क -शारीरिक गतिविधियाँ-
१ व्यायाम - अष्टाङ्ग योग के आसन और प्राणायाम,(शारीरिक व्यायाम) और मल्ल। प्रत्याहार (विचारों को दृषटाभाव से देखना, लेकिन अपनी ओर से कुछ भी नहीं करना।)
२ क्रीड़ा/खेलना - आउटडोर गेम्स।
ख -मानसिक गतिविधियाँ।
३ अष्टाङ्ग योग के धारणा और ध्यान (मानसिक आराम)।
४ पढ़ना - पुस्तक वाचन।
५ पञ्चमहायज्ञ - इसमे उपर्युक्त सभी चीजें स्वतः सम्मिलित है
1 -ब्रह्मयज्ञ - अध्ययन, चिन्तन - मनन, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, अध्यापन, जप।
2 देवयज्ञ - दैनिक यज्ञ, सप्ताहिक यज्ञ, पाक्षिक पौर्णमास यज्ञ -अमावस्या के यज्ञ, मासिक हवन - सायन सौर संक्रान्तियों पर हवन, ऋतु के, अयन - तोयन के और वार्षिक यज्ञ और भजन, किर्तन, स्तवन।
3 नृ यज्ञ/ मनुष्य यज्ञ - मानव सेवा - निकटतम उपलब्ध दुर्बल, असहाय, पिड़ित, दरिद्र (गरीब), अस्वस्थ्य, रोगी, अपङ्ग, वृद्धों, बालकों और अबलाओं की सेवा - उन्हें आवश्यकतानुसार और योग्यतानुसार उनके जल, भोजन, वस्त्र,बिस्तर, निवास, मनोरञ्जन, औषधि, चिकित्सा, परिचर्या में तन, मन, धन से योगदान करना।
4 भूत यज्ञ - पेड़ - पौधे, पशु - पक्षी की नृयज्ञ के समान ही सेवा करना और अपना योगदान करना। पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में अपना योगदान करना।
5 पितृ यज्ञ - स्वयम् के और अन्य सभी के माता -पिता, दादा - दादी, नाना- नानी की नृ यज्ञ के समान सेवा करना। अपनी सन्तान और अन्य अनाथ, जरूरत मन्द बच्चों की सेवा- सहायता द्वारा उनके माता - पिता, पालकों की सहायता करना। अपने मृत बुजुर्गों की जन सेवा सम्बन्धित अपूर्ण इच्छा पूर्ण करने का प्रयत्न करना। यथा - जल आपूर्ति (कुए- बावड़ी, तालाब, नदी, नहर की सफाई, विकास आदि), सदाव्रत, पथिक सेवा केन्द्र, धर्मशाला, विद्यालय, वाचनालय, औषधालय, चिकित्सालय आदि के निर्माण, व्यवस्थापन में सहयोग करना।
६ धनार्जन - कमाना, बचाना, निवेश करना हम सबका राष्ट्रीय और सामाजिक कर्तव्य है।
हम कमाएंगे तो हमारे बुते पर दुसरे दुकानदार, उद्योग, कार्मिक, शासकीय सेवक सब कमा पायेंगे। और हमारी गृहस्थी के लिए तो आवश्यक है ही।
उक्त में से कुछ भी नही छोड़ा जा सकता है। सभी करना ही चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें