मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

ग्रहों की दान सामग्री दान विधि एवम् ग्रहों के पौराणिक मन्त्र जप विधि

                            ओ३म्
                            ओ३म्
ओ३म् श्री गुरुभ्यो नमः ओ३म्।
ओ३म् परमात्मनै नमः ओ३म् ।

ग्रहों की दान सामग्रीयाँ ,उनके दान की विधि और ग्रहों  के मन्त्र और मन्त्र जप विधि जप विधि --

लगन, निष्ठा, उत्साह और तत्परता पुर्वक अविरत हरिस्मरण, परमात्मा का अहर्निश ध्यान और चिन्तन सहित पञचमहाऋण मुक्त होने के लिए शास्त्रोक्त विधि से पञ्चमहायज्ञ करना,धर्म पालन हेतु कष्ट सहन करने को तैयार रहना, साथ ही उतनी ही लगन, निष्ठा, उत्साह और तत्परता पुर्वक निरालस्य होकर कर्त्तव्य मानकर समत्व भाव से निष्काम कर्मयोग अर्थात निरन्तर जगत की सेवा में रत रहना। अर्थात ईश्वर स्मरण और स्वधर्म पालन रुप संसार की सेवा में रत रहना, यही हमारा वेदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म है।इसके अतिरिक्त केवल स्मार्त नैमित्तिक कर्म यानि बाग बगीचे लगाना, कुए, तालाब बनवाना, धर्मशाला, दवाखाने, विद्यालय खुलवाने जैसे सेवा कार्य भी करना चाहिए।
किन्तु सकाम आराधना/ उपासना भूल कर भी नही करना चाहिए।

फिर भी जिन्हे ईश्वर  के दीये पर भरोसा कम हैं ; ऐसे लोगों लिये ग्रहों की दान सामग्री दान करना और  पौराणिक मन्त्रों के जप की विधि प्रस्तुत है।

*ग्रहों की दान सामग्रीयाँ ,उनके दान की विधि और ग्रहों  के मन्त्र और मन्त्र जप विधि जप विधि निम्नानुसार है।* --

जो ग्रह जन्म समय / कुण्डली में वक्री या अस्त होते हैं या षड्बल सारणी में अत्यन्त निर्बल तो उस ग्रह को बल प्रदान करने हेतु जीवन में केवल एक ही बार उन ग्रहों के पौराणिक मन्त्र का जप निम्नलिखित विधि से अवश्य करलें।
शान्ति प्रयोग जीवन में सिर्फ एक बार ही किया जाना पर्याप्त है। बार बार करने की आवश्यकता  नही पड़ती।

जिस ग्रह को बल प्रदान करना हो/ सशक्त करना हो या प्रतिकूल फलों के कारक ग्रह की प्रतिकूलता समाप्त कर अनुकूल करना हो - उसी ग्रह के वार को वार की प्रथम घटिका यानि सुर्योदय के बाद सुर्योदय से  24 मिनट के अन्दर  ( यानि दिनमान ÷ 30 = उज्जैन में 21 मिनट से 27 मिनट के बीच ) लगभग 24 मिनट अतः उचित होगा कि सुर्योदय के बाद सुर्योदय से  20 मिनट के अन्दर  उस ग्रह की निर्धारित दान सामग्री को ईश्वरार्पण / दान कर अनुष्ठान आरम्भ करें और निर्धारित संख्या में जप पुर्ण होने के बाद पुनः उसी ग्रह के वार को सुर्योदय के बाद सुर्योदय से 20 मिनट के अन्दर उस ग्रह की निर्धारित दान सामग्री को ईश्वरार्पण / दान कर अनुष्ठान  पुर्ण कर समाप्त करें।
इस बीच हर दिन कम से कम एक बार या 108 मनकों की एक माला मान्सिक जप अवश्य करलें। चाहे जनन अशोच ( बिरदी) हो , मरण अशोच/ सुतक हो,बिमार हो,  महिलाओं का मासिकधर्म की अवधी हो अथवा यात्रा में हो, सेवा में हो,  किसी व्यस्त कार्यक्रम में हो, स्नान नही कर पाये हों ऐसी किसी भी परिस्थितियों में भी कभी भी किसी भी दिन मन्त्र जप करना नही छुटे। छोड़ें नही पर केवल मन ही मन बिना माला के जपें और गिनती में न लें।
दान सामग्री किसी भी निकटतम मन्दिर में जाकर ईश्वरार्पित करदें।पण्डित जी  हो या न हो / पुजारी जी हो या न हो।मन्दिर बन्द हो तो गेट पर ही रखदें। ईश्वर सर्वव्यापी है/ सर्वत्र है। मन्दिर खुला भी हो पुजारी जी भी हो तो भी ( मौन रहकर / जप करते हुए पण्डित जी/ पुजारी जी को केवल हाथ जोड़कर प्रणाम करलें। दान सामग्री दान पेटी / दान सामग्री रखने की जगह पर चुपचाप रख दें। कुछ बोलें नही।
फिर भलें ही आपके सामने दान सामग्री को कोई कुत्ता/ सुअर/ बन्दर या चुहा या म्लेच्छ/  भिखारी/ अनुसूचित जाति का व्यक्ति ले जावे या महिनों वहीँ पड़ी पड़ी सड़ जाये आपको चिन्ता नही करना है।भगवान किस रुप में ग्रहण करें यह उनकी इच्छा।
किन्तु अपवित्र स्थान जैसे कबर/पीर पेगम्बर किसी की भी दरगाह हो/ समाधि हो वहाँ न चड़ावें।मन्दिर किसी का भी ह़ पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।पर मुर्दा किसी का भी हो अपवित्र ही रहता है।
यदि सुर्योदय से 20 मिनट में गलती से चुक जावें तो सुर्योदय से  24 मिनट में अवश्य करलें।

जप विधि --
घर पर / मन्दिर आदि किसी भी स्थान पर माला फेरने के नियम --

किसी भी सुविधा जनक स्थान पर बैठ कर / चाहे सोफे पर या कुर्सी पर बैठ कर दिन में या रात में कभी भी --

1 -- जप गीन कर करने के लिये 108 मनकों की तुलसी की माला लें।जिसमें सुमेरु ( फुल जैसा) थोड़ा बड़ा हो ताकि गलती से भी सुमेरु का उल्लङ्घन न हो।
2-- सुमेरु आने पर माला उलट लेना चाहिए सुमेरु को पार नही करना हैं। सुमेरु पर उँगली आते ही सुमेरु को मस्तक से स्पर्ष कर प्रणाम करें।फिर माला उलट लें।
3 -- 108 मनके जप करने पर एक माला पुर्ण होती है।माला पुर्ण होने पर 1 लिखलें। और माला उलट लें। दो माला पुर्ण होते ही 2 लिखलें। ऐसे ही लिखते जायें जब तक निर्धारित माला संख्या पुर्ण न हो।
4 -- एक माला में 108 मनके जप कर भी 100 ही गिनना है जैसे छःहजार जप करना हो तो पुरी 60 माला जपना है।
5 -- आसन पर बैठ कर करें तो बैठने के पुर्व भूमि और आसन को नमन करें।
यदि एक ही आसन पर बैठ कर कर रहे हों तो आसन से उठते समय आसन को थोड़ा सा उठाकर फर्श पर जल छिड़क कर भूमि के जल को भ्रकुटी मध्य में आज्ञा चक्र पर लगायें। फिर आसन छोड़ें।

ग्रहों के दान का वार / ग्रहों के वार एवम् ग्रहों के देवता  --

सुर्य -- रविवार। सवितृ यानि  सविता या नारायण या विष्णु ।

चन्द्रमा -- सोमवार। चन्द्रदेव या वरुण देव / आपः / जल

मङ्गल -- मंगलवार। अग्नि या स्कन्द/ कार्तिकेय। (हनुमानजी)

बुध -- बुधवार। वामन अवतार यानि विष्णु।

बृहस्पति -- गुरुवार। हिरण्यगर्भ ब्रह्मा/ प्रजापति ब्रह्मा या बृहस्पत्ति देवता या ब्रह्मणस्पत्ति देवता।

शुक्र -- शुक्रवार। रुद्र या इन्द्र और लक्ष्मी। (नोट -- लक्ष्मी की पुजा  नारायण सहित ही होती है।)।

शनि -- शनिवार। अर्यमा, यम, नासत्य और दस्र नामक दोनो अश्विनीकुमार)

