का फल सन्तरा / सन्तरे और कीनु से भिन्न फल है । यह उपर और नीचे चपटी होती है।)

11 -- पीपल का पौधा का पौधा लें।
 (नोट -- नगर/ ग्राम / घर के उत्तर में लगाना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बृहस्पति (गुरु) के पौराणिक मन्त्र -- 

देवानाम् च ऋषिणाम् च 
गुरुम् काञ्चन सन्निभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम् 
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

 बृहस्पति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा, , बृहस्पत्ति,ध्रुव तारा, विद्युत- पर्जन्य, आकाश,वायु,अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

 *सहायक कर्म* 

देवगुरु ब्रहस्पति के अधिदेवता - हिरण्यगर्भ ब्रह्मा हैं। और प्रजापति ब्रह्मा, देवगुरु ब्रहस्पति देवता, ब्रह्मणस्पति और वाचस्पति की आराधना उपासना से भी ब्रहस्पति प्रसन्न रहते हैं।
ब्रहस्पति के प्रत्यधिदेवता देवराज इन्द्र हैं। लक्ष्मीनारायण के साथ इन्द्र की पूजन से भी देवगुरु ब्रहस्पति प्रसन्न होते हैं।

केले के पौधे की पूजा करके ताम्बे के कलश में पानी में दो चम्मच कच्चा दूध, दो बून्द शहद डाल कर उस जल से सिंचते हुए केले के पौधे की सात प्रदक्षिणा रोज करें। देशी गाय का घीँ लगी रोटी में देशी चनें की दाल रखकर खिलाना।
देशी चना यानी कत्थई रङ्ग का नोंकवाला चना जिसे काला चना भी बोलते हैं। या काँटे वाला चना भी बोलते हैं।

मंगल के पन्द्रह हजार पौराणिक मन्त्र जप विधि

*मङ्गल की दान सामग्री एवम् १५० माला जप विधि* ----

*नोट -- पहले मङ्गल का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* -- 

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

धरणी गर्भ सम्भूतम् विद्युत कान्ति समप्रभम्।
कुमारम् शक्ति हस्तम् तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

मङ्गल का पौराणिक मन्त्र --

*धरणीगर्भसम्भूतम् विद्युतकान्तिसमप्रभम्।*
*कुमारम् शक्तिहस्तम् तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ सोमवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो रक्त पुष्प मंगलवार को सुबह भी ले सकते हैं।
 मंगलवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि मंगलवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं मङ्गल को बल प्रदान करने के निमित्त मङ्गल की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ।कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

मङ्गल के पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भसम्भूतम् विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम् तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

मङ्गल की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- प्रवाल / मूङ्गा ( Coral .)
मार्सडीज / सर्डानिया / सिसली या कोर्सिका (भूमध्यसागर) का मूंगा 8,9,12 या 12 रत्ती का लें। 
किन्तु 5 या 14 रत्ती न लें।

(अथवा विद्रुममणी या सङ्गमूङ्गी
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- रक्त वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
 ताम्बे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या मङ्गल की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- तामृ / ताम्बे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- रक्त वस्त्र 
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का लाल चोल का कपड़ा (हनुमानजी की लङ्गोट जैसा लाल कपड़ा। 

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े / पुरे मसूर (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खड़े मसूर यानि पुरे मसूर लेलें दाल न लें ।)

7 -- गन्ने के रस से बना मालवी गुड़। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- रक्त पुष्प / फुल ले लें।

(लाल गुलाब या लाल कनेर (करवीर) या गुडहल कोई भी लाल फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- अग्नि पुराण,स्कन्द पुराण, पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नागजीव्हा की जड़ । (नागजीव्हा की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- खेर, (कत्था), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात मङ्गल का पौराणिक मन्त्र -- 

धरणीगर्भसम्भूतम् विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम् 
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन मंगलवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर मङ्गल का पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भसम्भूतम् विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम् 
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 15,000 (पन्द्रह हजार) यानि 150 माला पुर्ण होने के बाद अगले मंगलवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

15,000 (पन्द्रह हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 150 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी मंगलवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- प्रवाल / मूङ्गा ( Coral .)
मार्सडीज / सर्डानिया / सिसली या कोर्सिका (भूमध्यसागर) का मूंगा 8,9,12 या 12 रत्ती का लें। 
किन्तु 5 या 14 रत्ती न लें।

(अथवा विद्रुममणी या सङ्गमूङ्गी
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- रक्त वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
 ताम्बे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या मङ्गल की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- तामृ / ताम्बे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- रक्त वस्त्र 
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का लाल चोल का कपड़ा (हनुमानजी की लङ्गोट जैसा लाल कपड़ा। 

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े / पुरे मसूर (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव खड़ेमसूर यानि पुरे मसूर लेलें दाल न लें ।)

7 -- गन्ने के रस से बना मालवी गुड़। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- रक्त पुष्प / फुल ले लें।

(लाल गुलाब या लाल कनेर (करवीर) या गुडहल कोई भी लाल फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- अग्नि पुराण,स्कन्द पुराण, यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- नागजीव्हा की जड़ । (नागजीव्हा की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- खेर, (कत्था), का पौधा लें।
उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात मङ्गल के पौराणिक मन्त्र -- 

धरणीगर्भसम्भूतम् विद्युतकान्तिसमप्रभम्।
कुमारम् शक्तिहस्तम् 
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

 मङ्गल का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,मङ्गल , बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश,वायु,अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।


सहयोगी उपाय।

मंगल का अधिदेवता स्कन्ध (कार्तिकेय) हैं। और प्रत्यधिदेवता भूमि है। अग्नि, कार्तिकेय और भूमि के पूजन से मंगल प्रसन्न रहते हैं।
भूमि मंगल की माता हैं अतः प्रातः भूस्पर्ष के पहले भूमि वन्दना करनें से भी मंगल प्रसन्न रहते हैं। भूमि के स्वामी भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं।⤵️ 
समुद्र वसने देवि, पर्वतस्तन मण्डिते;
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शम् क्षमस्व में।

सूर्य के दस हजार पौराणिक मन्त्र जप विधि।

*सुर्य की दान सामग्री एवम् सौ माला जप विधि* ----

*नोट -- पहले ये दो मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

उच्चारण की सुविधा हेतु अन्वय सहित सावित्री / गायत्री मन्त्र -- 

ओ३म् भूः भूवः स्वः ।
तत् सवितुः वरेण्यम् ।
भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

सावित्री / गायत्री मन्त्र

*ओ३म् भूर्भूवः स्वः।*
*तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

उच्चारण की सुविधा हेतु अन्वय सहित सुर्य का पौराणिक मन्त्र --

जपा कुसुम संकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोअ्रिम् सर्व पापघ्नम् प्रणतो अ्स्मि दिवाकरम् ।।

सुर्य का पौराणिक मन्त्र -- 

*जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शनिवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।
घर में ही पौधे में लगा हो या सम्भव हो तो रक्त पुष्प रविवार को सुबह भी ले सकते हैं।

 रविवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें।

 रविवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं सुर्य को बल प्रदान करने के निमित्त सुर्य की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ।
दान सामग्री कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले। गायत्री मन्त्र --

ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

का एक बार जप कर फिर ; सुर्य के पौराणिक मन्त्र --

जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।

का एक बार जप कर 
दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

सुर्य की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा ले लें।)
 
2 -- माणिक Dubey 3 रत्ती।

(अथवा कंटकिज मणी Spinel स्पाइनल या तामड़ा Garnet .
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- लाल वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे की शीट पर उकेरी हुई वृषभ प्रतिमा ले लें।
 या चान्दी के पत्रे फर उकेरी सुर्य की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है वह ले लें।

4 -- ताम्र ताम्बे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें ।

5 -- शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का चटकीला लाल कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ही हो। चटक लाल रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य लेलें ।)

6 -- गेहूँ (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव चन्दोसी से लेकर लोकवन तक कोई सा भी गेहूँ ले लें।)

7 -- गन्ने से बना मालवी गुड़।(सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- लाल पुष्प।

लाल गुलाब, लाल कनेर, या गुडहल का फुल लेलें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- चारों वेद, ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद, श्रोतसुत्र, ग्रह्य सुत्र, शुल्बसुत्र,धर्मसुत्र, पुर्वमिमांसा, उत्तरमीमांसा दर्शन, सांख्य कारिका और सांख्य दर्शन और योग दर्शन, न्याय और वैशेषिक दर्शन, मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति, वाल्मीकि रामायण- महाभारत,सुर्यसुक्त, उषःसुक्त, चाक्षुषोपनिषद, सन्ध्योपासना विधि, सावित्री जप/ गायत्री जप विधि, आदित्यहृदय स्तोत्र आदि यथा सामर्थ्य कुछ भी लेलें।

10 -- बैंत की जड़ या बैल मूल। ( बि्ल्वपत्र की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- मले में अर्क/ आँक /आँकड़े का पौधा लेलें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात सुर्य के पौराणिक मन्त्र -- 
जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।

का जप करें। फिर गायत्री मन्त्र --

ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

का जप एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर सुर्य का पौराणिक मन्त्र --

जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 10,000 (दस हजार)यानि 100 माला पुर्ण होने के बाद अगले रविवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

10,000 (दस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 100 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी रविवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

सुर्य की निम्नलिखित दान सामग्रियाँ --
1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- माणिक Dubey 3 रत्ती।

(अथवा कंटकिज मणी Spinel स्पाइनल या तामड़ा Garnet .
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- लाल वृषभ। (लाल रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
ताम्बे की शीट पर उकेरा वृषभ।
 या चान्दी के पत्रे उकेरी सुर्य की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है।

4 -- ताम्र ताम्बे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी से लेकर घड़े तक कुछ भी चलेगा।

5 -- चटकीला लाल या गुलाबी शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ही हो। ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।)

6 -- गेहूँ (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव चन्दोसी से लेकर लोकवन तक कोई सा भी गेहूँ।)

7 -- गन्ने से बना मालवी गुड़।(सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव मालवी गुड़ ही लें।)

8 -- लाल पुष्प।

लाल गुलाब, लाल कनेर, या गुडहल का फुल।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- चारों वेद, ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद, श्रोतसुत्र, ग्रह्य सुत्र, शुल्बसुत्र,धर्मसुत्र, पुर्वमिमांसा, उत्तरमीमांसा दर्शन, सांख्य कारिका और सांख्य दर्शन और योग दर्शन, न्याय और वैशेषिक दर्शन, मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति, वाल्मीकि रामायण- महाभारत,सुर्यसुक्त, उषःसुक्त, चाक्षुषोपनिषद, सन्ध्योपासना विधि, सावित्री जप/ गायत्री जप विधि, आदित्यहृदय स्तोत्र आदि यथा सामर्थ्य कुछ भी ।

10 -- बैंत की जड़ या बैल मूल। ( बि्ल्वपत्र की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- अर्क/ आँक /आँकड़े का पौधा।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात सुर्य के पौराणिक मन्त्र -- 

जपाकुसुमसंकाशम् काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम् सर्वपापघ्नम् प्रणतोsस्मि दिवाकरम् ।।
का जप करें।

फिर गायत्री मन्त्र --

ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

इसके बाद उगते सुर्य को अर्ध्य देते हुएँ नित्य केवल गायत्री मंत्र

ओ३म् भूर्भूवः स्वः ।
तत्सवितुर्वरेण्यम् ।
भर्गोदेवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

का ही जप यथाशक्ति करना चाहिए।
 सुर्य का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

विशेष - 
सहायक उपाय -
वेदों में सूर्य को विष्णु स्वरूप माना है।सूर्य जनक, प्रेरक और रक्षक है अर्थात सूर्य को ही सवितृ कहा गया है।सूर्य का प्रकाश सावित्री है। सूर्य को सूर्यनारायण कहते हैं। सूर्य की परिक्रमा करने वाली भूदेवी है। सूर्य को प्रजापति भी कहा है और देवता, मानव असुर सब प्रजा है।तथा सूर्य को  प्राण कहा गया है। सूर्य सौरमण्डल का केन्द्र (नाभि) है।  अर्थात सामान्य अर्थ में सूर्य सौर मण्डल का नियन्ता होनें से शासक या ईश्वर माना गया है। अतः सूर्य का अधिदेवता ईश्वर यानी सवितृदेव है। (न कि, ईशान या शंकर।)
सूर्य का प्रत्यधिदेवता अग्नि है।क्योंकि, अग्नि परमात्मा का मुख है। और सूर्य भी अग्नि स्वरूप है। रूप तन्मात्रा अग्नि की है। रूप दर्शन के लिए प्रकाश चाहिए जो सूर्य से मिलता है। स्वरूप दर्शन हैतु ज्ञान चाहिए। सूर्य को गुरुओं का गुरु कहा है।
सन्यासी, ब्राह्मण तुलसीदास जी के गुरु हनुमान और हनुमान के गुरु सूर्य।
देवगुरु ब्रहस्पति से भी वरिष्ठ प्रजापति सूर्य को ही माना है। 

सूर्य स्वयम् सवितृदेव,साक्षात धर्मस्वरूप सूर्य की सन्तान  धर्मराज यम,यमुना, दण्डाधिकारी शनि, मान्दी, तथा आयुर्वेद के जनक अश्विनी कुमार नासत्य और दस्र हैं।

 ईष्टि (अग्निहोत्र) और अष्टाङ्गयोग साधना तथा वेदशास्त्र स्वाध्याय, धर्मपालन, और सदाचारी जीवन, आयुर्वेद के नियमों का पालन करना ही सूर्य को बलवान बनानें का उपाय है।

अतः सूर्य को बल देनें के लिए सन्ध्योपासना , गायत्री जप करके सूर्य को नमस्कार कर और सूर्य को अर्घ्य देना, अष्टाङ्गयोग  साधन, वेदिक स्वाध्याय करना  पञ्चमहायज्ञ सेवन ,प्रातः सन्ध्या में सूर्योदय पश्चात और सायम् सन्ध्या मे सूर्यास्त के पूर्व दैनिक अग्निहोत्र करना।

सायन संक्रान्तियों और निरयन संक्रान्तियों तथा पूर्णिमा, अमावस्या के अन्त में मासिक अग्निहोत्र करना।

प्रत्यैक दो सायन संक्रान्तियों पर ऋतुओं के आरम्भ में ऋतु यज्ञ अग्निहोत्र करना।
प्रत्यैक तीन सायन संक्रान्तियों पर अयन तोयन आरम्भ पर अयन का अग्निहोत्र या योयन का अग्निहोत्र करना। अर्थात 

सायन मेष संक्रान्ति 21 मार्च को संवत्सरारम्भ, वेदिक उत्तरायण (पौराणिक उत्तर गोल) आरम्भ ,  वेदिक वसन्त ऋतु आरम्भ तथा वेदिक मधुमासारम्भ का संयुक्त अग्निहोत्र करें।

सायन कर्क  संक्रान्ति 22 जून को   वेदिक दक्षिण तोयन (पौराणिक दक्षिणायन), वेदिक शचिमासारम्भ का अग्निहोत्र करें।

सायन तुला संक्रान्ति 23 सितम्बर को वेदिक दक्षिणायन (पौराणिक दक्षिण गोल गोल) आरम्भ ,  वेदिक शरद ऋतु आरम्भ तथा वेदिक ईष मासारम्भ का संयुक्त अग्निहोत्र करें।

सायन मकर  संक्रान्ति 22 दिसम्बर को   वेदिक उत्तर तोयन (पौराणिक उत्तरायण), वेदिक  सहस्य मासारम्भ का अग्निहोत्र करें।
सूर्यग्रहण की अवधि में ग्रहण आरम्भ के पूर्व स्नान कर शरीर गीला रहते ही नदि सङ्गम / तिर्थ में या घरपर ही स्वच्छ, पवित्र और शुद्ध रहकर गायत्री मन्त्र जप आरम्भ करना। और ग्रहण समाप्ति पर पुनः स्नान कर जप पूर्ण कर दान करना। और अग्निहोत्र कर शुद्धि करना।
(सुचना -- इन यज्ञों में सभी मुख्य पर्वोत्सव आजाते हैं। इसमें स्वतः सूर्य आराधना होजाती है।)

शुक्र के २१,००० पौराणिक मन्त्र जप की विधि

*शुक्र की दान सामग्री एवम् जप विधि* ----

*नोट -- पहले शुक्र का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

हिमकुन्द मृणालाभम् 
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
 सर्व शास्त्र प्रवक्तारम् 
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

शुक्र का पौराणिक मन्त्र --

*हिमकुन्दमृणालाभम् दैत्यानाम्परमम्गुरुम्।*
 *सर्वशास्त्र प्रवक्तारम् भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।। ।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ गुरुवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो श्वेत पुष्प शुक्रवार को सुबह भी ले सकते हैं।
 शुक्रवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि शुक्रवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं शुक्र को बल प्रदान करने के निमित्त शुक्र की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

शुक्र के पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्द मृणालाभम् 
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
 सर्व शास्त्र प्रवक्तारम् 
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

शुक्र की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- हीरा / हीरक (Diamond)
बुन्देलखण्ड की सोन नदी से दक्षिण भारत की पिनेर नदी के बीच के क्षेत्र का वारितिर हीरा 0.25 से 0.5 केरेट का हीरा लें। 
किन्तु 2 या 6 रत्ती का हीरा न लें।

(अथवा श्रीलंका की खान का गोमेद Zircon या फारस की खाड़ी का मोती Pearl 
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- श्वेत वस्त्राच्छादित श्वेत वृषभ। या कोई भी पशु (सफेद कपड़ा औढ़ाया हुआ सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल या कोई भी पशु चलेगा।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
 या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या शुक्र की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- रोप्य / चांदी का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- चित्र विचित्र वस्त्र 
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का रङ्गबिरङ्गा कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव बाँसमति, कालीमुछ कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)

7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)

8 -- श्वेत पुष्प।

सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- रुद्र अष्टाध्यायी या शिव पुराण, या शिवमहिम्न स्तोत्र पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- अरण्डे या वाघण्टी की जड़ । (अरण्डे या वाघण्टी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- गुलर, का पौधा लें। 
(नगर/ ग्राम या घर के पुर्व दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शुक्र का पौराणिक मन्त्र -- 

हिमकुन्द मृणालाभम् 
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
 सर्व शास्त्र प्रवक्तारम् 
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शुक्रवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर शुक्र का पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्द मृणालाभम् 
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
 सर्व शास्त्र प्रवक्तारम् 
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।
एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 21,000 (एक्कीस हजार) यानि 210 माला पुर्ण होने के बाद अगले शुक्रवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

21,000 (एक्कीस हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 210 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी शुक्रवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)
 
2 -- हीरा / हीरक (Diamond)
बुन्देलखण्ड की सोन नदी से दक्षिण भारत की पिनेर नदी के बीच के क्षेत्र का वारितिर हीरा 0.25 से 0.5 केरेट का हीरा लें। 
किन्तु 2 या 6 रत्ती का हीरा न लें।

(अथवा श्रीलंका की खान का गोमेद Zircon या फारस की खाड़ी का मोती Pearl 
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- श्वेत वस्त्राच्छादित श्वेत वृषभ। या कोई भी पशु (सफेद कपड़ा औढ़ाया हुआ सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल या कोई भी पशु चलेगा।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
 या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या शुक्र की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- रोप्य / चांदी का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- चित्र विचित्र वस्त्र 
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का रङ्गबिरङ्गा कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव बाँसमति, कालीमुछ कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)

7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)

8 -- श्वेत पुष्प।

सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- रुद्र अष्टाध्यायी या शिव पुराण, या शिवमहिम्न स्तोत्र पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- अरण्डे या वाघण्टी की जड़ । (अरण्डे या वाघण्टी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- गुलर, का पौधा लें। 
(नगर/ ग्राम या घर के पुर्व दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात शुक्र के पौराणिक मन्त्र -- 

हिमकुन्द मृणालाभम् 
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
 सर्व शास्त्र प्रवक्तारम् 
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

शुक्र का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।


शुक्र के अधिदेवता इन्द्र और प्रत्यधिदेवता इन्द्राणी (शचि) है। शतक्रतु इन्द्र और इन्द्राणी (शचि) की पूजन के पहले लक्ष्मीनारायण और देवगुरु ब्रहस्पति की पूजा अवश्य करलें। तत्पश्चात कीगई पूजा ही इन्द्र इन्द्राणी स्वीकारते हैं।

सुचना --- अकेली लक्ष्मी की आराधना भी कभी नही की जाती। सदैव नारायण के साथ ही श्रीलक्ष्मी की आराधना करना चाहिए।
अतः पुरुष सूक्त, उत्तर नारायण सूक्त के पाठ के पश्चात ही श्रीसूक्त और लक्ष्मीसूक्त का पाठ होता है।

बुध के पौराणिक ६,००० मन्त्र जप विधि।

*बुध की दान सामग्री एवम् जप विधि* ----

*नोट -- पहले बुध का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --
 
अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

प्रियङ्गु कलिका श्यामम् 
रुपेण अप्रतिम् बुधम् ।
सौम्यम् सौम्यगुण उपेतम् 
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

बुध का पौराणिक मन्त्र --

*प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।*
*सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम् तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ मंगलवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो हरित पुष्प बुधवार को सुबह भी ले सकते हैं।
 बुधवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि बुधवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं बुध को बल प्रदान करने के निमित्त बुध की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

बुध के पौराणिक मन्त्र --

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम्
रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

बध की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- पन्ना ( Emerald .)
कोलम्बिया का पन्ना लें। 

(अथवा हरित नील मणि Aquamarine लें
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- गज (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी हाथी या बुध की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य / काँसे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- हरित वस्त्र / हरा कपड़ा

(यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का हरे रङ्ग का कपड़ा (भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के हरे रंग जैसा हरा कपड़ा। )

(शुद्ध रेशम या सुती शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े हरे मूँगिया मूँग / पुरे हरे मूँगिया मूँग (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव , खड़ेमूँग यानि पुरे मूँग लेलें ।)

7 -- देशीगौ के दूध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव देशीगाय के दुध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ ही लें।)

8 -- हरित पुष्प / हरा रङ्ग का फुल ले लें।

(हरा गुलाब या हरा चम्पा, केतकी (केवड़ा) या कोई भी फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- वेदिक विष्णुसुक्त, उत्तर नारायण सुक्त सहित पुरुषसूक्त, श्रीमद्भगवद्गीता, वाल्मीकि रामायण, गर्ग संहिता, विष्णु सहस्रनाम, गजेन्द्र मौक्ष विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, कुर्म पुराण, वराहपुराण, नृसिंह पुराण, वामन पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, गरुड़पुराण, आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- बिदायरा या बरधारा की जड़ । 
(बिदायरा या बरधारा की जड़ 
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- अपामार्ग, (आँधीझाड़ा), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बुध का पौराणिक मन्त्र -- 

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन बुधवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर बुध का पौराणिक मन्त्र --

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 6,000 (छः हजार) यानि 60 माला पुर्ण होने के बाद अगले बुधवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

6,000 (छः हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 60 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी बुधवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- पन्ना ( Emerald .)
कोलम्बिया का पन्ना लें। 

(अथवा हरित नील मणि Aquamarine लें
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- गज (हाथी) ।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
काँसे या चान्दी के पत्रे पर उकेरी हाथी या बुध की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- काँस्य / काँसे का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार प्लेट, थाली, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- हरित वस्त्र / हरा कपड़ा

(यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का हरे रङ्ग का कपड़ा (भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के हरे रंग जैसा हरा कपड़ा। )

( सुती या शुद्ध रेशम का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- खड़े हरे मूँगिया मूँग / पुरे हरे मूँगिया मूँग (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव , खड़ेमूँग यानि पुरे मूँग लेलें ।)

7 -- देशीगौ के दूध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव देशीगाय के दुध की छाँछ से बना शुद्ध घीँ ही लें।)

8 -- हरित पुष्प / हरा रङ्ग का फुल ले लें।

(हरा गुलाब या हरा चम्पा या केतकी (केवड़ा) पुष्प या कोई भी फुल ले लें)

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- वेदिक विष्णुसुक्त, उत्तर नारायण सुक्त सहित पुरुषसूक्त, श्रीमद्भगवद्गीता, वाल्मीकि रामायण, गर्ग संहिता, विष्णु सहस्रनाम, गजेन्द्र मौक्ष विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, कुर्म पुराण, वराहपुराण, नृसिंह पुराण, वामन पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, गरुड़पुराण, आदि पुस्तक यथा सामर्थ्य कुछ भी लें।

10 -- बिदायरा या बरधारा की जड़ । 
(बिदायरा या बरधारा की जड़ 
आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- अपामार्ग, (आँधीझाड़ा), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात बुध के पौराणिक मन्त्र -- 

प्रियङ्गुकलिकाश्यामम् रुपेणाप्रतिम् बुधम्।
सौम्यम् सौम्यगुणोपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम् ।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

 बुध का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा, , बृहस्पत्ति,ध्रुव तारा, विद्युत- पर्जन्य, आकाश,वायु,अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।

 *सहयोगी उपाय* 
बुध का अधिदेवता और प्रत्यधिदेवता दोनो ही विष्णु है। अतः विष्णु आराधना,
प्रणाम करनें के मन्त्र ⤵️
ॐ नमो नारायणाय । 
ॐ नमोभगवते वासुदेवाय।
ध्यान मन्त्र⤵️
 शान्ताकारम् भुजगशयनम पद्मनाभम् सुरेशम्, विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम्. योगिभिर्ध्यानगम्यम् , वन्दे विष्णु भवभय हरम् सर्वलोकैकनाथम्।। मन्त्र के अनुसार ध्यान करें।
यजुर्वेद अध्याय 31 में उल्लेखित ---
पुरुषसूक्त और उत्तर नारायण सुक्त से स्तुति करें।
विष्णु सहस्त्रनाम और श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ और अध्ययन, चिन्तन , मनन करें। 
विष्णु यज्ञ स्वरूप हैं। अतः पञ्चमहायज्ञ करें। अष्टाङ्ग योगाभ्यास करें। नित्य प्रातः सुर्योदय से पूर्व सन्ध्या पूजन और गायत्री मन्त्र जप कर उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दे कर अग्निहोत्र करें। और सायम् काल में भी सूर्यास्त के पहले सन्ध्या पूजन और गायत्री मन्त्र जप कर सूर्य को अर्घ्य दे कर अग्निहोत्र करें।


भूमि भगवान नारायण की पत्नी हैं अतः प्रातः भूस्पर्ष के पहले भूमि वन्दना 
समुद्र वसने देवि, पर्वतस्तन मण्डिते;
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शम् क्षमस्व में।
करनें से भी बुध प्रसन्न रहते हैं। भूमि के स्वामी भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं।

चन्द्रमा के पौराणिक मन्त्र की १५,००० जप विधि।

*चन्द्रमा की दान सामग्री एवम् १५० माला जप विधि* ----

*नोट -- पहले चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

दधि शंख तुषाराभम् 
क्षीरोदार्णव सम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोः मुकुट भूषणम् ।।

चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र --

*दधिशङ्खतुषाराभम् क्षीरोदार्णवसम्भवम्।*
*नमामि शशिनम् सोमम् शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।*

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ रविवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो श्वेत पुष्प सोमवार को सुबह भी ले सकते हैं।
 सोमवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें क्योंकि सोमवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं चन्द्रमा को बल प्रदान करने के निमित्त चन्द्रमा की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें। क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के पहले।

चन्द्रमा के पौराणिक मन्त्र --

दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

चन्द्रमा की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- मौक्तिक / मुक्ता ( Pearl .)
बसरा का मोती 02 या 4 या6 या 11 रत्ती का लें। 
किन्तु 7 या 8 रत्ती न लें।

(अथवा चन्द्रमणी 
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- श्वेत वृषभ। (सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
 या चान्दी के पत्रे पर उकेरी साण्ड या चन्द्रमा की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- रोप्य / चांदी का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें (चलेगा)।

5 -- श्वेत वस्त्र 
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का सफेद कपड़ा।

( सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें।लेलें)

6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव बाँसमति, कालीमुछ कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)

7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)

8 -- श्वेत पुष्प।

सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- कोई भी धार्मिक, पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- खिरनी की जड़ । (खिरनी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- ढाँक, (पलाश), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र -- 

दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन सोमवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

*घर पर जप करने हेतु--*

घर आने के बाद जब भी समय मिले दिन में, रात में, देवस्थान/ देवघर में या सोफे पर जहाँ कर सकें शान्ति से बैठकर चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र --

दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।

का जप करें।

नोट --

इस बीच हर दिन कम से कम एक। बार 108 बार या अति विकट स्थिति में कम से कम ग्यारह बार पौराणिक मन्त्र का मान्सिक जप अवश्य करें। अपरिहार्य परिस्थितियों में भी कम से कम एकबार तो जप करें ही।
चाहे घर में या स्वयम् को जनन अशोच (बिरदी), मरण अशोच (सुतक) हो, स्त्रियों का मासिक धर्म अवधि हो, घरमें कोई बिमार हो और उसकी सेवा में व्यस्त हों स्वयम् बिमार हो,या यात्रा में हो या कही कर्त्तव्य पर तैनात हों,वैवाहिक आदि किसी कार्यक्रम मे व्यस्त हों,किसी कारण स्नान न कर पाये हों कैसी भी परिस्थिति हो 108 बार या 11 बार या एक बार तो मान्सिक जप कर ही लें।