राहु -- शनिवार। नाग देवता। भैरव देव या निऋति।

केतु -- शनिवार। विनायक/ अष्ट विनायक/ गजानन।

ग्रहों के दान का समय --

जिस ग्रह का जप करना हो उस ग्रह के वार को सुर्योदय होने के बाद, सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर किसी भी मन्दिर में दान सामग्री ईश्वरार्पण करदें।

जप आरम्भ का समय -- जिस ग्रह का जप करना हो उस ग्रह के वार को सुर्योदय होने के बाद, सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर दान सामग्री अर्पण कर प्रार्थना करने के तत्काल पश्चात लेकिन सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही कम से कम  ग्यारह बार या एकबार मन्त्र जप अवश्य  करे ।

फिर घर पहूँच कर जब भी जैसी भी सुविधा हो दिन में रात में, भलैं ही सोफे पर बैठ कर जप करें किन्तु एक बार में कम से कम एक माला (108 मन्त्र जप) अवश्य करें। एक माला पुर्ण हो तभी गिनती में लें।

जनन, मरण, स्त्रियों के मासिक के समय, बिमारी में या लम्बी  यात्राओं में, लम्बे बड़े कार्यक्रम में हों या आवश्यक सेवामे तैनात हो तो भी   केवल मन ही मन बगैर ओठ हिलाये 108 मन्त्र जप करें। किन्तु गिनती में न लें। कठिनाई हो तो भी कम से कम ग्यारह बार मान्सिक मन्त्र जप अवश्य करें।

निर्धारित माला संख्या यानि  निर्धारित संख्या में मन्त्र जप पुर्ण होने के पश्चात जिस ग्रह का जप कर रहे थे आगामी/ आने वाले उसी ग्रह के वार को  सुर्योदय होने के बाद, सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर जिस ग्रह के मन्त्र का जप कर रहे हैं उसी ग्रह की दान सामग्री एक बार फिर पहले के समान निकटतम मन्दिर में  ईश्वरार्पण कर प्रार्थना करने के तत्काल पश्चात (सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर ही) कम से कम ग्यारह बार या एक बार  मन्त्र जप करके प्रार्थना कर जप का फल ईश्वरार्पण करदें। तो फल अनन्त और अक्षय हो जायेगा।
अब घर आ कर  आपको दुबारा उस ग्रह के मन्त्र जप करने की आवश्यकता नही है। हाँ यथा सामर्थ्य  ग्रह के देवता के मन्त्रों का जप करते रहें।

विशेष जानकारी  --

ग्रहों के रत्न /नग, उप रत्न, जड़ीबूटी । जिन्हे केवल योग्य ज्योतिषी की देखरेख में उनकी आज्ञानुसार निर्धारित समय हेतु बतलाये गये समय पर ही धारण करें और ज्योतिषी के आदेशानुसार तुरन्त निकाल ही दें।
कोई भी नग हो उससे सम्बन्धित भावों के फल प्रकटीकरण में अति तिवृता ला देता है।
जैसे दशम भाव राज्य प्राप्ति का कारकहै तो माता - पिता की मृत्यु का कारक भी है। उदाहरण - राजीव गांधी।
अतः नग धारण राजाओं, श्रीमन्तो, लक्ष्मीवानों के लिये ही  उचित है क्योंकि वे ज्योतिषी पर इतना खर्च कर सकते हैं कि, ज्योतिषी स्वयम् की घर ग्रहस्थी की ओर से निश्चिन्त रहकर उनके लिये पुर्णकालिन ध्यान रख सके।
अस्तु जन साधारण किसी कार्य विशेष के लिये ज्योतिषी द्वारा बतलाये गये  ग्रह की तिथि, नक्षत्र, वार ,लग्न, होरा आदि देखकर सम्बन्धित ग्रह की उक्त जड़ीबूटी को एक दिन पहले आमन्त्रित कर ग्रह की तिथि, नक्षत्र, वार ,लग्न, होरा में
अपने दाहिने हाथ की कनिष्ठा उँगली के बराबर जड़ीबूटी धारण कर सकते हैं।

नोट  --
अङ्गुठी में नग जड़वाने के लिये लहसुन्या / लहसुनिया रत्न को छोड़ सभी मुख्य रत्न 14 टेरेट से 18 केरेट के स्वर्ण की अङ्गुठी में ही जड़वायें/ मड़वायें।
केतु का रत्न.लहसुन्या/ लहसुनिया केतु की मुख्य धातु चान्दी में जड़वायें/ मड़वायें।
क्योंकि, केतु को छोड़कर शेष सभी ग्रहोंकी मुख्य धातु स्वर्ण ही है। केवल केतु की मुख्य धातु चान्दी है। शेष सबकी स्वर्ण ही है।
यदि मुक्ता ( मोती), पन्ना या गोमेद को छोड़कर कोई अन्य उपरत्न का नग हो तो उस ग्रह की उपधातु की अङ्गुठी में भी जड़वा सकते हैं।
अङ्गुठी को केवल दाहिने हाथ की अनामिका ऊङ्गली (छोटी ऊङ्गली के पास वाली ऊङ्गली) या कनिष्ठा ऊङ्गली( छोटी ऊङ्गली)  में ही धारण करना चाहिए।
तर्जनी ऊङ्गली (अङ्गुष्ठ और बड़ी ऊङ्गली के बीच वाली ऊङ्गली) या मध्यमा ऊङ्गली (बड़ी ऊङ्गली) में अङ्गुठी धारण करना निषेध है। चाहे पुखराज रत्न की या नीलम रत्न की अङ्गुठी ही क्यों न हो।

ग्रह की जड़ीबुटी को ग्रह के (रङ्ग के) कपड़े में सम्बन्धित ग्रह के वार को सुर्योदय के पश्चात सुर्योदय से बीस मिनट के अन्दर सम्बन्धित ग्रह का मन्त्र जप करते हुए दक्षिण भुजा (दाहिने हाथ की भुजा) में ही बान्धें।
सम्भव होतो सम्बन्धित ग्रह की जड़ीबुटी का महीन चुर्ण स्नान के जल में मिलाकर सम्बन्धित ग्रह के मन्त्र का जप करते हुए स्नान किया करें।

और सम्बन्धित ग्रह के मन्त्र जप करते हुए सम्बन्धित ग्रह के वृक्ष की समिधा का हवन करें।

ग्रहों के पौराणिक मन्त्र एवम् जप सङ्ख्या --

सुर्य --

देवता सवितृ यानि सविता। या आदित्य, और नारायण।

जप संख्या 10,000 (दस हजार)।

सुर्य का पौराणिक मन्त्र --

जपाकुसुम संकाशम्
काश्यपेयम् महाद्युतिम्।
तमोsरिम्  सर्व पापघ्नम्
प्रणतो अस्मि दिवाकरम्।।

चन्द्रमा --

देवता -- सोम , वरुण, और आपः।

जप संख्या 15,000 (पन्द्रह हजार)।

चन्द्रमा का पौराणिक मन्त्र --

दधिशंख तुषाराभम्
क्षीरोदार्णव सम्भवम् ।
नमामि शशिनम् सोमम् शम्भोर्मुकुट भूषणम्।।

मङ्गल   --

अग्नि, स्कन्ध/ कार्तिकेय, हनुमानजी।

जप संख्या -- 15,000 (पन्द्रह हजार)।

मङ्गल का पौराणिक मन्त्र --

धरणीगर्भ सम्भूतम् 
विद्युत्कान्ति समप्रभम्।
कुमारम् शक्ति हस्तम्
तम् मङ्गलम् प्रणमाम्यहम्।।

बुध -- 

देवता -- वामन अवतार -  विष्णु, वसु, वायु,

जप संख्या 6,000 (छः हजार)।

बुध का पौराणिक मन्त्र --

प्रियंगु कलिका श्यामम्
रुपेण अप्रतिम् बुधम्
सौम्यम् सौम्यगुण उपेतम्
तम् बुधम् प्रणमाम्यहम्।।

बृहस्पति ( देवगुरु)

देवता -- हिरण्यगर्भ ब्रह्मा, प्रजापति ब्रह्मा, बृहस्पत्ति देवता या ब्रह्मणस्पत्ति देवता।

जप संख्या  (25000) पच्चीस  हजार)