एक बार में कम से कम 108 मनकों की एक माला जप पुर्ण होने पर एक लिख लें।
यथा सम्भव एक माला अवश्य जपें।

एक माला जपने पर 100 ( एक सौ) मन्त्र ही गिनती में माने।
दो माला पर दो सौ मन्त्र माने।
माला तुलसी की हो। 108 मनकों की ही लें।
फुल / सुमेरु पर्वत आने पर माला पलट दें क्योंकि सुमेरु का उल्लङ्घन नही करना है।
आसन पर बैठें तो आसन छोड़ने के पहलें आसन थोड़ उँचा कर भूमि पर जल छिड़क कर भूमि का जल नैत्रों पर या भृकुटि मध्य लगाकर ही आसान से उठें।

*निर्धारित जप संख्या 15,000 (पन्द्रह हजार) यानि 150 माला पुर्ण होने के बाद अगले सोमवार को सुर्योदय होते ही सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर के कार्य कर्म --*

15,000 (पन्द्रह हजार ) मन्त्र जप यानि 108 मनकों की 150 माला जप पुर्ण होंने के बाद जो भी सोमवार आये उस दिन पुनः सुर्योदय के तत्काल पश्चात किन्तु सुर्योदय के बीस मिनट के अन्दर 

1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी लेलें चलेगा।)
 
2 -- मौक्तिक / मुक्ता ( Pearl .)
बसरा का मोती 02 या 4 या6 या 11 रत्ती का लें। 
किन्तु 7 या 8 रत्ती न लें।

(अथवा चन्द्रमणी 
या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- श्वेत वृषभ लें । (सफेद रङ्ग का साण्ड या बेल।) 

यदि सामर्थ्य न हो तो --
या चान्दी के पत्रे उकेरी साण्ड या चन्द्रमा की मुर्ति जो वास्तु पुजा में लगती है लेलें।

4 -- रोप्य / चांदी का बर्तन।

सामर्थ्य अनुसार आचमनी, कटोरी से लेकर घड़े तक कुछ भी लेलें चलेगा।

5 -- श्वेत वस्त्र 
यानि शुद्ध रेशम का या शुद्ध काटन का सफेद कपड़ा।

(सुती या शुद्ध रेशम का ब्लाउज पीस या शर्ट पीस रुमाल यथा सामर्थ्य जो ले सकें लेलें।)

6 -- अक्षत चाँवल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव बाँसमति, कालीमुछ कोई सा भी चाँवल लेलें चलेगा।)

7 -- देशी गाय के दुध से बना देशी घीँ। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव शुद्ध देशी घीँ ही लें।)

8 -- श्वेत पुष्प।

सफेद गुलाब या मोगरा या चमेली या सफेद कनेर का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- कोई भी धार्मिक पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- खिरनी की जड़ । 
(खिरनी की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- ढाँक, (पलाश), का पौधा लें।

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात चन्द्रमा के पौराणिक मन्त्र -- 

दधिशङ्खतुषाराभम्
क्षीरोदार्णवसम्भवम्।
नमामि शशिनम् सोमम्
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।।

का जप करें। जप ईश्वरार्पण करके एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र जाप बन्द करदें अब नही करना है।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।


सहयोगी उपाय।

चन्द्रमा का अधिदेवता सोम है। चन्द्रमा को सोम भी कहते हैं। समुद्र मन्थन में सोम भी प्रकट हुआ था। मृगशीर्ष नक्षत्र का देवता भी सोम ही है। पश्चिम एशिया में सोम उपासक संस्कृति रही है। गीजा पिरामिड का स्पष्ट सम्बन्ध मृगशीर्ष नक्षत्र (ओरायन बेल्ट) से है। ये संस्कृतियाँ सोम संस्कृति (सेमेटिक संस्कृति) कहलाती है।
 (कुछ लोगों के अनुसार उमा है; सोम का मतलब भी उसा सहित स उम करते हैं। जबकि उसी तर्क पर स ॐ भी हो सकता है। देवता उमा बतलाते हैं किन्तु आवाहन के लिए का मन्त्र श्रीश्च, ते लक्ष्मीश्च पल्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम। इष्णन्निषाणामुम् म इषाण सर्वलोकम् म इषाण । मनँत्र से करते हैं!

 शायद इषाण से ईशान का सम्बन्ध जोड़कर उमा को प्रत्यधिदेवता माना हो। जबकि श्रीश्च लक्ष्मीश्च में तो श्री और लक्ष्मी का आव्हान हुआ है।

और प्रत्यधिदेवता अप् / जल है। जिसकी समता सोम से ही बनती है। अप् यानी जल से सोमरस का सम्बन्ध भी बनता है। पर उमा का नही।
अतः ग्रहणस्त, अस्त , क्षीण और निर्बल चन्द्रमा को बल देनें के लिए सोम और अप् तत्व की आराधना करना चाहिए। वेदिक देवी उमा की आराधना से भी कोई आपत्ति नही है। 
चन्द्र ग्रहण की अवधि में ग्रहण के तत्काल पहले स्नान कर स्वच्छ, पवित्र और शुद्ध रहते हुए सोम, अप् / जल देवता या वरुण देवता की आराधना - उपासना करना, बालेन्दु (शुक्लपक्ष की द्वितिया का चन्द्रमा) और पुर्णिमा के चन्द्रमा को नमस्कार करना, पूजन कर अर्घ्य देना। पूर्णिमा और अमावस्या के अन्त में इष्टि करना। अष्टका एकाष्टका वृत करना।
 चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्र ग्रहण की अवधि में ग्रहण के तत्काल पहले स्नान कर स्वच्छ, पवित्र और शुद्ध रहते हुए सोम, अप् / जल देवता या वरुण देवता की आराधना - उपासना करना, बालेन्दु (शुक्लपक्ष की द्वितिया का चन्द्रमा) और पुर्णिमा के चन्द्रमा को नमस्कार करना, पूजन कर अर्घ्य देना। पूर्णिमा और अमावस्या के अन्त में इष्टि करना। चन्द्र ग्रहण के समय ग्रहण आरम्भ होनें के पहले स्नान कर गीले तन में ही या स्वच्छ सुखे रेशमी वस्त्र पहन कर सोम या अप् / जल के मन्त्र जप कर ग्रहण समाप्ति पर पूनः स्नान कर चन्द्रमा को अर्घ्य देकर दान करना।