बृहस्पत्ति (गुरु) का पौराणिक मन्त्र --

देवानाम् च ऋषीणाम् च
गुरुम् काञ्चन संनिभम्।
बुद्धिभूतम् त्रिलोकेशम्
तम् नमामि बृहस्पतिम्।।

शुक्र --

देवता -- रुद्र, इन्द्र और लक्ष्मी (नारायण सहित)।

जप संख्या 21000 (एक्कीस हजार)।

शुक्र का पौराणिक मन्त्र --

हिमकुन्द मृणालाभम्
दैत्यानाम् परमम् गुरुम्।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारम्
भार्गवम् प्रणमाम्यहम्।।

शनि --

अर्यमा, यम, दस्र और नासत्य (दोनो अश्विनीकुमार)

जप संख्या 30,000 तीस हजार।

शनि का पौराणिक मन्त्र --

नीलाञ्जन समाभासम्
रविपुत्रम् यमाग्रजम् ।
छाँयायामार्तण्ड सम्भूतम्
तम् नमामि शनैश्चरम्।।

राहु

देवता -- नाग, पितृ, भैरव, निऋति।

जप संख्या 24,000 (चौवीस हजार)।

राहु का पौराणिक मन्त्र

अर्धकायम् महावीर्यम्
चन्द्रादित्य विमर्दनम्।
सिंहिकागर्भ सम्भूतम्
तम् राहुम् प्रणमाम्यहम्।।

केतु

देवता -- गजानन, विनायक, अष्ट विनायक।

जफ संख्या 23,000 (तेईस हजार)।

केतू का पौराणिक मन्त्र

पलाश पुष्प सङ्काश् 
ताराका ग्रह मस्तकम्।
रौद्रम् रौद्रात्मकम् घोरम्
तम् केतुम् प्रणमाम्यहम् ।।

ग्रहों के रत्न /नग, उप रत्न, जड़ीबूटी ।

सुर्य --

रत्न -- माणिक्य/ माणिक Rubey
(बर्मा का) 3 रत्ती से अधिक।

उप रत्न  --कंटकिज मणि / स्पाइनल Spinel. ,
या तामड़ा, Garnet या
विक्रान्त, शोभामणि, बैलास रूबी, रूबी सेल।

जड़ीबूटी - बेंत की जड़ या बैलमूल।

वृक्ष --अर्क /श्वेतार्क / आक / मदार।
(नगर / ग्राम / मोहल्ले/ कालोनी  के मध्य में रोपें।)

चन्द्रमा --

रत्न् --  मुक्ता/  मोती Pearl.

(बसरा या फारस की खाड़ी का ) 2 या 4 या 6 या 11 रत्ती लें
किन्तु  7 या 8 रत्ती न लें।

उप रत्न -- चन्द्रमणि।

जड़ीबूटी -- खिरनी की जड़।

वृक्ष --पलाश (ढाक) / खाँकरा।

मङ्गल --

रत्न -- प्रवाल/ विद्रुम/   मूंगा Coral
(भूमध्यसागरीय -- मार्सडीज, सर्डानिया, सिसली या कोर्सिका का मूंगा )  8,9,11,या 12 रत्ती लें।
किन्तु 5 या 14 रत्ती का न लें।

उपरत्न -- विद्रुम मणि , सङ्गमूङ्गी।

जड़ीबूटी -- नागजीव्हा की जड़।

वृक्ष -- खेर ( कत्था का वृक्ष) 
(नगर / ग्राम / मोहल्ले / कालोनी के दक्षिण में रोपें।)

बुध --  

पन्ना Emerald
(कोलम्बिया का) । (हाथों से मसलें फिर देखें।)

उपरत्न -- हरित नील मणि Aquamarine .

जड़ीबूटी -- बिदायरा या बरधारा की जड़।

वृक्ष -- अपामार्ग ( आन्धीझाड़ा। )

ब्रहस्पत्ति -- 

पुखराज Topaz
(ब्राजील की खान का जो माणिक्य के साथ मिला हो )  7 या 12 कैरेट का पीला पुखराज। लें।
किन्तू 6 या 11 15 कैरेट न लें।

उपरत्न -- सुनेला, या पीला सोनेला साइट्रोन

जड़ीबूटी -- नारङ्गी अर्थात  मौसम्बी की जड़।
(सन्तरा या कीनु के पौधे की जड़ न लें।)

वृक्ष -- अश्वत्थ / पीपल ।
(नगर/ ग्राम / मोहल्ले / कालोनी के उत्तर में रोपें।)

शुक्र -- हीरा / हीरक मणि Diamond
(भारत में दक्षिण भारत में पिनेर नदी से मध्य भारत में बुन्देलखण्ड की सोन नदी तथा खान नदियों  तक के क्षेत्र का वारितिर हीरा , नर हीरा।) 0.25  या 0.5 केरैट हो या 2 से 6 रत्ती हो।

उपरत्न -- गोमेद Zircon.  या मोती pearls.