चन्द्रमा को बल देने के लिए शुक्लपक्ष की द्वितिया / चन्द्र दर्शन के दिन पश्चिम में सूर्यास्त के बाद चन्द्रमा को नमस्कार कर जल से अर्घ्य दें। और पूर्णिमा तिथि में उदयीमान चन्द्रमा को नमस्कार कर जल से अर्घ्य दें।

सर्वग्रहों की की प्रसन्नता के लिए सुर्योदय के सवा घण्टे पहले उठकर माता - पिता, गुरु, भगवान विष्णु और महामाया, सवितृदेव - सावित्री देवी,नारायण - श्रीलक्ष्मी और भूदेवी , हिरण्यगर्भ - वाणी, प्रजापति - सरस्वती देवी को प्रणाम करें। सुर्योदय के पहले गायत्री मन्त्र जप पूर्ण कर उदयीमान सूर्य को प्रणाम कर अर्घ्य दें। तुलसी को जल चढ़ायें।

केतु की दान सामग्री एवम् दान विधि।

*केतु की दान सामग्री दान विधि* ----

*नोट -- पहले केतु का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

पलाश पुष्प सङ्काश् 
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् 
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

केतु का पौराणिक मन्त्र --

*पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।*
*रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्*     
 *तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।*

*केतु की दान सामग्री दान विधि* ----

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें। 
शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि, -- है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं केतु की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें।
 क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर फिर 

केतु के पौराणिक मन्त्र --


पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

केतु की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

"1-- चान्दी का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार चान्दी का काँटा, कंगन से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) म्यांमार की गोमोक खान का 3,या 5 या 6 या 7 कैरेट का लहसुनिया / लहसुन्या (Cat eye ) लें। 
किन्तु 2 या 4 या 12 या 13 रत्ती का न लें।

(या गोदन्ती मणि लें या
 सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- कोई भी अनाज या अन्न/ धान्य/ सस्य ले लें।

या केतु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- ताम्र / ताम्बा Copper का बर्तन लें ।

सामर्थ्य अनुसार ताम्र / ताम्बा Copper की, आचमनी,या तरभाणा,या कलश या जग, घड़ा यथा सामर्थ्य जो लेसकें ले लें ।

5 -- कृष्ण वस्त्र / काला कपड़ा ।

(सुती या शुद्ध रेशमी कृष्ण वस्त्र / काला रंग का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।

6 -- काले तिल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- गणेश पुराण या कल्याण का गणेश अङ्क या अष्टविनायक तिर्थ का विवरण, कथा, आरती आदि की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ ।

(अश्वगन्धा की जड़ या असगन्ध की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- कुश / कुशा का पौधा लें। 

(कुश एक घाँस जो पवित्री के रुप में और श्राद्ध में पिण्डदान के पिण्ड का आसन के रुप में काम आती है। नगर/ ग्राम या घर के वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)"


उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात केतु का पौराणिक मन्त्र -- 


पलाशपुष्पम्सकाश् ताराकाग्रहमस्तकम्।
रोद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम् तम् केतुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि और नाग देवता को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।
*केतु शान्ति के लिए सहयोगी उपाय* 

 केतु के अधिदेवता चित्रगुप्त जी हैं। जो यमराज के महालेखापाल हैं। कागज कलम, काली स्याही की दवात इनके उपकरण हैं। यम दिवाली के तीसरे दिन द्वितिया / भाईदूज को चित्रगुप्त पूजा भी होती है। कुछलोग इसीदिन (भाईदूज को ही) विश्वकर्मा पूजा भी करते हैं।
 तथा केतु के प्रत्यधिदेवता हिरण्यगर्भ ब्रह्मा यानी (विश्वकर्मा) हैं। विश्वकर्मा के पुत्र त्वष्टा हैं जिनकी शक्ति (पत्नी) रचना है। जिनने ब्रह्माण्ड के पिण्डों (गोलों) को सुतार की भाँति गढ़ा। त्वष्टा की रचना ये अनन्त ब्रह्माण्ड ही हैं।
राहु का धड़ या सर्प की पुच्छ केतु असुर है अतः केतु की पूजा नही होती। केतु दोनों ही अपूज्य हैं।
अतः केतु की शान्ति के लिए चित्रगुप्त और विश्वकर्मा की पूजा का विधान है।

राहु की दान सामग्री एवम् दान विधि।

*राहु की दान सामग्री दान विधि* ----

*नोट -- पहले राहु का पौराणिक मन्त्र अच्छी तरह याद करलें।* --

अन्वय -- उच्चारण की सुविधा हेतु।

अर्धकायम् महा वीर्यम् 
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् 
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

*अर्धकायम् महावीर्यम् चन्द्रादित्यविमर्दनम्।*
*सिंहिकागर्भ सम्भूतम्* 
*तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।*


*राहु की दान सामग्री दान विधि* ----

फिर निम्नांकित सामग्रियाँ शुक्रवार तक एकत्र कर अपने घर के देवस्थान या भण्डारगृह या रसोईघर में सुरक्षित रख लें।सम्भव हो/ घर में ही पौधे में लगा हो तो कृष्ण/ नील पुष्प शनिवार को सुबह भी ले सकते हैं।
शनिवार को सुर्योदय के पहले ही स्नान कर निम्नांकित समस्त दान सामग्री लेकर निकटतम किसी भी देवस्थान पर पहूँच जायें। 
शनिवार को सुर्योदय होते ही तत्काल बाद में किन्तु बीस मिनट के अन्दर ही निकटतम किसी भी देवस्थान में ये दान सामग्रियाँ ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करें कि, -- है प्रभु ( गोत्र सहित अपना नाम लेकर) मैं राहु की अनुकूलता प्राप्तर्थ्य दान कर रहा हूँ। कृपया योग्य पात्र तक पहूँचाने की कृपा करें।
 क्योंकि योग्य पात्र खोजना मेरे सामर्थ्य में नही है। यह निवेदन कर फिर 

राहु के पौराणिक मन्त्र --

अर्धकायम् महा वीर्यम् चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

का एक बार जप कर दान सामग्री ईश्वर को समर्पित करदें।

आपको ईश्वर को समर्पित करना है अतः मन्दिर बन्द हो तो द्वार पर रखदें। मन्दिर खुला हो किन्तु पुजारी हो या न हो केवल मन्दिर में दान रखने की जगह रखदें।किसी से कोई बात नही करना है।

राहु की दान सामग्रियाँ निम्नलिखित हैं--

"1-- स्वर्ण का आभुषण।

(सामर्थ्य अनुसार सोने का काँटा से हार तक कुछ भी चलेगा।)
 
2 -- गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) सिंहल द्वीप/ श्रीलंका की खान का 6 या 11 या 13 कैरेट का गोमेद / पीला गोमेद (Zircon or Hessonite) लें। 
किन्तु 3 या 6 केरेट का न लें।

(या सामर्थ्य न हो तो इमिटेशन ही ले लें।)

3 -- अरबी कृष्णाश्व / अरबी काला घोड़ा लें।

यदि सामर्थ्य न हो तो --
सीसा/ कथीर के पत्रे या चान्दी के पत्रे पर उभरी या उकेरी गई कृष्ण अश्व या काले घोड़े या राहु की मुर्ति (जो वास्तु पुजा में लगती है) ले लें।

4 -- सीसा / कथीर Lead की छड़ या प्लेट जो मिले ले लें ।

सामर्थ्य अनुसार छड़ या प्लेट कुछ भी लेलें (चलेगा)। बेटरी सेल का खोल सीसे का होता है। यह निकल और टीन से मिलता जुलता किन्तु अलग धातु है। बोहरोंक्षके पास मिल सकता है।पहले छत की चद्दर / पतरे पर वायसर लगाने के काम आता था।
कटोरी में रख कर गरम करने पर पिघल जाता है।और कागज के पेन्सिल नुमा साँचे में डालो तो ठण्डा होते ही जम जाता है।कागज पर पेन्सिल मार्क जैसा इससे लिख भी सकते हैं।

5 -- नीला Indigo या आसमानी Blue वस्त्र।

(सुती या शुद्ध रेशमी नीले रंग Indigo का शर्ट पीस या ब्लाउज पीस या रुमाल लेलें।

6 -- काले तिल (सवाया लें।)

(सवा क्विण्टल या सवाधड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव काले तिल लेलें ।)

7 -- काले तिल का तेल। (सवाया लें।) 

(सवा धड़ी या सवा किलोग्राम या सवा सौ ग्राम या सवापाव कालेतिल का तेल ही लें।)

8 -- कृष्ण (काला) पुष्प।

काला गुलाब या नीला गुलाब या कोई भी Indigo निले रंग का ये भी न मिले तो आसमानी Blue रंग का फुल भी चलेगा।
या बैंगनी Violet या जामुनी Purple रंग का फुल लें।

और सम्भव हो तो ये तीन वस्तुएँ भी ले सकते हैं।

9 -- नाग मन्त्र, निऋति सुक्त, रक्षोहा सुक्त, यातुधान सुक्त, महाभारत आस्तिक पर्व या भैरवाष्टक, भैरव आरती की पुस्तक यथा सामर्थ्य लें।

10 -- मलय चन्दन की जड़ ।

(मलय चन्दन की जड़ आपके दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर ही लें।)

11 -- दुर्वा / दुब का पौधा लें। 

(दुर्वा एक घाँस जो गणेशजी को प्रिय है। नगर/ ग्राम या घर के नैऋत्य कोण यानि दक्षिण पश्चिम दिशा में रोपना चाहिए।)

उक्त दान सामग्री ईश्वरार्पण करने के तत्काल पश्चात राहु का पौराणिक मन्त्र -- 

अर्धकायम् महा वीर्यम् चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिका गर्भ सम्भूतम् तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

का जप करें।एक बार पुनः जप कर घर आ जायें।

उक्त समस्त क्रियाओं के क्रियान्वयन शनिवार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही करना है। अतः चाहें तो एक दिन पहले रिहल्सल करलें।

अनुष्ठान पुर्ण हो चुका है।
माता- पिता, गुरु- अतिथि, गौ- ब्राह्मणों ,सुर्य - चन्द्रमा,शुक्र, बृहस्पत्ति, विद्युत- पर्जन्य, आकाश, वायु, अग्नि, जल और भूमि और नाग देवता को प्रणाम करके सबका उपकार माने और धन्यवाद दें।
*राहु की शान्ति के लिए सहयोगी उपाय* 

 राहु के अधिदेवता काल और प्रत्यधिदेवता सर्प है। राहु को भी सर्प ही माना गया है। राहु प्रहलाद की बहन सिंहिका (होलिका) का असुर पुत्र है। इसलिए राहु स्वयम् अपूजनीय/ अपूज्य है।
अतः केवल काल और सर्प की ही पूजा की जाती है।
यहाँ काल का स्वरूप रुद्र भैरवनाथ का है। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 11 श्लोक 03 से 32 तक मे उल्लेखित(महा) काल से यह काल भिन्न हैं। 
उज्जैन स्थित महाकाल की पूजन करना उचित है। नागचन्द्रेश्वर मन्दिर भी महाकाल मन्दिर के उपर ही है।
इनकी पूजा ही राहु की शान्ति में उपयोगी है।
नासिक के त्र्यम्बकेश्वर का राहु से कोई सम्बन्ध नही है।