जड़ीबूटी -- अरण्डा या वाघण्टी की जड़।

वृक्ष -- गुलर ।
(नगर/ ग्राम / मोहल्ले / कालोनी के पुर्व में रोपें।)

शनि -- नीलम Sapphire (कश्मीर का सर्वश्रेष्ठ या सुमजावा। या बर्मा या श्रीलंका का ।)
10 या11 रत्ती लें।

उपरत्न -- पन्ना ।

जड़ीबूटी -- बिछवा या बाच्छोल या जलजमनी।

वृक्ष -- शमी ( खेजड़ी) का वृक्ष।
(नगर/ ग्राम / मोहल्ले / कालोनी के पश्चिम में रोपें।)

राहु -- गोमेद Zircan or Hessonite
(श्रीलंका का)6, 11 या 13 कैरेट या 3,6 कैरेट का लें।
किन्तु 7,10 या.16 रत्ती न लें।

जड़ीबुटी -- मलय चन्दन या चन्दन की जड़।

वृक्ष -- दुर्वा ( दुब घाँस) ।
(नगर/ ग्राम / मोहल्ले / कालोनी के नैऋत्य कोण / दक्षिण पश्चिम में रोपें।)

केतु -- लहसुनिया Cat' eye बर्मा / म्यांमार की गोमोक खान या श्रीलंका  का)  3,5,या 7 केरैट या 3,5, या 6 कैरेट का लें।
किन्तु 2,4,11 या 13 रत्ती न लें।

उपरत्न -- गोदन्ती।

जड़ीबूटी -- अश्वगन्धा की जड़।

वृक्ष -- कुश  (कुशा घाँस)
(नगर/ ग्राम / मोहल्ले / कालोनी के वायव्य कोण/  उत्तरपश्चिम में रोपें।)

पशु -

नोट -
सामर्थ्य न हो तो पशु के बदले  सराफे में  चान्दी के पतरे पर उकेरे
वास्तुपुजा में लगने वाले ग्रहों की प्रतिमा / स्क्रप्चर ले लें।
ये भी न मिले तो पशु की मिट्टी की प्रतिमा ही ले लें।

सुर्य - लाल वृषभ, लाल बैल।

चन्द्रमा - श्वेत वृषभ, सफैद बैल।

मंगल - लाल वृषभ, लाल बैल।

बुध - गज , हाथी।

ब्रहस्पत्ति - गज , हाथी।

शुक्र - श्वेत वस्त्र से आवृत्त (ढंका) कोई भी पशु।

शनि - भैंस , महिषी।

राहु - काला घोड़ा, कृष्ण अश्व।

केतु - कोई भी अनाज।

धातु एवम् उप धातुएँ -

सभी ग्रहों की मुख्य धातु स्वर्ण (सोना Gold) ही है।केवल केतु अपवाद है;केतु की मुख्य धातु रोप्य   (चान्दी Silver) है। शेष सबकी स्वर्ण (सोना Gold))ही है।
मुख्य धातु स्वर्ण का कोई आभुषण तथा सोने का हार से लेकर सोने का काँटा /लोंग था सामर्थ्य कुछ भी ले सकते हैं।

ग्रहों की उपदातुएँ भिन्न भिन्न है;यथा :-

सुर्य - ताम्बा, ताम्र।

चन्द्रमा - चान्दी, रौप्य।

मङ्गल - ताम्बा, ताम्र।

बुध  - काँसा। काँस्य।

ब्रहस्पत्ति - काँसा। काँस्य।

शुक्र - चान्दी, रौप्य।

शनि- लोह / लोहा।
(कड़ाई, खोँचा (सरिया)/ या प्लायर जैसा उपकरण भी चलेगा किन्तु तीक्ष्ण ,काँटे वाली, चाकु, आरी, कटर आदि न लें।)

राहु - सीसा, कथीर, लेड।(Lead.)
प्लेट या छड़ जो मिले चलेगी।
सीसा नामक धातु वेल्डिंग साल्वेंट और कलाई की धातु ,टीन,  निकल, आदि से भिन्न है।

(नोट -- बेटरी सेल की बॉडी सीसे से बनती है।)

केतु - ताम्बा, ताम्र।

नोट - कोई उपयोगी बर्तन लें यथा - थाल, तपेली, कटोरी, ग्लास, चम्मच।

धान्य -

सुर्य -  गेंहूँ , गेहूँ।

चन्द्रमा - चाँवल ,अक्षत चाँवल।

मंगल - मसूर , खड़े मसूर।

बुध - मूंग, खड़े हरे मूंग।

बृहस्पत्ति - चने की दाल, देसी / काँटे वाले कत्थई चने की दाल।

शुक्र - चाँवल, अक्षत चाँवल।

शनि - उड़द, खड़े काले उड़द, माशान्न ।

राहु - तिल, काले तिल।

केतु - तिल, काले तिल।

नोट - सवाया लें ; यथा सवा किलोग्राम, सवा सौ ग्राम  या सवापाव ही लें।

रस -

नोट - सवाया लें ; यथा सवा किलोग्राम, सवा सौ ग्राम।

सुर्य - गुड़, मालवी गुड़, गन्ने के रस से बना गुड़।

चन्द्रमा - घृत, गौ घृत, देसी गाय के दुध से बना शुद्ध घीँ।

मंगल - गुड़, मालवी गुड़, गन्ने के रस से बना गुड़।

बुध - घृत, गौ घृत, देसी गाय के दुध से बना शुद्ध घीँ।

ब्रहस्पत्ति - शकरा, खाण्ड, खाण्डसारी, पीली शकर।

शुक्र - घृत, गौ घृत, देसी गाय के दुध से बना शुद्ध घीँ।

शनि - तेल, तिल का तेल,काले तिल का तेल।

राहु - तेल, तिल का तेल,काले तिल का तेल।

केतु - तेल, तिल का तेल,काले तिल का तेल।

नोट - सवाया लें ; यथा सवा किलोग्राम, सवा सौ ग्राम  या सवापाव ही लें।

वस्त्र -

सुर्य - लाल वस्त्र। (गुलाबी के निकट वाला या मेहरुन के निकट का लाल रङ्ग का वस्त्र।)

चन्द्रमा - श्वेत वस्त्र, धवल वस्त्र।

मंगल - लाल वस्त्र (चोल के कपड़े जैसा लाल/ हनुमानजी की लंगोट जैसा लाल रङ्ग का वस्त्र।)

बुध - हरा वस्त्र।(भारत के राष्ट्रध्वज में जैसा हरा है वैसा ही लें तोते के रंग का हरा न लें।)

ब्रहस्पत्ति - पीत / पीला वस्त्र। (भगवान विष्णुजी के पीताम्बर जैसा पीला वस्त्र। हल्दी जैसा भी चलेगा।)

शुक्र - रङ्ग बिरङ्गा वस्त्र या शुद्ध श्वेत वस्त्र, स्नो व्हाइट।

शनि - भेड़ के उन से बना काला कम्बल या भेड़ के उन से बनी काली शाल।

राहु - नीला वस्त्र, नील जैसा इण्डिगो कलर, (आसमानी ब्लु नही चलेगा।)

केतु - काला वस्त्र ।

नोट - सुती या शुद्ध रेशम से बना धोती- कुर्ता / कमीज, या बुशर्ट का कपड़ा/साड़ी- ब्लाउज़ पीस/ रुमाल ही लें।

पुष्प / फूल -

सुर्य -  रक्त पुष्प, लाल गुलाब, लाल कनेर, गुडहल।

चन्द्रमा - श्वेत पुष्प, मोगरा, चमेली, सफेद गुलाब, सफेद कनेर।

मंगल - रक्त पुष्प, लाल कनेर /रक्त करवीर,लाल गुलाब, गुडहल ।

बुध -  सभी पुष्प / कोई भी फूल हो। या हरा चम्पा ,केतकी (केवड़ा) का पुष्प।
(नोट --  केतकी /केवड़ा शिव मन्दिर में नही चड़ता है।)।

ब्रहस्पत्ति - पीत पुष्प ,वैजन्ती, पीला गुलाब, पीली कनेर।

शुक्र - श्वेत पुष्प, मोगरा, चमेली, सफेद गुलाब, सफेद कनेर।

शनि - कृष्ण पुष्प, काला फुल।
(न मिले तो नील जैसा गहरा नीला फुल ले लें। आसमानी न लें।)

राहु - कृष्ण पुष्प, काला फुल।
(न मिले तो नील जैसा गहरा नीला फुल ले लें। आसमानी न लें।)

केतु - कृष्ण पुष्प, काला फुल।
(न मिले तो नील जैसा गहरा नीला फुल ले लें। आसमानी न लें।)

पुस्तक -

नोट - पुस्तक, जड़ीबुटी और वृक्ष दान करना बिल्कुल जरूरी नही है । किन्तु यदि आसानी से उपलब्ध हो तो अवश्य दें।
शेष चीजें जरूरी है। वे जरूर देवें।

सुर्य - वेद, विशेषकर सामवेद सुर्य सुक्त, उषःसुक्त,चाक्षुषोपनिषद, महाभारत, सन्ध्योपासना विधि, सावित्री जप / गायत्री जप विधि, आदित्य हृदय स्तोत्र, ।

चन्द्रमा - कोई भी धार्मिक पुस्तक या चन्द्रवंश वंशावली, या साण्डेश्वर सोमवार वृत कथा, अत्रि ऋषि -  सति अनसूया की कथा, गोदावरी स्नान माहत्म्य।

मंगल - ऋग्वेद, अग्नि सुक्त, अग्नि पुराण, स्कन्द पुराण।

बुध - यजुर्वेद,  उत्तरनारायण सुक्त सहित पुरुषसूक्त, वैदिक विष्णुसुक्त, वाल्मीकि रामायण, गर्ग संहिता, विष्णु सहस्त्रनाम,श्रीमद्भगवद्गीता।

गुरु - अथर्ववेद, ब्रह्मणस्पत्ति सुक्त, ब्रहस्पत्ति सुक्त, ब्रह्म पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण।

शुक्र - रुद्र अष्टाध्यायी, शिव पुराण, शिवमहिम्नस्तोत्र।या लक्ष्मी सुक्त, श्री सुक्त, इन्द्र सुक्त, ऐश्वर्य सुक्त में से कोईभी।

शनि - यम सुक्त, कठोपनिषद, यमगीता।

राहु - महाभारत का आस्तिक पर्व।

केतु -  गणेश अथर्वशिर्ष,  समुद्र मन्थन कथा।

ग्रहों की जड़ीबुटी --

सुर्य -- बेंत  की जड़ या बैलमूल।

चन्द्रमा -- खिरनी की जड़।

मङ्गल -- नागजीव्हा की जड़।

बुध -- बिदायरा या बरधारा की जड़।

बृहस्पत्ति -- नारङ्गी/ भारङ्गी यानि मोसम्बी की जड़।
(सन्तरा या कीनु की जड़ न लें।)

शुक्र -- अरण्डा या वाघण्टी की जड़।

शनि -- बिछवा या बाच्छोल की जड़ / जलजमनी की जड़ ।

राहु -- मलय चन्दन की जड़।

केतु अश्वगन्था / असगन्ध की जड़ ।

ग्रहों के पौधे (वृक्ष) और लगाने की दिशा। --

सुर्य -- अर्क ,(मदार), आक । मध्म में रोपें।

चन्द्रमा -- ढाक (पलाश)।

मङ्गल -- खेर । दक्षिण में रोपें।

बुध -- अपामार्ग ( आन्धीझाड़ा)

बृहस्पति -- पीपल । उत्तर में रोपें।

शुक्र -- गुलर । पुर्व में रोपें।

शनि -- शमि । पश्चिम में रोपें।

राहु -- दुर्वा (दुब)। दक्षिण पश्चिम में रोपें।

केतु  -- कुश। उत्तर पश्चिम में रोपें।

(रतनजोत और अनार भी)

उत्तर पुर्व में लटजीरा।

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